राष्ट्रीय मतदाता दिवस
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विवरण | 'राष्ट्रीय मतदाता दिवस' भारत में मनाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय दिवसों में से एक है। |
तिथि | प्रत्येक वर्ष '25 जनवरी' |
देश | भारत |
मुख्य उद्देश्य | इस दिवस का उद्देश्य देश में मतदाताओं की संख्या बढ़ाना, विशेषकर नए मतदाताओं को इससे जोड़ना है। |
संबंधित लेख | चुनाव आयोग, निर्वाचन आयोग |
अन्य जानकारी | 'राष्ट्रीय मतदाता दिवस' के सिलसले में निर्वाचन आयोग समूचे देश में शिक्षित मतदाताओं, विशेष रूप से युवाओं और महिलाओं को आकर्षित करने के लिए व्यापक और सुव्यवस्थित मतदाता शिक्षा और मतदान भागीदारी अभियान चलाता है। |
राष्ट्रीय मतदाता दिवस (अंग्रेज़ी: National Voters Day) भारत में प्रत्येक वर्ष 25 जनवरी को मनाया जाता है। इस महत्त्वपूर्ण दिवस का आयोजन सभी भारतवासियों को अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्य की याद दिलाता है और साथ ही यह भी बताता है कि हर व्यक्ति के लिए मतदान करना ज़रूरी है।
शुरुआत
भारत निर्वाचन आयोग का गठन 25 जनवरी, 1950 को हुआ था। भारत सरकार ने राजनीतिक प्रक्रिया में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए निर्वाचन आयोग के स्थापना दिवस '25 जनवरी' को ही वर्ष 2011 से 'राष्ट्रीय मतदाता दिवस' के रूप में मनाने की शुरुआत की थी।[1]
साल 2011 में यूपीए-2 की सरकार थी। उस समय राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे। इस साल चुनाव आयोग की स्थापना को 61 साल हो चुके थे। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 25 जनवरी से 'राष्ट्रीय मतदाता दिवस' के रूप में इस दिन को मनाने की शुरुआत की। 25 जनवरी, 2021 का दिन 11वीं बार राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया गया।[2]
क्यों मनाया जाता है?
इस दिन को मनाने के पीछे दो वजहें थीं। पहली समावेशी (Inclusive) और दूसरी गुणात्मक भागीदारी (Qualitative Participation)। इसका मकसद था कि कोई भी मतदाता मतदान करने में पीछे न रह जाए। इसके पीछे एक और मकसद था। चुनाव आयोग इस दिन ऐसे मतदाताओं की पहचान करता है, जिनकी उम्र 18 साल हो चुकी हो। उन सभी के नाम मतदाता सूची में शामिल किए जाते हैं। 2021 में मतदाता दिवस की थीम सभी मतदाता सशक्त, सतर्क, सुरक्षित और जागरूक बनें थी।
25 जनवरी, 2015 को 'सरल पंजीकरण और सरल सुधार' थीम के साथ पाँचवाँ राष्ट्रीय मतदाता दिवस था। राष्ट्रीय मतदाता दिवस के पीछे निर्वाचन आयोग का उद्देश्य अधिक मतदाता, विशेष रूप से नए मतदाता बनाना है। इसके लिए इस अवसर को सार्वभौम वयस्क मतदान को पूर्ण वास्तविकता बनाना और इस प्रकार भारतीय लोकतंत्र की गुणवत्ता को बढ़ाना है। यह दिवस मतदाताओं में मतदान प्रक्रिया में कारगर भागीदारी के बारे में जानकारी फैलाने के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।[3]
कौन दे सकता है वोट
भारत के संविधान के मुताबिक़, जो भारत का नागरिक है और जिसकी उम्र 18 साल या उससे ज्यादा है। बिना किसी भेदभाव या सिटीजनशिप एक्ट के तहत इन लोगों को वोटिंग अधिकार दिया जाता है। जिन एनआरआई के पास इंडियन पासपोर्ट होता है, उन्हें भी वोट देने का अधिकार होता है।
राष्ट्रीय मतदाता समारोह
पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने वर्ष 2012 में विज्ञान भवन में द्वितीय राष्ट्रीय मतदाता समारोह की अध्यक्षता की थी और दिल्ली के नए एवं पंजीकृत 20 मतदाताओं को सचित्र मतदाता पहचान पत्र प्रदान किये। ये मतदाता समाज के विभिन्न वर्गों से लिए गए थे और उन्हें एक बैज भी दिया गया था, जिस पर अंकित था "मतदाता होने का गर्व - मतदान के लिए तैयार"। इस अवसर पर उपस्थित सभी लोगों को 'राष्ट्रीय मतदाता दिवस' की शपथ भी दिलाई गई। डॉ. कलाम ने ज़िला निर्वाचन अधिकारियों (डीईओ), पुलिस अधीक्षकों (एसपी) को सर्वोत्तम निर्वाचन प्रक्रिया अपनाने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों से और डीईओ/एसपी के अलावा अन्य अधिकारियों को सर्वोत्तम निर्वाचन प्रक्रिया अपनाने में असाधारण कार्य करने के लिए विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया।
युवा मतदाता
भारत में मतदान आधारित लोकतंत्र के लिए 25 जनवरी पहले से ही एक ऐतिहासिक अवसर है। मतदाताओं के पंजीकरण संबंधी खबरों के अनुसार देशभर में लगभग 3.83 करोड़ नए पंजीकरण किए गए। इनमें से 1.11 करोड़ मतदाता 18-19 वर्ष आयु समूह के हैं, जो 1 जनवरी, 2012 को बनाये गए। यह मतदाता योग्यता की तिथि है। पिछले वर्ष 52 लाख युवा मतदाता बनाए गए थे, जिन्होंने 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली थी। यह विश्व में किसी स्थान पर एक दिन में युवाओं के सबसे बड़े सशक्तीकरण को लक्षित करता है।
चुनाव आयोजन
गत 60 वर्षों के दौरान निर्वाचन आयोग ने लोक सभा के लिए 15 आम चुनाव और राज्यों की विधान सभाओं के लिए 331 आम चुनाव आयोजित किए हैं। आयोग की यात्रा के दौरान उसके कार्य की गुणवत्ता और स्तर में भी परिवर्तन सबको नजर आया है। 1962 में जहां मतदान की प्रक्रिया पर्ची डालने की प्रणाली थी, वहां 2004 से मतदान की इलैक्ट्रॉनिक मशीनों पर आधारित वर्तमान प्रणाली शुरू की गई। बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों का स्थान एकल सदस्यीय निर्वाचन ने ले लिया है। छपी हुई मतदाता सूचियों का स्थान अब कम्प्यूट्रीकृत फोटो-मतदाता सूचियों ने ले लिया है। मतदाताओं का सचित्र पहचान पत्र अब सभी नागरिकों को प्राप्त हो गया है। यह 2009 के आम चुनावों के समय 582 मिलियन से अधिक मतदाताओं को जारी किए गए थे।[3]
मतदाताओं की पहचान तथा शपथ
अप्रैल-मई 2009 में कराए गए 15वीं लोक सभा के चुनाव विश्व में प्रबंधन की सबसे बड़ी घटना बताई गई है। इसमें 714 मिलियन मतदाता, 8 लाख 35 हज़ार मतदान केन्द्र, 12 लाख मतदान की इलेक्ट्रोनिक मशीनों और 11 मिलियन मतदान कर्मचारियों ने भाग लिया था। आयोग ने पाया कि मतदाता सूची से 18 साल के नये मतदाताओं का नाम लापता है। कुछ मामलों में उनकी भागीदारी 20 से 25 प्रतिशत तक कम है। इस समस्या से प्रभावकारी तरीके से निपटने के लिए आयोग ने फैसला किया कि देश के 8.5 लाख मतदान केन्द्रों में हर वर्ष 1 जनवरी को 18 वर्ष के होने वाले सभी मतदाताओं की पहचान की जाये। पंजीकरण के अलावा मतदाता सूची में शामिल किये गये इन मतदाताओं को निम्न शपथ दिलाई जाए-
"हम भारत के नागरिक, लोकतंत्र में आस्था रखने वाले शपथ लेते हैं कि हम देश की स्वतंत्रत, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव कराने की लोकतांत्रिक परम्परा को बरकरार रखेंगे। प्रत्येक चुनाव में धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय, भाषा आधार पर प्रभावित हुए बिना निर्भीक होकर मतदान करेंगे।"
चुनाव आयोग की भूमिका
भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को हुई थी। ये संस्था संविधान के आर्टिकल 324 के अंतर्गत आती है। इसमें तीन सदस्य प्रमुख होते हैं, पहले मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य आयुक्त शामिल होते हैं। इन्हें राष्ट्रपति की तरफ से नियुक्त किया जाता है। सभी का कार्यकाल 6 साल का होता है। ये एक संवैधानिक संस्था है। देश में होने वाले सभी चुनावों को आयोजित करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होती है। इसमें लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, विधान परिषद, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव शामिल हैं। चुनाव के दौरान चुनाव आयोग एक गार्जियन की भूमिका में होता है। यही चुनाव के सभी दिशा- निर्देश तय करता है। जो उम्मीदवार और सभी राजनीतिक दल पर लागू होते हैं। अगर चुनाव के दौरान इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन होता है, तो चुनाव आयोग में इसकी शिकायत की जा सकती है। ये संस्था चुनाव से जुड़े सभी तरह के फैसले खुद लेती है। चुनाव के खर्चों पर नजर रखने के लिए 'इंडियन रेवेन्यू सर्विस' (आईआरएस) के अफसर इलेक्शन ऑब्जर्वर के रूप में होते हैं।[2]
कितने मतदाता
संविधान के मुताबिक़ 10 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सांसद होना चाहिए। लेकिन भारत में ये आबादी 25 लाख है। राज्यों में आबादी के हिसाब से संख्या को बढ़ाने और घटाने की बात कही गई है। 1971 में देश और दूसरे राज्यों की सीटों पर संख्या बढ़ती-घटती रही है। इस हिसाब से 30 लाख लोगों पर एक सांसद और तमिलनाडु में करीब 20 लाख लोगों पर एक सांसद है। अगर 10 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट को बांटा जाए तो भारत में इसकी संख्या बढ़कर 1375 सीटें हो जाएंगी। अकेले उत्तर प्रदेश में ये सीट का आंकड़ा 80 से बढ़कर 238 हो जाएगा। संविधान के मुताबिक़, जिन राज्यों में आबादी 6 लाख या उससे कम है, तो 10 साल वाला कॉन्सेप्ट वहां लागू नहीं होगा। ऐसे में इस तरह के राज्यों में एक सांसद तो रहेगा।
सीट निर्धारण
- लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या निर्धारित करने की जिम्मेदारी परिसीमन आयोग की है। 1952 में इसका गठन किया गया था।
- संविधान के आर्टिकल 82 में आयोग का काम भी तय किया गया है। इसके तहत हर दस साल में जनगणना के आधार पर किसी भी क्षेत्र का परिसीमन तय किया जाता है।
- आपात काल के समय संविधान में 42वां संशोधन किया गया। इसमें 1971 की जनगणना के आधार पर विधानसभा और लोकसभा सीट की संख्या को स्थिर कर दिया गया।
- 2001 में संविधान में 84वां संशोधन किया। इसके तहत 2026 में जनगणना करने के बाद इसके आंकड़े के आधार पर लोकसभा के परिसीमन की बात की गई है। 2026 के बाद 2031 में जनगणना होगी। इसके बाद ही लोकसभा की सीटों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है। 2034 तक के लोकसभा चुनाव में सीटें 543 ही रहेंगी।
- राज्यों की विधानसभा के लिए जुलाई 2002 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया। दिसंबर 2007 में परिसीमन आयोग ने अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को सौंप दी। 2008 में सिफारिशें मंजूर की गईं, तब जाकर कई राज्यों का परिसीमन किया गया।
राष्ट्रीय मतदाता दिवस के लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए नए योग्य मतदाताओं तक पहुंचने और 1 जनवरी, 2012 को किए गए मतदाताओं की संशोधित सूचियों में उन्हें पंजीकृत करने के लिए देशभर में एक विशेष अभियान चलाया गया था। सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को आयोग ने निर्देश दिए थे कि 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने वाले प्रत्येक युवा को मतदाता बनाया जाये। आयोग ने इस बात पर जोर दिया कि अधिक से अधिक महिलाओं को मतदाता बनाने के लिए विशेष अभियान शुरू किए जाएं।[3]
राष्ट्रीय मतदाता दिवस के सिलसले में निर्वाचन आयोग समूचे देश में शिक्षित मतदाताओं, विशेष रूप से युवाओं और महिलाओं को आकर्षित करने के लिए व्यापक और सुव्यवस्थित मतदाता शिक्षा और मतदान भागीदारी अभियान चलाता रहा है। प्रतिष्ठित हस्तियों यथा ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, महेन्द्र सिंह धोनी के संदेश रिकॉर्ड किए गए हैं, जिनमें मतदाताओ को पंजीकरण कराने को कहा गया। निस्संदेह आयोग का संदेश उच्च और स्पष्ट है और यह तब तक विश्राम नहीं करेगा, जब तक प्रत्येक योग्य मतदाता स्वेच्छा से मतदान करने न लग जाये।
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वीथिका
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कुल मतदाता (लोकसभा चुनाव, 2019)
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कितनी आबादी पर एक सांसद
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राज्यों में लोकसभा सीट संख्या
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विधानसभाओं में सीट संख्या
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सबसे कम और ज़्यादा मतदाता वाली सीट
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ निर्वाचन आयोग 25 जनवरी को मनाएगा राष्ट्रीय मतदाता दिवस (हिन्दी) हिन्दुस्तान.कॉम। अभिगमन तिथि: 25 जनवरी, 2015।
- ↑ 2.0 2.1 हर साल क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय मतदाता दिवस? (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 04 फ़रवरी, 2020।
- ↑ 3.0 3.1 3.2 राष्ट्रीय मताधिकार दिवस- निर्वाचन प्रक्रिया में जन भागीदारी का अस्त्र (हिन्दी) पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार। अभिगमन तिथि: 25 जनवरी, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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