जखन लेल हरि कंचुअ अचोडि कत परि जुगुति कयलि अंग मोहि।। तखनुक कहिनी कहल न जाय। लाजे सुमुखि धनि रसलि लजाय।। कर न मिझाय दूर दीप। लाजे न मरय नारि कठजीव।। अंकम कठिन सहय के पार। कोमल हृदय उखडि गेल हार।। भनह विद्यापति तखनुक झन। कओन कहय सखि होयत बिहान।।