शरद कुमार
शरद कुमार
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पूरा नाम | शरद कुमार |
जन्म | 1 मार्च, 1992 |
जन्म भूमि | पटना, बिहार |
कर्म भूमि | भारत |
खेल-क्षेत्र | ऊँची कूद |
शिक्षा | मास्टर्स डिग्री (अंतरराष्ट्रीय संबंध) |
विद्यालय | जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय |
प्रसिद्धि | भारतीय पैरा एथलीट |
नागरिकता | भारतीय |
क़द | 5 फुट 11 इंच |
अन्य जानकारी | साल 2019 में आईपीसी वर्ल्ड चैंपियनशिप में शरद कुमार ने रजत पदक जीता था और पैरालिंपिक के लिए क्वालिफाई किया। |
अद्यतन | 17:02, 1 सितम्बर 2021 (IST)
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शरद कुमार (अंग्रेज़ी: Sharad Kumar, जन्म- 1 मार्च, 1992, पटना, बिहार) भारतीय पैरा एथलीट हैं। उन्होंने ग्रीष्मकालीन पैरालम्पिक, 2020 (टोक्यो पैरालिंपिक) में देश के काँस्य पदक जीता है। वह टी42 ऊंची कूद फाइनल से अपना नाम वापस लेने की सोच रहे थे। ऐसा इसलिए क्योंकि वह अभ्यास के दौरान चोटिल हो गए थे। लेकिन इस मुश्किल घड़ी में भगवद् गीता ने उनका साथ दिया और वह पदक जीतने में सफल रहे। टोक्यो पैरालंपिक में मरियप्पन थंगावेलु ने रजत पदक जीता, जबकि शरद कुमार को कांस्य मिला। शरद कुमार दो बार एशियाई पैरा खेलों में चैंपियन और विश्व चैम्पियनशिप के रजत पदक विजेता रहे हैं।
परिचय
दिल्ली के मॉडर्न स्कूल और किरोड़ीमल कॉलेज से तालीम लेने वाले शरद कुमार ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मास्टर्स डिग्री ली है।
शरद कुमार महज दो साल के थे, जब डॉक्टर ने उन्हें गलत इंजेक्शन दे दिया। जिस वजह से वह पोलियो से ग्रसित हो गए। माता-पिता इस घटना के बाद टूट गए लेकिन उन्होंने बेटे को पढ़ाई पर ध्यान लगाने को कहा। इसके लिए उन्होंने बेटे को खुद से दूर दार्जिलिंग के बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया। वह ऱिश्तेदारों से मांगकर और उधार लेकर स्कूल की फीस भरा करते थे।[1]
बच्चे उड़ाते थे मजाक
इसी स्कूल में शरद कुमार के खेल का सफर शुरू हुआ। वह पढ़ाई में जितने अच्छे थे खेल के उतने ही शौकीन। शुरुआत में जब वह अभ्यास करते थे तो बच्चे उनका मजाक उड़ाते थे। इसी वजह से वह अकेले में अभ्यास करते थे। जब छुट्टियों में वह घर आते थे तो आम के पेडों के बीच रस्सी बांधकर और नीचे गद्दे डालकर हाई जंप का अभ्यास करते थे। उन्होंने साल 2000 की शुरुआत में दार्जिलिंग राज्य चैंपियनशिप जीती। वहीं साल 2008 में उन्होंने अपना पहला नेशनल पदक जीता था। शरद ने 1.76 मीटर से भी ज्यादा के कूद के साथ लंदन ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई किया। हालांकि तभी उन्हें पता चला कि उनका दिया सैंपल डोपिंग में पॉजिटिव पाया गया है।
डोपिंग ने तोड़ा आत्मविश्वास
शरद कुमार उस समय अपने पूरे फॉर्म में थे और लंदन में खुद को गोल्ड लाने का दावेदार मान रहे थे। हालांकि बैन के कारण वह अगले दो साल तक खेल से दूर रहे। यह समय उन्होंने जेएनयू में अपनी पढ़ाई पर लगाया। वह यहां हाई जंप और खेलों से जुड़ी खबरें भी पढ़ा करते थे। रियो ओलिंपिक में वह छठे स्थान पर रहे थे जिससे वह काफी निराश हुए। उन्होंने रियो के बाद छह महीने तक ट्रेनिंग नहीं की लेकिन पैरालिंपिक पदक का सपना जिंदा रखा। वह यूक्रेन में ट्रेनिंग करने लगे। साल 2019 में आईपीसी वर्ल्ड चैंपियनशिप में उन्होंने रजत पदक जीता और पैरालिंपिक के लिए क्वालिफाई किया। यूक्रेन में भी वह पढ़ाई से दूर नहीं हुए। अपनी किताबें साथ लेकर गए।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 डॉक्टर की लापरवाही ने बनाया मजबूर, खेल चुना तो हुए बैन (हिंदी) tv9hindi.com। अभिगमन तिथि: 01 सितंबर, 2021।