अम्बर बदन झपाबह गोरि। राज सुनइ छिअ चांदक चोरि।। घरे घरे पहरु गेल अछ जोहि। अब ही दूखन लागत तोहि।। कतय नुकायब चांदक चोरि। जतहि नुकायब ततहि उजोरि।। हास सुधारस न कर उजोर। बनिक धनिक धन बोलब मोर।। अधर समीप दसन कर जोति। सिंदुर सीम बैसाउलि मोति।। भनइ विद्यापति होहु निसंक। चांदुह कां किछु लागु कलंक।।