भूटिया हिमालयी लोग हैं, जो नौंवी शताब्दी या बाद में तिब्बत से दक्षिण की ओर उत्प्रवास करने वाले माने जाते हैं। इस जनजाति के लोगों को 'भोटिया' या 'भोट' और 'भूटानी' भी कहलाते हैं। ये लोग अधिकांशत: पहाड़ी स्थानों पर ही रहते हैं। भूटिया जनजाति के लोग पर्वतीय ढलानों पर सीढ़ीदार खेत बनाकर खेती करते हैं। ये दलाई लामा को अपने आध्यात्मिक नेता के रूप में मानते हैं।
विस्तार
भूटिया भारत के पड़ोसी देश भूटान की जनसंख्या में बहुसंख्यक हैं और नेपाल तथा भारत, विशेषकर भारत के सिक्किम राज्य में अल्पसंख्यक हैं। ये चीनी तिब्बती भाषा परिवार की तिब्बती-बर्मी शाखा की विविध भाषाएँ बोलते हैं। भूटिया छोटे गाँवों और लगभग अगम्य भू-भाग द्वारा अलग किये गए पृथक् भूखंडों में रहने वाले पहाड़ी लोग हैं।
व्यवसाय
इस जनजाति के लोग खेती पर अधिक निर्भर हैं। ये लोग पर्वतीय ढलानों पर सीढ़ीदार खेती करते हैं और मुख्यत: चावल, मक्का और आलू की फसल उगाते हैं। इनमें से कुछ पशु प्रजनक हैं, जो मवेशियों और याक के लिए जाने जाते हैं।
धर्म
भूटियाओं का धर्म 'बॉन' नाम से विख्यात पूर्व बौद्ध ओझाई धर्म के सम्मिश्रण वाला तिब्बती बौद्ध धर्म है। ये दलाई लामा को अपने आध्यात्मिक नेता के रूप में मानते हैं। भूटिया अपनी उत्पत्ति को पैतृक वंश के अनुसार चिह्नित करते हैं। ये एकविवाही होते हैं, किन्तु कुछ क्षेत्रों में बहुविवाह अब भी प्रचलित है।
रोचक प्रसंग
भारत के उत्तराखंड में द्रोणगिरी गाँव में बसने वाले भूटिया जनजाति के लोग हिन्दू धर्म को मानने वाले हैं। ये सभी हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, लेकिन श्रीराम के भक्त हनुमान से ये लोग ईर्ष्या करते हैं। क्योंकि द्रोणगिरी के आदिवासियों की हनुमान जी से नाराजगी त्रेता युग से चली आ रही है। इसका कारण यह माना जाता है कि लंका नरेश रावण के पुत्र मेघनाद के बाण से घायल होकर लक्ष्मण मूर्च्छित हो गये थे। इस समय वैद्य सुषेण ने हनुमान जी को संजीवनी लाने के लिए कहा था। सुषेण ने हनुमान को बताया था कि संजीवनी बूटी सिर्फ़ द्रोणगिरी पर्वत पर ही मिलती है। कहा जाता है कि हनुमान जी संजीवनी बूटी की पहचान नहीं कर सके और पूरा का पूरा पर्वत ही उठाकर चल दिये। कहा जाता है कि हनुमान जी जिस पर्वत को उठाकर अपने साथ ले गये थे, द्रोणगिरी निवासी उसी पर्वत की पूजा किया करते थे। अपने देवता को हनुमान जी द्वारा ले जाने के कारण यहाँ के निवासी हनुमान से नाराज हैं। इस इलाके में कोई भी हनुमान का नाम नहीं लेता है।[1]
सामंतवादी समाज
इनका पारंपरिक समाज सामंतवादी था, जिसमें अधिकांश जनता एक भू-स्वामी अभिजात वर्ग के लिए काश्तकारों के रूप में काम करने वाली थी, यद्यपि भू-स्वामियों और काश्तकारों की जीवनशैली के बीच कुछ विशिष्ट भिन्नताएँ थीं। इनमें ग़ुलाम भी थे, जिनमें से अधिकांश भारतीय क्षेत्रों पर किये गए आक्रमणों में पकड़े गए क़ैदियों की संतानें हैं। 1960 में भूटानी सरकार ने ग़ुलामों को विधिवत समाप्त कर दिया, बड़ी जागीरों को विघटित करने का प्रयास किया और अभिजात वर्ग को भी अपनी पैतृक उपाधियों से वंचित कर दिया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ द्रोणगिरी, हनुमान, उत्तराखंड, भूटिया (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 19 मार्च, 2013।
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