ख़य्याम

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ख़य्याम
मोहम्मद ज़हुर 'ख़य्याम' हाशमी
मोहम्मद ज़हुर 'ख़य्याम' हाशमी
पूरा नाम मोहम्मद ज़हुर 'ख़य्याम' हाशमी
प्रसिद्ध नाम ख़य्याम
जन्म 18 फ़रवरी, 1927
जन्म भूमि जालंधर, पंजाब
मृत्यु 19 अगस्त 2019
मृत्यु स्थान मुम्बई
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र संगीतकार
मुख्य फ़िल्में फिर सुबह होगी, शोला और शबनम, शगुन, कभी-कभी, उमराव जान, आख़िरी खत
पुरस्कार-उपाधि संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्ध गीत दूर हटो ऐ दुनिया वालो, रूठ के तुम तो चल दिए, दिल जलता है तो जलने दे, बदली तेरी नज़र तो नज़ारे बदल गए
अन्य जानकारी ख़य्याम बॉलीवुड के ऐसे संगीतकार हैं, जिन्होंने कम फिल्मों में संगीत दिया, मगर उनके गीत और धुनें अमर हैं।
अद्यतन‎

मोहम्मद ज़हुर 'ख़य्याम' हाशमी (अंग्रेज़ी: Mohammed Zahur Khayyam, जन्म: 18 फरवरी, 1927- निधन: 19 अगस्त 2019) भारतीय फ़िल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार थे। ख़य्याम बॉलीवुड के ऐसे संगीतकार थे, जिन्होंने कम फिल्मों में संगीत दिया, मगर उनके गीत और धुनें अमर हैं। उनके गीत रोजाना आकाशवाणी अथवा टेलीविजन पर किसी न किसी रूप में सुनाए-दिखाए जाते हैं। उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री में क़रीब 40 साल काम किया और 35 फ़िल्मों में संगीत दिया। ख़य्याम ने शर्माजी नाम से कुछ फिल्मों में संगीत भी दिया है।

जीवन परिचय

ख़य्याम का पूरा नाम है मोहम्मद जहूर ख़य्याम हाशमी। इनका जन्म 18 फ़रवरी, 1927 को पंजाब के जालंधर जिले के नवाब शहर में हुआ था। पूरा परिवार शिक्षित-दीक्षित था। परिवार में कुल चार भाई और एक बहन थे। सबसे बड़े भाई अमीन परिवार का ट्रांसपोर्ट बिजनेस देखते थे। दूसरे भाई मुश्ताक जनरल मैनेजर के पद से रिटायर हुए। तीसरे भाई गुलजार हाशमी शायरी करते थे, लेकिन छोटी उम्र में इंतकाल हो गया। ख़य्याम अपने पिता के चौथे बेटे थे, जो संगीत के शौक के कारण पाँचवीं तक पढ़ाई कर घर से भागना पड़ा।

कार्यक्षेत्र

ख़य्याम के मामाजी को गीत-संगीत से लगाव था। उन्होंने ही बम्बई में ख़य्याम को बाबा चिश्ती से मिलवाया, जो बी. आर. चोपड़ा की फिल्म 'ये है जिन्दगी' का संगीत तैयार कर रहे थे। बाबा ने उन्हें अपना सहयोगी तो बना लिया, मगर कहा कि पैसा-टका कुछ नहीं मिलेगा। संगीतकार ख़य्याम ने फिल्म रोमियो एंड जूलियट में एक्टिंग भी की है। एक बार फिल्म के सेट पर ख़य्याम और चोपड़ा सही समय पर पहुँचते। बाकी लोग देरी से आते थे। महीने के आखिरी दिन सबको वेतन दिया गया। केवल ख़य्याम ख़ाली हाथ रहे। यह देख चोपड़ा ने बाबा से पूछा इन्हें पैसा क्यों नहीं? जवाब मिला- 'ट्रेनिंग पीरियड में यह मुफ़्त में काम कर रहा है।' चोपड़ा को यह बात रास नहीं आई। उन्होंने फौरन अकाउंटेंट से एक सौ पच्चीस रुपए ख़य्याम को दिलवाए। अपनी हथेली पर इतने रुपए देखकर ख़य्याम की आँखों में आँसू आ गए। चोपड़ा साहब की इस मेहरबानी को उन्होंने हमेशा याद रखा। बाबा चिश्ती ने ख़य्याम को सहायक तो बनाया, मगर सिर्फ खाना-खुराक और खोली का किराया अदा करते थे।

ख़य्याम दोस्तों के साथ जब कभी होटल-रेस्तराँ में जाते, उनकी जेबें ख़ाली रहती थीं। हर बार पेमेंट दोस्त करें, यह उनके जैसे खुद्दार व्यक्ति को नागवार गुजरता था। एक बार बड़े भाई के पास पैसे माँगने गए। भाई ने पूछा- 'काम करते हो, तो कितना मिलता है?' ख़य्याम ने जैसे ही कहा कि फोकट में काम करते हैं, वैसे ही भाई ने तड़ातड़ चाँटे जड़ दिए और कहा कि फोकटिए नौकर को वे फूटी कौड़ी नहीं देंगे।

सेना में सिपाही

भाई के रूखे व्यवहार से दुःखी होकर उन्होंने सेना में सिपाही बनने का सोचा। अखबार में विज्ञापन पढ़ा कि ट्रेनिंग के बाद युवा सिपाहियों को आकर्षक तनख्वाह मिलेगी। दो साल तक ख़य्याम ने सिपाही की नौकरी की। काफ़ी पैसा जमा किया। संगीत का शौक फिर बंबई खींच लाया। [1]

वर्तमान में

भले ही मुख्यधारा के सिनेमा गीत-संगीत में ख़य्याम आज शामिल नहीं हों, फिर भी वे अपने स्तर पर सक्रिय हैं। एक साल पहले उन्होंने फिल्म 'मैं फिर आऊँगा' का संगीत दिया है। यह फिल्म डॉ. कृष्णकांत पण्ड्या के उपन्यास पर आधारित है। इसके पाँच गीतों को अलका याग्निक, सुनिधि चौहान और कविता कृष्णमूर्ति ने गाया है। मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'बाज़ारे-ए-हुस्न' पर आधारित फिल्म 1918 : ए लव स्टोरी' ख़य्याम की पसंदीदा फिल्म है। इस फिल्म में एक दरोगा की बेटी हालात से मजबूर होकर नाच-गाने के धंधे में आ जाती है। इस फिल्म में संगीत देकर एक तरह से उन्होंने मुंशी प्रेमचंद को आदरांजलि दी है। आज के संगीत पर उनकी राय है- शोर-ए-बद्तमीजी।[1]

निधन

भारतीय सिनेमा के दिग्गज संगीतकार मोहम्मद ज़हूर ख़य्याम हाशमी का 19 अगस्त 2019 को रात साढ़े नौ बजे निधन हो गया। पिछले कुछ समय से सांस लेने में दिक़्क़त के कारण उनका मुंबई के जुहू में एक अस्पताल में इलाज चल रहा था। वह 93 साल के थे।

प्रसिद्ध गीत

  • शामे गम की कसम, गायक- तलत महमूद, फ़िल्म- फुटपाथ
  • है कली-कली के लब पर, गायक- मोहम्मद रफी, फ़िल्म- लाला रुख
  • वो सुबह कभी तो आएगी, गायक- मुकेश-आशा भोंसले, फ़िल्म- फिर सुबह होगी
  • जीत ही लेंगे बाजी हम तुम, गायक- रफी-लता मंगेशकर, फ़िल्म- शोला और शबनम
  • तुम अपना रंजो-गम अपनी परेशानी मुझे दे दो, गायक- जगजीत कौर, फ़िल्म- शगुन
  • बहारों, मेरा जीवन भी सँवारो, गायक- लता, फ़िल्म- आख़िरी खत
  • कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है, गायक- साहिर, फ़िल्म- कभी-कभी
  • मोहब्बत बड़े काम की चीज है, गायक- येसुदास-किशोर-लता, फ़िल्म- त्रिशूल
  • दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए, गायक- आशा भोंसले, फ़िल्म- उमराव जान
  • ये क्या जगह है दोस्तो/आशा भोंसले, फ़िल्म- उमराव जान

सम्मान एवं पुरस्कार

  • 1977 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार : कभी कभी
  • 1982 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार : उमराव जान
  • 2007 - संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
  • 2011 - पद्म भूषण
  • उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्वर्गीय संगीतकार नौशाद अली स्मृति प्रथम सम्मान।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कभी-कभी ख़य्याम के दिल में खयाल आता है (हिंदी) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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