सुंधा शिलालेख
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सुंधा शिलालेख (अंग्रेज़ी: Sundha Inscription) जालौर, राजस्थान के ऐतिहासिक सुंधा माता मंदिर में स्थित है। मंदिर परिसर में तीन ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण शिलालेख हैं जो इस क्षेत्र के इतिहास को उजागर करते हैं। सुंधमाता के मंदिर का निर्माण देवल प्रतिहारों ने जालोर के शाही चौहानों की मदद से करवाया था। पहला शिलालेख 1262 ई. का है, जिसमें चौहानों की जीत और परमारों के पतन का वर्णन है। दूसरा शिलालेख 1326 का है और तीसरा 1727 का है।[1]
- प्राप्त शिलालेख 'हरिशेन शिलालेख' या 'महरौली शिलालेख' की तरह ऐतिहासिक महत्व का है।
- इस शिलालेख के अनुसार जालोर के चौहान नरेश चाचिगदेव ने इस देवी के मंदिर में विक्रम संवत 1319 में मंडप बनवाया था, जिससे स्पष्ट होता है कि इस सुगंधगिरी अथवा सौगन्धिक पर्वत पर चाचिगदेव से पहले ही यहाँ चामुंडा जी विराजमान थी तथा चामुंडा 'अघटेश्वरी' नाम से लोक प्रसिद्ध थी।
- सुंधा माता के विषय में एक जनश्रुति यह भी है कि बकासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए चामुंडा अपनी सात शक्तियों (सप्त मातृकाओं) समेत यहाँ पर अवतरित हुई, जिनकी मूर्तियाँ चामुंडा (सुंधा माता) के पार्श्व में प्रतिष्ठित हैं।[2]
- सुंधा शिलालेख में चौहानों को ब्राह्मण बताया गया है।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चौहानों की जीत और परमारों के पतन का साक्षी Jalore का संधू माता मंदिर (हिंदी) aapkarajasthan.com। अभिगमन तिथि: 22 दिसम्बर, 2021।
- ↑ राजस्थान का प्रसिद्ध शक्तिपीठ जालौर की सुंधामाता (हिंदी) rajtotalgk.com। अभिगमन तिथि: 22 दिसम्बर, 2021।
- ↑ राजस्थान के अभिलेख (हिंदी) samanyagyanedu.in। अभिगमन तिथि: 22 दिसम्बर, 2021।