प्रतापगढ़ अभिलेख

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प्रतापगढ़ अभिलेख (अंग्रेज़ी: Pratapgarh Inscriptions) में गुर्जर-प्रतिहार नरेश महेन्द्रपाल की उपलब्धियों का वर्णन किया गया है। तत्कालीन समाज, कृषि एवं धर्म की जानकारी भी मिलती है।[1]

  • प्राचीन भू-अभिलेख दस्तावेजों के आधार पर प्रतापगढ़ जिले में खेती की भूमि किस्में 'सिंचित', 'असिंचित-काली-भूमि, 'धामनी', 'कंकरोट', 'अडान' और 'बंजर-काली' थीं।
  • प्रतापगढ़ जिसे कांठल प्रदेश और देवगढ़ आदि के नाम से जाना गया, इस क्षेत्र का इतिहास काफी प्राचीन है। इस क्षेत्र पर भील प्रमुख का शासन था। उनके बाद अन्य शासकों ने शासन किया। सुविख्यात इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार "प्रतापगढ़ का सूर्यवंशीय राजपूत राजपरिवार मेवाड़ के गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा से सम्बद्ध रहा है।
  • इतिहास की किताबों में 'परताबगढ़-राज' की पंद्रहवीं सदी से प्रायः अगले सौ सालों तक का कोई लंबा-चौड़ा विवरण नहीं मिलता, पर महारावत प्रतापसिंह, जिन्होंने प्रतापगढ़ की स्थापना कांठल राज की नई राजधानी के रूप में की, के वक्त से यहां के इतिहास पर थोड़ी बहुत रोशनी ज़रूर डाली जा सकती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राजस्थान के अभिलेख (हिंदी) govtexamsuccess.com। अभिगमन तिथि: 14 दिसम्बर, 2021।

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