करना सियासत, तिजारत की ख़ातिर ।[1]
इससे तो अच्छा है नाक़ारा रहते ।।[2]
चूल्हे बुझाकर, अलावों का मजमा ।
इससे तो अच्छा है कुहरे में रहते ।।
गर है लियाक़त का आग़ाज़ सजदा ।[3]
इससे तो अच्छा है आवारा रहते ।।
महलों की खिड़की से रिश्तों को तकना ।
इससे तो अच्छा है गलियों में रहते ।।
ग़ैरों की महफ़िल में बेवजहा हँसना ।
इससे तो अच्छा है तन्हा ही रहते ।।
बेमानी वादों से जनता को ठगना ।
इससे तो अच्छा है तुम चुप ही रहते ।।