निशाचर निरा मैं
छायाहीन
प्रतिबिम्बित मानसयुक्त,
अचेतन मन का स्वामी
उत्कंठा लिए
मैं सार्वकालिक, सार्वभौमिक सत्य
खोजता लगातार
हताश फिर भी,
नियत भविष्य के लिए
स्वागत द्वारों को नकार
मैं हिचकता हुआ
लगातार
सोच वही...
और क्यों नहीं बदल पाता
हर बार
ज्योंही हिला पत्ता पीपल का,
चौंका निशाचर मैं
अनिवार
लिए भूत अपना,
भेंट करने, भविष्य को
साकार
फूलों की झाड़ी
में काँटों की आड़ लिए
भौंका किया लगातार
लिप्त आडम्बरों से
सकुचाता हुआ
व्यवस्थित अव्यवस्था के लिए
भाड़ झोंका किया
लगातार
चौंका मैं पीपल के पत्ते से
बार बार