"सदस्य:DrMKVaish": अवतरणों में अंतर

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{{DISPLAYTITLE:सदस्य:<span style="color:red;">Dr</span><span style="color:orange;">M</span><span style="color:blue;">K</span><span style="color:green;">Vaish</span>}}[[चित्र:India-flag1.gif|तिरंगा|center]]
<span style="position:absolute;top:-30px;left:-100px;z-index:100">[[चित्र:India-flag1.gif|100px]]</span>[[चित्र:Tricolor.jpg|तिरंगा|left|150px]]
{{DISPLAYTITLE:सदस्य:<span style="color:red;">Dr</span><span style="color:orange;">M</span><span style="color:blue;">K</span><span style="color:green;">Vaish</span>}}[[चित्र:BharatMata.gif|200px|center|भारत माता]]
 
{{दाँयाबक्सा|पाठ=<font color="orange" size="+2"> मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।</font>|विचारक=<font color="orange" size="+2">महात्मा गांधी</font> }}
 
<br /><center><div style="text-align:center;width:90%;padding:1em;border:solid 6px green;letter-spacing: 1px;background-color:orange;color:blue;font-weight:bold"><font color="blue" size="+1">'''ख़ूबसूरत बातें'''
* ख़ूबसूरत है वो लब जिन पर दूसरों के लिए एक दुआ है।
* ख़ूबसूरत है वो मुस्कान जो दूसरों की खुशी देख कर खिल जाए।
* ख़ूबसूरत है वो दिल जो किसी के दुख मे शामिल हो जाए और किसी के प्यार के रंग मे रंग जाए।
* ख़ूबसूरत है वो जज़बात जो दूसरो की भावनाओं को समझे।
* ख़ूबसूरत है वो एहसास जिस मे प्यार की मिठास हो।
* ख़ूबसूरत है वो बातें जिनमे शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से कहानियाँ।
* ख़ूबसूरत है वो आँखे जिनमे कितने ख़ूबसूरत ख्वाब समा जाएँ।
* ख़ूबसूरत है वो आसूँ जो किसी के ग़म मे बह जाएँ।
* ख़ूबसूरत है वो हाथ जो किसी के लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए।
* ख़ूबसूरत है वो कदम जो अमन और शान्ति का रास्ता तय कर जाएँ।
* ख़ूबसूरत है वो सोच जिस मे पूरी दुनिया की भलाई का ख्याल आ जाए।
</font></div></center><br />
 
{| width="100%" style="font-size: 150%; text-align:center; padding-bottom: 0; margin-bottom: 0;background:aliceblue"
|
'''डा॰ मनीष कुमार'''<sup>'''वैश्य'''</sup>
|}
 
'''National Anthem''' = <center>[[File:A R  Rahman - Jana Gana Mana (2007) - Asha Bhonsle.ogg]]</center><br />
 
<font color="maroon" size="+2"> मेरे पृष्ट पर आप का स्वागत है ! </font>  
<font color="maroon" size="+2"> मेरे पृष्ट पर आप का स्वागत है ! </font>  
<div align ="center" style="position:absolute; right:1.25em; top:0.1em; font-size:100%">Hello. </div>
<div align ="center" style="position:absolute; right:1.25em; top:0.1em; font-size:100%">Hello. </div>
<br /><center><div style="text-align:center;width:30%;padding:1em;border:solid 6px red;letter-spacing: 1px;background-color:#08088A;color:orange;font-weight:bold">'''I LOVE YOU INDIA''' </div></center><br />


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[[चित्र:NAMASTE.gif|100px|center|नमस्ते<br />NAMASTE]]
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<div style="background-color:#F6D6E4; font-weight: bold; width:40%; padding-left:5px; border: 1px solid #E7D1DA;">'''मेरा संपादन क्षेञ'''</div>
<div style="background-color:#F6D6E4; font-weight: bold; width:70%; padding-left:5px; border: 1px solid #E7D1DA;">'''मेरा संपादन क्षेत्र'''</div>
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# [[संत कबीर नगर ज़िला]]
# [[संत कबीर नगर ज़िला]]
# [[सिद्धार्थनगर ज़िला]]
# [[सिद्धार्थनगर ज़िला]]
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# [[गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर]]
# [[तामेश्वरनाथ मंदिर]]
# [[चन्दो ताल]]
# [[रामगढ़ ताल]]
# [[पिण्डारी]]
# [[पिण्डारी]]
# [[महुआ डाबर]]
# [[महुआ डाबर]]
# [[मगहर]]
# [[मगहर]]
# [[बखिरा झील]]
# [[अष्टभुजा शुक्ल]]
# [[अष्टभुजा शुक्ल]]
# [[बीमारी और फ़िल्म]]
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# [[डाक टिकट]]
# [[डाक टिकट]]
# [[डाक टिकटों में महात्मा गाँधी]]
# [[डाक टिकटों में महात्मा गाँधी]]
# [[महत्त्वपूर्ण दिवस]]
# [[भारतीय डाक टिकटों में बाल दिवस]]
# [[डाक सूचक संख्या]]
# [[भारतीय स्टेट बैंक]]
# [[पंजाब नैशनल बैंक]]
# [[राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन]]
-----
# [[बीमारी और फ़िल्म]]
# [[प्रोजेरिया]]
# [[प्रोजेरिया]]
# [[सीज़ोफ़्रेनिया]]
# [[सीज़ोफ़्रेनिया]]
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# [[डेंगू]]
# [[डेंगू]]
# [[प्लेग]]
# [[प्लेग]]
# [[रेबीज़]]
# [[बवासीर]]
# [[पोलियो]]
# [[मिर्गी]]
# [[हिस्टीरिया]]
# [[कब्ज]]
# [[स्केबीज़]]
# [[सोरियासिस]]
# [[नींद में चलने की बीमारी]]
# [[डाउन सिन्‍ड्रोम]]
# [[हर्पिस जोस्टर]]
-----
# [[वैष्णो देवी]]
# [[वैष्णो देवी]]
# [[शक्तिपीठ]]
# [[अमरनाथ]]
# [[अमरनाथ]]
# [[कैलाश मानसरोवर]]
# [[कैलाश मानसरोवर]]
# [[देवीपाटन मंदिर]]
# [[मारकण्डेय महादेव मंदिर]]
# [[पाताल भुवनेश्‍वर गुफ़ा]]
# [[जीण माता धाम]]
# [[बृहदेश्वर मन्दिर]]
# [[भोजेश्वर मंदिर]]
# [[पार्वती तुकेश्वर महादेव मंदिर]]
# [[बगलामुखी मंदिर]]
# [[ॐ]]
# [[स्वस्तिक]]
# [[786]]
# [[शंख]]
# [[गंगाजल]]
# [[रामसेतु]]
# [[कुण्डलिनी]]
# [[पद्मनाभस्वामी मंदिर]]
# [[पंचगव्य]]
# [[अघोरी]]
# [[हिंदू विवाह में सात फेरे और सात वचन]]
# [[अंक 7]]
-----
# [[विलोम शब्द]]
# [[पर्यायवाची शब्द]]
# [[कबीर के दोहे]]
# [[तुलसीदास के दोहे]]
# [[रहीम के दोहे]]
# [[भारतीय नाम]]
# [[मधुशाला]]
# [[एस एम एस]]
# [[ट्विटर]]
-----
# [[माउंट एवरेस्ट]]
# [[माउंट एवरेस्ट]]
# [[गाडविन आस्टिन]]
# [[कावर झील]]
# [[डल झील]]
# [[रूपकुंड झील]]
# [[लोनार झील]]
# [[जवाहर सुरंग]]
# [[भूकंप]]
# [[हिममानव]]
# [[पुनर्जन्म]]
# [[स्वप्न]]
# [[सम्मोहन]]
# [[कोहिनूर हीरा]]
# [[जैकब हीरा]]
# [[ग्रेट मुग़ल हीरा]]
# [[फ़ॉर्मूला वन]]
# [[बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट]]
# [[गुलाल]]
# [[मिट्टी]]
# [[भारत में प्रथम]]
# [[आविष्कार और आविष्कारक]]
# [[भारत के सात आश्चर्य]]
# [[सूचना का अधिकार अधिनियम 2005]]
# [[चुनाव आचार संहिता]]
# [[जनगणना]]
# [[सांता क्लॉज]]
# [[क्रिसमस ट्री]]
-----
# [[मैडम तुसाद संग्रहालय]]
# [[बुर्ज ख़लीफ़ा]]
# [[बरमूडा त्रिकोण]]
# [[ईस्टर द्वीप]]
# [[माया कैलेंडर]]
-----
# [[महत्त्वपूर्ण दिवस]]
# [[गणतंत्र दिवस]]
# [[गणतंत्र दिवस]]
# [[हिन्दी दिवस]]
# [[हिन्दी दिवस]]
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# [[विश्व हास्य दिवस]]
# [[विश्व हास्य दिवस]]
# [[मातृ दिवस]]
# [[मातृ दिवस]]
# [[कुण्डलिनी]]
# [[विश्व रक्तदान दिवस]]
# [[विश्व पर्यावरण दिवस]]
# [[विश्व स्वास्थ्य दिवस]]
# [[राष्ट्रीय विज्ञान दिवस]]
# [[विश्व रेडक्रॉस दिवस]]
# [[अप्रैल फूल दिवस]]
# [[विश्व जल दिवस]]
# [[विश्व धूम्रपान निषेध दिवस]]
# [[पाई दिवस]]
# [[विश्व कैंसर दिवस]]
# [[अन्तर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस]]
# [[अंतराष्ट्रीय विकलांग दिवस]]
# [[अंतरराष्ट्रीय मैत्री दिवस]]
# [[विश्व ओजोन दिवस]]
-----
# [[परमवीर चक्र]]
# [[अशोक चक्र]]
# [[महावीर चक्र]]
# [[वीर चक्र]]
# [[कीर्ति चक्र]]
# [[शौर्य चक्र]]
# [[जीवन रक्षा पदक]]
# [[अर्जुन पुरस्कार]]
# [[ऑस्कर पुरस्कार]]
-----
# [[पृथ्वी-2 मिसाइल]]
# [[ब्रह्मोस मिसाइल]]
# [[अग्नि-2 मिसाइल]]
# [[शौर्य मिसाइल]]
-----
# [[अण्णा हज़ारे]]
# [[स्वामी रामदेव]]
# [[किरण बेदी]]
# [[मेधा पाटकर]]
# [[अरविंद केजरीवाल]]
# [[सत्य साईं बाबा]]
# [[राहुल गांधी]]
# [[दलाईलामा तेनजिन ग्यात्सो]]
# [[पंडित जसराज]]
# [[श्रीलाल शुक्ल]]
# [[श्रीनिवास अयंगर रामानुजन]]
# [[तिरुवल्लुवर]]
# [[स्टीफन हॉकिंग]]
# [[गैलिलियो गैलीली]]
# [[पंडित श्रद्धाराम शर्मा]]
# [[जय गुरुदेव]]
# [[प्रणब मुखर्जी]]
# [[कैप्टन लक्ष्मी सहगल]]
# [[नील आर्मस्ट्रांग]]
# [[सुनीता विलियम्स]]
# [[के एस सुदर्शन]]
# [[मोहन भागवत]]
-----
# [[दिलीप कुमार]]
# [[दिलीप कुमार]]
# [[धर्मेन्द्र]]
# [[धर्मेन्द्र]]
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# [[राज कुमार]]
# [[राज कुमार]]
# [[शशि कपूर]]
# [[शशि कपूर]]
# [[शिव चालीसा]]
# [[देव आनंद]]
# [[शनि चालीसा]]
# [[दारा सिंह]]
# [[शनिदेव जी की आरती]]
# [[शत्रुघ्न सिन्हा]]
# [[वृहस्पतिदेव जी की आरती]]
# [[कैटरीना कैफ़]]
# [[विन्ध्येश्‍वरी चालीसा]]
# [[ऐश्वर्या राय]]
# [[गायत्री माता की आरती]]
# [[भूपेन हज़ारिका]]
# [[गायत्री चालीसा]]
# [[सत्यदेव दुबे]]
# [[श्यामबाबा जी की आरती]]
# [[लक्ष्मीकांत]]
# [[कृष्ण जी की आरती]]
# [[बी आर इशारा]]
# [[काली माता की आरती]]
# [[साधना (अभिनेत्री)]]
# [[संतोषी माता की आरती]]
# [[ए. के. हंगल]]
# [[राम स्तुति]]
# [[रामानन्द सागर]]
# [[गणेश स्तुति]]
-----
# [[सरस्वती माता की आरती]]
# [[सिंह]]
# [[सरस्वती चालीसा]]
# [[बंदर]]
# [[सरस्वती प्रार्थना]]
# [[कंगारू]]
# [[कृष्ण चालीसा]]
-----
# [[रविवार व्रत की आरती]]
# [[बुधवार व्रत की आरती]]
# [[शुक्रवार व्रत की आरती]]
# [[नवदुर्गा रक्षामंत्र]]
# [[साईबाबा जी की आरती]]
# [[संकटमोचन हनुमानाष्टक]]
# [[एस एम एस]]
# [[सौरमण्डल]]
# [[सौरमण्डल]]
# [[सूर्य (तारा)]]
# [[बुध ग्रह]]
# [[बुध ग्रह]]
# [[शुक्र ग्रह]]
# [[शुक्र ग्रह]]
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# [[सूर्य ग्रहण]]
# [[सूर्य ग्रहण]]
# [[चन्द्र ग्रहण]]
# [[चन्द्र ग्रहण]]
# [[क्षुद्र ग्रह]]
# [[धूमकेतु]]
# [[धूमकेतु]]
# [[हैली धूमकेतु]]
# [[हैली धूमकेतु]]
# [[ल्यूलिन धूमकेतु]]
# [[ल्यूलिन धूमकेतु]]
# [[बरमूडा त्रिकोण]]
# [[एपोफिस क्षुद्र ग्रह]]
# [[हिममानव]]
# [[सेरेस]]
# [[विलोम शब्द]]
# [[हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन]]
# [[पर्यायवाची शब्द]]
-----
# [[अनमोल वचन]]
# [[अनमोल वचन 1]]
# [[भारतीय स्टेट बैंक]]
# [[अनमोल वचन 2]]
# [[पंजाब नैशनल बैंक]]
# [[अनमोल वचन 3]]
# [[अनमोल वचन 4]]
# [[अनमोल वचन 5]]
# [[अनमोल वचन 6]]
# [[अनमोल वचन 7]]
# [[अनमोल वचन 8]]
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# [[अनमोल वचन 11]]
# [[अनमोल वचन 12]]
# [[अनमोल वचन 13]]
# [[अनमोल वचन 14]]
# [[अनमोल वचन 15]]
# [[महात्मा गाँधी के अनमोल वचन]]
# [[स्वामी विवेकानन्द के अनमोल वचन]]
-----
# [[पीपल]]
# [[नीम]]
# [[बरगद]]
# [[अशोक वृक्ष]]
# [[चन्दन]]
# [[बाँस]]
# [[तुलसी]]
# [[पुदीना]]
# [[शीशम]]
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# [[साबूदाना]]
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# [[बादाम]]
# [[नाशपाती]]
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# [[करौंदा]]
# [[इमली]]
# [[दाल]]
-----
# [[इंडियन प्रीमियर लीग]]
# [[इंडियन प्रीमियर लीग 2008]]
# [[इंडियन प्रीमियर लीग 2009]]
# [[इंडियन प्रीमियर लीग 2010]]
# [[इंडियन प्रीमियर लीग 2011]]
# [[मुंबई इंडियंस]]
# [[चेन्नई सुपर किंग्स]]
# [[कोलकाता नाईटराइडर्स]]
# [[डेक्कन चार्जर्स]]
# [[राजस्थान रॉयल्स]]
# [[रॉयल चैलेंजर्स बैंगलौर]]
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# [[दिल्ली डेयरडेविल्स]]
# [[सहारा पुणे वॉरियर्स]]
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# [[सचिन तेंदुलकर]]
# [[कपिल देव]]
# [[सुनील गावस्कर]]
# [[रवि शास्त्री]]
# [[मंसूर अली खान पटौदी]]
# [[वीरेन्द्र सहवाग]]
# [[महेन्द्र सिंह धोनी]]
# [[ओलंपिक खेल]]
-----
# [[दे दी हमें आज़ादी]]
# [[रघुपति राघव राजा राम]]
# [[वैष्णव जन तो तेने कहिये]]
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# [[मेरे देश की धरती]]
# [[हर करम अपना करेंगे]]
# [[ऐ मेरे प्यारे वतन]]
# [[इन्साफ की डगर पर]]
# [[हम लाये हैं तूफ़ान से]]
# [[जिस देश में गंगा बहती है]]
# [[यह देश है वीर जवानों का]]
# [[है प्रीत जहाँ की रीत सदा]]
# [[नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी मैं क्या है]]
# [[मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये]]
# [[भारत हमको जान से प्यारा है]]
# [[अपनी आजादी को हम]]
# [[ऐ वतन ऐ वतन]]
# [[मेरा रंग दे बसंती चोला]]
# [[सरफरोशी की तमन्ना]]
# [[नन्हा मुन्ना राही हूँ]]
# [[जहाँ डाल डाल पर]]
# [[संदेशे आते है]]
# [[बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो]]
# [[छोड़ो कल की बातें]]
# [[कदम कदम बढाये जा]]
# [[विजयी विश्व तिरंगा प्यारा]]
# [[आओ बच्चों तुम्हे दिखाएं]]
# [[चन्दन है इस देश की माटी]]
# [[नफ़रत की लाठी तोड़ो]]
# [[थोड़ी सी धूल मेरी]]
# [[कर चले हम फ़िदा]]
# [[जय जननी ने भारत माँ]]
# [[वतन पे जो फ़िदा होगा]]
# [[ए मेरे वतन के लोगो]]
# [[पासे सभी उलट गए]]
-----
# [[दुर्गा माता के 108 नाम]]
# [[शिव जी के 108 नाम]]
# [[श्री हनुमत्सहस्त्र नामावली]]
# [[श्री गणेश सहस्त्रनामावली]]
# [[श्री राम सहस्रनामस्तोत्र]]
# [[श्री लक्ष्म्यष्टोत्तरशत सहस्रनामावली]]
# [[आरती पूजन]]
# [[गायत्री माता की आरती]]
# [[सोमवार व्रत की आरती]]
# [[मंगलवार व्रत की आरती]]
# [[बुधवार व्रत की आरती]]
# [[वृहस्पतिवार व्रत की आरती]]
# [[शुक्रवार व्रत की आरती]]
# [[शनिवार व्रत की आरती]]
# [[रविवार व्रत की आरती]]
# [[रामायण जी की आरती]]
# [[गीता जी की आरती]]
# [[श्रीमद् भागवत पुराण की आरती]]
# [[वैष्णो माता की आरती]]
# [[दुर्गा जी की आरती]]
# [[शारदा माता की आरती]]
# [[शीतला माता की आरती]]
# [[काली माता की आरती]]
# [[संतोषी माता की आरती]]
# [[सरस्वती माता की आरती]]
# [[लक्ष्मी रमणा जी की आरती]]
# [[रानी सती जी की आरती]]
# [[गंगा माता की आरती]]
# [[यमुना माता की आरती]]
# [[तुलसी माता की आरती]]
# [[पार्वती माता की आरती]]
# [[अन्नपूर्णा देवी की आरती]]
# [[नैना देवी की आरती]]
# [[शाकम्भरी देवी की आरती]]
# [[विन्ध्येश्वरी माता की आरती]]
# [[चिन्तपूर्णी देवी की आरती]]
# [[नवग्रह आरती]]
# [[श्यामबाबा जी की आरती]]
# [[गणेश जी की आरती]]
# [[कृष्ण जी की आरती]]
# [[युगलकिशोर जी की आरती]]
# [[केदार नाथ जी की आरती]]
# [[बद्री नाथ जी की आरती]]
# [[रामचंद्र जी की आरती]]
# [[साईबाबा जी की आरती]]
# [[सूर्यदेव जी की आरती]]
# [[शनिदेव जी की आरती]]
# [[वृहस्पतिदेव जी की आरती]]
# [[भैंरव जी की आरती]]
# [[सरस्वती प्रार्थना]]
# [[राम स्तुति]]
# [[गणेश स्तुति]]
# [[नवदुर्गा रक्षामंत्र]]
# [[संकटमोचन हनुमानाष्टक]]
# [[सरस्वती चालीसा]]
# [[शिव चालीसा]]
# [[शनि चालीसा]]
# [[विन्ध्येश्‍वरी चालीसा]]
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# [[गंगा चालीसा]]
-----
# [[कर्णवेध संस्कार]]
# [[नामकरण संस्कार]]
# [[विवाह संस्कार]]
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# [[पितृमेध या अन्त्यकर्म संस्कार]]
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# [[पंचतंत्र]]
# [[अक्लमंद हंस]]
# [[आपस की फूट]]
# [[एक और एक ग्यारह]]
# [[एकता का बल]]
# [[कौए और उल्लू]]
# [[खरगोश की चतुराई]]
# [[गजराज व मूषकराज]]
# [[गधा रहा गधा ही]]
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# [[घंटीधारी ऊंट]]
# [[चापलूस मंडली]]
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# [[ढोंगी सियार]]
# [[ढोल की पोल]]
# [[तीन मछलियां]]
# [[दुश्मन का स्वार्थ]]
# [[दुष्ट सर्प]]
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# [[बिल्ली का न्याय]]
# [[बुद्धिमान सियार]]
# [[मक्खीचूस गीदड]]
# [[मित्र की सलाह]]
# [[मुफ़्तखोर मेहमान]]
# [[मूर्ख गधा]]
# [[मूर्ख को सीख]]
# [[मूर्ख बातूनी कछुआ]]
# [[रंग में भंग]]
# [[रंगा सियार]]
# [[शत्रु की सलाह]]
# [[शरारती बंदर]]
# [[संगठन की शक्ति]]
# [[सच्चा शासक]]
# [[सच्चे मित्र]]
# [[सांड और गीदड़]]
# [[सिंह और सियार]]
# [[स्वजाति प्रेम]]
-----
# [[हितोपदेश]]
# [[सुवर्णकंकणधारी बूढ़ा बाघ और मुसाफिर की कहानी]]
# [[कबुतर, काक, कछुआ, मृग और चूहे की कहानी]]
# [[मृग, काक और गीदड़ की कहानी]]
# [[भैरव नामक शिकारी, मृग, शूकर, साँप और गीदड़ की कहानी]]
# [[धूर्त गीदड़ और हाथी की कहानी]]
# [[एक बनिया, बैल, सिंह और गीदड़ों की कहानी]]
# [[धोबी, धोबन, गधा और कुत्ते की कहानी]]
# [[सिंह, चूहा और बिलाव की कहानी]]
# [[बंदर, घंटा और कराला नामक कुटनी की कहानी]]
# [[सिंह और बूढ़ शशक की कहानी]]
# [[कौए का जोड़ा और काले साँप की कहानी]]
# [[पक्षी और बंदरो की कहानी]]
# [[बाघंबर ओढ़ा हुआ धोबी का गधा और खेतवाले की कहानी]]
# [[हाथियों का झुंड और बूढ़े शशक की कहानी]]
# [[हंस, कौआ और एक मुसाफिर की कहानी]]
# [[नील से रंगे हुए एक गीदड़ की कहानी]]
# [[राजकुमार और उसके पुत्र के बलिदान की कहानी]]
# [[एक क्षत्रिय, नाई और भिखारी की कहानी]]
# [[सन्न्यासी और एक चूहे की कहानी]]
# [[बूढ़े बगुले, केंकड़े और मछलियों की कहानी]]
# [[सुन्द, उपसुन्द नामक दो दैत्यों की कहानी]]
# [[एक ब्राह्मण, बकरा और तीन धुता की कहानी]]
# [[माधव ब्राह्मण, उसका बालक, नेवला और साँप की कहानी]]
-----
# [[चाणक्य नीति]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 1]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 2]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 3]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 4]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 5]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 6]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 7]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 8]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 9]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 10]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 11]]
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# [[चाणक्यनीति - अध्याय 14]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 15]]
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| style="background-color: #FF0084; text-align:center" | '''मेरा परिचय'''
| style="background-color: #FF0084; text-align:center" | '''मेरा परिचय'''
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| '''नाम''' -->  डा॰ मनीष कुमार वैश्य <br>
| [[चित्र:mkv.gif|150px|right|डा॰ मनीष कुमार वैश्य]]
'''जन्मदिन''' -->  8 जुलाई <br>
'''नाम''' -->  <div style="text-align: center;"><span style="font-family: Algerian; font-size: 20pt">डा॰ मनीष कुमार वैश्य</span></div> <br>
'''जन्मस्थान''' -->  बस्ती <br>
'''जन्मदिन''' -->  [[8 जुलाई]] <br>
'''ई.मेल''' -->  drmkvaish26@yahoo.com <br>
'''जन्मस्थान''' -->  [[बस्ती ज़िला]] <br>
'''फोन''' -->  09451908700 <br>
'''ई.मेल''' -->  [mailto:drmkvaish26@yahoo.com drmkvaish26@yahoo.com] <br>
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'''सदस्य''' -->  [[भारतकोश:प्रशासक और प्रबंधक|भारतकोश परिवार]]<br>
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{{भारतकोश सम्मान
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|सम्पादन=‍‍‍[[डाक टिकटों में महात्मा गाँधी]] लेख के लिए मैं <br /> डा॰ मनीष कुमार वैश्य को सम्मानित कर रहा हूँ। <br />[[चित्र:Admin-logo.jpg|प्रशासक|link=User:आदित्य चौधरी]] [[User:आदित्य चौधरी|आदित्य चौधरी <sub style="color:#8f30f1">प्रशासक</sub>]] '''.''' <sub>[[सदस्य वार्ता:आदित्य चौधरी|वार्ता]]</sub> 18:55, 4 फ़रवरी 2011 (IST)
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|[[बस्ती ज़िला]] <br> [[चित्र:Basti 2341.jpg|150px|right|मेरा भारत]] <br> BASTI
|[[उत्तर प्रदेश]] <br> [[चित्र:Uttar-Pradesh-Travel-Map.jpeg|150px|right|भारत]] <br> UTTAR PRADESH
|[[भारत]] <br> [[चित्र:india_map1.gif|150px|right|मेरा भारत]] <br> INDIA
|[[महात्मा गाँधी]] <br> [[चित्र:MKGandhi.gif|150px|right|मेरा भारत]] <br> MAHATMA GANDHI
|[[विश्व]] <br> [[चित्र:world-map-political.gif|150px|right|विश्व]] <br> WORLD
|डा॰ मनीष कुमार वैश्य <br> [[चित्र:Indian_Flag_Pole.gif|150px|right|मेरा भारत]] <br> 8 जुलाई
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|डा॰ मनीष कुमार वैश्य <br> [[चित्र:IndiaFlag.gif|150px|right|मेरा भारत]] <br> 8 जुलाई
|डा॰ मनीष कुमार वैश्य <br> [[चित्र:IndiaFlag.gif|150px|right|मेरा भारत]] <br> 8 जुलाई
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|डा॰ मनीष कुमार वैश्य <br> [[चित्र:Indian_Flag_Pole.gif|150px|right|मेरा भारत]] <br> 8 जुलाई
|डा॰ मनीष कुमार वैश्य <br> [[चित्र:IndiaFlag.gif|150px|right|मेरा भारत]] <br> 8 जुलाई
|[[ताज महल]], [[आगरा]] <br> [[चित्र:TheTajMahal22.gif|150px|right|मेरा भारत]] <br> TAJ MAHAL, AGRA
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| भारतवर्ष में कॉवर के त्योहार का बहुत ज़्यादा महत्व है। इस तौहार में आमलोग भगवन शिव की भक्ति में डुबकर कॉवर उठाते है। इन कॉवर उठाने वाले शिव भक्तो को कॉवरिया कहते है। यह त्योहार हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार श्रावण (सावन)  के महीने में पड़ता है। कॉवर के इस त्योहार में शिव भक्त एक निश्चित स्थान से गेरुआ वस्त्र धारण कर कन्धे पर कॉवर लेकर और कॉवर में गंगाजल रखकर उठाते है तथा कई किलोमीटर की नंगे पैर पैदल यात्रा करके एक निश्चित स्थान के शिव मंदिर में आकर भगवन शिव और माता पर्वती पर गंगाजल चढाते है। यह गंगाजल का अभिषेक श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन होता है। कॉवर का त्योहार भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है लेकिन विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, उत्तराँचल, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल के राज्यों में मनाया जाता है।
आषाढ़ी पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर तीर्थनगरी में गंगा स्नान करने व गुरु पूजन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी, दिल्ली के कोने-कोने से आज पूर्णिमा स्नान के साथ ही कस्बे में एक माह तक चलने वाला कॉवर मेला प्रारम्भ हो जाएगा।
मकर संकंराति के अवसर पर बरमान से बांदकपुर भगवान भोलेशंकर के चरणों में जल चढ़ाने के लिए जा रहे कावडिय़ों का गुरुवार को तालसेमरा में संतश्री 108 सीताराम महराज बादकपुर जाकर भगवान भोलेशंकर के चरणों में अर्पित करते हैं। कॉवरियों द्वारा यह सारी यात्रा पैदल ही की जाती है। स्वागत करने वालों में लक्ष्मीनारायण जारोलिया, पप्पू जारोलिया, हरदास पटेल, अशोक पटेल आदि शामिल हैं।
बेवर: महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर काबड़ियों ने फर्रुखाबाद से जल भरकर विभिन्न शिवालयों में चढ़ाकर मन्नत मांगी तो कुछ काबड़ियों ने भोलेनाथ से पुन: जल लेकर आने का वादा किया।
श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन भोले बाबा के भक्तों ने घटिया घाट, श्रंगीरामपुर से जल भरकर पूरे मनोयोग के साथ पैदल चलकर कॉवर धारण कर मंछना, मैनपुरी हजारी मंदिर सरसईनावर में शिवालयों पर जल चढ़ाया।
कॉबड़ियों की टोली, भोले तेरी बम बम बम भोले के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। कॉबरधारी पुनीत दुबे, रानू शाक्य, पुष्पेन्द्र राठौर, शोभाराम, मुन्ना सिंह, मूलचन्द्र ने बताया कि कॉवर धारण करना कठिन व्रत है। जिसमें बहुत से नियमों का पालन करना अनिवार्य है।
भक्त जन होते हैं। एक तो ऐसे जिनकी मन्नत भोले बाबा पूरी कर चुके होते है तथा दूसरे जल चढ़ाकर मन्नत मांगकर पुन: आने का वादा करते है।
जल भरकर दूध वाले वृक्षों के नीचे से चलना सर्वथा मना है। भोले नाथ बड़े दयालू है। जो भी शिवलिंग पर पूजा अर्चन कर जल चढ़ता है भोले नाथ उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। हम लोग लगभग 75 किमी पैदल चलकर जल चढ़ाएंगे।
सर्वविदित है कि श्रावण के महीने में कॉवर चढ़ाना बेहद पुनीत माना जाता है। सच्ची भक्ति भावना से जो भी भोले बाबा के नाम की कॉवर चढ़ाता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
रांची, तैयार हो जाइए, बाबा भोले नाथ की पूजा में लीन होने के लिए। भगवान शिव का प्रसन्न करने के लिए। उनका जलाभिषेक करने का महीना आ गया है। भगवान शंकर को खुश करने का विशेष महीना श्रावण ( सावन ) आषढ खत्म होते ही शनिवार कृष्ण पक्ष 16 जुलाई से शुरू हो जायेगा। सावन की पहली सोमवारी 18 जुलाई को है। अगले सप्ताह से शुरू होने वाले सावन को लेकर शिवालयों और अन्य मंदिरों में विशेष तैयारियां की जा रही है। देवघर स्थित प्रसिध्द श्रावणी मेले की तैयारियों को भी अंतिम रुप दिया जा रहा है।
इधर, राजधानी रांची स्थित पहाड़ी मंदिर में भी सावन महीने को लेकर विशेष तैयारियां की गयी है। मंदिर को आकर्षक तरीके से संजाने-संवारने का काम चल रहा है। खूंटी स्थित अमरेश्वरधाम में भी तैयारियों को अंतिम रुप दिया जा रहा है।
इस सावन में चार सोमवारी
अगस्त को चौथी सोमवारी पडेगी। धार्मिक मान्यता है कि सावन की सोमवारी बाबा भोलेनाथ को जल चढाने से बाबा की असीम कृपा भक्तों को मिलती है। श्रध्दालु भक्त बाबा को जल चढाने के लिए कॉवर लेकर मिलो पैदल भी चलते हैं। सबसे अधिक भक्तों की भीड बाबा की नगरी देवघर पहुँचती है। वहीं कई श्रध्दालु भक्त वाराणसी और तारकेश्वर (पश्चिम बंगाल) आदि सावन सात्विक होने का महीना
सावन सात्विक हो कर बाबा की आराधना की विशेष महत्व है। मत्स्यपुराण के मुताबिक सावन में मछली को अंडा होता है यानि एक नये प्राणी का आगमन । इसी वजह से सावन में मछली खाने से लोग परहेज करते हैं। वहीं सावन माह में लहसून-प्याज को भी त्याग करते हैं।
संजने लगी हैं कांवर की दुकानें
सजने लगी हैं कॉवर की दुकानें, गेरुवा वस्त्र की सिलाई और नये स्टोक की बिक्री के लिए तैयार
पूरे ज़िलों एवं ग्रामीण क्षेत्रों तक बाबा भोले की नगरी देवघर जाने की तैयारी के लिए श्रध्दालु भक्त कॉवर की ख़रीदारी करते हैं ऐसे में नये स्टोक आ चुके हैं। इस सप्ताह बिक्री परवान पर होगी वहीं गेरुवा वस्त्र की नये स्टोक भी दुकानों में पहुँच चुके है। लोग वस्त्रों के अलावा झोले टॉर्च आदि की ख़रीदारी में लग गये हैं।
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| संस्कृत सुभाषित एवं सूक्तियाँ हिन्दी में अर्थ सहित----
(1) न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः ।
स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥
(न राज्य था और ना राजा था, न दण्ड था और न दण्ड देने वाला। स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी॥)
(2) रत्नं रत्नेन संगच्छते ।
(रत्न, रत्न के साथ जाता है)
(3) गुणः खलु अनुरागस्य कारणं , न बलात्कारः ।
(केवल गुण ही प्रेम होने का कारण है, बल प्रयोग नहीं)
(4) निर्धनता प्रकारमपरं षष्टं महापातकम् ।
(गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है।)
(5) अपेयेषु तडागेषु बहुतरं उदकं भवति ।
(जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता, उसमें बहुत जल भरा होता है।)
(6) अङ्गुलिप्रवेशात्‌ बाहुप्रवेश: |
(अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है।)
(7) अति तृष्णा विनाशाय |
(अधिक लालच नाश कराती है।)
(8) अति सर्वत्र वर्जयेत् ।
(अति (को करने) से सब जगह बचना चाहिये।)
(9) अजा सिंहप्रसादेन वने चरति निर्भयम्‌।
(शेर की कृपा से बकरी जंगल मे बिना भय के चरती है।)
(10) अतिभक्ति चोरलक्षणम्‌।
(अति-भक्ति चोर का लक्षण है।)
(11) अल्पविद्या भयङ्करी।
(अल्पविद्या भयंकर होती है।)
(12) कुपुत्रेण कुलं नष्टम्‌।
( कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है।)
(13) ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:।
(ज्ञानहीन पशु के समान हैं।)
(14) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्दभी ह्यप्सरा भवेत्‌।
(सोलह वर्ष की होने पर गदही भी अप्सरा बन जाती है।)
(15) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्‌।
(सोलह वर्ष की अवस्था को प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरण करना चाहिये।)
(16) मधुरेण समापयेत्‌।
(मिठास के साथ (मीठे वचन या मीठा स्वाद) समाप्त करना चाहिये।)
(17) मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना।
(हर व्यक्ति अलग तरह से सोचता है।)
(18) शठे शाठ्यं समाचरेत् ।
(दुष्ट के साथ दुष्टता का वर्ताव करना चाहिये।)
(19) सत्यं शिवं सुन्दरम्‌।
(सत्य, कल्याणकारी और सुन्दर। (किसी रचना/कृति या विचार को परखने की कसौटी))
(20) सा विद्या या विमुक्तये।
(विद्या वह है जो बन्धन-मुक्त करती है।)
(21) त्रियाचरित्रं पुरुषस्य भग्यं दैवो न जानाति कुतो नरम् ।
(स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता, मनुष्य कहाँ लगता है।)
(22) कामासक्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है। - नीतिवाक्यामृत-3।12
* सबकी गति है एक सी अंत समय पर होय, जो आये हैं जायेंगे राजा रंक फ़कीर।
जनम होत नंगे भये, चौपायों की चाल, न वाणी न वाक्‍य थे पशुवत पाये शरीर।
धीरे धीरे बदल गये चौपायों से बन इंसान। वाक्‍य और वाणी मिली वस्‍त्र पहन कर हुये बने महान।
जाति बनी और ज्ञान बढ़ा तो बॉंट दिया फिर इंसान। अंत समय नंगे फिर भये, गये सब वेद शास्‍त्र और ज्ञान।।
* अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं।
* कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है।
* हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है।
* बहुमत की आवाज न्याय का द्योतक नहीं है।
* हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हो, परन्तु दुनिया हमे हमारे कर्मो के द्वारा पहचानती है|
* यदि आप मरने का डर है तो इसका यही अर्थ है की आप जीवन के महत्व को ही नहीं समझते|
* अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते है उतनी ही नम्रता आती है|
* मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है।
* अपने शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता।
* मुस्कान प्रेम की भाषा है।
* सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है।
* अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता।
* अल्प ज्ञान खतरनाक होता है।
* कर्म सरल है, विचार कठिन।
* उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन।
* धन अपना पराया नहीं देखता।
* पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित। लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं।
* संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति।
* हजारों मष्तिषकों में बुद्धिपूर्ण विचार आते रहे हैं। लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें।
* उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है। परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता।
* ऊँच अटारी मधुर वतास। कहैं घाघ घर ही कैलाश।  - घाघ भड्डरी (अकबर के समकालीन, कानपुर ज़िले के निवासी)
* तुलसी इस संसार मे, सबसे मिलिये धाय। ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाँय॥
* प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर लाए जा सकते हैं।  - ईसा मसीह
* जो हमारा हितैषी हो, दुख-सुख में बराबर साथ निभाए, ग़लत राह पर जाने से रोके और अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है।  - वेद
* दुनिया में ही मिलते हैं हमे दोजखो-जन्नत। इंसान जरा सैर करे, घर से निकल कर॥  - दाग
* स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है।
* शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम। (यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है / सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते है)
* मुक्त बाज़ार में स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी न्याय, मानवाधिकार, पेयजल तथा स्वच्छ हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है। यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो उन्हें ख़रीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने में करते हैं जो सर्वथा उनके अनुकूल होता है।  - अरुंधती राय
* कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए।  - दर्पदलनम् 1।29
* तुम प्लास्टिक सर्जरी करवा सकते हो, तुम सुन्दर चेहरा बनवा सकते हो, सुंदर आंखें सुंदर नाक, तुम अपनी चमड़ी बदलवा सकते हो, तुम अपना आकार बदलवा सकते हो। इससे तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलेगा। भीतर तुम लोभी बने रहोगे, वासना से भरे रहोगे, हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक सर्जन कुछ कर नहीं सकता।  - ओशो
* पशु पालक की भांति देवता लाठी ले कर रक्षा नहीं करते, वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं उसे बुद्धी से समायुक्त कर देते है। महाभारत -उद्योग पर्व
* विषयों का चिंतन करने वाले मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है। आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से मूढ़ता और बुद्धि भ्रष्टता उत्पन्न होती है। बुद्धि के भ्रष्ट होने से स्मरण-शक्ति विलुप्त हो जाती है, यानी ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है। और जब बुद्धि तथा स्मृति का विनाश होता है, तो सब कुछ नष्ट हो जाता है। - गीता (अध्याय 2/62, 63)
* एक साधै सब सधे, सब साधे सब जाये, रहीमन, मुलही सिंचीबो, फुले फले अगाय । -रहीम
* जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंग, चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग । -रहीम
* रहीमन देखि बडेन को, लघु ना दिजिए डारी, जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारी । -रहीम
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* जो समय को नष्‍ट करता है, समय भी उसे नष्‍ट कर देता है, समय का हनन करने वाले व्‍यक्ति का चित्‍त सदा उद्विग्‍न रहता है और वह असहाय तथा भ्रमित होकर यूं ही भटकता रहता है, प्रति पल का उपयोग करने वाले कभी भी पराजित नहीं हो सकते, समय का हर क्षण का उपयोग मनुष्‍य को विलक्षण और अदभुत बना देता है।
* जैसे का साथ तैसा, वह भी ब्‍याज सहित व्‍यवहार करना ही सर्वोत्‍तम नीति है, शठे शाठयम और उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्‍तये के सूत्र को अमल में लाना ही गुणकारी उपाय है।
* गुड़, घी से सींचा गयो नीम ना मीठा होय। लोहे से लोहा कटे, जानि परे सब कोय।। यानि शठ जाने शठ ही की बानीं, दुष्‍ट व्‍यक्ति को लाखों यत्‍न के बाद भी नहीं सुधारा जा सकता, उसे तो दुष्‍टता से ही काबू किया जा सकता है।
* खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग। अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना तथा घोड़ा या जिस वाहन पर सवारी करनी हो उसकी जाँच और तैयारी मनुष्‍य को स्‍वयं ही खुद करनी चाहिये, भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्‍य का नुक़सान तय शुदा है।
* जो किसी से कुछ ले कर भूल जाते हैं, अपने ऊपर किये उपकार को मानते नहीं, एहसान को भुला देते हैं उन्हें कृतघ्‍नी कहा जाता है और जो सदा इसे याद रख कर प्रति उपकार करने और अहसान चुकाने का प्रयास करते हैं, उन्‍हें कृतज्ञ कहा जाता है।
* दूसरों को ख़ुशी देना सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है।
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|+ भारत के गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि
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! वर्ष
! मुख्य अतिथि
! देश और पद
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|26 जनवरी [[2011]] , 62वॉ गणतंत्र दिवस
|सुसिलो बाम्बांग युधोयोनो
|इंडोनेशिया के राष्ट्रपति
|-
|26 जनवरी [[2010]] , 61वॉ गणतंत्र दिवस
|ली म्यूंग बाक
|कोरिया गणराज्य ( दक्षिण कोरिया ) के राष्ट्रपति
|-
|26 जनवरी [[2009]] , 60वॉ गणतंत्र दिवस
|नूर सुल्तान नजरबायेब
|कजाकिस्तान के राष्ट्रपति
|-
|26 जनवरी [[2008]] , 59वॉ गणतंत्र दिवस
|निकोलस सर्कोजी
|फ्रांस के राष्ट्रपति
|-
|26 जनवरी [[2007]] , 58वॉ गणतंत्र दिवस
|व्लादिमीर पुतिन
|रूस के राष्ट्रपति
|-
|26 जनवरी [[2006]] , 57वॉ गणतंत्र दिवस
|अब्दुल्ला बिन अब्दुल अज़ीज़ अल-सऊद
|सऊदी अरब के शाह
|-
|26 जनवरी [[2005]] , 56वॉ गणतंत्र दिवस
|वांगचुक
|भूटान नरेश
|-
|26 जनवरी [[2004]] , 55वॉ गणतंत्र दिवस
|लुईज़ इनासियो लूला द सिल्वा
|ब्राज़ील के राष्ट्रपति
|-
|26 जनवरी [[2003]] , 54वॉ गणतंत्र दिवस
|मोहम्मद ख़ातमी
|ईरान के राष्ट्रपति
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| ;टैगोर व मदर टेरेसा की जयंती पर विशेष डाक टिकट व ट्रेन
* डाक विभाग, कोलकाता नोबल पुरस्कार से सम्मानित विश्व कवि कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर की 150 वीं जयंती तथा मिशनरीज आफ चैरिटी की संस्थापक मदर टेरेसा की 100वीं जन्म शताब्दी पर डाक टिकट जारी करेगा। संयोग से वर्ष 2010 में टैगोर की 150वी और मदर टेरेसा की 100वीं जयंती है। कोलकाता जीपीओ के निदेशक अनिल कुमार ने बताया कि कविगुरु ने एक नाटक '''डाक घर''' लिखा था तथा बचपन में वह पोस्टऑफिस में ही काम करना चाहते थे। कविगुरु और मदर पर डाक टिकट के अलावा डायरी, ग्रीटिंग कार्ड और कैलेंडर भी इस वर्ष जारी किये जायेंगे। श्री कुमार ने बताया कि इस बारे में शोध कार्य किया जा रहा है कि मदर टेरेसा के मिशनरोज ऑफ चैरिटी के जरिए गरीबों की सेवा तथा उनके जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यो को ‘बेहतर तरीके’ से कैसे व्यक्त किया जा सके।
* इसके अलावा इस साल टैगोर तथा मदर पर डाक टिकट, डायरियां, ग्रीटिंग कार्ड और कलेंडर जारी किए जाएंगे। कॉफी के मग पर दोनों महान विभूतियां के दुर्लभ चित्र और संदेश लिखकर उन्हें बेचा जाएगा। ये सभी वस्तुएं फिलाटेलिक ब्यूरो में उपलब्ध रहेंगे, जिन्हें कलेक्टर्स (संग्रहकर्ता) को पार्सल या वीपीपी से भेजा जायेगा। डाक विभाग को आशा है कि इन उत्पादों की कोलकाता में काफ़ी कद्र होगी, क्योंकि देश भर में सर्वाधिक 52 हज़ार स्टैंप कलेक्टर यहां हैं। उन्होंने बताया कि यह टिकट संग्रहण ब्यूरो में उपलब्ध होगा तथा मांग पर ज़िलाधिकारी को भेजा जाएगा।
* श्री कुमार ने बताया कि अभिनेता उत्तम कुमार और जादूगर पीसी सरकार पर आधारित उत्पादों की बिक्री भी ख़ासी हुई थी। नदिया ज़िले के कृष्णनगर पोस्ट ऑफिस से भगवान कृष्ण पर आधारित 10 हज़ार कैलेंडर बेचे गये थे। उन्होंने बताया कि वह लोगों को डाक टिकट के क़रीब लाना चाहते हैं, क्योंकि इसके ज़रिये देश के इतिहास, संस्कृति, जीवन और विकास का पता चलता है।
* इधर रेलवे की ओर से घोषणा की गयी है कि मदर टेरेसा के नाम पर मदर एक्सप्रेस की शुरूआत की जायेगी। गुरुवार को रेल मंत्री ममता बनर्जी इसकी शुरूआत सियालदह से करेंगी। यह ट्रेन देश भर के विभिन्न स्टेशनों पर अगले छह महीने तक जायेगी।
* उदघाटन के मौके पर मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सुपीरियर जनरल सिस्टर प्रेमा, सिस्टर निर्मला, सिस्टर ऐंसी, सिस्टर जोसफ, सिस्टर गेरार्ड, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री दिनेश त्रिवेदी, केंद्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री मुकुल राय, केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री सुलतान अहमद, सुदीप बनर्जी, सोमेन मित्रा, शोभन चटर्जी, शिखा मित्रा, शुभाप्रसन्ना, सांवली मित्रा, डेरेक ओ ब्रायन व अन्य मौजूद रहेंगे।
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| विभिन्न क्षेत्रों भारत में प्रथम
 
6. फील्ड मार्शल - S.H.F.J. मानेकशा
9. वायसराय एक्जिक्यूटिव कौंसिल के प्रथम भारतीय सदस्य - एस. पी. सिन्हा
26. भारत में निर्मित प्रथम भारतीय फ़िल्म (silent film) - राजा हरिश्चन्द्र, 1913 में
27. भारत में निर्मित प्रथम भारतीय फ़िल्म (silent film) के निर्माण कर्ता - दादा साहेब फाल्के
28. प्रथम भारतीय रंगीन फ़िल्म - किशन कन्हैया (1937)
29. सिनेमास्कोप फ़िल्म - काग़ज़ के फूल (1959)
30. लाइफ टाइम अचिवमेंट के ऑस्कर पुरस्कार विजेता - सत्यजीत राय (1992)
31. बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन ऑस्कर विजेता - भानु अथैया (1982)
45. ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाली प्रथम भारोत्तोलक - कर्णम मल्लेश्वरी देवी (सिडनी, 2000)
46. शतरंज में प्रथम विश्व चैम्पियन भारतीय  -  विश्वनाथन आनंद
49. दलित वर्ग से प्रथम लोकसभा अध्यक्ष - G. M. C. बालयोगी
 
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| कन्या द्वारा वर से लिए जाने वाले सात वचन इस प्रकार है।
विवाह के बाद कन्या वर के वाम अंग में बैठने से पूर्व उससे सात वचन लेती है।
1-तीर्थव्रतोद्यापनयज्ञ दानं मया सह त्वं यदि कान्तकुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद वाक्यं प्रथमं कुमारी।।
कन्या कहती है, स्वामिन् तीर्थ व्रत, उद्यापन, यज्ञ, दान आदि सभी शुभ कार्य तुम मेरे साथ करो तो में तुम्हारे वाम अंग में आऊ।।
2-हव्यप्रदानैरमरान् पितृश्चं कव्यं प्रदानैर्यदि पूजयेथा:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं द्वितीयकम्।।
यदि तुम हव्य देकर देवताओं को और कव्य देकर पितरों की पूजा करो तो मैं तुम्हारे वाम अंग मैं आऊ।
3-कुटुम्बरक्षाभरंणं यदि त्वं कुर्या: पशूनां परिपालनं च।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं तृतीयम्।।
यदि तुम मेरी तथा परिवार की रक्षा करो तथा पशुओं का पालन करो तो मै तुम्हारे वाम अंग मै आऊँ। यह तीसरी बात कन्या ने कही।
4-आयं व्ययं धान्यधनादिकानां पृष्टवा निवेशं प्रगृहं निदध्या:।।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं चतुर्थकम्।।
यदि तुम धन-धान्यादिकों का आय व्यय मेरी सम्मती से करो तो मै तुम्हारे वाग अंग में आऊँ। यह चौथा वचन है।
5-देवालयारामतडागकूपं वापी विदध्या:यदि पूजयेथा:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं पंचमम्।।
यदि देवालय, बाग, कूप, तालाब, बावली बनवाकर पूजा करो तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आऊँ।
6-देशान्तरे वा स्वपुरान्तरे वा यदा विदध्या:क्रयविक्रये त्वम्।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं षष्ठम्।।
यदि तुम अपने नगर में या किसी विदेश में जाकर व्यापार या नौकरी करो तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आऊँ।
7-न सेवनीया परिकी यजाया त्वया भवेभाविनि कामनीश्च।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं सप्तम्।।
यदि तुम परायी स्त्री को स्पर्श न करो तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आऊँ। यह सातवां वचन है।
 
 
 
चलिये हम याद दिलवा देते हैं उन वचनों को।
 
वधू के द्वारा वर से लिये गये वचनः
 
प्रथम वचनः यदि यज्ञं कुर्यात्तस्मिन्मम सम्मतिं गृ्हणीयात !!
 
अर्थात् यज्ञादि शुभ कार्य मेरी सम्मति से ही करेंगे।
 
द्वितीय वचनः यदि दानं कुर्यात्तस्मिन्नपि मम सम्मति गृ्हणियात !!
 
दानादि मेरी सम्मति से ही करेंगे।
 
तृतीय वचनः अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात !!
 
अर्थात् युवा, प्रौढ़ और वृ्द्ध तीनों अवस्थाओं में मेरा पालन करेंगे।
 
चतुर्थ वचनः धनादिगोपने मम सम्मतिं गृ्हणीयात !!
 
अर्थात् गुप्त रूप से धनादि संचय मेरी सम्मति से ही करेंगे।
 
पंचम वचनः गवादि पशु क्रय-विक्रये मम सम्मतिं गृ्हणीयात !!
 
अर्थात् गाय, बैल, घोडा आदि पशुओं (वर्तमान में वाहनादि) के क्रय विक्रय में भी मेरी सम्मति लेंगे।
 
षष्ठम वचनः बसन्तादि षटऋतुषु मम पालनं कुर्यात !!
 
अर्थात् वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर इन छहों ऋतुओं में मेरा पालन करेंगे।
 
सप्तम वचनः सखीष्य मम हास्यं कटुवाक्यम न वदेत न कुर्यात! तद्दहं भवतां वामांगें आगच्छामि !!
 
अर्थात् मेरे साथ की सखी सहेलियों के सामने मेरी हँसीं न उडाएं और न ही कठोर कटु वचनों का प्रयोग करें।
 
आप उपरोक्त सातों वचनों का पालन करेंगे तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।
 
वर के द्वारा वधू से लिया गया वचनः
 
उद्याने मद्यपाने च पितागृ्हगमनेन च !!
आज्ञा भंगो न कर्तव्यं वरवाक्यचतुष्टयकम !!
 
अर्थात निर्जन स्थान, उद्यान, वनादि में न जाए, दूसरे मद्य (शराब) पीने वाले मनुष्य के सामने न जाए, तीसरे यहाँ तक कि अपने पिता के घर भी मेरी आज्ञा के बिना न जाए, चौथे धर्म शास्त्रोचित कभी भी मेरी आज्ञा भंग न करे तो ही तुम मेरे वामांग में स्थान ग्रहण कर सकती हो।
 
 
 
शादी में सात फेरे क्यों लगाए जाते हैं?
जिसमें पहला वचन होता है, पति-पत्नी को जीवन भर पर्याप्त और सम्मानित ढंग से भोजन मिलता रहे, दूसरा दोनों का जीवन शांतिपूर्ण और स्वस्थ ढंग से बीते, तीसरा दोनों अपने जीवन में आध्यात्मिक और धार्मिक दायित्वों को निभा सकें, चौथा फेरा इस वचन के साथ लिया जाता है कि दोनों सौहार्द्र और परस्पर प्रेम के साथ जीवन बितायें, पाँचवे फेरे का वचन होता है विश्व का कल्याण हो और संतान कि प्राप्ति हो, छठे में प्रार्थना की जाती है कि सभी ऋतुएं अपने अपने ढंग से समुचित धनधान्य उत्पन्न करके दुनिया भर को सुख दें क्योंकि सभी के सुख में दंपत्ति का भी भला होता है और सातवें फेरे में पति-पत्नी परस्पर विश्वास, एकता, मतैक्य और शांति के साथ जीवन बिता सकें। इन सात फेरों के साथ लिए वचनों में अपने और विश्व की शांति और सुख की प्रार्थना की जाती है।
 
वर के द्वारा दिए जाने वाले वचन ऐसे है जिनमें उसे गृहस्थी का सम्पूर्ण दायित्व सौपा जाता है ताकि दोनों की गृहस्थी सुख पूर्वक चले।
 
वर से वधु द्वारा लिए जाने वाले वचन इस प्रकार है। गृहस्थ जीवन में सुख-दु:ख की स्थितियां आती रहती हैं, लेकिन तुम हमेशा अपना स्वभाव मधुर रखोगे। मुझे बताये बिना कुआं - बावड़ी - तालाब का निर्माण, यज्ञ-महोत्सव का आयोजन और यात्रा नहीं करोगे।
 
मेरे व्रत, दान और धर्म कार्यों में रोक-टोक नहीं करोगे। मेहनत से जो कुछ भी अर्जित करोगे, मुझे सौंपोगे। मेरी राय के बिना कोई भी चल-अचल सम्पति का क्रय-विक्रय नहीं करोगे। घर की सभी कीमती चीजें, गहने, आभूषण मुझे रखने के लिए दोगे। माता-पिता के किसी आयोजन में मेरे मायके जाने पर आपत्ति नहीं लोगे।
 
वचन जो वर लेता है वधु से
पहला – अगर तुम मेरी अर्द्धांगिनी बनना चाहती हो तो किसी पर पुरुष से नहीं मिलना, बिना बताए मायके नहीं जाना और किसी निर्जन स्थान पर नहीं जाना।
दूसरा – रात में घर से नहीं निकलना और पानी भरने नहीं जाना।
तीसरा – किसी भी पूजन, जप, तप में मेरे साथ रहना।
चौथा – कभी कोई दान अकेले नहीं करना, उसमें मुझे सहभागी बनाना।
पांचवां – किसी पर पुरुष के साथ नहीं रहना और कहीं भी अकेले नहीं जाना।
 
वचन जो वधु लेती है वर से
छठवां – आप मुझे हर स्थान पर अपने साथ लेकर चलना, देश हो या विदेश।
सातवां – किसी भी काम को करने से पहले मुझसे सलाह ज़रूर लेना।
 
और ये वचन दोनों के लिए
आठवां – शादी के तुरंत बाद अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन ज़रूर कराएंगे।
 
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| ओ3म् (ॐ) नाम में हिन्दू, मुस्लिम या ईसाइ जैसी कोई बात नहीं है। यह सोचना कि ओ3म् किसी एक धर्म की निशानी है, ठीक बात नहीं, अपितु यह तो तब से चला आया है जब कोई अलग धर्म ही नहीं बना था। बल्कि ओ3म् तो किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है। यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति और आदर का प्रतीक है। उदाहरण के लिए अगर हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में इसको शामिल करते हैं तो ईसाई और यहूदी भी इसके जैसे ही एक शब्द आमेन का प्रयोग धार्मिक सहमति दिखाने के लिए करते हैं। मुस्लिम इसको आमीन कह कर याद करते हैं, बौद्ध इसे ओं मणिपद्मे हूं कह कर प्रयोग करते हैं। सिख मत भी इक ओंकार अर्थात एक ओ3म के गुण गाता है। अंग्रेज़ी का शब्द omni, जिसके अर्थ अनंत और कभी ख़त्म न होने वाले तत्त्वों पर लगाए जाते हैं (जैसे omnipresent, omnipotent) भी वास्तव में इस ओ3म् शब्द से ही बना है। इतने से यह सिद्ध है कि ओ3म् किसी मत, मज़हब या सम्प्रदाय से न होकर पूरी इंसानियत का है। ठीक उसी तरह जैसे कि हवा, पानी, सूर्य, ईश्वर, वेद आदि सब पूरी इंसानियत के लिए हैं न कि केवल किसी एक सम्प्रदाय के लिए।
 
यजुर्वेद [2/13, 40/15, 17] ऋग्वेद [1/3/7] आदि स्थानों पर तथा इसके अलावा गीता और उपनिषदों में ओ3म् का बहुत गुणगान हुआ है। मांडूक्य उपनिषद तो इसकी महिमा को ही समर्पित है।
 
;ओ3म् का अर्थ
वैदिक साहित्य इस बात पर एकमत है कि ओ3म् ईश्वर का मुख्य नाम है। योग दर्शन [1/27, 28] में यह स्पष्ट है। यह ओ3म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है - अ, उ, म । प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है। जैसे अ से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है। उ से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है। म से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है। ये तो बहुत थोड़े से उदाहरण हैं जो ओ3म् के प्रत्येक अक्षर से समझे जा सकते हैं। वास्तव में अनंत ईश्वर के अनगिनत नाम केवल इस ओ3म् शब्द में ही आ सकते हैं, और किसी में नहीं।
 
वास्तव में हरेक ध्वनि हमारे मन में कुछ भाव उत्पन्न करती है। सृष्टि की शुरूआत में जब ईश्वर ने ऋषियों के हृदयों में वेद प्रकाशित किये तो हरेक शब्द से सम्बंधित उनके निश्चित अर्थ ऋषियों ने ध्यान अवस्था में प्राप्त किये। ऋषियों के अनुसार ओ3म् शब्द के तीन अक्षरों से भिन्न भिन्न अर्थ निकलते हैं, जिनमें से कुछ ऊपर दिए गए हैं।
 
ऊपर दिए गए शब्द-अर्थ सम्बन्ध का ज्ञान ही वास्तव में वेद मन्त्रों के अर्थ में सहायक होता है और इस ज्ञान के लिए मनुष्य को योगी अर्थात ईश्वर को जानने और अनुभव करने वाला होना चाहिए। परन्तु दुर्भाग्य से वेद पर अधिकतर उन लोगों ने कलम चलाई है जो योग तो दूर, यम नियमों की परिभाषा भी नहीं जानते थे। सब पश्चिमी वेद भाष्यकार इसी श्रेणी में आते हैं। तो अब प्रश्न यह है कि जब तक साक्षात ईश्वर का प्रत्यक्ष ना हो तब तक वेद कैसे समझें ? तो इसका उत्तर है कि ऋषियों के लेख और अपनी बुद्धि से सत्य असत्य का निर्णय करना ही सब बुद्धिमानों को अत्यंत उचित है। ऋषियों के ग्रन्थ जैसे उपनिषद्, दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ, निरुक्त, निघंटु, सत्यार्थ प्रकाश, भाष्य भूमिका इत्यादि की सहायता से वेद मन्त्रों पर विचार करके अपने सिद्धांत बनाने चाहियें और इसमें यह भी है कि पढने के साथ साथ यम नियमों का कड़ाई से पालन बहुत जरूरी है। वास्तव में वेदों का सच्चा स्वरुप तो समाधि अवस्था में ही स्पष्ट होता है, जो कि यम नियमों के अभ्यास से आती है।
 
व्याकरण मात्र पढने से वेदों के अर्थ कोई भी नहीं कर सकता। वेद समझने के लिए आत्मा की शुद्धता सबसे आवश्यक है। उदाहरण के लिए संस्कृत में गो शब्द का वास्तविक अर्थ है गतिमान। इससे इस शब्द के बहुत से अर्थ जैसे पृथ्वी, नक्षत्र आदि दिखने में आते हैं। परन्तु मूर्ख और हठी लोग हर स्थान पर इसका अर्थ गाय ही कहते हैं और मंत्र के वास्तविक अर्थ से दूर हो जाते हैं। वास्तव में किसी शब्द के वास्तविक अर्थ के लिए उसके मूल को जानना जरूरी है, और मूल बिना समाधि को जाना नहीं जा सकता। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि हम वेद का अभ्यास ही न करें। किन्तु अपने सर्व सामर्थ्य से कर्मों में शुद्धता से आत्मा में शुद्धता धारण करके वेद का अभ्यास करना सबका कर्त्तव्य है।
 
यह शब्द अर्थ सम्बन्ध योगाभ्यास से स्पष्ट होता जाता है। परन्तु कुछ उदाहरण तो प्रत्यक्ष ही हैं। जैसे म से ईश्वर के पालन आदि गुण प्रकाशित होते हैं। पालन आदि गुण मुख्य रूप से माता से ही पहचाने जाते हैं। अब विचारना चाहिए कि सब संस्कृतियों में माता के लिए क्या शब्द प्रयोग होते हैं। संस्कृत में माता, हिन्दी में माँ, उर्दू में अम्मी, अंग्रेज़ी में मदर, मम्मी, मॉम आदि, फ़ारसी में मादर, चीनी भाषा में माकुन इत्यादि, सो इतने से ही स्पष्ट हो जाता है कि पालन करने वाले मातृत्व गुण से म का और सभी संस्कृतियों से वेद का कितना अधिक सम्बन्ध है। एक छोटा बच्चा भी सबसे पहले इस म को ही सीखता है और इसी से अपने भाव व्यक्त करता है। इसी से पता चलता है कि ईश्वर की सृष्टि और उसकी विद्या वेद में कितना गहरा सम्बन्ध है।
 
'''यम नियम'''  --  यम नियमों का अभ्यास इसका सबसे बड़ा साधन है, यम व नियम संक्षेप से नीचे दिए जाते हैं।
;यम
# अहिंसा (किसी सज्जन और बेगुनाह को मन, वचन या कर्म से दुःख न देना) 
# सत्य (जो मन में सोचा हो वही वाणी से बोलना और वही अपने कर्म में करना) 
# अस्तेय (किसी की कोई चीज़ विना पूछे न लेना) 
# ब्रह्मचर्य (अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना विशेषकर अपनी यौन इच्छाओं पर पूर्ण नियंत्रण) 
# अपरिग्रह (सांसारिक वस्तु भोग व धन आदि में लिप्त न होना) 
;नियम
# शौच (मन, वाणी व शरीर की शुद्धता) 
# संतोष (पूरे प्रयास करते हुए सदा प्रसन्न रहना, विपरीत परिस्थितियों से दुखी न होना) 
# तप (सुख, दुःख, हानि, लाभ, सर्दी, गर्मी, भूख, प्यास, डर आदि की वजह से कभी भी धर्म को न छोड़ना) 
# स्वाध्याय (अच्छे ज्ञान, विज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयास करना) 
# ईश्वर प्रणिधान (अपने सब काम ऐसे करना जैसे कि ईश्वर सदा देख रहा है और फिर काम करके उसके फल की चिंता ईश्वर पर ही छोड़ देना) 
 
*'''ध्यान का नियम'''  --  यम नियम तो आत्मा रुपी बर्तन की सफाई के लिए है ताकि उसमें ईश्वर अपने प्रेम का भोजन दे सके। वह भोजन सुबह शाम एकाग्र मन के साथ ईश्वर से माँगना चाहिए। ओ3म् का उच्चारण इसी भोजन मांगने की प्रक्रिया है, अब क्या करना चाहिए वह नीचे लिखते हैं। 
# किसी जगह जहाँ शुद्ध हवा हो, वहां अच्छी जगह पर कमर सीधी कर के बैठ जाएँ, आँख बंद करके थोड़ी देर गहरे सांस धीरे धीरे लीजिये और छोड़िये जिससे शरीर में कोई तनाव न रहे। 
# दिन में 4 बार ओ3म् का उच्चारण बहुत उपयोगी है, पहला सुबह सोकर उठते ही, दूसरा शौच व स्नान के बाद, तीसरा सूर्यास्त के समय शाम को और चौथा रात सोने से एकदम पहले। इसके अलावा जब कभी ख़ाली बैठे किसी की प्रतीक्षा या यात्रा कर रहे हों तो भी इसे कर सकते हैं। 
# धीरे धीरे उच्चारण की लम्बाई बढ़ा सकते हैं, पर उतनी ही जितनी अपने सामर्थ्य में हो। 
# कम से कम एक समय में 5 बार ज़रूर उच्चारण करें, मुंह से बोलने के बजाय मन में भी उच्चारण कर सकते हैं। 
# अपने हर बार के उच्चारण में ईश्वर को पाने की इच्छा और उसके लिए प्रयास करने का वादा मन ही मन ईश्वर से करना चाहिए। 
# हर बार उठने से पहले यह प्रतिज्ञा करनी कि अगली बार बैठूँगा तो इस बार से श्रेष्ठ चरित्र का व्यक्ति होकर बैठूँगा, अर्थात हर बार उठने के बाद अपने जीवन का हर काम अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा करते हुए करना, कभी ईश्वर को दी हुई प्रतिज्ञा नहीं तोड़ना। 
 
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| परिवर्तन , संभावना , गति , क्रिया प्रतिक्रिया
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| '''अनमोल वचन'''
* पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं ।  —  संस्कृत सुभाषित
* विश्व के सर्वोत्कॄष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है ।  —  मैथ्यू अर्नाल्ड
* संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं ; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति ।  —  चाणक्य
* सही मायने में बुद्धिपूर्ण विचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं । लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें ।  —  गोथे
* मैं उक्तियों से घृणा करता हूँ । वह कहो जो तुम जानते हो ।  —  इमर्सन
* किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा।  —  सर विंस्टन चर्चिल
* बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है।  —  आईजक दिसराली
* मैं अक्सर खुद को उदृत करता हुँ। इससे मेरे भाषण मसालेदार हो जाते हैं।
* सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नही हो सकती।  —  राबर्ट हेमिल्टन
'''गणित'''
* यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा । 
तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥ 
( जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है । )  —  वेदांग ज्योतिष
* बहुभिर्प्रलापैः किम् , त्रयलोके सचरारे । 
यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम् , गणितेन् बिना न हि ॥ 
( बहुत प्रलाप करने से क्या लभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता )  —  महावीराचार्य , जैन गणितज्ञ
* ज्यामिति की रेखाओं और चित्रों में हम वे अक्षर सीखते हैं जिनसे यह संसार रूपी महान पुस्तक लिखी गयी है ।  —  गैलिलियो
* गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है ; एक ऐसी भाषा जिसको प्रकृति अवश्य सुनेगी और जिसका सदा वह उत्तर देगी ।  —  प्रो. हाल
* काफी हद तक गणित का संबन्ध (केवल) सूत्रों और समीकरणों से ही नहीं है । इसका सम्बन्ध सी.डी से , कैट-स्कैन से , पार्किंग-मीटरों से , राष्ट्रपति-चुनावों से और कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है । गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिये है ताकि हम उन समस्याओं को हल कर सकें जो अर्थपूर्ण हैं ।  —  गरफंकल , १९९७
* गणित एक भाषा है ।  —  जे. डब्ल्यू. गिब्ब्स , अमेरिकी गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री
* लाटरी को मैं गणित न जानने वालों के उपर एक टैक्स की भाँति देखता हूँ ।
* यह असंभव है कि गति के गणितीय सिद्धान्त के बिना हम वृहस्पति पर राकेट भेज पाते ।
'''विज्ञान'''
* विज्ञान हमे ज्ञानवान बनाता है लेकिन दर्शन (फिलासफी) हमे बुद्धिमान बनाता है ।  —  विल्ल डुरान्ट
* विज्ञान की तीन विधियाँ हैं - सिद्धान्त , प्रयोग और सिमुलेशन ।
* विज्ञान की बहुत सारी परिकल्पनाएँ गलत हैं ; यह पूरी तरह ठीक है । ये ( गलत परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं ।
* हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते । अगर ऐसा करने की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं ।  —  रिचर्ड फ़ेनिमैन
'''तकनीकी / अभियान्त्रिकी / इन्जीनीयरिंग / टेक्नालोजी'''
* पर्याप्त रूप से विकसित किसी भी तकनीकी और जादू में अन्तर नहीं किया जा सकता ।  -  आर्थर सी. क्लार्क
* सभ्यता की कहानी , सार रूप में , इंजिनीयरिंग की कहानी है - वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया ।  —  एस डीकैम्प
* इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है ।  —  जेम्स के. फिंक
* वैज्ञानिक इस संसार का , जैसे है उसी रूप में , अध्ययन करते हैं । इंजिनीयर वह संसार बनाते हैं जो कभी था ही नहीं ।  —  थियोडोर वान कार्मन
* मशीनीकरण करने के लिये यह जरूरी है कि लोग भी मशीन की तरह सोचें ।  —  सुश्री जैकब
* इंजिनीररिंग संख्याओं मे की जाती है । संख्याओं के बिना विश्लेषण मात्र राय है ।
* जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं तो आप अपने विष्य के बारे में कुछ जानते हैं ; लेकिन यदि आप उसे माप नहीं सकते तो आप का ज्ञान बहुत सतही और असंतोषजनक है ।  —  लार्ड केल्विन
* आवश्यकता डिजाइन का आधार है । किसी चीज को जरूरत से अल्पमात्र भी बेहतर डिजाइन करने का कोई औचित्य नहीं है ।
* तकनीक के उपर ही तकनीक का निर्माण होता है । हम तकनीकी रूप से विकास नही कर सकते यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है ।
'''कम्प्यूटर / इन्टरनेट'''
इंटरनेट के उपयोक्ता वांछित डाटा को शीघ्रता से और तेज़ी से प्राप्त करना चाहते हैं. उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता है ।  –  टिम बर्नर्स ली (इंटरनेट के सृजक)
कम्प्यूटर कभी भी कमेटियों का विकल्प नहीं बन सकते. चूंकि कमेटियाँ ही कम्प्यूटर खरीदने का प्रस्ताव स्वीकृत करती हैं ।  –  एडवर्ड शेफर्ड मीडस
कोई शाम वर्ल्ड वाइड वेब पर बिताना ऐसा ही है जैसा कि आप दो घंटे से कुरकुरे खा रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु आपको पोषण तो मिला ही नही ।  —  क्लिफ़ोर्ड स्टॉल
'''कला'''
* कला विचार को मूर्ति में परिवर्तित कर देती है ।
* कला एक प्रकार का एक नशा है, जिससे जीवन की कठोरताओं से विश्राम मिलता है।  -  फ्रायड
* मेरे पास दो रोटियां हों और पास में फूल बिकने आयें तो मैं एक रोटी बेचकर फूल खरीदना पसंद करूंगा। पेट खाली रखकर भी यदि कला-दृष्टि को सींचने का अवसर हाथ लगता होगा तो मैं उसे गंवाऊगा नहीं।  -  शेख सादी
* कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है ।    –  रामधारी सिंह दिनकर
* कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी ।  –  रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है |  –  मुक्ता
* कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है ।  —  रामधारी सिंह दिनकर
* कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है ।  —  अज्ञात
* कवि और चित्रकार में भेद है । कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है।  —  डा रामकुमार वर्मा
'''भाषा / स्वभाषा'''
* निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल । 
बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल ॥  —  भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
* जो एक विदेशी भाषा नहीं जानता , वह अपनी भाषा की बारे में कुछ नही जानता ।  —  गोथे
* भाषा हमारे सोचने के तरीके को स्वरूप प्रदान करती है और निर्धारित करती है कि हम क्या-क्या सोच सकते हैं ।  —  बेन्जामिन होर्फ
* शब्द विचारों के वाहक हैं ।
* शब्द पाकर दिमाग उडने लगता है ।
* मेरी भाषा की सीमा , मेरी अपनी दुनिया की सीमा भी है।  -  लुडविग विटगेंस्टाइन
* आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है , उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना । ..(लेकिन) यदि विचार भाषा को भ्रष्ट करते है तो भाषा भी विचारों को भ्रष्ट कर सकती है ।  —  जार्ज ओर्वेल
* शिकायत करने की अपनी गहरी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए ही मनुष्य ने भाषा ईजाद की है ।  -  लिली टॉमलिन
* श्रीकृष्ण ऐसी बात बोले जिसके शब्द और अर्थ परस्पर नपे-तुले रहे और इसके बाद चुप हो गए। वस्तुतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही है कि वे मितभाषी हुआ करते हैं।  -  शिशुपाल वध
'''साहित्य'''
* साहित्य समाज का दर्पण होता है ।
* साहित्यसंगीतकला विहीन: साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः ।
( साहित्य संगीत और कला से हीन पुरूष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं । )  —  भर्तृहरि
* सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है |  –  अनंत गोपाल शेवड़े
* साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है , परंतु एक नया वातावरण देना भी है ।  —  डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन
'''संगति / सत्संगति / कुसंगति / मित्रलाभ / एकता / सहकार / सहयोग / नेटवर्किंग / संघ'''
* संघे शक्तिः ( एकता में शक्ति है )
* हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् । 
समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥
हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है , समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है ।    —  महाभारत
* यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च । 
पश्य मूषकमित्रेण , कपोता: मुक्तबन्धना: ॥
* जो कोई भी हों , सैकडो मित्र बनाने चाहिये । देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे ।  —  पंचतंत्र
* को लाभो गुणिसंगमः ( लाभ क्या है ? गुणियों का साथ )  —  भर्तृहरि
* सत्संगतिः स्वर्गवास: ( सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है )
संहतिः कार्यसाधिका । ( एकता से कार्य सिद्ध होते हैं )  —  पंचतंत्र
* दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं , बाकी सब काम की तलाश करते हैं ।  —  कियोसाकी
* मानसिक शक्ति का सबसे बडा स्रोत है - दूसरों के साथ सकारात्मक तरीके से विचारों का आदान-प्रदान करना ।
* शठ सुधरहिं सतसंगति पाई । 
पारस परस कुधातु सुहाई ॥  —  गोस्वामी तुलसीदास
* गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा । ( हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है )  —  गोस्वामी तुलसीदास
* बिना सहकार , नहीं उद्धार ।
उतिष्ठ , जाग्रत् , प्राप्य वरान् अनुबोधयत् । 
( उठो , जागो और श्रेष्ठ जनों को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान बनाओ । )
* नहीं संगठित सज्जन लोग ।
रहे इसी से संकट भोग ॥  —  श्रीराम शर्मा , आचार्य
* सहनाववतु , सह नौ भुनक्तु , सहवीर्यं करवाहहै । 
( एक साथ आओ , एक साथ खाओ और साथ-साथ काम करो )
* अच्छे मित्रों को पाना कठिन , वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है।  —  रैन्डाल्फ
* काजर की कोठरी में कैसे हू सयानो जाय, 
एक न एक लीक काजर की लागिहै पै लागि है।  –  अज्ञात
* जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंग, 
चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग ।  —  रहीम
* जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है।  –  मुक्ता
* एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है ।  –  अज्ञात
'''संस्था / संगठन / आर्गनाइजेशन'''
* दुनिया की सबसे बडी खोज ( इन्नोवेशन ) का नाम है - संस्था ।
* आधुनिक समाज के विकास का इतिहास ही विशेष लक्ष्य वाली संस्थाओं के विकास का इतिहास भी है ।
* कोई समाज उतना ही स्वस्थ होता है जितनी उसकी संस्थाएँ ; यदि संस्थायें विकास कर रही हैं तो समाज भी विकास करता है, यदि वे क्षीण हो रही हैं तो समाज भी क्षीण होता है ।
उन्नीसवीं शताब्दी की औद्योगिक-क्रान्ति संस्थाओं की क्रान्ति थी ।
* बाँटो और राज करो , एक अच्छी कहावत है ; ( लेकिन ) एक होकर आगे बढो , इससे भी अच्छी कहावत है ।  —  गोथे
* व्यक्तियों से राष्ट्र नही बनता , संस्थाओं से राष्ट्र बनता है ।  —  डिजरायली
'''साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न'''
* कबिरा मन निर्मल भया , जैसे गंगा नीर । 
पीछे-पीछे हरि फिरै , कहत कबीर कबीर ॥  —  कबीर
* साहसे खलु श्री वसति । ( साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं )
* इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव मे इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही बदला है ।
* जरूरी नही है कि कोई साहस लेकर जन्मा हो , लेकिन हरेक शक्ति लेकर जन्मता है ।
* बिना साहस के हम कोई दूसरा गुण भी अनवरत धारण नहीं कर सकते । हम कृपालु, दयालु , सत्यवादी , उदार या इमानदार नहीं बन सकते ।
* बिना निराश हुए ही हार को सह लेना पृथ्वी पर साहस की सबसे बडी परीक्षा है ।  —  आर. जी. इंगरसोल
* जिस काम को करने में डर लगता है उसको करने का नाम ही साहस है ।
* मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।  -  महात्मा गांधी
* किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो।  -  द्रोणाचार्य
* यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते।  -  वल्लभभाई पटेल
* वस्तुतः अच्छा समाज वह नहीं है जिसके अधिकांश सदस्य अच्छे हैं बल्कि वह है जो अपने बुरे सदस्यों को प्रेम के साथ अच्छा बनाने में सतत् प्रयत्नशील है।  -  डब्ल्यू.एच.आडेन
* शोक मनाने के लिये नैतिक साहस चाहिए और आनंद मनाने के लिए धार्मिक साहस। अनिष्ट की आशंका करना भी साहस का काम है, शुभ की आशा करना भी साहस का काम परंतु दोनों में आकाश-पाताल का अंतर है। पहला गर्वीला साहस है, दूसरा विनीत साहस।  -  किर्केगार्द
* किसी दूसरे को अपना स्वप्न बताने के लिए लोहे का ज़िगर चाहिए होता है |  -  एरमा बॉम्बेक
* हर व्यक्ति में प्रतिभा होती है. दरअसल उस प्रतिभा को निखारने के लिए गहरे अंधेरे रास्ते में जाने का साहस कम लोगों में ही होता है.
कमाले बुजदिली है , पस्त होना अपनी आँखों में ।
* अगर थोडी सी हिम्मत हो तो क्या हो सकता नहीं ॥  —  चकबस्त
* अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है। कायरों की नहीं।  –  जवाहरलाल नेहरू
* जिन ढूढा तिन पाइयाँ , गहरे पानी पैठि । 
मै बपुरा बूडन डरा , रहा किनारे बैठि ॥  —  कबीर
* वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे ।  –  अज्ञात
'''भय, अभय, निर्भय'''
* तावत् भयस्य भेतव्यं , यावत् भयं न आगतम् । 
आगतं हि भयं वीक्ष्य , प्रहर्तव्यं अशंकया ॥
* भय से तब तक ही दरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो । आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर् प्रहार् करना चाहिये ।  —  पंचतंत्र
* जो लोग भय का हेतु अथवा हर्ष का कारण उपस्थित होने पर भी विचार विमर्श से काम लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं होते।  -  पंचतंत्र
* ‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी मां के चरणों में डाल जाते हैं।  -  बर्ट्रेंड रसेल
* मित्र से, अमित्र से, ज्ञात से, अज्ञात से हम सब के लिए अभय हों। रात्रि के समय हम सब निर्भय हों और सब दिशाओं में रहनेवाले हमारे मित्र बनकर रहें।  -  अथर्ववेद
* आदमी सिर्फ दो लीवर के द्वारा चलता रहता है : डर तथा स्वार्थ |  -  नेपोलियन
* डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है |  -  एमर्सन
* अभय-दान सबसे बडा दान है ।
* भय से ही दुख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं ।  —  विवेकानंद
'''दोष / गलती / त्रुटि'''
* गलती करने में कोई गलती नहीं है । गलती करने से डरना सबसे बडी गलती है ।  —  एल्बर्ट हब्बार्ड
* गलती करने का सीधा सा मतलब है कि आप तेजी से सीख रहे हैं ।
* बहुत सी तथा बदी गलतियाँ किये बिना कोई बडा आदमी नहीं बन सकता ।  —  ग्लेडस्टन
* मैं इसलिये आगे निकल पाया कि मैने उन लोगों से ज्यादा गलतियाँ की जिनका मानना था कि गलती करना बुरा था , या गलती करने का मतलब था कि वे मूर्ख थे ।  —  राबर्ट कियोसाकी
* सीधे तौर पर अपनी गलतियों को ही हम अनुभव का नाम दे देते हैं ।  —  आस्कर वाइल्ड
* गलती तो हर मनुष्य कर सकता है , पर केवल मूर्ख ही उस पर दृढ बने रहते हैं ।  —  सिसरो
* अपनी गलती स्वीकार कर लेने में लज्जा की कोई बात नहीं है । इससे दूसरे शब्दों में यही प्रमाणित होता है कि कल की अपेक्षा आज आप अधिक समझदार हैं ।  —  अलेक्जेन्डर पोप
* दोष निकालना सुगम है , उसे ठीक करना कठिन ।  —  प्लूटार्क
* त्रुटियों के बीच में से ही सम्पूर्ण सत्य को ढूंढा जा सकता है |  –  सिगमंड फ्रायड
* गलतियों से भरी जिंदगी न सिर्फ सम्मनाननीय बल्कि लाभप्रद है उस जीवन से जिसमे कुछ किया ही नही गया।
'''अनुभव / अभ्यास'''
* बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है|
* करत करत अभ्यास के जड़ मति होंहिं सुजान।
रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं निशान।।  —  रहीम
* अनभ्यासेन विषं विद्या ।
( बिना अभ्यास के विद्या कठिन है / बिना अभ्यास के विद्या विष के समान है ( ?) )
* यह रहीम निज संग लै , जनमत जगत न कोय । 
बैर प्रीति अभ्यास जस , होत होत ही होय ॥
* अनुभव-प्राप्ति के लिए काफी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती ।  —  अज्ञात
* अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते ।  –  अज्ञात
'''सफलता, असफलता'''
* असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया ।  —  श्रीरामशर्मा आचार्य
* जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्व है ।  —  हक्सले
* जो कभी भी कहीं असफल नही हुआ वह आदमी महान नही हो सकता ।  —  हर्मन मेलविल
* असफलता आपको महान कार्यों के लिये तैयार करने की प्रकृति की योजना है ।  —  नैपोलियन हिल
* सफलता की सभी कथायें बडी-बडी असफलताओं की कहानी हैं ।
* असफलता फिर से अधिक सूझ-बूझ के साथ कार्य आरम्भ करने का एक मौका मात्र है ।  —  हेनरी फ़ोर्ड
* दो ही प्रकार के व्यक्ति वस्तुतः जीवन में असफल होते है - एक तो वे जो सोचते हैं, पर उसे कार्य का रूप नहीं देते और दूसरे वे जो कार्य-रूप में परिणित तो कर देते हैं पर सोचते कभी नहीं।  -  थामस इलियट
* दूसरों को असफल करने के प्रयत्न ही में हमें असफल बनाते हैं।  -  इमर्सन
* किसी दूसरे द्वारा रचित सफलता की परिभाषा को अपना मत समझो ।  -  हरिशंकर परसाई
* जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं । पहले वे जो सोचते हैं पर करते नहीं , दूसरे वे जो करते हैं पर सोचते नहीं ।  —  श्रीराम शर्मा , आचार्य
* प्रत्येक व्यक्ति को सफलता प्रिय है लेकिन सफल व्यक्तियों से सभी लोग घृणा करते हैं ।  —  जान मैकनरो
* असफल होने पर , आप को निराशा का सामना करना पड़ सकता है। परन्तु , प्रयास छोड़ देने पर , आप की असफलता सुनिश्चित है।  —  बेवेरली सिल्स
* सफलता का कोई गुप्त रहस्य नहीं होता. क्या आप किसी सफल आदमी को जानते हैं जिसने अपनी सफलता का बखान नहीं किया हो.  –  किन हबार्ड
* मैं सफलता के लिए इंतजार नहीं कर सकता था, अतएव उसके बगैर ही मैं आगे बढ़ चला.  –  जोनाथन विंटर्स
* हार का स्‍वाद मालूम हो तो जीत हमेशा मीठी लगती है.  —  माल्‍कम फोर्बस
* हम सफल होने को पैदा हुए हैं, फेल होने के लिये नही .  —  हेनरी डेविड
* पहाड़ की चोटी पर पंहुचने के कई रास्‍ते होते हैं लेकिन व्‍यू सब जगह से एक सा दिखता है .  —  चाइनीज कहावत
* यहाँ दो तरह के लोग होते हैं - एक वो जो काम करते हैं और दूसरे वो जो सिर्फ क्रेडिट लेने की सोचते है। कोशिश करना कि तुम पहले समूह में रहो क्‍योंकि वहाँ कम्‍पटीशन कम है .  —  इंदिरा गांधी
* सफलता के लिये कोई लिफ्‍ट नही जाती इसलिये सीढ़ीयों से ही जाना पढ़ेगा
* हम हवा का रूख तो नही बदल सकते लेकिन उसके अनुसार अपनी नौका के पाल की दिशा जरूर बदल सकते हैं।
* सफलता सार्वजनिक उत्सव है , जबकि असफलता व्यक्तिगत शोक ।
* मैं नही जानता कि सफलता की सीढी क्या है ; असफला की सीढी है , हर किसी को प्रसन्न करने की चाह ।  —  बिल कोस्बी
* सफलता के तीन रहस्य हैं - योग्यता , साहस और कोशिश ।
'''सुख-दुःख , व्याधि , दया'''
* संसार में सब से अधिक दुःखी प्राणी कौन है ? बेचारी मछलियां क्योंकि दुःख के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं। अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण मात्र दुःख भी पर्वत हो जाता है।  -  खलील जिब्रान
* संसार में प्रायः सभी जन सुखी एवं धनशाली मनुष्यों के शुभेच्छु हुआ करते हैं। विपत्ति में पड़े मनुष्यों के प्रियकारी दुर्लभ होते हैं।  -  मृच्छकटिक
* व्याधि शत्रु से भी अधिक हानिकारक होती है।  -  चाणक्यसूत्राणि-२२३
* विपत्ति में पड़े हुए का साथ बिरला ही कोई देता है।  -  रावणार्जुनीयम्-५।८
* मनुष्य के जीवन में दो तरह के दुःख होते हैं - एक यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी नहीं हुई और दूसरा यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी हो गई।  -  बर्नार्ड शॉ
* मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरे पास जो भी थोड़ा-बहुत धन शेष है, वह सार्वजनिक हित के कामों में यथाशीघ्र खर्च हो जाए। मेरे अंतिम समय में एक पाई भी न बचे, मेरे लिए सबसे बड़ा सुख यही होगा।  -  पुरुषोत्तमदास टंडन
* मानवजीवन में दो और दो चार का नियम सदा लागू होता है। उसमें कभी दो और दो पांच हो जाते हैं। कभी ऋण तीन भी और कई बार तो सवाल पूरे होने के पहले ही स्लेट गिरकर टूट जाती है।  -  सर विंस्टन चर्चिल
* तपाया और जलाया जाता हुआ लौहपिण्ड दूसरे से जुड़ जाता है, वैसे ही दुख से तपते मन आपस में निकट आकर जुड़ जाते हैं।  -  लहरीदशक
* रहिमन बिपदा हुँ भली , जो थोरे दिन होय । 
हित अनहित वा जगत में , जानि परत सब कोय ॥  —  रहीम
* चाहे राजा हो या किसान , वह सबसे ज्यादा सुखी है जिसको अपने घर में शान्ति प्राप्त होती है ।  —  गेटे
* अरहर की दाल औ जड़हन का भात,
गागल निंबुआ औ घिउ तात,
सहरसखंड दहिउ जो होय,
बाँके नयन परोसैं जोय,
कहै घाघ तब सबही झूठा,
उहाँ छाँड़ि इहवैं बैकुंठा |  —  घाघ
'''प्रशंसा / प्रोत्साहन'''
* उष्ट्राणां विवाहेषु , गीतं गायन्ति गर्दभाः ।
परस्परं प्रशंसन्ति , अहो रूपं अहो ध्वनिः । 
( ऊँटों के विवाह में गधे गीत गा रहे हैं । एक-दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं , अहा ! क्या रूप है ? अहा ! क्या आवाज है ? )
* मानव में जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रसंसा तथा प्रोत्साहन से किया जा सकता है ।  –  चार्ल्स श्वेव
* आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है ।  —  सेनेका
* मानव प्रकृति में सबसे गहरा नियम प्रशंसा प्राप्त करने की लालसा है ।  —  विलियम जेम्स
* अगर किसी युवती के दोष जानने हों तो उसकी सखियों में उसकी प्रसंसा करो ।  —  फ्रंकलिन
* चापलूसी करना सरल है , प्रशंसा करना कठिन ।
* मेरी चापलूसी करो, और मैं आप पर भरोसा नहीं करुंगा. मेरी आलोचना करो, और मैं आपको पसंद नहीं करुंगा. मेरी उपेक्षा करो, और मैं आपको माफ़ नहीं करुंगा. मुझे प्रोत्साहित करो, और मैं कभी आपको नहीं भूलूंगा  –  विलियम ऑर्थर वार्ड
* हमारे साथ प्रायः समस्या यही होती है कि हम झूठी प्रशंसा के द्वारा बरबाद हो जाना तो पसंद करते हैं, परंतु वास्तविक आलोचना के द्वारा संभल जाना नहीं |  –  नॉर्मन विंसेंट पील
'''मान , अपमान , सम्मान'''
* धूल भी पैरों से रौंदी जाने पर ऊपर उठती है, तब जो मनुष्य अपमान को सहकर भी स्वस्थ रहे, उससे तो वह पैरों की धूल ही अच्छी।  -  माघकाव्य
* इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त होता है।  -  कल्विन कूलिज
* अपमानपूर्वक अमृत पीने से तो अच्छा है सम्मानपूर्वक विषपान |  –  रहीम
* अपमान और दवा की गोलियां निगल जाने के लिए होती हैं, मुंह में रखकर चूसते रहने के लिए नहीं।  -  वक्रमुख
* गाली सह लेने के असली मायने है गाली देनेवाले के वश में न होना, गाली देनेवाले को असफल बना देना। यह नहीं कि जैसा वह कहे, वैसा कहना।  -  महात्मा गांधी
* मान सहित विष खाय के , शम्भु भये जगदीश । 
बिना मान अमृत पिये , राहु कटायो शीश ॥  —  कबीर
'''अभिमान / घमण्ड / गर्व'''
* जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं मै नाहि । 
सब अँधियारा मिट गया दीपक देख्या माँहि ॥  —  कबीर
'''धन / अर्थ / अर्थ महिमा / अर्थ निन्दा / अर्थ शास्त्र /सम्पत्ति / ऐश्वर्य'''
* दान , भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं । जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति ( नाश ) होती है ।  —  भर्तृहरि
* हिरण्यं एव अर्जय , निष्फलाः कलाः । ( सोना ( धन ) ही कमाओ , कलाएँ निष्फल है )  —  महाकवि माघ
* सर्वे गुणाः कांचनं आश्रयन्ते । ( सभी गुण सोने का ही सहारा लेते हैं )  -  भर्तृहरि
* संसार के व्यवहारों के लिये धन ही सार-वस्तु है । अत: मनुष्य को उसकी प्राप्ति के लिये युक्ति एवं साहस के साथ यत्न करना चाहिये ।  —  शुक्राचार्य
* आर्थस्य मूलं राज्यम् । ( राज्य धन की जड है )  —  चाणक्य
* मनुष्य मनुष्य का दास नही होता , हे राजा , वह् तो धन का दास् होता है ।  —  पंचतंत्र
* अर्थो हि लोके पुरुषस्य बन्धुः । ( संसार मे धन ही आदमी का भाई है )  —  चाणक्य
* जहाँ सुमति तँह सम्पति नाना, जहाँ कुमति तँह बिपति निधाना ।  —  गो. तुलसीदास
* क्षणशः कण्शश्चैव विद्याधनं अर्जयेत । 
( क्षण-ख्षण करके विद्या और कण-कण करके धन का अर्जन करना चाहिये ।
* रुपए ने कहा, मेरी फिक्र न कर – पैसे की चिन्ता कर.  –  चेस्टर फ़ील्ड
* बढ़त बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ि जाय। 
घटत घटत पुनि ना घटै तब समूल कुम्हिलाय।।
* जहां मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहां अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहां परिवार में कलह नहीं होती, वहां लक्ष्मी निवास करती है ।  –  अथर्ववेद
* मुक्त बाजार ही संसाधनों के बटवारे का सवाधिक दक्ष और सामाजिक रूप से इष्टतम तरीका है ।
* स्वार्थ या लाभ ही सबसे बडा उत्साहवर्धक ( मोटिवेटर ) या आगे बढाने वाला बल है ।
* मुक्त बाजार उत्तरदायित्वों के वितरण की एक पद्धति है ।
* सम्पत्ति का अधिकार प्रदान करने से सभ्यता के विकास को जितना योगदान मिला है उतना मनुष्य द्वारा स्थापित किसी दूसरी संस्था से नहीं ।
* यदि किसी कार्य को पर्याप्त रूप से छोटे-छोटे चरणों मे बाँट दिया जाय तो कोई भी काम पूरा किया जा सकता है ।
'''धनी / निर्धन / गरीब / गरीबी'''
* गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं ।  —  डेनियल
* गरीबों के बहुत से बच्चे होते हैं , अमीरों के सम्बन्धी.  –  एनॉन
* पैसे की कमी समस्त बुराईयों की जड़ है।
* कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है |  –  चाणक्य
* निर्धनता से मनुष्य मे लज्जा आती है । लज्जा से आदमी तेजहीन हो जाता है । निस्तेज मनुष्य का समाज तिरस्कार करता है । तिरष्कृत मनुष्य में वैराग्य भाव उत्पन्न हो जाते हैं और तब मनुष्य को शोक होने लगता है । जब मनुष्य शोकातुर होता है तो उसकी बुद्धि क्षीण होने लगती है और बुद्धिहीन मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है ।  —  वासवदत्ता , मृच्छकटिकम में
* गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है ।  —  महात्मा गाँधी
'''व्यापार'''
* व्यापारे वसते लक्ष्मी । ( व्यापार में ही लक्ष्मी वसती हैं )
महाजनो येन गतः स पन्थाः । 
( महापुरुष जिस मार्ग से गये है, वही (उत्तम) मार्ग है ) 
( व्यापारी वर्ग जिस मार्ग से गया है, वही ठीक रास्ता है )
* जब गरीब और धनी आपस में व्यापार करते हैं तो धीरे-धीरे उनके जीवन-स्तर में समानता आयेगी ।  —  आदम स्मिथ , “द वेल्थ आफ नेशन्स” में
* तकनीक और व्यापार का नियंत्रण ब्रिटिश साम्राज्य का अधारशिला थी ।
* राष्ट्रों का कल्याण जितना मुक्त व्यापार पर निर्भर है उतना ही मैत्री , इमानदारी और बराबरी पर ।  —  कार्डेल हल्ल
* व्यापारिक युद्ध , विश्व युद्ध , शीत युद्ध : इस बात की लडाई कि “गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन बनाये ।
* इससे कोई फ़र्क नहीं पडता कि कौन शाशन करता है , क्योंकि सदा व्यापारी ही शाशन चलाते हैं ।  —  थामस फुलर
* आज का व्यापार सायकिल चलाने जैसा है - या तो आप चलाते रहिये या गिर जाइये ।
* कार्पोरेशन : व्यक्तिगत उत्तर्दायित्व के बिना ही लाभ कमाने की एक चालाकी से भरी युक्ति ।  —  द डेविल्स डिक्शनरी
* अपराधी, दस्यु प्रवृति वाला एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास कारपोरेशन शुरू करने के लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है ।
'''विकास / प्रगति / उन्नति'''
* बीज आधारभूत कारण है , पेड उसका प्रगति परिणाम । विचारों की प्रगतिशीलता और उमंग भरी साहसिकता उस बीज के समान हैं ।  —  श्रीराम शर्मा , आचार्य
* विकास की कोई सीमा नही होती, क्योंकि मनुष्य की मेधा, कल्पनाशीलता और कौतूहूल की भी कोई सीमा नही है।  —  रोनाल्ड रीगन
* अगर चाहते सुख समृद्धि, रोको जनसंख्या वृद्धि|
* नारी की उन्नति पर ही राष्ट्र की उन्नति निर्धारित है|
* भारत को अपने अतीत की जंज़ीरों को तोड़ना होगा। हमारे जीवन पर मरी हुई, घुन लगी लकड़ियों का ढेर पहाड़ की तरह खड़ा है। वह सब कुछ बेजान है जो मर चुका है और अपना काम खत्म कर चुका है, उसको खत्म हो जाना, उसको हमारे जीवन से निकल जाना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने आपको हर उस दौलत से काट लें, हर उस चीज़ को भूल जायें जिसने अतीत में हमें रोशनी और शक्ति दी और हमारी ज़िंदगी को जगमगाया।  -  जवाहरलाल नेहरू
* सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो?  -  डा. राधाकृष्णन
'''राजनीति / शाशन / सरकार'''
* सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रममूलं च वैभवम् ।
न्यायमूलं सुराज्यं स्यात् , संघमूलं महाबलम् ॥ 
( शक्ति स्वतन्त्रता की जड है , मेहनत धन-दौलत की जड है , न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है । )
* निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है । शक्तियाँ मंत्र , प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । मंत्र ( योजना , परामर्श ) से कार्य का ठीक निर्धारण होता है , प्रभाव ( राजोचित शक्ति , तेज ) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह ( उद्यम ) से कार्य सिद्ध होता है ।  —  दसकुमारचरित
* यथार्थ को स्वीकार न करनें में ही व्यावहारिक राजनीति निहित है ।  —  हेनरी एडम
* विपत्तियों को खोजने , उसे सर्वत्र प्राप्त करने , गलत निदान करने और अनुपयुक्त चिकित्सा करने की कला ही राजनीति है ।  —  सर अर्नेस्ट वेम
* मानव स्वभाव का ज्ञान ही राजनीति-शिक्षा का आदि और अन्त है ।  —  हेनरी एडम
* राजनीति में किसी भी बात का तब तक विश्वास मत कीजिए जब तक कि उसका खंडन आधिकारिक रूप से न कर दिया गया हो.  –  ओटो वान बिस्मार्क
* सफल क्रांतिकारी , राजनीतिज्ञ होता है ; असफल अपराधी.  –  एरिक फ्रॉम
* दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिये लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिये ।  —  रामायण
* प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजा के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिये । आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजा की प्रियता में ही राजा का हित है।  —  चाणक्य
* वही सरकार सबसे अच्छी होती है जो सबसे कम शाशन करती है ।
* सरकार चाहे किसी की हो , सदा बनिया ही शाशन करते हैं ।
'''लोकतन्त्र / प्रजातन्त्र / जनतन्त्र'''
* लोकतन्त्र , जनता की , जनता द्वारा , जनता के लिये सरकार होती है ।  —  अब्राहम लिंकन
* लोकतंत्र इस धारणा पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएँ होती है ।  —  हेनरी एमर्शन फास्डिक
* शान्तिपूर्वक सरकार बदल देने की शक्ति प्रजातंत्र की आवश्यक शर्त है । प्रजातन्त्र और तानाशाही मे अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है , बल्कि नेताओं को बिना उनकी हत्या किये बदल देने में है ।  —  लार्ड बिवरेज
* अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है।
* बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन।  -  महात्मा गांधी
* जैसी जनता , वैसा राजा ।
प्रजातन्त्र का यही तकाजा ॥  —  श्रीराम शर्मा , आचार्य
* अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है।
* बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन।  —  महात्मा गांधी
* सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है ।  –  स्वामी विवेकानंद
* लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है ।  —  जयप्रकाश नारायण
'''नियम / कानून / विधान / न्याय'''
* न हि कश्चिद् आचारः सर्वहितः संप्रवर्तते ।
( कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो )  —  महाभारत
* अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता ।  —  थामस फुलर
* थोडा-बहुत अन्याय किये बिना कोई भी महान कार्य नहीं किया जा सकता ।  —  लुइस दी उलोआ
* संविधान इतनी विचित्र ( आश्चर्यजनक ) चीज है कि जो यह् नहीं जानता कि ये ये क्या चीज होती है , वह गदहा है ।
* लोकतंत्र - जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर ।
* सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं । अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत काडाई से न करें ।  —  इमर्शन
* न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः ।
स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥ 
( न राज्य था और ना राजा था , न दण्ड था और न दण्ड देने वाला ।
स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी । )
* कानून चाहे कितना ही आदरणीय क्यों न हो , वह गोलाई को चौकोर नहीं कह सकता।  —  फिदेल कास्त्रो
'''व्यवस्था'''
* व्यवस्था मस्तिष्क की पवित्रता है , शरीर का स्वास्थ्य है , शहर की शान्ति है , देश की सुरक्षा है । जो सम्बन्ध धरन ( बीम ) का घर से है , या हड्डी का शरीर से है , वही सम्बन्ध व्यवस्था का सब चीजों से है ।  —  राबर्ट साउथ
* अच्छी व्यवस्था ही सभी महान कार्यों की आधारशिला है ।  –  एडमन्ड बुर्क
* सभ्यता सुव्यस्था के जन्मती है , स्वतन्त्रता के साथ बडी होती है और अव्यवस्था के साथ मर जाती है ।  —    विल डुरान्ट
* हर चीज के लिये जगह , हर चीज जगह पर ।  —  बेन्जामिन फ्रैंकलिन
* सुव्यवस्था स्वर्ग का पहला नियम है ।  —  अलेक्जेन्डर पोप
* परिवर्तन के बीच व्यवस्था और व्यवस्था के बीच परिवर्तन को बनाये रखना ही प्रगति की कला है ।  —  अल्फ्रेड ह्वाइटहेड
'''विज्ञापन'''
* मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दखल देती है।  -  हरिशंकर परसाई
'''समय'''
* आयुषः क्षणमेकमपि, न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः ।
स वृथा नीयती येन, तस्मै नृपशवे नमः ॥
* करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता ।
* वह ( क्षण ) जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है , ऐसे नर-पशु को नमस्कार ।
* समय को व्यर्थ नष्ट मत करो क्योंकि यही वह चीज है जिससे जीवन का निर्माण हुआ है ।  —  बेन्जामिन फ्रैंकलिन
* समय और समुद्र की लहरें किसी का इंतजार नहीं करतीं |  –  अज्ञात्
* जैसे नदी बह जाती है और लौट कर नहीं आती, उसी तरह रात-दिन मनुष्य की आयु लेकर चले जाते हैं, फिर नहीं आते।  -  महाभारत
* किसी भी काम के लिये आपको कभी भी समय नहीं मिलेगा । यदि आप समय पाना चाहते हैं तो आपको इसे बनाना पडेगा ।
* क्षणशः कणशश्चैव विद्याधनं अर्जयेत । 
( क्षण-क्षण का उपयोग करके विद्या का और कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये )
* काल्ह करै सो आज कर, आज करि सो अब ।
पल में परलय होयगा, बहुरि करेगा कब ॥  —  कबीरदास
* समय-लाभ सम लाभ नहिं , समय-चूक सम चूक ।
चतुरन चित रहिमन लगी , समय-चूक की हूक ॥
* अपने काम पर मै सदा समय से १५ मिनट पहले पहुँचा हूँ और मेरी इसी आदत ने मुझे कामयाब व्यक्ति बना दिया है ।
* हमें यह विचार त्याग देना चाहिये कि हमें नियमित रहना चाहिये । यह विचार आपके असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है ।
* दीर्घसूत्री विनश्यति । ( काम को बहुत समय तक खीचने वाले का नाश हो जाता है )
* समयनिष्ठ होने पर समस्या यह हो जाती है कि इसका आनंद अकसर आपको अकेले लेना पड़ता है.  –  एनॉन
* ऐसी घडी नहीं बन सकती जो गुजरे हुए घण्टे को फिर से बजा दे ।  —  प्रेमचन्द
'''अवसर / मौका / सुतार / सुयोग'''
* जो प्रमादी है , वह सुयोग गँवा देगा ।    —  श्रीराम शर्मा , आचार्य
* बाजार में आपाधापी - मतलब , अवसर ।
धरती पर कोई निश्चितता नहीं है , बस अवसर हैं ।  —  डगलस मैकआर्थर
* संकट के समय ही नायक बनाये जाते हैं ।
* आशावादी को हर खतरे में अवसर दीखता है और निराशावादी को हर अवसर मे खतरा ।  —  विन्स्टन चर्चिल
* अवसर के रहने की जगह कठिनाइयों के बीच है ।  —    अलबर्ट आइन्स्टाइन
* हमारा सामना हरदम बडे-बडे अवसरों से होता रहता है , जो चालाकी पूर्वक असाध्य समस्याओं के वेष में (छिपे) रहते हैं ।  —  ली लोकोक्का
* रहिमन चुप ह्वै बैठिये , देखि दिनन को फेर ।
जब नीके दिन आइहैं , बनत न लगिहैं देर ॥
* न इतराइये , देर लगती है क्या |
जमाने को करवट बदलते हुए ||
* कभी कोयल की कूक भी नहीं भाती और कभी (वर्षा ऋतु में) मेंढक की टर्र टर्र भी भली प्रतीत होती है |  –  गोस्वामी तुलसीदास
* वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम है।    -  सामवेद
* का बरखा जब कृखी सुखाने। समय चूकि पुनि का पछिताने।।  —  गोस्वामी तुलसीदास
* अवसर कौडी जो चुके , बहुरि दिये का लाख ।
दुइज न चन्दा देखिये , उदौ कहा भरि पाख ॥  —  गोस्वामी तुलसीदास
'''इतिहास'''
* उचित रूप से ( देंखे तो ) कुछ भी इतिहास नही है ; (सब कुछ) मात्र आत्मकथा है ।  —  इमर्सन
* इतिहास सदा विजेता द्वारा ही लिखा जता है ।
* इतिहास, शक्तिशाली लोगों द्वारा, उनके धन और बल की रक्षा के लिये लिखा जाता है ।
* इतिहास , असत्यों पर एकत्र की गयी सहमति है।  —    नेपोलियन बोनापार्ट
* जो इतिहास को याद नहीं रखते , उनको इतिहास को दुहराने का दण्ड मिलता है ।  —  जार्ज सन्तायन
* ज्ञानी लोगों का कहना है कि जो भी भविष्य को देखने की इच्छा हो भूत (इतिहास) से सीख ले ।  —  मकियावेली , ” द प्रिन्स ” में
* इतिहास स्वयं को दोहराता है , इतिहास के बारे में यही एक बुरी बात है ।  –  सी डैरो
* संक्षेप में , मानव इतिहास सुविचारों का इतिहास है ।  —  एच जी वेल्स
* सभ्यता की कहानी , सार रूप में , इंजिनीयरिंग की कहानी है - वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया ।  —  एस डीकैम्प
* इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है ।  —  जेम्स के. फिंक
* इतिहास से हम सीखते हैं कि हमने उससे कुछ नही सीखा ।
'''शक्ति / प्रभुता / सामर्थ्य / बल / वीरता'''
* वीरभोग्या वसुन्धरा । 
( पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है )
* कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् ।
को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥  —  पंचतंत्र
* जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ? व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है? विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ?
* खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले । 
खुदा बंदे से खुद पूछे , बता तेरी रजा क्या है ?  —  अकबर इलाहाबादी
* कौन कहता है कि आसमा मे छेद हो सकता नही | 
कोई पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ।|
* यो विषादं प्रसहते, विक्रमे समुपस्थिते । 
तेजसा तस्य हीनस्य, पुरूषार्थो न सिध्यति ॥
( पराक्रम दिखाने का अवसर आने पर जो दुख सह लेता है (लेकिन पराक्रम नही दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता )
* नाभिषेको न च संस्कारः, सिंहस्य कृयते मृगैः । 
विक्रमार्जित सत्वस्य, स्वयमेव मृगेन्द्रता ॥
(जंगल के जानवर सिंह का न अभिषेक करते हैं और न संस्कार । पराक्रम द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है )
* जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार बोझ लेकर चलता है वह किसी भी स्थान पर गिरता नहीं है और न दुर्गम रास्तों में विनष्ट ही होता है।  -  मृच्छकटिक
* अधिकांश लोग अपनी दुर्बलताओं को नहीं जानते, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते।  —  जोनाथन स्विफ्ट
* मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली-भांति परिचित रहता है , पर उसे अपने बल से भी अवगत होना चाहिये ।  —  जयशंकर प्रसाद
* आत्म-वृक्ष के फूल और फल शक्ति को ही समझना चाहिए।  -  श्रीमद्भागवत ८।१९।३९
* तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की ।  –  गुरू गोविन्द सिंह
'''युद्ध / शान्ति'''
* सर्वविनाश ही , सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है।  —  पं. जवाहरलाल नेहरू
* सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव । 
( हे कृष्ण , बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी ( जमीन ) नहीं दूँगा ।  —  दुर्योधन , महाभारत में
* प्रागेव विग्रहो न विधिः । 
पहले ही ( बिना साम, दान , दण्ड का सहारा लिये ही ) युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है ।  —  पंचतन्त्र
* यदि शांति पाना चाहते हो , तो लोकप्रियता से बचो।  —  अब्राहम लिंकन
* शांति , प्रगति के लिये आवश्यक है।  —  डा॰ राजेन्द्र प्रसाद
* बारह फकीर एक फटे कंबल में आराम से रात काट सकते हैं मगर सारी धरती पर यदि केवल दो ही बादशाह रहें तो भी वे एक क्षण भी आराम से नहीं रह सकते।  -  शम्स-ए-तबरेज़
* शाश्वत शान्ति की प्राप्ति के लिए शान्ति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शान्ति ।    –    स्वामी ज्ञानानन्द
'''आत्मविश्वास / निर्भीकता'''
* आत्मविश्वास , वीरता का सार है ।  —  एमर्सन
* आत्मविश्वास , सफलता का मुख्य रहस्य है ।    —  एमर्शन
* आत्मविश्वा बढाने की यह रीति है कि वह का करो जिसको करते हुए डरते हो ।    —  डेल कार्नेगी
* हास्यवृति , आत्मविश्वास (आने) से आती है ।    —  रीता माई ब्राउन
* मुस्कराओ , क्योकि हर किसी में आत्म्विश्वास की कमी होती है , और किसी दूसरी चीज की अपेक्षा मुस्कान उनको ज्यादा आश्वस्त करती है ।  –  एन्ड्री मौरोइस
* करने का कौशल आपके करने से ही आता है ।
'''प्रश्न / शंका / जिज्ञासा / आश्चर्य'''
* वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नही देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है ।
* भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी । उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं , पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है । जब आदमी ने सबसे पहले प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी । प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक स्थिरता जन्म लेती है ।  —  एरिक हाफर
* प्रश्न और प्रश्न पूछने की कला, शायद सबसे शक्तिशाली तकनीक है ।
* सही प्रश्न पूछना मेधावी बनने का मार्ग है ।
* मूर्खतापूर्ण-प्रश्न , कोई भी नहीं होते औरे कोई भी तभी मूर्ख बनता है जब वह प्रश्न पूछना बन्द कर दे ।  —  स्टीनमेज
* जो प्रश्न पूछता है वह पाँच मिनट के लिये मूर्ख बनता है लेकिन जो नही पूछता वह जीवन भर मूर्ख बना रहता है ।
* सबसे चालाक व्यक्ति जितना उत्तर दे सकता है , सबसे बडा मूर्ख उससे अधिक पूछ सकता है ।
* मैं छः ईमानदार सेवक अपने पास रखता हूँ | इन्होंने मुझे वह हर चीज़ सिखाया है जो मैं जानता हूँ | इनके नाम हैं – क्या, क्यों, कब, कैसे, कहाँ और कौन |  –  रुडयार्ड किपलिंग
* यह कैसा समय है? मेरे कौन मित्र हैं? यह कैसा स्थान है। इससे क्या लाभ है और क्या हानि? मैं कैसा हूं। ये बातें बार-बार सोचें (जब कोई काम हाथ में लें)।  -  नीतसार
* शंका नहीं बल्कि आश्चर्य ही सारे ज्ञान का मूल है ।  —  अब्राहम हैकेल
'''सूचना / सूचना की शक्ति / सूचना-प्रबन्धन / सूचना प्रौद्योगिकी / सूचना-साक्षरता / सूचना प्रवीण / सूचना की सतंत्रता / सूचना-अर्थव्यवस्था'''
* संचार , गणना ( कम्प्यूटिंग ) और सूचना अब नि:शुल्क वस्तुएँ बन गयी हैं ।
* ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता है । जितना अधिक आप इसका उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं , उतना ही अधिक यह बढता है । इसको आसानी से बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग ।
* एक ऐसे विद्यालय की कल्पना कीजिए जिसके छात्र तो पढ-लिख सकते हों लेकिन शिक्षक नहीं ; और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं ।
* गुप्तचर ही राजा के आँख होते हैं ।  —  हितोपदेश
* पर्दे और पाप का घनिष्ट सम्बन्ध होता है ।
* सूचना ही लोकतन्त्र की मुद्रा है ।  —  थामस जेफर्सन
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&mdash; [[User:DrMKVaish|<span style="background:#333333; border: 2px solid #000000;">_<b style="color:#FF0000"> डा॰ </b><b style="color:#FFFFFF;"> मनीष </b><b style="color:#0077FF;"> कुमार वैश्य </b>_</span>]]
&mdash; डा॰ मनीष कुमार वैश्य


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12:05, 2 मई 2015 के समय का अवतरण

तिरंगा
तिरंगा
भारत माता
भारत माता


मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।

- महात्मा गांधी



ख़ूबसूरत बातें
  • ख़ूबसूरत है वो लब जिन पर दूसरों के लिए एक दुआ है।
  • ख़ूबसूरत है वो मुस्कान जो दूसरों की खुशी देख कर खिल जाए।
  • ख़ूबसूरत है वो दिल जो किसी के दुख मे शामिल हो जाए और किसी के प्यार के रंग मे रंग जाए।
  • ख़ूबसूरत है वो जज़बात जो दूसरो की भावनाओं को समझे।
  • ख़ूबसूरत है वो एहसास जिस मे प्यार की मिठास हो।
  • ख़ूबसूरत है वो बातें जिनमे शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से कहानियाँ।
  • ख़ूबसूरत है वो आँखे जिनमे कितने ख़ूबसूरत ख्वाब समा जाएँ।
  • ख़ूबसूरत है वो आसूँ जो किसी के ग़म मे बह जाएँ।
  • ख़ूबसूरत है वो हाथ जो किसी के लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए।
  • ख़ूबसूरत है वो कदम जो अमन और शान्ति का रास्ता तय कर जाएँ।
  • ख़ूबसूरत है वो सोच जिस मे पूरी दुनिया की भलाई का ख्याल आ जाए।


डा॰ मनीष कुमारवैश्य

National Anthem =

चित्र:A R Rahman - Jana Gana Mana (2007) - Asha Bhonsle.ogg


मेरे पृष्ट पर आप का स्वागत है !

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हिन्दुस्तानी तिरंगा
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मेरा भारत
मेरा भारत
  1. बस्ती ज़िला
  2. गोरखपुर ज़िला
  3. संत कबीर नगर ज़िला
  4. सिद्धार्थनगर ज़िला

  1. गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर
  2. तामेश्वरनाथ मंदिर
  3. चन्दो ताल
  4. रामगढ़ ताल
  5. पिण्डारी
  6. महुआ डाबर
  7. मगहर
  8. बखिरा झील
  9. अष्टभुजा शुक्ल

  1. डाक टिकट
  2. डाक टिकटों में महात्मा गाँधी
  3. भारतीय डाक टिकटों में बाल दिवस
  4. डाक सूचक संख्या
  5. भारतीय स्टेट बैंक
  6. पंजाब नैशनल बैंक
  7. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन

  1. बीमारी और फ़िल्म
  2. प्रोजेरिया
  3. सीज़ोफ़्रेनिया
  4. अल्ज़ाइमर
  5. ऑटिज़्म
  6. पार्किंसन
  7. डेंगू
  8. प्लेग
  9. रेबीज़
  10. बवासीर
  11. पोलियो
  12. मिर्गी
  13. हिस्टीरिया
  14. कब्ज
  15. स्केबीज़
  16. सोरियासिस
  17. नींद में चलने की बीमारी
  18. डाउन सिन्‍ड्रोम
  19. हर्पिस जोस्टर

  1. वैष्णो देवी
  2. शक्तिपीठ
  3. अमरनाथ
  4. कैलाश मानसरोवर
  5. देवीपाटन मंदिर
  6. मारकण्डेय महादेव मंदिर
  7. पाताल भुवनेश्‍वर गुफ़ा
  8. जीण माता धाम
  9. बृहदेश्वर मन्दिर
  10. भोजेश्वर मंदिर
  11. पार्वती तुकेश्वर महादेव मंदिर
  12. बगलामुखी मंदिर
  13. स्वस्तिक
  14. 786
  15. शंख
  16. गंगाजल
  17. रामसेतु
  18. कुण्डलिनी
  19. पद्मनाभस्वामी मंदिर
  20. पंचगव्य
  21. अघोरी
  22. हिंदू विवाह में सात फेरे और सात वचन
  23. अंक 7

  1. विलोम शब्द
  2. पर्यायवाची शब्द
  3. कबीर के दोहे
  4. तुलसीदास के दोहे
  5. रहीम के दोहे
  6. भारतीय नाम
  7. मधुशाला
  8. एस एम एस
  9. ट्विटर

  1. माउंट एवरेस्ट
  2. गाडविन आस्टिन
  3. कावर झील
  4. डल झील
  5. रूपकुंड झील
  6. लोनार झील
  7. जवाहर सुरंग
  8. भूकंप
  9. हिममानव
  10. पुनर्जन्म
  11. स्वप्न
  12. सम्मोहन
  13. कोहिनूर हीरा
  14. जैकब हीरा
  15. ग्रेट मुग़ल हीरा
  16. फ़ॉर्मूला वन
  17. बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट
  18. गुलाल
  19. मिट्टी
  20. भारत में प्रथम
  21. आविष्कार और आविष्कारक
  22. भारत के सात आश्चर्य
  23. सूचना का अधिकार अधिनियम 2005
  24. चुनाव आचार संहिता
  25. जनगणना
  26. सांता क्लॉज
  27. क्रिसमस ट्री

  1. मैडम तुसाद संग्रहालय
  2. बुर्ज ख़लीफ़ा
  3. बरमूडा त्रिकोण
  4. ईस्टर द्वीप
  5. माया कैलेंडर

  1. महत्त्वपूर्ण दिवस
  2. गणतंत्र दिवस
  3. हिन्दी दिवस
  4. विश्व हिन्दी दिवस
  5. विश्व हास्य दिवस
  6. मातृ दिवस
  7. विश्व रक्तदान दिवस
  8. विश्व पर्यावरण दिवस
  9. विश्व स्वास्थ्य दिवस
  10. राष्ट्रीय विज्ञान दिवस
  11. विश्व रेडक्रॉस दिवस
  12. अप्रैल फूल दिवस
  13. विश्व जल दिवस
  14. विश्व धूम्रपान निषेध दिवस
  15. पाई दिवस
  16. विश्व कैंसर दिवस
  17. अन्तर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस
  18. अंतराष्ट्रीय विकलांग दिवस
  19. अंतरराष्ट्रीय मैत्री दिवस
  20. विश्व ओजोन दिवस

  1. परमवीर चक्र
  2. अशोक चक्र
  3. महावीर चक्र
  4. वीर चक्र
  5. कीर्ति चक्र
  6. शौर्य चक्र
  7. जीवन रक्षा पदक
  8. अर्जुन पुरस्कार
  9. ऑस्कर पुरस्कार

  1. पृथ्वी-2 मिसाइल
  2. ब्रह्मोस मिसाइल
  3. अग्नि-2 मिसाइल
  4. शौर्य मिसाइल

  1. अण्णा हज़ारे
  2. स्वामी रामदेव
  3. किरण बेदी
  4. मेधा पाटकर
  5. अरविंद केजरीवाल
  6. सत्य साईं बाबा
  7. राहुल गांधी
  8. दलाईलामा तेनजिन ग्यात्सो
  9. पंडित जसराज
  10. श्रीलाल शुक्ल
  11. श्रीनिवास अयंगर रामानुजन
  12. तिरुवल्लुवर
  13. स्टीफन हॉकिंग
  14. गैलिलियो गैलीली
  15. पंडित श्रद्धाराम शर्मा
  16. जय गुरुदेव
  17. प्रणब मुखर्जी
  18. कैप्टन लक्ष्मी सहगल
  19. नील आर्मस्ट्रांग
  20. सुनीता विलियम्स
  21. के एस सुदर्शन
  22. मोहन भागवत

  1. दिलीप कुमार
  2. धर्मेन्द्र
  3. संजीव कुमार
  4. राज कुमार
  5. शशि कपूर
  6. देव आनंद
  7. दारा सिंह
  8. शत्रुघ्न सिन्हा
  9. कैटरीना कैफ़
  10. ऐश्वर्या राय
  11. भूपेन हज़ारिका
  12. सत्यदेव दुबे
  13. लक्ष्मीकांत
  14. बी आर इशारा
  15. साधना (अभिनेत्री)
  16. ए. के. हंगल
  17. रामानन्द सागर

  1. सिंह
  2. बंदर
  3. कंगारू

  1. सौरमण्डल
  2. सूर्य (तारा)
  3. बुध ग्रह
  4. शुक्र ग्रह
  5. मंगल ग्रह
  6. यम ग्रह
  7. सूर्य ग्रहण
  8. चन्द्र ग्रहण
  9. क्षुद्र ग्रह
  10. धूमकेतु
  11. हैली धूमकेतु
  12. ल्यूलिन धूमकेतु
  13. एपोफिस क्षुद्र ग्रह
  14. सेरेस
  15. हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन

  1. अनमोल वचन 1
  2. अनमोल वचन 2
  3. अनमोल वचन 3
  4. अनमोल वचन 4
  5. अनमोल वचन 5
  6. अनमोल वचन 6
  7. अनमोल वचन 7
  8. अनमोल वचन 8
  9. अनमोल वचन 9
  10. अनमोल वचन 10
  11. अनमोल वचन 11
  12. अनमोल वचन 12
  13. अनमोल वचन 13
  14. अनमोल वचन 14
  15. अनमोल वचन 15
  16. महात्मा गाँधी के अनमोल वचन
  17. स्वामी विवेकानन्द के अनमोल वचन

  1. पीपल
  2. नीम
  3. बरगद
  4. अशोक वृक्ष
  5. चन्दन
  6. बाँस
  7. तुलसी
  8. पुदीना
  9. शीशम

  1. साबूदाना
  2. मखाना
  3. हल्दी
  4. केसर
  5. खजूर
  6. लहसुन
  7. आंवला
  8. लौंग
  9. शहद
  10. घी
  11. अदरक
  12. सोयाबीन
  13. बादाम
  14. नाशपाती
  15. केला
  16. करौंदा
  17. इमली
  18. दाल

  1. इंडियन प्रीमियर लीग
  2. इंडियन प्रीमियर लीग 2008
  3. इंडियन प्रीमियर लीग 2009
  4. इंडियन प्रीमियर लीग 2010
  5. इंडियन प्रीमियर लीग 2011
  6. मुंबई इंडियंस
  7. चेन्नई सुपर किंग्स
  8. कोलकाता नाईटराइडर्स
  9. डेक्कन चार्जर्स
  10. राजस्थान रॉयल्स
  11. रॉयल चैलेंजर्स बैंगलौर
  12. किंग्स इलेवन पंजाब
  13. दिल्ली डेयरडेविल्स
  14. सहारा पुणे वॉरियर्स
  15. कोच्चि टस्कर्स केरल
  16. सचिन तेंदुलकर
  17. कपिल देव
  18. सुनील गावस्कर
  19. रवि शास्त्री
  20. मंसूर अली खान पटौदी
  21. वीरेन्द्र सहवाग
  22. महेन्द्र सिंह धोनी
  23. ओलंपिक खेल

  1. दे दी हमें आज़ादी
  2. रघुपति राघव राजा राम
  3. वैष्णव जन तो तेने कहिये

  1. मेरे देश की धरती
  2. हर करम अपना करेंगे
  3. ऐ मेरे प्यारे वतन
  4. इन्साफ की डगर पर
  5. हम लाये हैं तूफ़ान से
  6. जिस देश में गंगा बहती है
  7. यह देश है वीर जवानों का
  8. है प्रीत जहाँ की रीत सदा
  9. नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी मैं क्या है
  10. मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये
  11. भारत हमको जान से प्यारा है
  12. अपनी आजादी को हम
  13. ऐ वतन ऐ वतन
  14. मेरा रंग दे बसंती चोला
  15. सरफरोशी की तमन्ना
  16. नन्हा मुन्ना राही हूँ
  17. जहाँ डाल डाल पर
  18. संदेशे आते है
  19. बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो
  20. छोड़ो कल की बातें
  21. कदम कदम बढाये जा
  22. विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
  23. आओ बच्चों तुम्हे दिखाएं
  24. चन्दन है इस देश की माटी
  25. नफ़रत की लाठी तोड़ो
  26. थोड़ी सी धूल मेरी
  27. कर चले हम फ़िदा
  28. जय जननी ने भारत माँ
  29. वतन पे जो फ़िदा होगा
  30. ए मेरे वतन के लोगो
  31. पासे सभी उलट गए

  1. दुर्गा माता के 108 नाम
  2. शिव जी के 108 नाम
  3. श्री हनुमत्सहस्त्र नामावली
  4. श्री गणेश सहस्त्रनामावली
  5. श्री राम सहस्रनामस्तोत्र
  6. श्री लक्ष्म्यष्टोत्तरशत सहस्रनामावली
  7. आरती पूजन
  8. गायत्री माता की आरती
  9. सोमवार व्रत की आरती
  10. मंगलवार व्रत की आरती
  11. बुधवार व्रत की आरती
  12. वृहस्पतिवार व्रत की आरती
  13. शुक्रवार व्रत की आरती
  14. शनिवार व्रत की आरती
  15. रविवार व्रत की आरती
  16. रामायण जी की आरती
  17. गीता जी की आरती
  18. श्रीमद् भागवत पुराण की आरती
  19. वैष्णो माता की आरती
  20. दुर्गा जी की आरती
  21. शारदा माता की आरती
  22. शीतला माता की आरती
  23. काली माता की आरती
  24. संतोषी माता की आरती
  25. सरस्वती माता की आरती
  26. लक्ष्मी रमणा जी की आरती
  27. रानी सती जी की आरती
  28. गंगा माता की आरती
  29. यमुना माता की आरती
  30. तुलसी माता की आरती
  31. पार्वती माता की आरती
  32. अन्नपूर्णा देवी की आरती
  33. नैना देवी की आरती
  34. शाकम्भरी देवी की आरती
  35. विन्ध्येश्वरी माता की आरती
  36. चिन्तपूर्णी देवी की आरती
  37. नवग्रह आरती
  38. श्यामबाबा जी की आरती
  39. गणेश जी की आरती
  40. कृष्ण जी की आरती
  41. युगलकिशोर जी की आरती
  42. केदार नाथ जी की आरती
  43. बद्री नाथ जी की आरती
  44. रामचंद्र जी की आरती
  45. साईबाबा जी की आरती
  46. सूर्यदेव जी की आरती
  47. शनिदेव जी की आरती
  48. वृहस्पतिदेव जी की आरती
  49. भैंरव जी की आरती
  50. सरस्वती प्रार्थना
  51. राम स्तुति
  52. गणेश स्तुति
  53. नवदुर्गा रक्षामंत्र
  54. संकटमोचन हनुमानाष्टक
  55. सरस्वती चालीसा
  56. शिव चालीसा
  57. शनि चालीसा
  58. विन्ध्येश्‍वरी चालीसा
  59. गायत्री चालीसा
  60. कृष्ण चालीसा
  61. साईं चालीसा
  62. श्याम चालीसा
  63. भैरव चालीसा
  64. शीतला चालीसा
  65. संतोषी चालीसा
  66. गंगा चालीसा

  1. कर्णवेध संस्कार
  2. नामकरण संस्कार
  3. विवाह संस्कार
  4. गर्भाधान संस्कार
  5. चूड़ाकरण संस्कार
  6. अन्नप्राशन संस्कार
  7. जातकर्म संस्कार
  8. सीमन्तोन्नयन संस्कार
  9. पुंसवन संस्कार
  10. निष्क्रमण संस्कार
  11. समावर्तन संस्कार
  12. वानप्रस्थ संस्कार
  13. पितृमेध या अन्त्यकर्म संस्कार
  14. श्राद्ध संस्कार
  15. विद्यारंभ संस्कार

  1. पंचतंत्र
  2. अक्लमंद हंस
  3. आपस की फूट
  4. एक और एक ग्यारह
  5. एकता का बल
  6. कौए और उल्लू
  7. खरगोश की चतुराई
  8. गजराज व मूषकराज
  9. गधा रहा गधा ही
  10. गोलू-मोलू और भालू
  11. घंटीधारी ऊंट
  12. चापलूस मंडली
  13. झगडालू मेढक
  14. झूठी शान
  15. ढोंगी सियार
  16. ढोल की पोल
  17. तीन मछलियां
  18. दुश्मन का स्वार्थ
  19. दुष्ट सर्प
  20. नकल करना बुरा है
  21. बंदर का कलेजा
  22. बगुला भगत
  23. बडे नाम का चमत्कार
  24. बहरुपिया गधा
  25. बिल्ली का न्याय
  26. बुद्धिमान सियार
  27. मक्खीचूस गीदड
  28. मित्र की सलाह
  29. मुफ़्तखोर मेहमान
  30. मूर्ख गधा
  31. मूर्ख को सीख
  32. मूर्ख बातूनी कछुआ
  33. रंग में भंग
  34. रंगा सियार
  35. शत्रु की सलाह
  36. शरारती बंदर
  37. संगठन की शक्ति
  38. सच्चा शासक
  39. सच्चे मित्र
  40. सांड और गीदड़
  41. सिंह और सियार
  42. स्वजाति प्रेम

  1. हितोपदेश
  2. सुवर्णकंकणधारी बूढ़ा बाघ और मुसाफिर की कहानी
  3. कबुतर, काक, कछुआ, मृग और चूहे की कहानी
  4. मृग, काक और गीदड़ की कहानी
  5. भैरव नामक शिकारी, मृग, शूकर, साँप और गीदड़ की कहानी
  6. धूर्त गीदड़ और हाथी की कहानी
  7. एक बनिया, बैल, सिंह और गीदड़ों की कहानी
  8. धोबी, धोबन, गधा और कुत्ते की कहानी
  9. सिंह, चूहा और बिलाव की कहानी
  10. बंदर, घंटा और कराला नामक कुटनी की कहानी
  11. सिंह और बूढ़ शशक की कहानी
  12. कौए का जोड़ा और काले साँप की कहानी
  13. पक्षी और बंदरो की कहानी
  14. बाघंबर ओढ़ा हुआ धोबी का गधा और खेतवाले की कहानी
  15. हाथियों का झुंड और बूढ़े शशक की कहानी
  16. हंस, कौआ और एक मुसाफिर की कहानी
  17. नील से रंगे हुए एक गीदड़ की कहानी
  18. राजकुमार और उसके पुत्र के बलिदान की कहानी
  19. एक क्षत्रिय, नाई और भिखारी की कहानी
  20. सन्न्यासी और एक चूहे की कहानी
  21. बूढ़े बगुले, केंकड़े और मछलियों की कहानी
  22. सुन्द, उपसुन्द नामक दो दैत्यों की कहानी
  23. एक ब्राह्मण, बकरा और तीन धुता की कहानी
  24. माधव ब्राह्मण, उसका बालक, नेवला और साँप की कहानी

  1. चाणक्य नीति
  2. चाणक्यनीति - अध्याय 1
  3. चाणक्यनीति - अध्याय 2
  4. चाणक्यनीति - अध्याय 3
  5. चाणक्यनीति - अध्याय 4
  6. चाणक्यनीति - अध्याय 5
  7. चाणक्यनीति - अध्याय 6
  8. चाणक्यनीति - अध्याय 7
  9. चाणक्यनीति - अध्याय 8
  10. चाणक्यनीति - अध्याय 9
  11. चाणक्यनीति - अध्याय 10
  12. चाणक्यनीति - अध्याय 11
  13. चाणक्यनीति - अध्याय 12
  14. चाणक्यनीति - अध्याय 13
  15. चाणक्यनीति - अध्याय 14
  16. चाणक्यनीति - अध्याय 15
यह सदस्य भारतीय है।
मेरा परिचय
डा॰ मनीष कुमार वैश्य
डा॰ मनीष कुमार वैश्य
नाम -->
डा॰ मनीष कुमार वैश्य

जन्मदिन --> 8 जुलाई
जन्मस्थान --> बस्ती ज़िला
ई.मेल --> drmkvaish26@yahoo.com
फ़ोन --> 09451908700
सदस्य --> भारतकोश परिवार

प्रशासक आदित्य चौधरी प्रशासक . वार्ता 18:55, 4 फ़रवरी 2011 (IST)

‍‍‍डाक टिकटों में महात्मा गाँधी लेख के लिए मैं
डा॰ मनीष कुमार वैश्य को सम्मानित कर रहा हूँ।
प्रशासक आदित्य चौधरी प्रशासक . वार्ता 18:55, 4 फ़रवरी 2011 (IST)

मेरा पसंदीदा चित्र संग्रह
बस्ती ज़िला
मेरा भारत
मेरा भारत

BASTI
उत्तर प्रदेश
भारत
भारत

UTTAR PRADESH
भारत
मेरा भारत
मेरा भारत

INDIA
महात्मा गाँधी
मेरा भारत
मेरा भारत

MAHATMA GANDHI
विश्व
विश्व
विश्व

WORLD
डा॰ मनीष कुमार वैश्य
मेरा भारत
मेरा भारत

8 जुलाई
डा॰ मनीष कुमार वैश्य
मेरा भारत
मेरा भारत

8 जुलाई
डा॰ मनीष कुमार वैश्य
मेरा भारत
मेरा भारत

8 जुलाई
डा॰ मनीष कुमार वैश्य
मेरा भारत
मेरा भारत

8 जुलाई
डा॰ मनीष कुमार वैश्य
मेरा भारत
मेरा भारत

8 जुलाई
डा॰ मनीष कुमार वैश्य
मेरा भारत
मेरा भारत

8 जुलाई
ताज महल, आगरा
मेरा भारत
मेरा भारत

TAJ MAHAL, AGRA


शोध क्षेत्र
भारतवर्ष में कॉवर के त्योहार का बहुत ज़्यादा महत्व है। इस तौहार में आमलोग भगवन शिव की भक्ति में डुबकर कॉवर उठाते है। इन कॉवर उठाने वाले शिव भक्तो को कॉवरिया कहते है। यह त्योहार हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार श्रावण (सावन) के महीने में पड़ता है। कॉवर के इस त्योहार में शिव भक्त एक निश्चित स्थान से गेरुआ वस्त्र धारण कर कन्धे पर कॉवर लेकर और कॉवर में गंगाजल रखकर उठाते है तथा कई किलोमीटर की नंगे पैर पैदल यात्रा करके एक निश्चित स्थान के शिव मंदिर में आकर भगवन शिव और माता पर्वती पर गंगाजल चढाते है। यह गंगाजल का अभिषेक श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन होता है। कॉवर का त्योहार भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है लेकिन विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, उत्तराँचल, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल के राज्यों में मनाया जाता है।

आषाढ़ी पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर तीर्थनगरी में गंगा स्नान करने व गुरु पूजन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी, दिल्ली के कोने-कोने से आज पूर्णिमा स्नान के साथ ही कस्बे में एक माह तक चलने वाला कॉवर मेला प्रारम्भ हो जाएगा।

मकर संकंराति के अवसर पर बरमान से बांदकपुर भगवान भोलेशंकर के चरणों में जल चढ़ाने के लिए जा रहे कावडिय़ों का गुरुवार को तालसेमरा में संतश्री 108 सीताराम महराज बादकपुर जाकर भगवान भोलेशंकर के चरणों में अर्पित करते हैं। कॉवरियों द्वारा यह सारी यात्रा पैदल ही की जाती है। स्वागत करने वालों में लक्ष्मीनारायण जारोलिया, पप्पू जारोलिया, हरदास पटेल, अशोक पटेल आदि शामिल हैं।

बेवर: महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर काबड़ियों ने फर्रुखाबाद से जल भरकर विभिन्न शिवालयों में चढ़ाकर मन्नत मांगी तो कुछ काबड़ियों ने भोलेनाथ से पुन: जल लेकर आने का वादा किया। श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन भोले बाबा के भक्तों ने घटिया घाट, श्रंगीरामपुर से जल भरकर पूरे मनोयोग के साथ पैदल चलकर कॉवर धारण कर मंछना, मैनपुरी हजारी मंदिर सरसईनावर में शिवालयों पर जल चढ़ाया। कॉबड़ियों की टोली, भोले तेरी बम बम बम भोले के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। कॉबरधारी पुनीत दुबे, रानू शाक्य, पुष्पेन्द्र राठौर, शोभाराम, मुन्ना सिंह, मूलचन्द्र ने बताया कि कॉवर धारण करना कठिन व्रत है। जिसमें बहुत से नियमों का पालन करना अनिवार्य है। भक्त जन होते हैं। एक तो ऐसे जिनकी मन्नत भोले बाबा पूरी कर चुके होते है तथा दूसरे जल चढ़ाकर मन्नत मांगकर पुन: आने का वादा करते है। जल भरकर दूध वाले वृक्षों के नीचे से चलना सर्वथा मना है। भोले नाथ बड़े दयालू है। जो भी शिवलिंग पर पूजा अर्चन कर जल चढ़ता है भोले नाथ उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। हम लोग लगभग 75 किमी पैदल चलकर जल चढ़ाएंगे।

सर्वविदित है कि श्रावण के महीने में कॉवर चढ़ाना बेहद पुनीत माना जाता है। सच्ची भक्ति भावना से जो भी भोले बाबा के नाम की कॉवर चढ़ाता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

रांची, तैयार हो जाइए, बाबा भोले नाथ की पूजा में लीन होने के लिए। भगवान शिव का प्रसन्न करने के लिए। उनका जलाभिषेक करने का महीना आ गया है। भगवान शंकर को खुश करने का विशेष महीना श्रावण ( सावन ) आषढ खत्म होते ही शनिवार कृष्ण पक्ष 16 जुलाई से शुरू हो जायेगा। सावन की पहली सोमवारी 18 जुलाई को है। अगले सप्ताह से शुरू होने वाले सावन को लेकर शिवालयों और अन्य मंदिरों में विशेष तैयारियां की जा रही है। देवघर स्थित प्रसिध्द श्रावणी मेले की तैयारियों को भी अंतिम रुप दिया जा रहा है। इधर, राजधानी रांची स्थित पहाड़ी मंदिर में भी सावन महीने को लेकर विशेष तैयारियां की गयी है। मंदिर को आकर्षक तरीके से संजाने-संवारने का काम चल रहा है। खूंटी स्थित अमरेश्वरधाम में भी तैयारियों को अंतिम रुप दिया जा रहा है। इस सावन में चार सोमवारी अगस्त को चौथी सोमवारी पडेगी। धार्मिक मान्यता है कि सावन की सोमवारी बाबा भोलेनाथ को जल चढाने से बाबा की असीम कृपा भक्तों को मिलती है। श्रध्दालु भक्त बाबा को जल चढाने के लिए कॉवर लेकर मिलो पैदल भी चलते हैं। सबसे अधिक भक्तों की भीड बाबा की नगरी देवघर पहुँचती है। वहीं कई श्रध्दालु भक्त वाराणसी और तारकेश्वर (पश्चिम बंगाल) आदि सावन सात्विक होने का महीना सावन सात्विक हो कर बाबा की आराधना की विशेष महत्व है। मत्स्यपुराण के मुताबिक सावन में मछली को अंडा होता है यानि एक नये प्राणी का आगमन । इसी वजह से सावन में मछली खाने से लोग परहेज करते हैं। वहीं सावन माह में लहसून-प्याज को भी त्याग करते हैं। संजने लगी हैं कांवर की दुकानें सजने लगी हैं कॉवर की दुकानें, गेरुवा वस्त्र की सिलाई और नये स्टोक की बिक्री के लिए तैयार पूरे ज़िलों एवं ग्रामीण क्षेत्रों तक बाबा भोले की नगरी देवघर जाने की तैयारी के लिए श्रध्दालु भक्त कॉवर की ख़रीदारी करते हैं ऐसे में नये स्टोक आ चुके हैं। इस सप्ताह बिक्री परवान पर होगी वहीं गेरुवा वस्त्र की नये स्टोक भी दुकानों में पहुँच चुके है। लोग वस्त्रों के अलावा झोले टॉर्च आदि की ख़रीदारी में लग गये हैं।

संस्कृत सुभाषित एवं सूक्तियाँ हिन्दी में अर्थ सहित----

(1) न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः । स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥ (न राज्य था और ना राजा था, न दण्ड था और न दण्ड देने वाला। स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी॥) (2) रत्नं रत्नेन संगच्छते । (रत्न, रत्न के साथ जाता है) (3) गुणः खलु अनुरागस्य कारणं , न बलात्कारः । (केवल गुण ही प्रेम होने का कारण है, बल प्रयोग नहीं) (4) निर्धनता प्रकारमपरं षष्टं महापातकम् । (गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है।) (5) अपेयेषु तडागेषु बहुतरं उदकं भवति । (जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता, उसमें बहुत जल भरा होता है।) (6) अङ्गुलिप्रवेशात्‌ बाहुप्रवेश: | (अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है।) (7) अति तृष्णा विनाशाय | (अधिक लालच नाश कराती है।) (8) अति सर्वत्र वर्जयेत् । (अति (को करने) से सब जगह बचना चाहिये।) (9) अजा सिंहप्रसादेन वने चरति निर्भयम्‌। (शेर की कृपा से बकरी जंगल मे बिना भय के चरती है।) (10) अतिभक्ति चोरलक्षणम्‌। (अति-भक्ति चोर का लक्षण है।) (11) अल्पविद्या भयङ्करी। (अल्पविद्या भयंकर होती है।) (12) कुपुत्रेण कुलं नष्टम्‌। ( कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है।) (13) ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:। (ज्ञानहीन पशु के समान हैं।) (14) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्दभी ह्यप्सरा भवेत्‌। (सोलह वर्ष की होने पर गदही भी अप्सरा बन जाती है।) (15) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्‌। (सोलह वर्ष की अवस्था को प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरण करना चाहिये।) (16) मधुरेण समापयेत्‌। (मिठास के साथ (मीठे वचन या मीठा स्वाद) समाप्त करना चाहिये।) (17) मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना। (हर व्यक्ति अलग तरह से सोचता है।) (18) शठे शाठ्यं समाचरेत् । (दुष्ट के साथ दुष्टता का वर्ताव करना चाहिये।) (19) सत्यं शिवं सुन्दरम्‌। (सत्य, कल्याणकारी और सुन्दर। (किसी रचना/कृति या विचार को परखने की कसौटी)) (20) सा विद्या या विमुक्तये। (विद्या वह है जो बन्धन-मुक्त करती है।) (21) त्रियाचरित्रं पुरुषस्य भग्यं दैवो न जानाति कुतो नरम् । (स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता, मनुष्य कहाँ लगता है।) (22) कामासक्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है। - नीतिवाक्यामृत-3।12


  • सबकी गति है एक सी अंत समय पर होय, जो आये हैं जायेंगे राजा रंक फ़कीर।

जनम होत नंगे भये, चौपायों की चाल, न वाणी न वाक्‍य थे पशुवत पाये शरीर। धीरे धीरे बदल गये चौपायों से बन इंसान। वाक्‍य और वाणी मिली वस्‍त्र पहन कर हुये बने महान। जाति बनी और ज्ञान बढ़ा तो बॉंट दिया फिर इंसान। अंत समय नंगे फिर भये, गये सब वेद शास्‍त्र और ज्ञान।।

  • अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं।
  • कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है।
  • हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है।
  • बहुमत की आवाज न्याय का द्योतक नहीं है।
  • हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हो, परन्तु दुनिया हमे हमारे कर्मो के द्वारा पहचानती है|
  • यदि आप मरने का डर है तो इसका यही अर्थ है की आप जीवन के महत्व को ही नहीं समझते|
  • अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते है उतनी ही नम्रता आती है|
  • मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है।
  • अपने शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता।
  • मुस्कान प्रेम की भाषा है।
  • सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है।
  • अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता।
  • अल्प ज्ञान खतरनाक होता है।
  • कर्म सरल है, विचार कठिन।
  • उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन।
  • धन अपना पराया नहीं देखता।
  • पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित। लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं।
  • संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति।
  • हजारों मष्तिषकों में बुद्धिपूर्ण विचार आते रहे हैं। लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें।
  • उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है। परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता।


  • ऊँच अटारी मधुर वतास। कहैं घाघ घर ही कैलाश। - घाघ भड्डरी (अकबर के समकालीन, कानपुर ज़िले के निवासी)
  • तुलसी इस संसार मे, सबसे मिलिये धाय। ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाँय॥
  • प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर लाए जा सकते हैं। - ईसा मसीह
  • जो हमारा हितैषी हो, दुख-सुख में बराबर साथ निभाए, ग़लत राह पर जाने से रोके और अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है। - वेद
  • दुनिया में ही मिलते हैं हमे दोजखो-जन्नत। इंसान जरा सैर करे, घर से निकल कर॥ - दाग
  • स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है।
  • शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम। (यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है / सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते है)
  • मुक्त बाज़ार में स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी न्याय, मानवाधिकार, पेयजल तथा स्वच्छ हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है। यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो उन्हें ख़रीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने में करते हैं जो सर्वथा उनके अनुकूल होता है। - अरुंधती राय
  • कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए। - दर्पदलनम् 1।29
  • तुम प्लास्टिक सर्जरी करवा सकते हो, तुम सुन्दर चेहरा बनवा सकते हो, सुंदर आंखें सुंदर नाक, तुम अपनी चमड़ी बदलवा सकते हो, तुम अपना आकार बदलवा सकते हो। इससे तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलेगा। भीतर तुम लोभी बने रहोगे, वासना से भरे रहोगे, हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक सर्जन कुछ कर नहीं सकता। - ओशो
  • पशु पालक की भांति देवता लाठी ले कर रक्षा नहीं करते, वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं उसे बुद्धी से समायुक्त कर देते है। महाभारत -उद्योग पर्व
  • विषयों का चिंतन करने वाले मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है। आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से मूढ़ता और बुद्धि भ्रष्टता उत्पन्न होती है। बुद्धि के भ्रष्ट होने से स्मरण-शक्ति विलुप्त हो जाती है, यानी ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है। और जब बुद्धि तथा स्मृति का विनाश होता है, तो सब कुछ नष्ट हो जाता है। - गीता (अध्याय 2/62, 63)
  • एक साधै सब सधे, सब साधे सब जाये, रहीमन, मुलही सिंचीबो, फुले फले अगाय । -रहीम
  • जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंग, चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग । -रहीम
  • रहीमन देखि बडेन को, लघु ना दिजिए डारी, जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारी । -रहीम
  • जो समय को नष्‍ट करता है, समय भी उसे नष्‍ट कर देता है, समय का हनन करने वाले व्‍यक्ति का चित्‍त सदा उद्विग्‍न रहता है और वह असहाय तथा भ्रमित होकर यूं ही भटकता रहता है, प्रति पल का उपयोग करने वाले कभी भी पराजित नहीं हो सकते, समय का हर क्षण का उपयोग मनुष्‍य को विलक्षण और अदभुत बना देता है।
  • जैसे का साथ तैसा, वह भी ब्‍याज सहित व्‍यवहार करना ही सर्वोत्‍तम नीति है, शठे शाठयम और उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्‍तये के सूत्र को अमल में लाना ही गुणकारी उपाय है।
  • गुड़, घी से सींचा गयो नीम ना मीठा होय। लोहे से लोहा कटे, जानि परे सब कोय।। यानि शठ जाने शठ ही की बानीं, दुष्‍ट व्‍यक्ति को लाखों यत्‍न के बाद भी नहीं सुधारा जा सकता, उसे तो दुष्‍टता से ही काबू किया जा सकता है।
  • खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग। अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना तथा घोड़ा या जिस वाहन पर सवारी करनी हो उसकी जाँच और तैयारी मनुष्‍य को स्‍वयं ही खुद करनी चाहिये, भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्‍य का नुक़सान तय शुदा है।
  • जो किसी से कुछ ले कर भूल जाते हैं, अपने ऊपर किये उपकार को मानते नहीं, एहसान को भुला देते हैं उन्हें कृतघ्‍नी कहा जाता है और जो सदा इसे याद रख कर प्रति उपकार करने और अहसान चुकाने का प्रयास करते हैं, उन्‍हें कृतज्ञ कहा जाता है।
  • दूसरों को ख़ुशी देना सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है।
;टैगोर व मदर टेरेसा की जयंती पर विशेष डाक टिकट व ट्रेन
  • डाक विभाग, कोलकाता नोबल पुरस्कार से सम्मानित विश्व कवि कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर की 150 वीं जयंती तथा मिशनरीज आफ चैरिटी की संस्थापक मदर टेरेसा की 100वीं जन्म शताब्दी पर डाक टिकट जारी करेगा। संयोग से वर्ष 2010 में टैगोर की 150वी और मदर टेरेसा की 100वीं जयंती है। कोलकाता जीपीओ के निदेशक अनिल कुमार ने बताया कि कविगुरु ने एक नाटक डाक घर लिखा था तथा बचपन में वह पोस्टऑफिस में ही काम करना चाहते थे। कविगुरु और मदर पर डाक टिकट के अलावा डायरी, ग्रीटिंग कार्ड और कैलेंडर भी इस वर्ष जारी किये जायेंगे। श्री कुमार ने बताया कि इस बारे में शोध कार्य किया जा रहा है कि मदर टेरेसा के मिशनरोज ऑफ चैरिटी के जरिए गरीबों की सेवा तथा उनके जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यो को ‘बेहतर तरीके’ से कैसे व्यक्त किया जा सके।
  • इसके अलावा इस साल टैगोर तथा मदर पर डाक टिकट, डायरियां, ग्रीटिंग कार्ड और कलेंडर जारी किए जाएंगे। कॉफी के मग पर दोनों महान विभूतियां के दुर्लभ चित्र और संदेश लिखकर उन्हें बेचा जाएगा। ये सभी वस्तुएं फिलाटेलिक ब्यूरो में उपलब्ध रहेंगे, जिन्हें कलेक्टर्स (संग्रहकर्ता) को पार्सल या वीपीपी से भेजा जायेगा। डाक विभाग को आशा है कि इन उत्पादों की कोलकाता में काफ़ी कद्र होगी, क्योंकि देश भर में सर्वाधिक 52 हज़ार स्टैंप कलेक्टर यहां हैं। उन्होंने बताया कि यह टिकट संग्रहण ब्यूरो में उपलब्ध होगा तथा मांग पर ज़िलाधिकारी को भेजा जाएगा।
  • श्री कुमार ने बताया कि अभिनेता उत्तम कुमार और जादूगर पीसी सरकार पर आधारित उत्पादों की बिक्री भी ख़ासी हुई थी। नदिया ज़िले के कृष्णनगर पोस्ट ऑफिस से भगवान कृष्ण पर आधारित 10 हज़ार कैलेंडर बेचे गये थे। उन्होंने बताया कि वह लोगों को डाक टिकट के क़रीब लाना चाहते हैं, क्योंकि इसके ज़रिये देश के इतिहास, संस्कृति, जीवन और विकास का पता चलता है।
  • इधर रेलवे की ओर से घोषणा की गयी है कि मदर टेरेसा के नाम पर मदर एक्सप्रेस की शुरूआत की जायेगी। गुरुवार को रेल मंत्री ममता बनर्जी इसकी शुरूआत सियालदह से करेंगी। यह ट्रेन देश भर के विभिन्न स्टेशनों पर अगले छह महीने तक जायेगी।
  • उदघाटन के मौके पर मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सुपीरियर जनरल सिस्टर प्रेमा, सिस्टर निर्मला, सिस्टर ऐंसी, सिस्टर जोसफ, सिस्टर गेरार्ड, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री दिनेश त्रिवेदी, केंद्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री मुकुल राय, केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री सुलतान अहमद, सुदीप बनर्जी, सोमेन मित्रा, शोभन चटर्जी, शिखा मित्रा, शुभाप्रसन्ना, सांवली मित्रा, डेरेक ओ ब्रायन व अन्य मौजूद रहेंगे।
विभिन्न क्षेत्रों भारत में प्रथम

6. फील्ड मार्शल - S.H.F.J. मानेकशा 9. वायसराय एक्जिक्यूटिव कौंसिल के प्रथम भारतीय सदस्य - एस. पी. सिन्हा 26. भारत में निर्मित प्रथम भारतीय फ़िल्म (silent film) - राजा हरिश्चन्द्र, 1913 में 27. भारत में निर्मित प्रथम भारतीय फ़िल्म (silent film) के निर्माण कर्ता - दादा साहेब फाल्के 28. प्रथम भारतीय रंगीन फ़िल्म - किशन कन्हैया (1937) 29. सिनेमास्कोप फ़िल्म - काग़ज़ के फूल (1959) 30. लाइफ टाइम अचिवमेंट के ऑस्कर पुरस्कार विजेता - सत्यजीत राय (1992) 31. बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन ऑस्कर विजेता - भानु अथैया (1982) 45. ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाली प्रथम भारोत्तोलक - कर्णम मल्लेश्वरी देवी (सिडनी, 2000) 46. शतरंज में प्रथम विश्व चैम्पियन भारतीय - विश्वनाथन आनंद 49. दलित वर्ग से प्रथम लोकसभा अध्यक्ष - G. M. C. बालयोगी

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F1
F2

कन्या द्वारा वर से लिए जाने वाले सात वचन इस प्रकार है।

विवाह के बाद कन्या वर के वाम अंग में बैठने से पूर्व उससे सात वचन लेती है।

1-तीर्थव्रतोद्यापनयज्ञ दानं मया सह त्वं यदि कान्तकुर्या:। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद वाक्यं प्रथमं कुमारी।।

कन्या कहती है, स्वामिन् तीर्थ व्रत, उद्यापन, यज्ञ, दान आदि सभी शुभ कार्य तुम मेरे साथ करो तो में तुम्हारे वाम अंग में आऊ।।

2-हव्यप्रदानैरमरान् पितृश्चं कव्यं प्रदानैर्यदि पूजयेथा:। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं द्वितीयकम्।।

यदि तुम हव्य देकर देवताओं को और कव्य देकर पितरों की पूजा करो तो मैं तुम्हारे वाम अंग मैं आऊ।

3-कुटुम्बरक्षाभरंणं यदि त्वं कुर्या: पशूनां परिपालनं च। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं तृतीयम्।।

यदि तुम मेरी तथा परिवार की रक्षा करो तथा पशुओं का पालन करो तो मै तुम्हारे वाम अंग मै आऊँ। यह तीसरी बात कन्या ने कही।

4-आयं व्ययं धान्यधनादिकानां पृष्टवा निवेशं प्रगृहं निदध्या:।। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं चतुर्थकम्।।

यदि तुम धन-धान्यादिकों का आय व्यय मेरी सम्मती से करो तो मै तुम्हारे वाग अंग में आऊँ। यह चौथा वचन है।

5-देवालयारामतडागकूपं वापी विदध्या:यदि पूजयेथा:। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं पंचमम्।।

यदि देवालय, बाग, कूप, तालाब, बावली बनवाकर पूजा करो तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आऊँ।

6-देशान्तरे वा स्वपुरान्तरे वा यदा विदध्या:क्रयविक्रये त्वम्। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं षष्ठम्।।

यदि तुम अपने नगर में या किसी विदेश में जाकर व्यापार या नौकरी करो तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आऊँ।

7-न सेवनीया परिकी यजाया त्वया भवेभाविनि कामनीश्च। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं सप्तम्।।

यदि तुम परायी स्त्री को स्पर्श न करो तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आऊँ। यह सातवां वचन है।


चलिये हम याद दिलवा देते हैं उन वचनों को।

वधू के द्वारा वर से लिये गये वचनः

प्रथम वचनः यदि यज्ञं कुर्यात्तस्मिन्मम सम्मतिं गृ्हणीयात !!

अर्थात् यज्ञादि शुभ कार्य मेरी सम्मति से ही करेंगे।

द्वितीय वचनः यदि दानं कुर्यात्तस्मिन्नपि मम सम्मति गृ्हणियात !!

दानादि मेरी सम्मति से ही करेंगे।

तृतीय वचनः अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात !!

अर्थात् युवा, प्रौढ़ और वृ्द्ध तीनों अवस्थाओं में मेरा पालन करेंगे।

चतुर्थ वचनः धनादिगोपने मम सम्मतिं गृ्हणीयात !!

अर्थात् गुप्त रूप से धनादि संचय मेरी सम्मति से ही करेंगे।

पंचम वचनः गवादि पशु क्रय-विक्रये मम सम्मतिं गृ्हणीयात !!

अर्थात् गाय, बैल, घोडा आदि पशुओं (वर्तमान में वाहनादि) के क्रय विक्रय में भी मेरी सम्मति लेंगे।

षष्ठम वचनः बसन्तादि षटऋतुषु मम पालनं कुर्यात !!

अर्थात् वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर इन छहों ऋतुओं में मेरा पालन करेंगे।

सप्तम वचनः सखीष्य मम हास्यं कटुवाक्यम न वदेत न कुर्यात! तद्दहं भवतां वामांगें आगच्छामि !!

अर्थात् मेरे साथ की सखी सहेलियों के सामने मेरी हँसीं न उडाएं और न ही कठोर कटु वचनों का प्रयोग करें।

आप उपरोक्त सातों वचनों का पालन करेंगे तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।

वर के द्वारा वधू से लिया गया वचनः

उद्याने मद्यपाने च पितागृ्हगमनेन च !! आज्ञा भंगो न कर्तव्यं वरवाक्यचतुष्टयकम !!

अर्थात निर्जन स्थान, उद्यान, वनादि में न जाए, दूसरे मद्य (शराब) पीने वाले मनुष्य के सामने न जाए, तीसरे यहाँ तक कि अपने पिता के घर भी मेरी आज्ञा के बिना न जाए, चौथे धर्म शास्त्रोचित कभी भी मेरी आज्ञा भंग न करे तो ही तुम मेरे वामांग में स्थान ग्रहण कर सकती हो।


शादी में सात फेरे क्यों लगाए जाते हैं? जिसमें पहला वचन होता है, पति-पत्नी को जीवन भर पर्याप्त और सम्मानित ढंग से भोजन मिलता रहे, दूसरा दोनों का जीवन शांतिपूर्ण और स्वस्थ ढंग से बीते, तीसरा दोनों अपने जीवन में आध्यात्मिक और धार्मिक दायित्वों को निभा सकें, चौथा फेरा इस वचन के साथ लिया जाता है कि दोनों सौहार्द्र और परस्पर प्रेम के साथ जीवन बितायें, पाँचवे फेरे का वचन होता है विश्व का कल्याण हो और संतान कि प्राप्ति हो, छठे में प्रार्थना की जाती है कि सभी ऋतुएं अपने अपने ढंग से समुचित धनधान्य उत्पन्न करके दुनिया भर को सुख दें क्योंकि सभी के सुख में दंपत्ति का भी भला होता है और सातवें फेरे में पति-पत्नी परस्पर विश्वास, एकता, मतैक्य और शांति के साथ जीवन बिता सकें। इन सात फेरों के साथ लिए वचनों में अपने और विश्व की शांति और सुख की प्रार्थना की जाती है।

वर के द्वारा दिए जाने वाले वचन ऐसे है जिनमें उसे गृहस्थी का सम्पूर्ण दायित्व सौपा जाता है ताकि दोनों की गृहस्थी सुख पूर्वक चले।

वर से वधु द्वारा लिए जाने वाले वचन इस प्रकार है। गृहस्थ जीवन में सुख-दु:ख की स्थितियां आती रहती हैं, लेकिन तुम हमेशा अपना स्वभाव मधुर रखोगे। मुझे बताये बिना कुआं - बावड़ी - तालाब का निर्माण, यज्ञ-महोत्सव का आयोजन और यात्रा नहीं करोगे।

मेरे व्रत, दान और धर्म कार्यों में रोक-टोक नहीं करोगे। मेहनत से जो कुछ भी अर्जित करोगे, मुझे सौंपोगे। मेरी राय के बिना कोई भी चल-अचल सम्पति का क्रय-विक्रय नहीं करोगे। घर की सभी कीमती चीजें, गहने, आभूषण मुझे रखने के लिए दोगे। माता-पिता के किसी आयोजन में मेरे मायके जाने पर आपत्ति नहीं लोगे।

वचन जो वर लेता है वधु से पहला – अगर तुम मेरी अर्द्धांगिनी बनना चाहती हो तो किसी पर पुरुष से नहीं मिलना, बिना बताए मायके नहीं जाना और किसी निर्जन स्थान पर नहीं जाना। दूसरा – रात में घर से नहीं निकलना और पानी भरने नहीं जाना। तीसरा – किसी भी पूजन, जप, तप में मेरे साथ रहना। चौथा – कभी कोई दान अकेले नहीं करना, उसमें मुझे सहभागी बनाना। पांचवां – किसी पर पुरुष के साथ नहीं रहना और कहीं भी अकेले नहीं जाना।

वचन जो वधु लेती है वर से छठवां – आप मुझे हर स्थान पर अपने साथ लेकर चलना, देश हो या विदेश। सातवां – किसी भी काम को करने से पहले मुझसे सलाह ज़रूर लेना।

और ये वचन दोनों के लिए आठवां – शादी के तुरंत बाद अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन ज़रूर कराएंगे।

ओ3म् (ॐ) नाम में हिन्दू, मुस्लिम या ईसाइ जैसी कोई बात नहीं है। यह सोचना कि ओ3म् किसी एक धर्म की निशानी है, ठीक बात नहीं, अपितु यह तो तब से चला आया है जब कोई अलग धर्म ही नहीं बना था। बल्कि ओ3म् तो किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है। यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति और आदर का प्रतीक है। उदाहरण के लिए अगर हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में इसको शामिल करते हैं तो ईसाई और यहूदी भी इसके जैसे ही एक शब्द आमेन का प्रयोग धार्मिक सहमति दिखाने के लिए करते हैं। मुस्लिम इसको आमीन कह कर याद करते हैं, बौद्ध इसे ओं मणिपद्मे हूं कह कर प्रयोग करते हैं। सिख मत भी इक ओंकार अर्थात एक ओ3म के गुण गाता है। अंग्रेज़ी का शब्द omni, जिसके अर्थ अनंत और कभी ख़त्म न होने वाले तत्त्वों पर लगाए जाते हैं (जैसे omnipresent, omnipotent) भी वास्तव में इस ओ3म् शब्द से ही बना है। इतने से यह सिद्ध है कि ओ3म् किसी मत, मज़हब या सम्प्रदाय से न होकर पूरी इंसानियत का है। ठीक उसी तरह जैसे कि हवा, पानी, सूर्य, ईश्वर, वेद आदि सब पूरी इंसानियत के लिए हैं न कि केवल किसी एक सम्प्रदाय के लिए।

यजुर्वेद [2/13, 40/15, 17] ऋग्वेद [1/3/7] आदि स्थानों पर तथा इसके अलावा गीता और उपनिषदों में ओ3म् का बहुत गुणगान हुआ है। मांडूक्य उपनिषद तो इसकी महिमा को ही समर्पित है।

ओ3म् का अर्थ

वैदिक साहित्य इस बात पर एकमत है कि ओ3म् ईश्वर का मुख्य नाम है। योग दर्शन [1/27, 28] में यह स्पष्ट है। यह ओ3म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है - अ, उ, म । प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है। जैसे अ से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है। उ से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है। म से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है। ये तो बहुत थोड़े से उदाहरण हैं जो ओ3म् के प्रत्येक अक्षर से समझे जा सकते हैं। वास्तव में अनंत ईश्वर के अनगिनत नाम केवल इस ओ3म् शब्द में ही आ सकते हैं, और किसी में नहीं।

वास्तव में हरेक ध्वनि हमारे मन में कुछ भाव उत्पन्न करती है। सृष्टि की शुरूआत में जब ईश्वर ने ऋषियों के हृदयों में वेद प्रकाशित किये तो हरेक शब्द से सम्बंधित उनके निश्चित अर्थ ऋषियों ने ध्यान अवस्था में प्राप्त किये। ऋषियों के अनुसार ओ3म् शब्द के तीन अक्षरों से भिन्न भिन्न अर्थ निकलते हैं, जिनमें से कुछ ऊपर दिए गए हैं।

ऊपर दिए गए शब्द-अर्थ सम्बन्ध का ज्ञान ही वास्तव में वेद मन्त्रों के अर्थ में सहायक होता है और इस ज्ञान के लिए मनुष्य को योगी अर्थात ईश्वर को जानने और अनुभव करने वाला होना चाहिए। परन्तु दुर्भाग्य से वेद पर अधिकतर उन लोगों ने कलम चलाई है जो योग तो दूर, यम नियमों की परिभाषा भी नहीं जानते थे। सब पश्चिमी वेद भाष्यकार इसी श्रेणी में आते हैं। तो अब प्रश्न यह है कि जब तक साक्षात ईश्वर का प्रत्यक्ष ना हो तब तक वेद कैसे समझें ? तो इसका उत्तर है कि ऋषियों के लेख और अपनी बुद्धि से सत्य असत्य का निर्णय करना ही सब बुद्धिमानों को अत्यंत उचित है। ऋषियों के ग्रन्थ जैसे उपनिषद्, दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ, निरुक्त, निघंटु, सत्यार्थ प्रकाश, भाष्य भूमिका इत्यादि की सहायता से वेद मन्त्रों पर विचार करके अपने सिद्धांत बनाने चाहियें और इसमें यह भी है कि पढने के साथ साथ यम नियमों का कड़ाई से पालन बहुत जरूरी है। वास्तव में वेदों का सच्चा स्वरुप तो समाधि अवस्था में ही स्पष्ट होता है, जो कि यम नियमों के अभ्यास से आती है।

व्याकरण मात्र पढने से वेदों के अर्थ कोई भी नहीं कर सकता। वेद समझने के लिए आत्मा की शुद्धता सबसे आवश्यक है। उदाहरण के लिए संस्कृत में गो शब्द का वास्तविक अर्थ है गतिमान। इससे इस शब्द के बहुत से अर्थ जैसे पृथ्वी, नक्षत्र आदि दिखने में आते हैं। परन्तु मूर्ख और हठी लोग हर स्थान पर इसका अर्थ गाय ही कहते हैं और मंत्र के वास्तविक अर्थ से दूर हो जाते हैं। वास्तव में किसी शब्द के वास्तविक अर्थ के लिए उसके मूल को जानना जरूरी है, और मूल बिना समाधि को जाना नहीं जा सकता। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि हम वेद का अभ्यास ही न करें। किन्तु अपने सर्व सामर्थ्य से कर्मों में शुद्धता से आत्मा में शुद्धता धारण करके वेद का अभ्यास करना सबका कर्त्तव्य है।

यह शब्द अर्थ सम्बन्ध योगाभ्यास से स्पष्ट होता जाता है। परन्तु कुछ उदाहरण तो प्रत्यक्ष ही हैं। जैसे म से ईश्वर के पालन आदि गुण प्रकाशित होते हैं। पालन आदि गुण मुख्य रूप से माता से ही पहचाने जाते हैं। अब विचारना चाहिए कि सब संस्कृतियों में माता के लिए क्या शब्द प्रयोग होते हैं। संस्कृत में माता, हिन्दी में माँ, उर्दू में अम्मी, अंग्रेज़ी में मदर, मम्मी, मॉम आदि, फ़ारसी में मादर, चीनी भाषा में माकुन इत्यादि, सो इतने से ही स्पष्ट हो जाता है कि पालन करने वाले मातृत्व गुण से म का और सभी संस्कृतियों से वेद का कितना अधिक सम्बन्ध है। एक छोटा बच्चा भी सबसे पहले इस म को ही सीखता है और इसी से अपने भाव व्यक्त करता है। इसी से पता चलता है कि ईश्वर की सृष्टि और उसकी विद्या वेद में कितना गहरा सम्बन्ध है।

यम नियम -- यम नियमों का अभ्यास इसका सबसे बड़ा साधन है, यम व नियम संक्षेप से नीचे दिए जाते हैं।

यम
  1. अहिंसा (किसी सज्जन और बेगुनाह को मन, वचन या कर्म से दुःख न देना)
  2. सत्य (जो मन में सोचा हो वही वाणी से बोलना और वही अपने कर्म में करना)
  3. अस्तेय (किसी की कोई चीज़ विना पूछे न लेना)
  4. ब्रह्मचर्य (अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना विशेषकर अपनी यौन इच्छाओं पर पूर्ण नियंत्रण)
  5. अपरिग्रह (सांसारिक वस्तु भोग व धन आदि में लिप्त न होना)
नियम
  1. शौच (मन, वाणी व शरीर की शुद्धता)
  2. संतोष (पूरे प्रयास करते हुए सदा प्रसन्न रहना, विपरीत परिस्थितियों से दुखी न होना)
  3. तप (सुख, दुःख, हानि, लाभ, सर्दी, गर्मी, भूख, प्यास, डर आदि की वजह से कभी भी धर्म को न छोड़ना)
  4. स्वाध्याय (अच्छे ज्ञान, विज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयास करना)
  5. ईश्वर प्रणिधान (अपने सब काम ऐसे करना जैसे कि ईश्वर सदा देख रहा है और फिर काम करके उसके फल की चिंता ईश्वर पर ही छोड़ देना)
  • ध्यान का नियम -- यम नियम तो आत्मा रुपी बर्तन की सफाई के लिए है ताकि उसमें ईश्वर अपने प्रेम का भोजन दे सके। वह भोजन सुबह शाम एकाग्र मन के साथ ईश्वर से माँगना चाहिए। ओ3म् का उच्चारण इसी भोजन मांगने की प्रक्रिया है, अब क्या करना चाहिए वह नीचे लिखते हैं।
  1. किसी जगह जहाँ शुद्ध हवा हो, वहां अच्छी जगह पर कमर सीधी कर के बैठ जाएँ, आँख बंद करके थोड़ी देर गहरे सांस धीरे धीरे लीजिये और छोड़िये जिससे शरीर में कोई तनाव न रहे।
  2. दिन में 4 बार ओ3म् का उच्चारण बहुत उपयोगी है, पहला सुबह सोकर उठते ही, दूसरा शौच व स्नान के बाद, तीसरा सूर्यास्त के समय शाम को और चौथा रात सोने से एकदम पहले। इसके अलावा जब कभी ख़ाली बैठे किसी की प्रतीक्षा या यात्रा कर रहे हों तो भी इसे कर सकते हैं।
  3. धीरे धीरे उच्चारण की लम्बाई बढ़ा सकते हैं, पर उतनी ही जितनी अपने सामर्थ्य में हो।
  4. कम से कम एक समय में 5 बार ज़रूर उच्चारण करें, मुंह से बोलने के बजाय मन में भी उच्चारण कर सकते हैं।
  5. अपने हर बार के उच्चारण में ईश्वर को पाने की इच्छा और उसके लिए प्रयास करने का वादा मन ही मन ईश्वर से करना चाहिए।
  6. हर बार उठने से पहले यह प्रतिज्ञा करनी कि अगली बार बैठूँगा तो इस बार से श्रेष्ठ चरित्र का व्यक्ति होकर बैठूँगा, अर्थात हर बार उठने के बाद अपने जीवन का हर काम अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा करते हुए करना, कभी ईश्वर को दी हुई प्रतिज्ञा नहीं तोड़ना।
परिवर्तन , संभावना , गति , क्रिया प्रतिक्रिया
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मुझे हिन्दुस्तानी, हिन्दू और हिन्दी भाषी होने का गर्व है |

_ डा॰ मनीष कुमार वैश्य _