"नूरजहाँ (गायिका)": अवतरणों में अंतर
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'''नूरजहाँ''' (जन्म- [[21 सितम्बर]], [[1926]], [[पंजाब]], ब्रिटिश भारत; मृत्यु- [[23 दिसम्बर]], [[2000]], [[कराची]], [[पाकिस्तान]]) '[[भारतीय सिनेमा]]' की ख्याति प्राप्त अभिनेत्री और पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। उनका वास्तविक नाम 'अल्ला वसई' था। दक्षिण एशिया की महानतम गायिकाओं में शुमार की जाने वाली 'मल्लिका-ए-तरन्नुम' नूरजहाँ को लोकप्रिय [[संगीत]] में क्रांति लाने और पंजाबी लोकगीतों को नया आयाम देने का श्रेय जाता है। उनकी गायकी में वह जादू था कि हर उदयमान गायक की प्रेरणा स्रोत स्वर साम्राज्ञी [[लता मंगेशकर]] ने भी जब अपने कॅरियर का आगाज किया तो उन पर नूरजहाँ की गायकी का प्रभाव था। नूरजहाँ अपनी आवाज़ में नित्य नए प्रयोग किया करती थीं। अपनी इन खूबियों की वजह से ही वे '''ठुमरी गायिकी की महारानी''' कहलाने लगी थीं। | |||
'''नूरजहाँ''' (जन्म- [[21 सितम्बर]], [[1926]], [[पंजाब]], ब्रिटिश भारत; मृत्यु- [[23 दिसम्बर]], [[2000]], [[कराची]], [[पाकिस्तान]]) '[[भारतीय सिनेमा]]' की ख्याति प्राप्त अभिनेत्री और पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। उनका वास्तविक नाम 'अल्ला वसई' था। दक्षिण एशिया की महानतम गायिकाओं में शुमार की जाने वाली 'मल्लिका-ए-तरन्नुम' नूरजहाँ को लोकप्रिय [[संगीत]] में क्रांति लाने और पंजाबी लोकगीतों को नया आयाम देने का श्रेय जाता है। उनकी गायकी में वह जादू था कि हर उदयमान गायक की प्रेरणा स्रोत स्वर साम्राज्ञी [[लता मंगेशकर]] ने भी जब अपने | |||
==जन्म तथा शिक्षा== | ==जन्म तथा शिक्षा== | ||
नूरजहाँ का जन्म 21 सितम्बर, 1926 ई. को ब्रिटिश भारत में [[पंजाब]] के 'कसूर' नामक स्थान पर एक [[मुस्लिम]] परिवार में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम 'मदद अली' था और [[माता]] 'फ़तेह बीबी' थीं। नूरजहाँ के पिता पेशेवर संगीतकार थे। माता-पिता की ग्यारह संतानों में से नूरजहाँ एक थीं।<ref name="aa">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%8F-%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE-1091223055_1.htm|title=नूरजहाँ, मल्लिका ए तरन्नुम|accessmonthday=16 जुलाई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> संगीतकारों के परिवार में जन्मी नूरजहाँ को बचपन से ही [[संगीत]] के प्रति गहरा लगाव था। नूरजहाँ ने पाँच-छह [[साल]] की उम्र से ही गायन शुरू कर दिया था। वे किसी भी लोकगीत को सुनने के बाद उसे अच्छी तरह याद कर लिया करती थीं। इसको देखते हुए उनकी माँ ने उन्हें संगीत का प्रशिक्षण दिलाने का इंतजाम किया। उस दौरान उनकी बहन 'आइदान' पहले से ही [[नृत्य]] और गायन का प्रशिक्षण ले रही थीं। | नूरजहाँ का जन्म 21 सितम्बर, 1926 ई. को ब्रिटिश भारत में [[पंजाब]] के 'कसूर' नामक स्थान पर एक [[मुस्लिम]] परिवार में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम 'मदद अली' था और [[माता]] 'फ़तेह बीबी' थीं। नूरजहाँ के पिता पेशेवर संगीतकार थे। माता-पिता की ग्यारह संतानों में से नूरजहाँ एक थीं।<ref name="aa">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%8F-%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE-1091223055_1.htm|title=नूरजहाँ, मल्लिका ए तरन्नुम|accessmonthday=16 जुलाई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> संगीतकारों के परिवार में जन्मी नूरजहाँ को बचपन से ही [[संगीत]] के प्रति गहरा लगाव था। नूरजहाँ ने पाँच-छह [[साल]] की उम्र से ही गायन शुरू कर दिया था। वे किसी भी लोकगीत को सुनने के बाद उसे अच्छी तरह याद कर लिया करती थीं। इसको देखते हुए उनकी माँ ने उन्हें संगीत का प्रशिक्षण दिलाने का इंतजाम किया। उस दौरान उनकी बहन 'आइदान' पहले से ही [[नृत्य]] और गायन का प्रशिक्षण ले रही थीं। | ||
==फ़िल्मों में प्रवेश== | ==फ़िल्मों में प्रवेश== | ||
तत्कालीन समय में कलकत्ता, वर्तमान [[कोलकाता]] थिएटर का गढ़ हुआ करता था। वहाँ अभिनय करने वाले कलाकारों, पटकथा लेखकों आदि की काफ़ी माँग थी। इसी को ध्यान में रखकर नूरजहाँ का [[परिवार]] [[1930]] के दशक के मध्य में कलकत्ता चला आया। जल्द ही नूरजहाँ और उनकी बहन को वहाँ नृत्य और गायन का अवसर मिल गया। नूरजहाँ की गायकी से प्रभावित होकर संगीतकार | तत्कालीन समय में कलकत्ता, वर्तमान [[कोलकाता]] थिएटर का गढ़ हुआ करता था। वहाँ अभिनय करने वाले कलाकारों, पटकथा लेखकों आदि की काफ़ी माँग थी। इसी को ध्यान में रखकर नूरजहाँ का [[परिवार]] [[1930]] के दशक के मध्य में कलकत्ता चला आया। जल्द ही नूरजहाँ और उनकी बहन को वहाँ नृत्य और गायन का अवसर मिल गया। नूरजहाँ की गायकी से प्रभावित होकर संगीतकार ग़ुलाम हैदर ने उन्हें के. डी. मेहरा की पहली [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] फ़िल्म 'शीला' उर्फ 'पिंड दी कुड़ी' में उन्हें बाल कलाकार की संक्षिप्त भूमिका दिलाई। वर्ष [[1935]] में रिलीज हुई यह फ़िल्म पूरे [[पंजाब]] में हिट रही। इसने 'पंजाबी फ़िल्म उद्योग' की स्थापना का मार्ग प्रशस्त कर दिया। फ़िल्म के [[गीत]] बहुत हिट रहे। | ||
====सफलता व विवाह==== | ====सफलता व विवाह==== | ||
[[1930]] के दशक के उत्तरार्ध तक [[लाहौर]] में कई स्टूडियो अस्तित्व में आ गए थे। गायकों की बढ़ती माँग को देखते हुए नूरजहाँ का परिवार [[1937]] में लाहौर आ गया। डलसुख एल पंचोली ने बेबी नूरजहाँ को सुना और 'गुल-ए-बकवाली' फ़िल्म में उन्हें भूमिका दी। यह फ़िल्म भी काफ़ी हिट रही और गीत भी बहुत लोकप्रिय हुए। इसके बाद उनकी 'यमला जट' ([[1940]]), 'चौधरी' फ़िल्म प्रदर्शित हुई। इनके गाने 'कचियाँ वे कलियाँ ना तोड़' और 'बस बस वे ढोलना कि तेरे नाल बोलना' बहुत लोकप्रिय हुए। वर्ष [[1942]] में नूरजहाँ ने अपने नाम से 'बेबी' शब्द हटा दिया। इसी साल उनकी फ़िल्म 'खानदान' आई, जिसमें पहली बार उन्होंने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। इसी फ़िल्म के निर्देशक शौक़त हुसैन रिज़वी के साथ उन्होंने [[विवाह]] कर लिया।<ref name="aa"/> बाद के समय में नूरजहाँ ने अपने से दस वर्ष छोटे 'एजाज दुर्रानी' से विवाह किया। | |||
==मुम्बई आगमन== | ==मुम्बई आगमन== | ||
वर्ष [[1943]] में नूरजहाँ [[मुम्बई]] चली आईं। महज चार साल की संक्षिप्त अवधि के भीतर वे अपने सभी समकालीनों से काफ़ी आगे निकल गईं। [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] दोनों जगह के पुरानी पीढ़ी के लोग उनकी क्लासिक फ़िल्मों 'लाल हवेली'’ 'जीनत', 'बड़ी माँ', 'गाँव की गोरी' और 'मिर्जा साहिबाँ' फ़िल्मों के आज भी दीवाने हैं। फ़िल्म 'अनमोल घड़ी' का [[संगीत]] अपने समय के ख्यातिप्राप्त संगीतकार [[नौशाद]] ने दिया था। उसके गीत 'आवाज दे कहाँ है', 'जवाँ है मोहब्बत' और 'मेरे बचपन के साथी' जैसे गीत आज भी लोगों की जुबाँ पर हैं। | वर्ष [[1943]] में नूरजहाँ [[मुम्बई]] चली आईं। महज चार साल की संक्षिप्त अवधि के भीतर वे अपने सभी समकालीनों से काफ़ी आगे निकल गईं। [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] दोनों जगह के पुरानी पीढ़ी के लोग उनकी क्लासिक फ़िल्मों 'लाल हवेली'’ 'जीनत', 'बड़ी माँ', 'गाँव की गोरी' और 'मिर्जा साहिबाँ' फ़िल्मों के आज भी दीवाने हैं। फ़िल्म 'अनमोल घड़ी' का [[संगीत]] अपने समय के ख्यातिप्राप्त संगीतकार [[नौशाद]] ने दिया था। उसके गीत 'आवाज दे कहाँ है', 'जवाँ है मोहब्बत' और 'मेरे बचपन के साथी' जैसे गीत आज भी लोगों की जुबाँ पर हैं। | ||
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[[चित्र:Noorjehan-And-Lata-Mangeshkar.jpg|thumb|150px|नूरजहाँ और [[लता मंगेशकर]]]] | [[चित्र:Noorjehan-And-Lata-Mangeshkar.jpg|thumb|150px|नूरजहाँ और [[लता मंगेशकर]]]] | ||
*पाकिस्तान स्थानान्तरित हो जाने से पहले नूरजहाँ के अभिनय व गायन से सजी दो फ़िल्में [[1947]] में प्रदर्शित हुई थीं- 'जुगनू' और 'मिर्ज़ा साहिबाँ'। 'जुगनू' शौक़त हुसैन रिज़वी की फ़िल्म थी 'शौक़त आर्ट प्रोडक्शन्स' के बैनर तले निर्मित, जिसमें नूरजहाँ के नायक [[दिलीप कुमार]] थे। संगीतकार फ़िरोज़ निज़ामी ने [[मोहम्मद रफ़ी]] और नूरजहाँ से एक ऐसा डुएट गीत इस फ़िल्म में गवाया, जो इस जोड़ी का सबसे ज़्यादा मशहूर डुएट सिद्ध हुआ। गीत था "यहाँ बदला वफ़ा का बेवफ़ाई के सिवा क्या है, मोहब्बत करके भी देखा, मोहब्बत में भी धोखा है"। इस [[गीत]] की अवधि | *[[पाकिस्तान]] स्थानान्तरित हो जाने से पहले नूरजहाँ के अभिनय व गायन से सजी दो फ़िल्में [[1947]] में प्रदर्शित हुई थीं- 'जुगनू' और 'मिर्ज़ा साहिबाँ'। 'जुगनू' शौक़त हुसैन रिज़वी की फ़िल्म थी 'शौक़त आर्ट प्रोडक्शन्स' के बैनर तले निर्मित, जिसमें नूरजहाँ के नायक [[दिलीप कुमार]] थे। संगीतकार फ़िरोज़ निज़ामी ने [[मोहम्मद रफ़ी]] और नूरजहाँ से एक ऐसा डुएट गीत इस फ़िल्म में गवाया, जो इस जोड़ी का सबसे ज़्यादा मशहूर डुएट सिद्ध हुआ। गीत था "यहाँ बदला वफ़ा का बेवफ़ाई के सिवा क्या है, मोहब्बत करके भी देखा, मोहब्बत में भी धोखा है"। इस [[गीत]] की अवधि क़रीब 5 मिनट और 45 सेकण्ड्स की थी, जो उस ज़माने के लिहाज़ से काफ़ी लम्बी थी। कहते हैं कि इस गीत को शौक़त हुसैन रिज़वी ने ख़ुद ही लिखा था, पर 'हमराज़ गीत कोश' के अनुसार फ़िल्म के गीत एम. जी. अदीब और असगर सरहदी ने लिखे थे।<ref name="bb"/> | ||
==प्रमुख फ़िल्में== | ==प्रमुख फ़िल्में== | ||
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बतौर अभिनेत्री नूरजहाँ की आखिरी फ़िल्म 'बाजी' थी, जो [[1963]] में प्रदर्शित हुई। उन्होंने पाकिस्तान में 14 फ़िल्में बनाई थीं, जिसमें 10 [[उर्दू]] फ़िल्में थीं। पारिवारिक दायित्वों के कारण उन्हें अभिनय को अलविदा करना पड़ा। हालाँकि, उन्होंने गायन जारी रखा। [[पाकिस्तान]] में पार्श्वगायिका के तौर पर उनकी पहली फ़िल्म 'जान-ए-बहार' ([[1958]]) थी। इस फ़िल्म का 'कैसा नसीब लाई' गाना काफ़ी लोकप्रिय हुआ। | बतौर अभिनेत्री नूरजहाँ की आखिरी फ़िल्म 'बाजी' थी, जो [[1963]] में प्रदर्शित हुई। उन्होंने पाकिस्तान में 14 फ़िल्में बनाई थीं, जिसमें 10 [[उर्दू]] फ़िल्में थीं। पारिवारिक दायित्वों के कारण उन्हें अभिनय को अलविदा करना पड़ा। हालाँकि, उन्होंने गायन जारी रखा। [[पाकिस्तान]] में पार्श्वगायिका के तौर पर उनकी पहली फ़िल्म 'जान-ए-बहार' ([[1958]]) थी। इस फ़िल्म का 'कैसा नसीब लाई' गाना काफ़ी लोकप्रिय हुआ। | ||
====पुरस्कार व सम्मान==== | ====पुरस्कार व सम्मान==== | ||
नूरजहाँ ने अपने आधी शताब्दी से अधिक के फ़िल्मी | नूरजहाँ ने अपने आधी [[शताब्दी]] से अधिक के फ़िल्मी कैरियर में [[उर्दू]], [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] और [[सिंधी भाषा|सिंधी]] आदि [[भाषा|भाषाओं]] में कई गाने गाए। उन्हें मनोरंजन के क्षेत्र में पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान 'तमगा-ए-इम्तियाज' से सम्मानित किया गया था। | ||
====मृत्यु==== | ====मृत्यु==== | ||
अपनी दिलकश आवाज़ और अदाओं से दर्शकों को मदहोश कर देने वाली नूरजहाँ का दिल का दौरा पड़ने से [[23 दिसम्बर]], [[2000]] को निधन हुआ। [[वर्ष]] [[1996]] में ही नूरजहाँ आवाज़ की दुनिया से जुदा हो गई थीं। 1996 में प्रदर्शित एक पंजाबी फ़िल्म 'सखी बादशाह' में उन्होंने अपना अंतिम गाना गाया था। नूरजहाँ ने अपने संपूर्ण फ़िल्मी | अपनी दिलकश आवाज़ और अदाओं से दर्शकों को मदहोश कर देने वाली नूरजहाँ का दिल का दौरा पड़ने से [[23 दिसम्बर]], [[2000]] को निधन हुआ। [[वर्ष]] [[1996]] में ही नूरजहाँ आवाज़ की दुनिया से जुदा हो गई थीं। [[1996]] में प्रदर्शित एक पंजाबी फ़िल्म 'सखी बादशाह' में उन्होंने अपना अंतिम गाना गाया था। नूरजहाँ ने अपने संपूर्ण फ़िल्मी कैरियर में लगभग एक हज़ार गाने गाए। | ||
==रोचक तथ्य== | ==रोचक तथ्य== | ||
*सन [[2000]] में जब नूरजहाँ की मौत हुई, तो उनकी एक बुज़ुर्ग चाची ने कहा था- "जब नूर पैदा हुई थी तो उनके रोने की आवाज़ सुनकर उनकी बुआ ने उनके [[पिता]] से कहा था कि यह लड़की तो रोती भी सुर में है।" | *सन [[2000]] में जब नूरजहाँ की मौत हुई, तो उनकी एक बुज़ुर्ग चाची ने कहा था- "जब नूर पैदा हुई थी तो उनके रोने की आवाज़ सुनकर उनकी बुआ ने उनके [[पिता]] से कहा था कि यह लड़की तो रोती भी सुर में है।" | ||
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*दुनिया के किसी भी कोने में 'मैडम' शब्द का जो भी अर्थ लगाया जाता हो, किंतु [[पाकिस्तान]] में यह शब्द सिर्फ़ 'मल्लिका-ए-तरन्नुम' नूरजहाँ के लिए इस्तेमाल किया जाता है। | *दुनिया के किसी भी कोने में 'मैडम' शब्द का जो भी अर्थ लगाया जाता हो, किंतु [[पाकिस्तान]] में यह शब्द सिर्फ़ 'मल्लिका-ए-तरन्नुम' नूरजहाँ के लिए इस्तेमाल किया जाता है। | ||
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नूरजहाँ | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- नूरजहाँ (बहुविकल्पी) |
नूरजहाँ (गायिका)
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पूरा नाम | नूरजहाँ |
अन्य नाम | अल्ला वसई, मैडम नूरजहाँ |
जन्म | 21 सितम्बर, 1926 |
जन्म भूमि | पंजाब, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु | 23 दिसम्बर, 2000 |
मृत्यु स्थान | कराची, पाकिस्तान |
अभिभावक | मदद अली, फ़तेह बीबी |
पति/पत्नी | शौक़त हुसैन रिज़वी, एजाज दुर्रानी |
कर्म भूमि | भारत, पाकिस्तान |
कर्म-क्षेत्र | सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | 'यमला जट', 'खानदान', 'गाँव की गोरी', 'बड़ी माँ', 'भाईजान', 'जुगनू', 'दुपट्टा', 'फ़तेह ख़ान' आदि। |
प्रसिद्धि | अभिनेत्री और पार्श्वगायिका |
अन्य जानकारी | संगीतकार ग़ुलाम हैदर ने नूरजहाँ को के. डी. मेहरा की पहली पंजाबी फ़िल्म 'शीला' उर्फ 'पिंड दी कुड़ी' में बाल कलाकार की संक्षिप्त भूमिका दिलाई थी। 1935 में रिलीज हुई यह फ़िल्म पूरे पंजाब में हिट रही। |
नूरजहाँ (जन्म- 21 सितम्बर, 1926, पंजाब, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 23 दिसम्बर, 2000, कराची, पाकिस्तान) 'भारतीय सिनेमा' की ख्याति प्राप्त अभिनेत्री और पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। उनका वास्तविक नाम 'अल्ला वसई' था। दक्षिण एशिया की महानतम गायिकाओं में शुमार की जाने वाली 'मल्लिका-ए-तरन्नुम' नूरजहाँ को लोकप्रिय संगीत में क्रांति लाने और पंजाबी लोकगीतों को नया आयाम देने का श्रेय जाता है। उनकी गायकी में वह जादू था कि हर उदयमान गायक की प्रेरणा स्रोत स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने भी जब अपने कॅरियर का आगाज किया तो उन पर नूरजहाँ की गायकी का प्रभाव था। नूरजहाँ अपनी आवाज़ में नित्य नए प्रयोग किया करती थीं। अपनी इन खूबियों की वजह से ही वे ठुमरी गायिकी की महारानी कहलाने लगी थीं।
जन्म तथा शिक्षा
नूरजहाँ का जन्म 21 सितम्बर, 1926 ई. को ब्रिटिश भारत में पंजाब के 'कसूर' नामक स्थान पर एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम 'मदद अली' था और माता 'फ़तेह बीबी' थीं। नूरजहाँ के पिता पेशेवर संगीतकार थे। माता-पिता की ग्यारह संतानों में से नूरजहाँ एक थीं।[1] संगीतकारों के परिवार में जन्मी नूरजहाँ को बचपन से ही संगीत के प्रति गहरा लगाव था। नूरजहाँ ने पाँच-छह साल की उम्र से ही गायन शुरू कर दिया था। वे किसी भी लोकगीत को सुनने के बाद उसे अच्छी तरह याद कर लिया करती थीं। इसको देखते हुए उनकी माँ ने उन्हें संगीत का प्रशिक्षण दिलाने का इंतजाम किया। उस दौरान उनकी बहन 'आइदान' पहले से ही नृत्य और गायन का प्रशिक्षण ले रही थीं।
फ़िल्मों में प्रवेश
तत्कालीन समय में कलकत्ता, वर्तमान कोलकाता थिएटर का गढ़ हुआ करता था। वहाँ अभिनय करने वाले कलाकारों, पटकथा लेखकों आदि की काफ़ी माँग थी। इसी को ध्यान में रखकर नूरजहाँ का परिवार 1930 के दशक के मध्य में कलकत्ता चला आया। जल्द ही नूरजहाँ और उनकी बहन को वहाँ नृत्य और गायन का अवसर मिल गया। नूरजहाँ की गायकी से प्रभावित होकर संगीतकार ग़ुलाम हैदर ने उन्हें के. डी. मेहरा की पहली पंजाबी फ़िल्म 'शीला' उर्फ 'पिंड दी कुड़ी' में उन्हें बाल कलाकार की संक्षिप्त भूमिका दिलाई। वर्ष 1935 में रिलीज हुई यह फ़िल्म पूरे पंजाब में हिट रही। इसने 'पंजाबी फ़िल्म उद्योग' की स्थापना का मार्ग प्रशस्त कर दिया। फ़िल्म के गीत बहुत हिट रहे।
सफलता व विवाह
1930 के दशक के उत्तरार्ध तक लाहौर में कई स्टूडियो अस्तित्व में आ गए थे। गायकों की बढ़ती माँग को देखते हुए नूरजहाँ का परिवार 1937 में लाहौर आ गया। डलसुख एल पंचोली ने बेबी नूरजहाँ को सुना और 'गुल-ए-बकवाली' फ़िल्म में उन्हें भूमिका दी। यह फ़िल्म भी काफ़ी हिट रही और गीत भी बहुत लोकप्रिय हुए। इसके बाद उनकी 'यमला जट' (1940), 'चौधरी' फ़िल्म प्रदर्शित हुई। इनके गाने 'कचियाँ वे कलियाँ ना तोड़' और 'बस बस वे ढोलना कि तेरे नाल बोलना' बहुत लोकप्रिय हुए। वर्ष 1942 में नूरजहाँ ने अपने नाम से 'बेबी' शब्द हटा दिया। इसी साल उनकी फ़िल्म 'खानदान' आई, जिसमें पहली बार उन्होंने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। इसी फ़िल्म के निर्देशक शौक़त हुसैन रिज़वी के साथ उन्होंने विवाह कर लिया।[1] बाद के समय में नूरजहाँ ने अपने से दस वर्ष छोटे 'एजाज दुर्रानी' से विवाह किया।
मुम्बई आगमन
वर्ष 1943 में नूरजहाँ मुम्बई चली आईं। महज चार साल की संक्षिप्त अवधि के भीतर वे अपने सभी समकालीनों से काफ़ी आगे निकल गईं। भारत और पाकिस्तान दोनों जगह के पुरानी पीढ़ी के लोग उनकी क्लासिक फ़िल्मों 'लाल हवेली'’ 'जीनत', 'बड़ी माँ', 'गाँव की गोरी' और 'मिर्जा साहिबाँ' फ़िल्मों के आज भी दीवाने हैं। फ़िल्म 'अनमोल घड़ी' का संगीत अपने समय के ख्यातिप्राप्त संगीतकार नौशाद ने दिया था। उसके गीत 'आवाज दे कहाँ है', 'जवाँ है मोहब्बत' और 'मेरे बचपन के साथी' जैसे गीत आज भी लोगों की जुबाँ पर हैं।
लाहौर प्रस्थान
नूरजहाँ देश के विभाजन के बाद अपने पति शौक़त हुसैन रिज़वी के साथ बंबई छोड़कर लाहौर चली गईं। लाहौर में रिजवी ने एक स्टूडियो का अधिग्रहण किया और वहाँ 'शाहनूर स्टूडियो' की शुरुआत की। 'शाहनूर प्रोडक्शन' ने फ़िल्म 'चन्न वे' (1950) का निर्माण किया, जिसका निर्देशन नूरजहाँ ने किया। यह फ़िल्म बेहद सफल रही। इसमें 'तेरे मुखड़े पे काला तिल वे' जैसे लोकप्रिय गाने थे। उनकी पहली उर्दू फ़िल्म 'दुपट्टा'’ थी। इसके गीत 'चाँदनी रातें...चाँदनी रातें' आज भी लोगों की जुबाँ पर हैं।[1]
देश के विभाजन के बाद जहाँ एक तरफ़ ए. आर. कारदार और महबूब ख़ान जैसे कलाकार यहीं रह गए, वहीं बहुत-से ऐसे कलाकार भी थे, जिन्हें पाकिस्तान चले जाना पड़ा था। नूरजहाँ भी इनमें से एक थीं। भारत छोड़ पाक़िस्तान जा बसने की उनकी मजबूरी के बारे में उन्होंने 'विविध भारती' में बताया था कि- "आपको ये सब तो मालूम है, ये सबों को मालूम है कि कैसी नफ़सा-नफ़सी थी, जब मैं यहाँ से गई। मेरे मियाँ मुझे ले गए और मुझे उनके साथ जाना पड़ा, जिनका नाम सैय्यद शौक़त हुसैन रिज़वी है। उस वक़्त अगर मेरा बस चलता तो मैं उन्हें समझा सकती, कोई भी अपना घर उजाड़ कर जाना तो पसन्द नहीं करता, हालात ऐसे थे कि मुझे जाना पड़ा। और ये आप नहीं कह सकते कि आप लोगों ने मुझे याद रखा और मैंने नहीं रखा, अपने-अपने हालात ही की बिना पे होता है किसी-किसी का वक़्त निकालना, और बिलकुल यकीन करें, अगर मैं सबको भूल जाती तो मैं यहाँ कैसे आती?"[2]
- पाकिस्तान स्थानान्तरित हो जाने से पहले नूरजहाँ के अभिनय व गायन से सजी दो फ़िल्में 1947 में प्रदर्शित हुई थीं- 'जुगनू' और 'मिर्ज़ा साहिबाँ'। 'जुगनू' शौक़त हुसैन रिज़वी की फ़िल्म थी 'शौक़त आर्ट प्रोडक्शन्स' के बैनर तले निर्मित, जिसमें नूरजहाँ के नायक दिलीप कुमार थे। संगीतकार फ़िरोज़ निज़ामी ने मोहम्मद रफ़ी और नूरजहाँ से एक ऐसा डुएट गीत इस फ़िल्म में गवाया, जो इस जोड़ी का सबसे ज़्यादा मशहूर डुएट सिद्ध हुआ। गीत था "यहाँ बदला वफ़ा का बेवफ़ाई के सिवा क्या है, मोहब्बत करके भी देखा, मोहब्बत में भी धोखा है"। इस गीत की अवधि क़रीब 5 मिनट और 45 सेकण्ड्स की थी, जो उस ज़माने के लिहाज़ से काफ़ी लम्बी थी। कहते हैं कि इस गीत को शौक़त हुसैन रिज़वी ने ख़ुद ही लिखा था, पर 'हमराज़ गीत कोश' के अनुसार फ़िल्म के गीत एम. जी. अदीब और असगर सरहदी ने लिखे थे।[2]
प्रमुख फ़िल्में
क्र. सं. | फ़िल्म | वर्ष | क्र. सं. | फ़िल्म | वर्ष |
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1. | यमला जट | 1940 | 2. | रेड सिग्नल | 1941 |
3. | सुसराल | 1941 | 4. | खानदान | 1942 |
5. | नादान | 1943 | 6. | दुहाई | 1943 |
7. | लाल हवेली | 1944 | 8. | गाँव की गोरी | 1945 |
9. | बड़ी माँ | 1945 | 10. | भाईजान | 1945 |
11. | अनमोल घड़ी | 1946 | 12. | जादूगर | 1946 |
13. | जुगनू | 1947 | 14. | चनवे | 1951 |
15. | दुपट्टा | 1952 | 16. | गुलनार | 1953 |
17. | फ़तेह ख़ान | 1955 | 18. | इंतज़ार | 1956 |
19. | लख़्त-ए-जिगर | 1956 | 20. | अनारकली | 1958 |
21. | छूमंतर | 1958 | 22. | परदेशियाँ | 1959 |
23. | कोयल | 1959 | 24. | मिर्ज़ा गालिब | 1961 |
अंतिम फ़िल्म
बतौर अभिनेत्री नूरजहाँ की आखिरी फ़िल्म 'बाजी' थी, जो 1963 में प्रदर्शित हुई। उन्होंने पाकिस्तान में 14 फ़िल्में बनाई थीं, जिसमें 10 उर्दू फ़िल्में थीं। पारिवारिक दायित्वों के कारण उन्हें अभिनय को अलविदा करना पड़ा। हालाँकि, उन्होंने गायन जारी रखा। पाकिस्तान में पार्श्वगायिका के तौर पर उनकी पहली फ़िल्म 'जान-ए-बहार' (1958) थी। इस फ़िल्म का 'कैसा नसीब लाई' गाना काफ़ी लोकप्रिय हुआ।
पुरस्कार व सम्मान
नूरजहाँ ने अपने आधी शताब्दी से अधिक के फ़िल्मी कैरियर में उर्दू, पंजाबी और सिंधी आदि भाषाओं में कई गाने गाए। उन्हें मनोरंजन के क्षेत्र में पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान 'तमगा-ए-इम्तियाज' से सम्मानित किया गया था।
मृत्यु
अपनी दिलकश आवाज़ और अदाओं से दर्शकों को मदहोश कर देने वाली नूरजहाँ का दिल का दौरा पड़ने से 23 दिसम्बर, 2000 को निधन हुआ। वर्ष 1996 में ही नूरजहाँ आवाज़ की दुनिया से जुदा हो गई थीं। 1996 में प्रदर्शित एक पंजाबी फ़िल्म 'सखी बादशाह' में उन्होंने अपना अंतिम गाना गाया था। नूरजहाँ ने अपने संपूर्ण फ़िल्मी कैरियर में लगभग एक हज़ार गाने गाए।
रोचक तथ्य
- सन 2000 में जब नूरजहाँ की मौत हुई, तो उनकी एक बुज़ुर्ग चाची ने कहा था- "जब नूर पैदा हुई थी तो उनके रोने की आवाज़ सुनकर उनकी बुआ ने उनके पिता से कहा था कि यह लड़की तो रोती भी सुर में है।"
- नूरजहाँ के बारे में एक और कहानी भी मशहूर है। तीस के दशक में एक बार लाहौर में एक स्थानीय पीर के भक्तों ने उनके सम्मान में भक्ति संगीत की एक ख़ास शाम का आयोजन किया था। एक लड़की ने वहाँ पर कुछ नात सुनाए। पीर ने उस लड़की से कहा- "बेटी कुछ पंजाबी में भी हमको सुनाओ।" उस लड़की ने तुरंत पंजाबी में तान ली, जिसका आशय कुछ इस तरह का था- "इस पाँच नदियों की धरती की पतंग आसमान तक पहुँचे।" जब वह लड़की यह गीत गा रही थी, तो पीर अवचेतन की अवस्था में चले गए। थोड़ी देर बाद वह उठे और लड़की के सिर पर हाथ रख कर कहा- "लड़की तेरी पतंग भी एक दिन आसमान को छुएगी।"[3]
- नूरजहाँ को दावतों के बाद या लोगों की फ़रमाइश पर गाना सख़्त नापसंद था। एक बार दिल्ली के विकास पब्लिशिंग हाउस के प्रमुख नरेंद्र कुमार उनसे मिलने लाहौर गए। उनके साथ उनका किशोर बेटा भी था। यकायक नरेंद्र ने मैडम से कहा- "मैं अपने बेटे के लिए आपसे कुछ माँगना चाह रहा हूँ, क्योंकि मैं चाहता हूँ कि वह इस क्षण को ताज़िंदगी याद रखे। सालों बाद वह लोगों से कह सके कि एक सुबह वह एक कमरे में नूरजहाँ के साथ बैठा था और नूरजहाँ ने उसके लिए एक गाना गाया था।" वहाँ उपस्थित लोगों की सांसे रुक गईं, क्योंकि उन्हें पता था कि नूरजहाँ ऐसा कभी कभार ही करती हैं। नूरजहाँ ने पहले नरेंद्र को देखा, फिर उनके पुत्र को और फिर अपने उस्ताद ग़ुलाम मोहम्मद उर्फ़ ग़म्मे ख़ाँ को। 'ज़रा बाजा तो मँगवाना', उन्होंने उस्ताद से कहा। एक लड़का बग़ल के कमरे से बाजा यानी हारमोनियम उठा लाया। उन्होंने नरेंद्र से पूछा क्या गाऊँ? नरेंद्र को कुछ नहीं सूझा। किसी ने कहा 'बदनाम मौहब्बत कौन करे गाइए'। नूरजहाँ के चेहरे पर जैसे नूर आ गया। उन्होंने मुखड़ा गाया और फिर बीच में रुक कर नरेंद्र से कहा- "नरेंद्र साहब, आपको पता है, इस देश में ढंग का हारमोनियम नहीं मिलता। सिर्फ़ कोलकाता में अच्छा हारमोनियम मिलता है। यह सभी लोग भारत जाते हैं, बाजे लाते हैं और मुझे उनके बारे में बताते हैं, लेकिन..... टूटपैने मेरे लिए कोई हारमोनियम नहीं लाता।[3]
- दुनिया के किसी भी कोने में 'मैडम' शब्द का जो भी अर्थ लगाया जाता हो, किंतु पाकिस्तान में यह शब्द सिर्फ़ 'मल्लिका-ए-तरन्नुम' नूरजहाँ के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- जब नूरजहाँ को दिल का दौरा पड़ा, तो उनके एक मुरीद और नामी पाकिस्तानी पत्रकार ख़ालिद हसन ने लिखा था- "दिल का दौरा तो उन्हें पड़ना ही था। पता नहीं कितने दावेदार थे उसके, और पता नहीं कितनी बार वह धड़का था, उन लोगों के लिए जिन पर मुस्कराने की इनायत उन्होंने की थी।"[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 नूरजहाँ, मल्लिका ए तरन्नुम (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 16 जुलाई, 2013।
- ↑ 2.0 2.1 नूरजहाँ के गाये अनमोल गीत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 16 जुलाई, 2013।
- ↑ 3.0 3.1 3.2 आशिक मिजाज मैडम नूरजहाँ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 16 जुलाई, 2016।
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