ए धनि माननि करह संजात। तुअ कुच हेमघाट हार भुजंगिनी ताक उपर धरु हाथ।। तोंहे छाडि जदि हम परसब कोय। तुअ हार-नागिनि कारब माथे।। हमर बचन यदि नहि परतीत। बुझि करह साति जे होय उचीत।। भुज पास बांधि जघन तले तारि। पयोधर पाथर अदेह मारि।। उप कारा बांधि राखह दिन-राति। विद्यापति कह उचित ई शादी।।