आजु नाथ एक व्रत मोहि सुख लागत हे ।
तोहे सिव धरि नट वेष कि डमरू बजाएव हे ।
भल न कहल गौरा रउरा आजु सु नाचब हे ।
सदा सोच मोहि होत कवन विधि बांचव हे ।
जे जे सोच मोहि होत कहा समुझाएव हे ।
रउरा जगत् के नाथ कवन सोच लागएव हे ।
नाग ससरि भूमि खसत पुहुमि लोटायत हे ।
कार्तिक पोसल मजूर सेहो धरि खायत हे ।
अमिय चुइ भूमि खसत बघम्बर जागत हे ।
होत बघम्बर बाघ बसहा धरि खायत हे ।
टूटी खसत रुदराछ मसान जगावत हे ।
गौरी कहँ दु:ख होत विद्यापति गावत हे ।