वरुण भाटी
वरुण भाटी
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पूरा नाम | वरुण भाटी |
जन्म | 13 फ़रवरी, 1995 |
अभिभावक | पिता- हेम सिंह |
कर्म भूमि | भारत |
खेल-क्षेत्र | ऊँची कूद (हाई जंप) |
शिक्षा | बीएससी |
विद्यालय | सेंट जोसफ़ स्कूल, ग्रेटर नोएडा; दिल्ली विश्वविद्यालय |
नागरिकता | भारतीय |
कोच | मनीष तिवारी |
अन्य जानकारी | वरुण राज्य स्तर तक बास्केटबॉल खेल चुके हैं। पोलियो के कारण राज्य स्तर से आगे उनका चुनाव नहीं हो पाया। उनकी बहन कृति पावर लिफ्टिंग में राज्य स्तर पर स्वर्ण और भाई प्रवीण फ़ुटबॉल और ऊँची कूद में राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं। |
वरुण भाटी (अंग्रेज़ी: Varun Bhati, जन्म- 13 फ़रवरी, 1995) भारत के ऊँची कूद के खिलाड़ी हैं। ब्राजील के रियो डी जनेरियो में पैरालंपिक खेलों में पुरुषों के ऊँची कूद मुकाबले में वरुण भाटी ने कांस्य पदक जीता है, जबकि भारत के ही मरियप्पन थंगावेलु ने इस प्रतियोगिता का स्वर्ण पदक जीता। मरियप्पन थंगावेलु ने 1.89 मी. की जंप लगाते हुए सोना जीता, जबकि भाटी ने 1.86 मी. की जंप लगाते हुए कांस्य पदक अपने नाम किया।
परिचय
वरुण भाटी का जन्म 13 फ़रवरी, 1995 को हुआ था। वे ग्रेटर नोएडा स्थित जलालपुर के निवासी हैं। यहां के सेंट जोसफ़ स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ली है। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीएससी की पढ़ाई पूरी की है। वरुण राज्य स्तर तक बास्केटबॉल खेल चुके हैं। पोलियो के कारण राज्य स्तर से आगे उनका चुनाव नहीं हो पाया। उनकी बहन कृति पावर लिफ्टिंग में राज्य स्तर पर स्वर्ण और भाई प्रवीण फ़ुटबॉल और ऊँची कूद में राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं। उनके पिता हेम सिंह शहर में स्थित बहुराष्ट्रीय कार फैक्ट्री में मैन्यूफेक्चरर एसोसिएट के पद पर कार्यरत हैं।[1]
कॅरियर की शुरुआत
बाॅस्केटबाल से अपने कॅरियर की शुरुआत करने वाले वरुण ने यहां से बाहर निकाले जाने पर भी हिम्मत नहीं हारी और जोश, जज्बे और जुनून को कायम रखते हुए ऊँची कूद को अपना हथियार बना लिया। कोच की मदद आैर अपनी मेहनत व लगन से वरुण ने बाहरी देशों में एक के बाद एक मेडल लेकर देश का सिर भी गर्व से उठा दिया।
वरुण भाटी के कोच मनीष तिवारी के अनुसार, वरुण भाटी ने छठी कक्षा में गेम ज्वाइन किया था। वह बाॅस्केटबाल खेलने में बहुत ही माहिर था, लेकिन अक्सर बाहर होने वाले मैचों में उसे हैंडिकेप्ड होने के चलते खेलने से रोक दिया जाता था। इसके बाद भी उसने हार नहीं मानी और करीब चार साल तक बाॅस्केटबाल खेलता रहा। इस गेम में भी उसने कर्इ मेडल हासिल किए, लेकिन बाहर खेले जाने वाले मैचों में उसे हैंडिकेप्ड होने के चलते खेलने से रोक दिया जाता था।
ऊँची कूद में कॅरियर
वरुण भाटी के कोच बताते हैं कि बार-बार टीम से बाहर निकाले जाने से पहले तो वरुण काफ़ी परेशान हो गया था, लेकिन इसके बाद भी उसने हिम्मत नहीं हारी और ऊँची कूद को अपना कॅरियर बना लिया। देखते ही देखते वह सबका उस्ताद बन गया। कोच बताते हैं कि जब वरुण दसवीं कक्षा में था, तभी से उसने ऊँची कूद की तैयारी शुरू कर दी थी। इसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक लगातार पदक जीते। वरुण रोज़ाना छह से सात घंटे अभ्यास करते हैं। अपनी इसी लगन आैर हौंसले के बल पर उन्होंने जीत हासिल की है।
उपलब्धियाँ
- चीन ओपन गेम्स-2013 में 1.72 मीटर जंप में स्वर्ण
- श्रीलंका आर्मी गेम्स-2013 में 1.72 मीटर में स्वर्ण
- एशियन गेम्स-2014 में चौथा स्थान
- वर्ल्ड पैरा चैंपियनशिप दोहा-2015 में 5वां स्थान
- दुबई में आइपीसी गेम्स-2016 में स्वर्ण पदक
- जेपीसी चैंपियनशिप-2016 जर्मनी में रजत पदक
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कॅरियर के शुरुआत में ये खिलाड़ी हुआ था रिजेक्ट, एक जिद से लाइफ हुई चेंज (हिंदी) दैनिक भास्कर। अभिगमन तिथि: 11 सितम्बर, 2016।