"विश्व मलेरिया दिवस": अवतरणों में अंतर
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'[[मलेरिया]]' एक प्रकार का बुखार है। इसमें बुखार ठण्ड (कंपकपी) के साथ आता है। इस बुखार के मुख्य लक्षण हैं- सरदर्द, उलटी और अचानक तेज सर्दी लगना। मलेरिया मुख्यत: संक्रमित मादा एनाफ़िलीज मच्छर द्वारा काटने पर ही होता है। जब संक्रमित मादा एनाफ़िलीज मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वह अपने लार के साथ उसके [[रक्त]] में मलेरिया परजीवियों को पहुंचा देता है। संक्रमित मच्छर के काटने के 10-12 दिनो के बाद उस व्यक्ति में मलेरिया रोग के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। मलेरिया के रोगी को काटने पर असंक्रमित मादा एनाफ़िलीज मच्छर रोगी के रक्त के साथ मलेरिया परजीवी को भी चूस लेते हैं व 12-14 दिनों में ये मादा एनाफ़िलीज मच्छर भी संक्रमित होकर जितने भी स्वस्थ मनुष्यों को काटते हैं, उनमें मलेरिया फैलाने में सक्षम होते हैं। इस तरह एक मादा मच्छर कई स्वस्थ लोगों को भी मलेरिया ग्रसित कर देता है। | '[[मलेरिया]]' एक प्रकार का बुखार है। इसमें बुखार ठण्ड (कंपकपी) के साथ आता है। इस बुखार के मुख्य लक्षण हैं- सरदर्द, उलटी और अचानक तेज सर्दी लगना। मलेरिया मुख्यत: संक्रमित मादा एनाफ़िलीज मच्छर द्वारा काटने पर ही होता है। जब संक्रमित मादा एनाफ़िलीज मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वह अपने लार के साथ उसके [[रक्त]] में मलेरिया परजीवियों को पहुंचा देता है। संक्रमित मच्छर के काटने के 10-12 दिनो के बाद उस व्यक्ति में मलेरिया रोग के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। मलेरिया के रोगी को काटने पर असंक्रमित मादा एनाफ़िलीज मच्छर रोगी के रक्त के साथ मलेरिया परजीवी को भी चूस लेते हैं व 12-14 दिनों में ये मादा एनाफ़िलीज मच्छर भी संक्रमित होकर जितने भी स्वस्थ मनुष्यों को काटते हैं, उनमें मलेरिया फैलाने में सक्षम होते हैं। इस तरह एक मादा मच्छर कई स्वस्थ लोगों को भी मलेरिया ग्रसित कर देता है। | ||
=='विश्व स्वास्थ्य संगठन' की रिपोर्ट== | =='विश्व स्वास्थ्य संगठन' की रिपोर्ट== | ||
'डब्ल्यूएचओ' ([[विश्व स्वास्थ्य संगठन]]) की एक रिपोर्ट कहती है कि साल 2000 से अब तक [[मलेरिया]] से होने वाली मौतों में 25 फीसदी से ज्यादा की कमी आई है। इसमें कहा गया है कि मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित 99 में से 50 देश 2015 तक मलेरिया के मामलों में 75 फीसदी तक की कमी लाने के रास्ते पर हैं। रिपोर्ट के | 'डब्ल्यूएचओ' ([[विश्व स्वास्थ्य संगठन]]) की एक रिपोर्ट कहती है कि साल 2000 से अब तक [[मलेरिया]] से होने वाली मौतों में 25 फीसदी से ज्यादा की कमी आई है। इसमें कहा गया है कि मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित 99 में से 50 देश 2015 तक मलेरिया के मामलों में 75 फीसदी तक की कमी लाने के रास्ते पर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़, इस उपलब्धि के बावजूद हकीकत यह है कि आज भी दुनिया में मलेरिया से हर साल क़रीब छह लाख 60 हज़ार लोगों की मौत हो जाती है। इनमें से ज्यादातर बच्चे होते हैं। [[अफ़्रीका]] के उप सहारा क्षेत्र में आज भी मलेरिया की वजह से सबसे ज्यादा बच्चों की जान जा रही है। 'डब्ल्यूएचओ' का कहना है कि दुनिया में हर साल मलेरिया के क़रीब 20 करोड़ नए केस सामने आते हैं। साधनों की कमी के कारण इनमें से बहुतों को स्तरीय इलाज तक नहीं मिल पाता।<ref>{{cite web |url=http://hindi.economictimes.indiatimes.com/other/home-and-relations/fitness/Malaria-Epidemic-Still-a-lot-needs-to-be-done/articleshow/19724286.cms#gads|title=विश्व मलेरिया दिवस|accessmonthday= 24 अप्रैल|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
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यदि गौर किया जाए तो [[भारत]] की स्वतंत्रता के बाद से अब तक हज़ारों लोग इस बीमारी की चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं। [[मलेरिया]] एक जटिल बीमारी है। मानव गतिविधियाँ और प्राकृतिक आपदाएं, जैसे- अत्यधिक [[वर्षा]], [[बाढ़]], [[अकाल]] और अन्य आपदाएं इस बीमारी की संक्रमण क्षमता को | यदि गौर किया जाए तो [[भारत]] की स्वतंत्रता के बाद से अब तक हज़ारों लोग इस बीमारी की चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं। [[मलेरिया]] एक जटिल बीमारी है। मानव गतिविधियाँ और प्राकृतिक आपदाएं, जैसे- अत्यधिक [[वर्षा]], [[बाढ़]], [[अकाल]] और अन्य आपदाएं इस बीमारी की संक्रमण क्षमता को तेज़ीसे बढ़ाती हैं। 'स्वास्थ्य मंत्रालय' के 'राष्ट्रीय मच्छर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम' (एनवीबीडीसीपी) देश में प्रतिवर्ष क़रीब 15 लाख मलेरिया के मरीजों की संख्या दर्ज करता है। इनमें से 50 प्रतिशत मलेरिया प्लाज्मोडियम फैल्सीपरम मच्छर के काटने से फैलता है। 'एनवीबीडीसीपी' द्वारा जारी पिछले 10 [[वर्ष]] के आकंड़ों पर अगर गौर करें तो मलेरिया से देश में वर्ष [[2001]] में 1005, [[2002]] में 973, [[2003]] में 1006, [[2004]] में 949, [[2005]] में 963, [[2006]] में 1707, [[2007]] में 1311, [[2008]] में 1055, [[2009]] में 1144 और [[2010]] में 767 लोगों की जान गई। | ||
====राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम==== | ====राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम==== | ||
स्वतंत्रता के बाद मलेरिया पर रोकथाम के लिए '[[भारत सरकार]]' ने वर्ष [[1953]] में 'राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम' (एनएमसीपी) चलाने के साथ ही डीडीटी का छिड़काव शुरू किया था, जबकि 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' के अनुरोध पर वर्ष [[1958]] में 'राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम' (एनएमईपी) और आगे चलकर 'मोडिफ़ाइड प्लान ऑफ़ ऑपरेशन' (एमपीओ) नाम से नई योजना शुरू की गई। | स्वतंत्रता के बाद मलेरिया पर रोकथाम के लिए '[[भारत सरकार]]' ने वर्ष [[1953]] में 'राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम' (एनएमसीपी) चलाने के साथ ही डीडीटी का छिड़काव शुरू किया था, जबकि 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' के अनुरोध पर वर्ष [[1958]] में 'राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम' (एनएमईपी) और आगे चलकर 'मोडिफ़ाइड प्लान ऑफ़ ऑपरेशन' (एमपीओ) नाम से नई योजना शुरू की गई। | ||
==भारत सरकार के प्रयत्न== | ==भारत सरकार के प्रयत्न== | ||
हाल के वर्षों में [[उड़ीसा]], [[झारखण्ड]] और [[छत्तीसगढ़]] से मलेरिया के मामलों में | हाल के वर्षों में [[उड़ीसा]], [[झारखण्ड]] और [[छत्तीसगढ़]] से मलेरिया के मामलों में तेज़ीसे वृद्धि हुई है। इनके अलावा अन्य राज्यों में भी इस महामारी का खतरा बना हुआ है। पिछले दशकों में शहरी इलाकों में भी [[मलेरिया]] के मामले तेज़ीसे सामने आए हैं। मलेरिया के प्रभावी रोकथाम और इलाज तक पहुंच के सीमित साधन होने की वजह से जनजातीय लोगों और ग़रीबों में इस बीमारी का खतरा ज्यादा बना रहता है। सरकार ने एमपीओ कार्यक्रम के तहत मलेरिया फैलने की पूर्व सूचना, शुरू में ही इस बीमारी की पहचान और त्वरित कार्रवाई के लिए कदम उठाने की व्यवस्था की है। पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को सौ प्रतिशत मदद देने का भरोसा और लोगों को जागरूक करने के लिए देशभर में 'मलेरिया विरोधी महीना' की शुरुआत की गई है। इसके अलावा देश के सात राज्यों [[आंध्र प्रदेश]], [[बिहार]], [[गुजरात]], [[मध्य प्रदेश]], [[महाराष्ट्र]], [[उड़ीसा]] और [[राजस्थान]] में मलेरिया पर नियंत्रण के लिए सरकार ने विश्व बैंक की मदद से [[सितम्बर]], [[1997]] से 'परिष्कृत मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम' की शुरुआत की है।<ref>{{cite web |url=http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/114967/1/0|title=मलेरिया अभी भी एक गम्भीर चुनौती|accessmonthday= 24 अप्रैल|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
[[चित्र:World-Malaria-Day-1.jpg|thumb|250px|मलेरिया का वाहक, मच्छर]] | [[चित्र:World-Malaria-Day-1.jpg|thumb|250px|मलेरिया का वाहक, मच्छर]] | ||
*मलेरिया के मच्छरों को नष्ट करने के लिए कीटनाशकों के छिड़काव और जैव पर्यावरण उपायों को अपनाने पर जोर दिया गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने देशभर के कुल 53,544 उप स्वास्थ्य केंद्रों पर 53,500 पुरुष स्वास्थ्यकर्मियों को तैनात करने का निर्णय लिया है। पूर्वोत्तर राज्यों में ख़ासकर [[मेघालय]] के [[शिलांग]] में कक्षा पांचवीं के विद्यार्थियों को मलेरिया के प्रति जागरूक करने के लिए उनके बीच कॉमिक पुस्तकों का वितरण किया गया है। | *मलेरिया के मच्छरों को नष्ट करने के लिए कीटनाशकों के छिड़काव और जैव पर्यावरण उपायों को अपनाने पर जोर दिया गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने देशभर के कुल 53,544 उप स्वास्थ्य केंद्रों पर 53,500 पुरुष स्वास्थ्यकर्मियों को तैनात करने का निर्णय लिया है। पूर्वोत्तर राज्यों में ख़ासकर [[मेघालय]] के [[शिलांग]] में कक्षा पांचवीं के विद्यार्थियों को मलेरिया के प्रति जागरूक करने के लिए उनके बीच कॉमिक पुस्तकों का वितरण किया गया है। | ||
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*'[[25 अप्रैल]]' 'विश्व मलेरिया दिवस' का दिन है, जब मलेरिया को जड़ से मिटाने के लिए कारगार कदम उठाने के भरसक प्रयासों को हरी झंडी दी गई थी। साथ ही जनता को मलेरिया के प्रति जागरूक करने और इस रोग पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने की पहल की गई थी। | *'[[25 अप्रैल]]' 'विश्व मलेरिया दिवस' का दिन है, जब मलेरिया को जड़ से मिटाने के लिए कारगार कदम उठाने के भरसक प्रयासों को हरी झंडी दी गई थी। साथ ही जनता को मलेरिया के प्रति जागरूक करने और इस रोग पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने की पहल की गई थी। | ||
*मलेरिया पूरे विश्व में महामारी का रूप धारण कर चुका है। ख़ासकर विकासशील देशों में मलेरिया कई मरीजों के लिए मौत का पैगाम बनकर सामने आया है। मच्छरों के कारण फैलने वाली इस बीमारी में हर साल कई लाख लोग जान गवाँ देते हैं। 'प्रोटोजुअन प्लाज्मोडियम' नामक कीटाणु मादा एनोफिलीज मच्छर के माध्यम से फैलते है। ये मच्छर एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे तक कीटाणु फैलाने का काम भी करते है। | *मलेरिया पूरे विश्व में महामारी का रूप धारण कर चुका है। ख़ासकर विकासशील देशों में मलेरिया कई मरीजों के लिए मौत का पैगाम बनकर सामने आया है। मच्छरों के कारण फैलने वाली इस बीमारी में हर साल कई लाख लोग जान गवाँ देते हैं। 'प्रोटोजुअन प्लाज्मोडियम' नामक कीटाणु मादा एनोफिलीज मच्छर के माध्यम से फैलते है। ये मच्छर एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे तक कीटाणु फैलाने का काम भी करते है। | ||
*यूनिसेफ़ का मलेरिया को लेकर कहना है कि [[अफ़्रीका]] के कुछ देशों सहित अन्य देशों में मच्छर के कारण हो रही मौतों को रोकने के और अधिक उपाय करने होंगे। इसके अलावा ग्रामीण एवं ग़रीब लोगों वाले ऐसे क्षेत्रों तक ज्यादा पहुँच बढ़ानी होगी, जहाँ [[मलेरिया]] एक बड़े खतरे का रूप ले चुका है। यूनिसेफ़ के | *यूनिसेफ़ का मलेरिया को लेकर कहना है कि [[अफ़्रीका]] के कुछ देशों सहित अन्य देशों में मच्छर के कारण हो रही मौतों को रोकने के और अधिक उपाय करने होंगे। इसके अलावा ग्रामीण एवं ग़रीब लोगों वाले ऐसे क्षेत्रों तक ज्यादा पहुँच बढ़ानी होगी, जहाँ [[मलेरिया]] एक बड़े खतरे का रूप ले चुका है। यूनिसेफ़ के मुताबिक़ मलेरिया को आसानी से मात दी जा सकती हैं, बस ज़रूरत है विश्व को मलेरिया के ख़िलाफ़ एकजुट होने की। | ||
*मलेरिया एक वैश्विक जन-स्वास्थ्य समस्या है। '[[विश्व स्वास्थ्य संगठन]]' का कहना है कि हर साल मलेरिया के कारण विश्व में हो रही मौतों की ओर लोगों का ध्यान खींचने के लिए '25 अप्रैल' को 'विश्व मलेरिया दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है। | *मलेरिया एक वैश्विक जन-स्वास्थ्य समस्या है। '[[विश्व स्वास्थ्य संगठन]]' का कहना है कि हर साल मलेरिया के कारण विश्व में हो रही मौतों की ओर लोगों का ध्यान खींचने के लिए '25 अप्रैल' को 'विश्व मलेरिया दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है। | ||
*गौरतलब है कि पिछले कई सालों से 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' (डब्ल्यूएचओ) इस दिन को 'अफ़्रीका मलेरिया दिवस' के तौर पर मनाता था, लेकिन दुनिया के बाक़ी हिस्सों में भी जागरूकता लाने के लिए इसे वैश्विक आयोजन का रूप दिया गया। | *गौरतलब है कि पिछले कई सालों से 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' (डब्ल्यूएचओ) इस दिन को 'अफ़्रीका मलेरिया दिवस' के तौर पर मनाता था, लेकिन दुनिया के बाक़ी हिस्सों में भी जागरूकता लाने के लिए इसे वैश्विक आयोजन का रूप दिया गया। |
09:52, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
विश्व मलेरिया दिवस
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विवरण | 'विश्व मलेरिया दिवस' पूरे विश्व में '25 अप्रैल' को मनाया जाता है। 'मलेरिया' जैसी गम्भीर बीमारी की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए इस दिवस को मनाया जाता है। |
तिथि | 25 अप्रैल |
शुरुआत | 2008 |
क्या है 'मलेरिया' | यह एक प्रकार का बुखार है, जिसमें बुखार ठण्ड (कंपकपी) के साथ आता है। यह बुखार मुख्यत: संक्रमित मादा एनाफ़िलीज मच्छर द्वारा काटने पर होता है। |
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट | 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में हर वर्ष क़रीब 50 करोड़ लोग मलेरिया से पीड़ित होते हैं; जिनमें क़रीब 27 लाख रोगी जीवित नहीं बच पाते, जिनमें से आधे पाँच साल से कम के बच्चे होते हैं। |
विशेष | भारत के सात राज्यों- आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा और राजस्थान में मलेरिया पर नियंत्रण के लिए सरकार ने विश्व बैंक की मदद से सितम्बर, 1997 से 'परिष्कृत मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम' की शुरुआत की है। |
संबंधित लेख | डेंगू |
अन्य जानकारी | मलेरिया एक वैश्विक जन-स्वास्थ्य समस्या है। 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' का कहना है कि हर साल मलेरिया के कारण विश्व में हो रही मौतों की ओर लोगों का ध्यान खींचने के लिए '25 अप्रैल' को 'विश्व मलेरिया दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है। |
विश्व मलेरिया दिवस (अंग्रेज़ी: World Malaria Day) सम्पूर्ण विश्व में '25 अप्रैल' को मनाया जाता है। 'मलेरिया' एक जानलेवा बीमारी है, जो मच्छर के काटने से फैलती है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को यदि सही समय पर उचित इलाज तथा चिकित्सकीय सहायता न मिले तो यह जानलेवा सिद्ध होती है। मलेरिया एक ऐसी बीमारी है, जो हज़ारों वर्षों से मनुष्य को अपना शिकार बनाती आई है। विश्व की स्वास्थ्य समस्याओं में मलेरिया अभी भी एक गम्भीर चुनौती है। पिछले दो दशकों में हुए तीव्र वैज्ञानिक विकास और मलेरिया के उन्मूलन के लिए चलाए गए वैश्विक कार्यक्रमों के बावजूद इस जानलेवा बीमारी के आंकड़ों में कमी तो आई है, लेकिन अभी भी इस पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं पाया जा सका है।
शुरुआत
हर दिन का अपना एक ख़ास महत्त्व होता है। फिर चाहे वह खुशी का दिन हो या दु:ख का। 'विश्व मलेरिया दिवस' एक ऐसा ही दिन है, जिसे पहली बार '25 अप्रैल, 2008' को मनाया गया था। यूनिसेफ़ द्वारा इस दिन को मनाने का उद्देश्य मलेरिया जैसे ख़तरनाक रोग पर जनता का ध्यान केंद्रित करना था, जिससे हर साल लाखों लोग मरते हैं। इस मुद्दे पर 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' का कहना है कि मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम चलाने से बहुत-सी जानें बचाई जा सकती हैं।[1]
क्या है मलेरिया
'मलेरिया' एक प्रकार का बुखार है। इसमें बुखार ठण्ड (कंपकपी) के साथ आता है। इस बुखार के मुख्य लक्षण हैं- सरदर्द, उलटी और अचानक तेज सर्दी लगना। मलेरिया मुख्यत: संक्रमित मादा एनाफ़िलीज मच्छर द्वारा काटने पर ही होता है। जब संक्रमित मादा एनाफ़िलीज मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वह अपने लार के साथ उसके रक्त में मलेरिया परजीवियों को पहुंचा देता है। संक्रमित मच्छर के काटने के 10-12 दिनो के बाद उस व्यक्ति में मलेरिया रोग के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। मलेरिया के रोगी को काटने पर असंक्रमित मादा एनाफ़िलीज मच्छर रोगी के रक्त के साथ मलेरिया परजीवी को भी चूस लेते हैं व 12-14 दिनों में ये मादा एनाफ़िलीज मच्छर भी संक्रमित होकर जितने भी स्वस्थ मनुष्यों को काटते हैं, उनमें मलेरिया फैलाने में सक्षम होते हैं। इस तरह एक मादा मच्छर कई स्वस्थ लोगों को भी मलेरिया ग्रसित कर देता है।
'विश्व स्वास्थ्य संगठन' की रिपोर्ट
'डब्ल्यूएचओ' (विश्व स्वास्थ्य संगठन) की एक रिपोर्ट कहती है कि साल 2000 से अब तक मलेरिया से होने वाली मौतों में 25 फीसदी से ज्यादा की कमी आई है। इसमें कहा गया है कि मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित 99 में से 50 देश 2015 तक मलेरिया के मामलों में 75 फीसदी तक की कमी लाने के रास्ते पर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़, इस उपलब्धि के बावजूद हकीकत यह है कि आज भी दुनिया में मलेरिया से हर साल क़रीब छह लाख 60 हज़ार लोगों की मौत हो जाती है। इनमें से ज्यादातर बच्चे होते हैं। अफ़्रीका के उप सहारा क्षेत्र में आज भी मलेरिया की वजह से सबसे ज्यादा बच्चों की जान जा रही है। 'डब्ल्यूएचओ' का कहना है कि दुनिया में हर साल मलेरिया के क़रीब 20 करोड़ नए केस सामने आते हैं। साधनों की कमी के कारण इनमें से बहुतों को स्तरीय इलाज तक नहीं मिल पाता।[2]
भारत में मलेरिया की स्थिति
यदि गौर किया जाए तो भारत की स्वतंत्रता के बाद से अब तक हज़ारों लोग इस बीमारी की चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं। मलेरिया एक जटिल बीमारी है। मानव गतिविधियाँ और प्राकृतिक आपदाएं, जैसे- अत्यधिक वर्षा, बाढ़, अकाल और अन्य आपदाएं इस बीमारी की संक्रमण क्षमता को तेज़ीसे बढ़ाती हैं। 'स्वास्थ्य मंत्रालय' के 'राष्ट्रीय मच्छर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम' (एनवीबीडीसीपी) देश में प्रतिवर्ष क़रीब 15 लाख मलेरिया के मरीजों की संख्या दर्ज करता है। इनमें से 50 प्रतिशत मलेरिया प्लाज्मोडियम फैल्सीपरम मच्छर के काटने से फैलता है। 'एनवीबीडीसीपी' द्वारा जारी पिछले 10 वर्ष के आकंड़ों पर अगर गौर करें तो मलेरिया से देश में वर्ष 2001 में 1005, 2002 में 973, 2003 में 1006, 2004 में 949, 2005 में 963, 2006 में 1707, 2007 में 1311, 2008 में 1055, 2009 में 1144 और 2010 में 767 लोगों की जान गई।
राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम
स्वतंत्रता के बाद मलेरिया पर रोकथाम के लिए 'भारत सरकार' ने वर्ष 1953 में 'राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम' (एनएमसीपी) चलाने के साथ ही डीडीटी का छिड़काव शुरू किया था, जबकि 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' के अनुरोध पर वर्ष 1958 में 'राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम' (एनएमईपी) और आगे चलकर 'मोडिफ़ाइड प्लान ऑफ़ ऑपरेशन' (एमपीओ) नाम से नई योजना शुरू की गई।
भारत सरकार के प्रयत्न
हाल के वर्षों में उड़ीसा, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ से मलेरिया के मामलों में तेज़ीसे वृद्धि हुई है। इनके अलावा अन्य राज्यों में भी इस महामारी का खतरा बना हुआ है। पिछले दशकों में शहरी इलाकों में भी मलेरिया के मामले तेज़ीसे सामने आए हैं। मलेरिया के प्रभावी रोकथाम और इलाज तक पहुंच के सीमित साधन होने की वजह से जनजातीय लोगों और ग़रीबों में इस बीमारी का खतरा ज्यादा बना रहता है। सरकार ने एमपीओ कार्यक्रम के तहत मलेरिया फैलने की पूर्व सूचना, शुरू में ही इस बीमारी की पहचान और त्वरित कार्रवाई के लिए कदम उठाने की व्यवस्था की है। पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को सौ प्रतिशत मदद देने का भरोसा और लोगों को जागरूक करने के लिए देशभर में 'मलेरिया विरोधी महीना' की शुरुआत की गई है। इसके अलावा देश के सात राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा और राजस्थान में मलेरिया पर नियंत्रण के लिए सरकार ने विश्व बैंक की मदद से सितम्बर, 1997 से 'परिष्कृत मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम' की शुरुआत की है।[3]
- मलेरिया के मच्छरों को नष्ट करने के लिए कीटनाशकों के छिड़काव और जैव पर्यावरण उपायों को अपनाने पर जोर दिया गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने देशभर के कुल 53,544 उप स्वास्थ्य केंद्रों पर 53,500 पुरुष स्वास्थ्यकर्मियों को तैनात करने का निर्णय लिया है। पूर्वोत्तर राज्यों में ख़ासकर मेघालय के शिलांग में कक्षा पांचवीं के विद्यार्थियों को मलेरिया के प्रति जागरूक करने के लिए उनके बीच कॉमिक पुस्तकों का वितरण किया गया है।
उल्लेखनीय तथ्य
- '25 अप्रैल' 'विश्व मलेरिया दिवस' का दिन है, जब मलेरिया को जड़ से मिटाने के लिए कारगार कदम उठाने के भरसक प्रयासों को हरी झंडी दी गई थी। साथ ही जनता को मलेरिया के प्रति जागरूक करने और इस रोग पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने की पहल की गई थी।
- मलेरिया पूरे विश्व में महामारी का रूप धारण कर चुका है। ख़ासकर विकासशील देशों में मलेरिया कई मरीजों के लिए मौत का पैगाम बनकर सामने आया है। मच्छरों के कारण फैलने वाली इस बीमारी में हर साल कई लाख लोग जान गवाँ देते हैं। 'प्रोटोजुअन प्लाज्मोडियम' नामक कीटाणु मादा एनोफिलीज मच्छर के माध्यम से फैलते है। ये मच्छर एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे तक कीटाणु फैलाने का काम भी करते है।
- यूनिसेफ़ का मलेरिया को लेकर कहना है कि अफ़्रीका के कुछ देशों सहित अन्य देशों में मच्छर के कारण हो रही मौतों को रोकने के और अधिक उपाय करने होंगे। इसके अलावा ग्रामीण एवं ग़रीब लोगों वाले ऐसे क्षेत्रों तक ज्यादा पहुँच बढ़ानी होगी, जहाँ मलेरिया एक बड़े खतरे का रूप ले चुका है। यूनिसेफ़ के मुताबिक़ मलेरिया को आसानी से मात दी जा सकती हैं, बस ज़रूरत है विश्व को मलेरिया के ख़िलाफ़ एकजुट होने की।
- मलेरिया एक वैश्विक जन-स्वास्थ्य समस्या है। 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' का कहना है कि हर साल मलेरिया के कारण विश्व में हो रही मौतों की ओर लोगों का ध्यान खींचने के लिए '25 अप्रैल' को 'विश्व मलेरिया दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है।
- गौरतलब है कि पिछले कई सालों से 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' (डब्ल्यूएचओ) इस दिन को 'अफ़्रीका मलेरिया दिवस' के तौर पर मनाता था, लेकिन दुनिया के बाक़ी हिस्सों में भी जागरूकता लाने के लिए इसे वैश्विक आयोजन का रूप दिया गया।
- 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में हर वर्ष क़रीब 50 करोड़ लोग मलेरिया से पीड़ित होते हैं; जिनमें क़रीब 27 लाख रोगी जीवित नहीं बच पाते, जिनमें से आधे पाँच साल से कम के बच्चे होते हैं।
- मच्छर मलेरिया के रोगाणु का केवल वाहक है। रोगाणु मच्छर के शरीर में एक परजीवी की तरह फैलता है और मच्छर के काटने पर उसकी लार के साथ मनुष्य के शरीर में पहुँचता है। रोगाणु केवल एक कोषीय होता है, जिसे 'प्लास्मोडियम' कहा जाता है।
- रोगाणु की क़िस्म के अनुसार मलेरिया के तीन मुख्य प्रकार हैं- 'मलेरिया टर्शियाना', 'क्वार्टाना' और 'ट्रोपिका'। इनमें सबसे ख़तरनाक है- 'मलेरिया ट्रोपिका', जो 'पी.फ़ाल्सिपेरम' नामक रोगाणु से फैलता है और भारत में भी चारों और फैला हुआ है।
- मलेरिया का संक्रमण होने और बीमारी फैलने में रोगाणु की किस्म के आधार पर 7 से 40 दिन तक लग सकते हैं। मलेरिया के शुरूआती दौर में सर्दी-जुकाम या पेट की गड़बड़ी जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं, इसके कुछ समय बाद सिर, शरीर और जोड़ों में दर्द, ठंड लग कर बुख़ार आना, नब्ज़ तेज़ हो जाना, उबकाई, उल्टी या पतले दस्त होना इत्यादि होने लगता है। लेकिन जब बुखार अचानक से बढ़ कर 3-4 घंटे रहता है और अचानक उतर जाता है, इसे मलेरिया की सबसे खतरनाक स्थिति माना जाता है।[4]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विश्व मलेरिया दिवस (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 अप्रैल, 2014।
- ↑ विश्व मलेरिया दिवस (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 अप्रैल, 2014।
- ↑ मलेरिया अभी भी एक गम्भीर चुनौती (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 अप्रैल, 2014।
- ↑ विश्व मलेरिया दिवस (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 अप्रैल, 2014।
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