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'''महिला समानता दिवस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Women's Equality Day'', प्रत्येक [[वर्ष]] '[[26 अगस्त]]' को मनाया जाता है। न्यूजीलैंड विश्व का पहला देश है, जिसने [[1893]] में महिला समानता की शुरुआत की। [[भारत]] में आज़ादी के बाद से ही महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्राप्त तो था, लेकिन पंचायतों तथा नगर निकायों में चुनाव लड़ने का क़ानूनी अधिकार [[संविधान संशोधन- 73वाँ|73वे संविधान संशोधन]] के माध्यम से स्वर्गीय [[प्रधानमंत्री]] [[राजीव गाँधी]] के प्रयास से मिला। इसी का परिणाम है कि आज भारत की पंचायतों में महिलाओं की 50 प्रतिशत से अधिक भागीदारी है। | |||
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न्यूजीलैंड दुनिया का पहला देश है, जिसने [[1893]] में 'महिला समानता' की शुरुवात की। [[अमरीका]] में '[[26 अगस्त]]', [[1920]] को 19वें संविधान संशोधन के माध्यम से पहली बार महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला। इसके पहले वहाँ महिलाओं को द्वितीय श्रेणी नागरिक का दर्जा प्राप्त था। महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिए लगातार संघर्ष करने वाली एक महिला वकील बेल्ला अब्ज़ुग<ref>Bella Abzug</ref> के प्रयास से [[1971]] से 26 अगस्त को 'महिला समानता दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा। | न्यूजीलैंड दुनिया का पहला देश है, जिसने [[1893]] में 'महिला समानता' की शुरुवात की। [[अमरीका]] में '[[26 अगस्त]]', [[1920]] को 19वें संविधान संशोधन के माध्यम से पहली बार महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला। इसके पहले वहाँ महिलाओं को द्वितीय श्रेणी नागरिक का दर्जा प्राप्त था। महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिए लगातार संघर्ष करने वाली एक महिला वकील बेल्ला अब्ज़ुग<ref>Bella Abzug</ref> के प्रयास से [[1971]] से 26 अगस्त को 'महिला समानता दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा। | ||
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[[भारत]] ने महिलाओं को आज़ादी के बाद से ही मतदान का अधिकार पुरुषों के बराबर दिया, परन्तु यदि वास्तविक समानता की बात करें तो भारत में आज़ादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी महिलाओं की स्थिति गौर करने के लायक है। यहाँ वे सभी महिलाएं नज़र आती हैं, जो सभी प्रकार के भेदभाव के बावजूद प्रत्येक क्षेत्र में एक मुकाम हासिल कर चुकी हैं और सभी उन पर गर्व भी महसूस करते हैं। परन्तु इस कतार में उन सभी महिलाओं को भी शामिल करने की ज़रूरत है, जो हर दिन अपने घर में और समाज में महिला होने के कारण असमानता को झेलने के लिए विवश है। चाहे वह घर में बेटी, पत्नी, माँ या बहन होने के नाते हो या समाज में एक लड़की होने के नाते हो। आये दिन [[समाचार पत्र|समाचार पत्रों]] में लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ और बलात्कार जैसी खबरों को पढ़ा जा सकता है, परन्तु इन सभी के बीच वे महिलाएं जो अपने ही घर में सिर्फ इसीलिए प्रताड़ित हो रही हैं, क्योंकि वह एक औरत है। | [[भारत]] ने महिलाओं को आज़ादी के बाद से ही मतदान का अधिकार पुरुषों के बराबर दिया, परन्तु यदि वास्तविक समानता की बात करें तो भारत में आज़ादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी महिलाओं की स्थिति गौर करने के लायक है। यहाँ वे सभी महिलाएं नज़र आती हैं, जो सभी प्रकार के भेदभाव के बावजूद प्रत्येक क्षेत्र में एक मुकाम हासिल कर चुकी हैं और सभी उन पर गर्व भी महसूस करते हैं। परन्तु इस कतार में उन सभी महिलाओं को भी शामिल करने की ज़रूरत है, जो हर दिन अपने घर में और समाज में महिला होने के कारण असमानता को झेलने के लिए विवश है। चाहे वह घर में बेटी, पत्नी, माँ या बहन होने के नाते हो या समाज में एक लड़की होने के नाते हो। आये दिन [[समाचार पत्र|समाचार पत्रों]] में लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ और बलात्कार जैसी खबरों को पढ़ा जा सकता है, परन्तु इन सभी के बीच वे महिलाएं जो अपने ही घर में सिर्फ इसीलिए प्रताड़ित हो रही हैं, क्योंकि वह एक औरत है। | ||
देश में [[प्रधानमंत्री]] के पद पर [[इंदिरा गाँधी]] और [[राष्ट्रपति]] के पद पर [[प्रतिभा पाटिल|प्रतिभा देवी सिंह पाटिल]] रह चुकी हैं। [[दिल्ली]] की सत्ता पर [[कांग्रेस]] की [[शीला दीक्षित]], [[तमिलनाडु]] में अन्नाद्रमुक अध्यक्ष [[जयललिता]], [[पश्चिम बंगाल]] में तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष [[ममता बनर्जी]] और '[[बहुजन समाज पार्टी]]' की अध्यक्ष [[मायावती]] ने अच्छा नाम अर्जित किया है। [[कांग्रेस]] अध्यक्ष [[सोनिया गाँधी]] को तो विश्व की ताकतवर महिलाओं में शुमार किया ही जा चुका है। यदि देश की [[संसद]] में देखें तो [[सुषमा स्वराज]] और मीरा कुमार भी भारतीय राजनीति में प्रसिद्ध हैं। कॉरपोरेट सेक्टर, बैंकिंग सेक्टर जैसे क्षेत्रों में इंदिरा नूई और चंदा कोचर जैसी महिलाओं ने भी अपना लोहा मनवाया है। | देश में [[प्रधानमंत्री]] के पद पर [[इंदिरा गाँधी]] और [[राष्ट्रपति]] के पद पर [[प्रतिभा पाटिल|प्रतिभा देवी सिंह पाटिल]] रह चुकी हैं। [[दिल्ली]] की सत्ता पर [[कांग्रेस]] की [[शीला दीक्षित]], [[तमिलनाडु]] में अन्नाद्रमुक अध्यक्ष [[जयललिता]], [[पश्चिम बंगाल]] में तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष [[ममता बनर्जी]] और '[[बहुजन समाज पार्टी]]' की अध्यक्ष [[मायावती]] ने अच्छा नाम अर्जित किया है। [[कांग्रेस]] अध्यक्ष [[सोनिया गाँधी]] को तो विश्व की ताकतवर महिलाओं में शुमार किया ही जा चुका है। यदि देश की [[संसद]] में देखें तो [[सुषमा स्वराज]] और मीरा कुमार भी भारतीय राजनीति में प्रसिद्ध हैं। कॉरपोरेट सेक्टर, बैंकिंग सेक्टर जैसे क्षेत्रों में इंदिरा नूई और चंदा कोचर जैसी महिलाओं ने भी अपना लोहा मनवाया है।<ref name="aa">{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/women-articles/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B8-26-%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4-112082600018_1.htm|title=महिला समानता दिवस|accessmonthday= 22 जुलाई|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेबदुनिया|language= हिन्दी}}</ref> | ||
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==महिला साक्षरता== | ==महिला साक्षरता== | ||
साक्षरता दर में महिलाएं आज भी पुरुषों से पीछे हैं। [[वर्ष]] [[2011]] की जनगणना के अनुसार महिलाओं की साक्षरता दर में 12 प्रतिशत की वृद्धि | साक्षरता दर में महिलाएं आज भी पुरुषों से पीछे हैं। [[वर्ष]] [[2011]] की जनगणना के अनुसार महिलाओं की साक्षरता दर में 12 प्रतिशत की वृद्धि ज़रूर हुई है, लेकिन [[केरल]] में जहाँ महिला साक्षरता दर 92 प्रतिशत है, वहीं [[बिहार]] में महिला साक्षरता दर अभी भी 53.3 प्रतिशत है। | ||
'दिल्ली महिला आयोग' की सदस्य रूपिन्दर कौर कहती हैं कि "बदलाव तो अब काफ़ी दिख रहा है। पहले जहाँ महिलाएं घरों से नहीं निकलती थीं, वहीं अब वे अपने हक की बात कर रही हैं। उन्हें अपने अधिकार पता हैं और इसके लिए वे लड़ाई भी लड़ रही हैं।" [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] के 'दौलत राम कॉलेज' में सहायक प्रोफेसर डॉ. मधुरेश पाठक मिश्र कहती हैं कि "कॉलेजों में लड़कियों की संख्या देखकर लगता है कि अब उन्हें अधिकार मिल रहे हैं। लेकिन एक शिक्षिका के तौर पर जब मैंने लड़कियों में खासकर छोटे शहर की लड़कियों में सिर्फ [[विवाह]] के लिए ही पढ़ाई करने की प्रवृत्ति देखी तो यह मेरे लिए काफ़ी चौंकाने वाला रहा। आज भी समाज की मानसिकता पूरी तरह नही बदली नहीं है। काफ़ी हद तक इसके लिए लड़कियां भी जिम्मेदार हैं।" | 'दिल्ली महिला आयोग' की सदस्य रूपिन्दर कौर कहती हैं कि "बदलाव तो अब काफ़ी दिख रहा है। पहले जहाँ महिलाएं घरों से नहीं निकलती थीं, वहीं अब वे अपने हक की बात कर रही हैं। उन्हें अपने अधिकार पता हैं और इसके लिए वे लड़ाई भी लड़ रही हैं।" [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] के 'दौलत राम कॉलेज' में सहायक प्रोफेसर डॉ. मधुरेश पाठक मिश्र कहती हैं कि "कॉलेजों में लड़कियों की संख्या देखकर लगता है कि अब उन्हें अधिकार मिल रहे हैं। लेकिन एक शिक्षिका के तौर पर जब मैंने लड़कियों में खासकर छोटे शहर की लड़कियों में सिर्फ [[विवाह]] के लिए ही पढ़ाई करने की प्रवृत्ति देखी तो यह मेरे लिए काफ़ी चौंकाने वाला रहा। आज भी समाज की मानसिकता पूरी तरह नही बदली नहीं है। काफ़ी हद तक इसके लिए लड़कियां भी जिम्मेदार हैं।"<ref name="aa"/> | ||
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महिला समानता दिवस
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विवरण | 'महिला समानता दिवस' प्रत्येक वर्ष '26 अगस्त को मनाया जाता है। न्यूजीलैंड पहला देश है, जिसने 1893 में महिला समानता की शुरुआत की थी। |
तिथि | 26 अगस्त |
शुरुआत | 1971 |
संबंधित लेख | अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, मातृ दिवस |
अन्य जानकारी | महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिए लगातार संघर्ष करने वाली एक महिला वकील बेल्ला अब्ज़ुग के प्रयास से 1971 से 26 अगस्त को 'महिला समानता दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा। |
महिला समानता दिवस (अंग्रेज़ी: Women's Equality Day, प्रत्येक वर्ष '26 अगस्त' को मनाया जाता है। न्यूजीलैंड विश्व का पहला देश है, जिसने 1893 में महिला समानता की शुरुआत की। भारत में आज़ादी के बाद से ही महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्राप्त तो था, लेकिन पंचायतों तथा नगर निकायों में चुनाव लड़ने का क़ानूनी अधिकार 73वे संविधान संशोधन के माध्यम से स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के प्रयास से मिला। इसी का परिणाम है कि आज भारत की पंचायतों में महिलाओं की 50 प्रतिशत से अधिक भागीदारी है।
26 अगस्त ही क्यों
न्यूजीलैंड दुनिया का पहला देश है, जिसने 1893 में 'महिला समानता' की शुरुवात की। अमरीका में '26 अगस्त', 1920 को 19वें संविधान संशोधन के माध्यम से पहली बार महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला। इसके पहले वहाँ महिलाओं को द्वितीय श्रेणी नागरिक का दर्जा प्राप्त था। महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिए लगातार संघर्ष करने वाली एक महिला वकील बेल्ला अब्ज़ुग[1] के प्रयास से 1971 से 26 अगस्त को 'महिला समानता दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा।
भारत में महिलाओं की स्थिति
भारत ने महिलाओं को आज़ादी के बाद से ही मतदान का अधिकार पुरुषों के बराबर दिया, परन्तु यदि वास्तविक समानता की बात करें तो भारत में आज़ादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी महिलाओं की स्थिति गौर करने के लायक है। यहाँ वे सभी महिलाएं नज़र आती हैं, जो सभी प्रकार के भेदभाव के बावजूद प्रत्येक क्षेत्र में एक मुकाम हासिल कर चुकी हैं और सभी उन पर गर्व भी महसूस करते हैं। परन्तु इस कतार में उन सभी महिलाओं को भी शामिल करने की ज़रूरत है, जो हर दिन अपने घर में और समाज में महिला होने के कारण असमानता को झेलने के लिए विवश है। चाहे वह घर में बेटी, पत्नी, माँ या बहन होने के नाते हो या समाज में एक लड़की होने के नाते हो। आये दिन समाचार पत्रों में लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ और बलात्कार जैसी खबरों को पढ़ा जा सकता है, परन्तु इन सभी के बीच वे महिलाएं जो अपने ही घर में सिर्फ इसीलिए प्रताड़ित हो रही हैं, क्योंकि वह एक औरत है।
देश में प्रधानमंत्री के पद पर इंदिरा गाँधी और राष्ट्रपति के पद पर प्रतिभा देवी सिंह पाटिल रह चुकी हैं। दिल्ली की सत्ता पर कांग्रेस की शीला दीक्षित, तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक अध्यक्ष जयललिता, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी और 'बहुजन समाज पार्टी' की अध्यक्ष मायावती ने अच्छा नाम अर्जित किया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को तो विश्व की ताकतवर महिलाओं में शुमार किया ही जा चुका है। यदि देश की संसद में देखें तो सुषमा स्वराज और मीरा कुमार भी भारतीय राजनीति में प्रसिद्ध हैं। कॉरपोरेट सेक्टर, बैंकिंग सेक्टर जैसे क्षेत्रों में इंदिरा नूई और चंदा कोचर जैसी महिलाओं ने भी अपना लोहा मनवाया है।[2]
इन कुछ उपलब्धियों के बाद भी देखें तो आज भी महिलाओं की कामयाबी आधी-अधूरी समानता के कारण कम ही है। हर साल 26 अगस्त को 'महिला समानता दिवस' तो मनाया जाता है, लेकिन दूसरी ओर महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार आज भी जारी है। हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और प्रतिशत कम है।
महिला साक्षरता
साक्षरता दर में महिलाएं आज भी पुरुषों से पीछे हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार महिलाओं की साक्षरता दर में 12 प्रतिशत की वृद्धि ज़रूर हुई है, लेकिन केरल में जहाँ महिला साक्षरता दर 92 प्रतिशत है, वहीं बिहार में महिला साक्षरता दर अभी भी 53.3 प्रतिशत है।
'दिल्ली महिला आयोग' की सदस्य रूपिन्दर कौर कहती हैं कि "बदलाव तो अब काफ़ी दिख रहा है। पहले जहाँ महिलाएं घरों से नहीं निकलती थीं, वहीं अब वे अपने हक की बात कर रही हैं। उन्हें अपने अधिकार पता हैं और इसके लिए वे लड़ाई भी लड़ रही हैं।" दिल्ली विश्वविद्यालय के 'दौलत राम कॉलेज' में सहायक प्रोफेसर डॉ. मधुरेश पाठक मिश्र कहती हैं कि "कॉलेजों में लड़कियों की संख्या देखकर लगता है कि अब उन्हें अधिकार मिल रहे हैं। लेकिन एक शिक्षिका के तौर पर जब मैंने लड़कियों में खासकर छोटे शहर की लड़कियों में सिर्फ विवाह के लिए ही पढ़ाई करने की प्रवृत्ति देखी तो यह मेरे लिए काफ़ी चौंकाने वाला रहा। आज भी समाज की मानसिकता पूरी तरह नही बदली नहीं है। काफ़ी हद तक इसके लिए लड़कियां भी जिम्मेदार हैं।"[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Bella Abzug
- ↑ 2.0 2.1 महिला समानता दिवस (हिन्दी) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 22 जुलाई, 2015।