मरना ही शौक़ होता तो मर गए होते
जायज़ अगर ये होता तो कर गए होते
मालूम गर ये होता बुरा मानते हो तुम
इतने तो शर्मदार हैं, क्यों घर गए होते
इक दोस्ती का वास्ता तुमसे नहीं रहा
पहचान भी तो रस्म है, वो कर गए होते
उस मुफ़लिसी के दौर में हम ही थे राज़दार[1]
आसाइशों की बज्म़ दिखा कर गए होते[2][3]
हर रोज़ मुलाक़ात औ बातों के सिलसिले
इक रोज़ ख़त्म करते हैं, वो कर गए होते
माज़ूर बनके क्या मिलें अब दोस्तों से हम[4]
कुछ दोस्ती का पास निभा कर गए होते[5]
पहले बहुत ग़ुरूर था तुम दोस्त हो मेरे
अब दुश्मनी के तौर बता कर गए होते[6]
'बंदा' नहीं है मुंतज़िर अब रहमतों का यार[7][8]
ताकीद हर एक दोस्त को हम कर गये होते[9]