"गुप्त राजवंश": अवतरणों में अंतर
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गुप्त वंश | '''गुप्त वंश''' 275 ई. के आसपास अस्तित्व में आया। इसकी स्थापना [[श्रीगुप्त]] ने की थी। लगभग 510 ई. तक यह वंश शासन में रहा। आरम्भ में इनका शासन केवल [[मगध]] पर था, पर बाद में गुप्त वंश के राजाओं ने संपूर्ण [[उत्तर भारत]] को अपने अधीन करके दक्षिण में कांजीवरम के राजा से भी अपनी अधीनता स्वीकार कराई। इस वंश में अनेक प्रतापी राजा हुए। [[कालिदास]] के संरक्षक सम्राट [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] (380-415 ई.) इसी वंश के थे। यही 'विक्रमादित्य' और 'शकारि' नाम से भी प्रसिद्ध हैं। नृसिंहगुप्त बालादित्य (463-473 ई.) को छोड़कर सभी गुप्तवंशी राजा वैदिक धर्मावलंबी थे। बालादित्य ने [[बौद्ध धर्म]] अपना लिया था। | ||
गुप्त राजवंशों का इतिहास साहित्यिक तथा पुरातात्विक दोनों प्रमाणों से प्राप्त होता है। गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन [[भारत]] के प्रमुख राजवंशों में से एक था। इसे [[भारत]] का 'स्वर्ण युग' माना जाता है। गुप्त काल [[भारत]] के प्राचीन राजकुलों में से एक था। [[चंद्रगुप्त मौर्य|मौर्य चंद्रगुप्त]] ने गिरनार के प्रदेश में शासक के रूप में जिस 'राष्ट्रीय' (प्रान्तीय शासक) की नियुक्ति की थी, उसका नाम 'वैश्य पुष्यगुप्त' था। [[शुंग काल]] के प्रसिद्ध 'बरहुत स्तम्भ लेख' में एक राजा 'विसदेव' का उल्लेख है, जो 'गाप्तिपुत्र' (गुप्त काल की स्त्री का पुत्र) था। अन्य अनेक शिलालेखों में भी 'गोप्तिपुत्र' व्यक्तियों का उल्लेख है, जो राज्य में विविध उच्च पदों पर नियुक्त थे। इसी गुप्त कुल के एक वीर पुरुष [[श्रीगुप्त]] ने उस वंश का प्रारम्भ किया, जिसने आगे चलकर भारत के बहुत बड़े भाग में [[मगध|मगध साम्राज्य]] का फिर से विस्तार किया। | गुप्त राजवंशों का इतिहास साहित्यिक तथा पुरातात्विक दोनों प्रमाणों से प्राप्त होता है। गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन [[भारत]] के प्रमुख राजवंशों में से एक था। इसे [[भारत]] का 'स्वर्ण युग' माना जाता है। गुप्त काल [[भारत]] के प्राचीन राजकुलों में से एक था। [[चंद्रगुप्त मौर्य|मौर्य चंद्रगुप्त]] ने गिरनार के प्रदेश में शासक के रूप में जिस 'राष्ट्रीय' (प्रान्तीय शासक) की नियुक्ति की थी, उसका नाम 'वैश्य पुष्यगुप्त' था। [[शुंग काल]] के प्रसिद्ध 'बरहुत स्तम्भ लेख' में एक राजा 'विसदेव' का उल्लेख है, जो 'गाप्तिपुत्र' (गुप्त काल की स्त्री का पुत्र) था। अन्य अनेक शिलालेखों में भी 'गोप्तिपुत्र' व्यक्तियों का उल्लेख है, जो राज्य में विविध उच्च पदों पर नियुक्त थे। इसी गुप्त कुल के एक वीर पुरुष [[श्रीगुप्त]] ने उस वंश का प्रारम्भ किया, जिसने आगे चलकर भारत के बहुत बड़े भाग में [[मगध|मगध साम्राज्य]] का फिर से विस्तार किया। | ||
साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में इस अवधि का योगदान आज भी सम्मानपूर्वक स्मरण किया जाता है। [[कालिदास]] इसी युग की देन हैं। [[अमरकोश]], [[रामायण]], [[महाभारत]], [[मनुस्मृति]] तथा अनेक [[पुराण|पुराणों]] का वर्तमान रूप इसी काल की उपलब्धि है। | साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में इस अवधि का योगदान आज भी सम्मानपूर्वक स्मरण किया जाता है। [[कालिदास]] इसी युग की देन हैं। [[अमरकोश]], [[रामायण]], [[महाभारत]], [[मनुस्मृति]] तथा अनेक [[पुराण|पुराणों]] का वर्तमान रूप इसी काल की उपलब्धि है। महान् गणितज्ञ [[आर्यभट]] तथा [[वराहमिहिर]] गुप्त काल के ही उज्ज्वल नक्षत्र हैं। दशमलव प्रणाली का आविष्कार तथा वास्तुकला, मूर्तिकला, [[चित्रकला]] ओर धातु-विज्ञान के क्षेत्र की उपलब्धियों पर आज भी लोगों का आनंद और आश्चर्य होता है। | ||
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08:35, 15 मार्च 2018 के समय का अवतरण
गुप्त वंश 275 ई. के आसपास अस्तित्व में आया। इसकी स्थापना श्रीगुप्त ने की थी। लगभग 510 ई. तक यह वंश शासन में रहा। आरम्भ में इनका शासन केवल मगध पर था, पर बाद में गुप्त वंश के राजाओं ने संपूर्ण उत्तर भारत को अपने अधीन करके दक्षिण में कांजीवरम के राजा से भी अपनी अधीनता स्वीकार कराई। इस वंश में अनेक प्रतापी राजा हुए। कालिदास के संरक्षक सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय (380-415 ई.) इसी वंश के थे। यही 'विक्रमादित्य' और 'शकारि' नाम से भी प्रसिद्ध हैं। नृसिंहगुप्त बालादित्य (463-473 ई.) को छोड़कर सभी गुप्तवंशी राजा वैदिक धर्मावलंबी थे। बालादित्य ने बौद्ध धर्म अपना लिया था।
गुप्त राजवंशों का इतिहास साहित्यिक तथा पुरातात्विक दोनों प्रमाणों से प्राप्त होता है। गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। इसे भारत का 'स्वर्ण युग' माना जाता है। गुप्त काल भारत के प्राचीन राजकुलों में से एक था। मौर्य चंद्रगुप्त ने गिरनार के प्रदेश में शासक के रूप में जिस 'राष्ट्रीय' (प्रान्तीय शासक) की नियुक्ति की थी, उसका नाम 'वैश्य पुष्यगुप्त' था। शुंग काल के प्रसिद्ध 'बरहुत स्तम्भ लेख' में एक राजा 'विसदेव' का उल्लेख है, जो 'गाप्तिपुत्र' (गुप्त काल की स्त्री का पुत्र) था। अन्य अनेक शिलालेखों में भी 'गोप्तिपुत्र' व्यक्तियों का उल्लेख है, जो राज्य में विविध उच्च पदों पर नियुक्त थे। इसी गुप्त कुल के एक वीर पुरुष श्रीगुप्त ने उस वंश का प्रारम्भ किया, जिसने आगे चलकर भारत के बहुत बड़े भाग में मगध साम्राज्य का फिर से विस्तार किया।
साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में इस अवधि का योगदान आज भी सम्मानपूर्वक स्मरण किया जाता है। कालिदास इसी युग की देन हैं। अमरकोश, रामायण, महाभारत, मनुस्मृति तथा अनेक पुराणों का वर्तमान रूप इसी काल की उपलब्धि है। महान् गणितज्ञ आर्यभट तथा वराहमिहिर गुप्त काल के ही उज्ज्वल नक्षत्र हैं। दशमलव प्रणाली का आविष्कार तथा वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रकला ओर धातु-विज्ञान के क्षेत्र की उपलब्धियों पर आज भी लोगों का आनंद और आश्चर्य होता है।
इस राजवंश में जिन शासकों ने शासन किया उनके नाम इस प्रकार है:-
- श्रीगुप्त (240-280 ई.),
- घटोत्कच (280-319 ई.),
- चंद्रगुप्त प्रथम (319-335 ई.)
- समुद्रगुप्त (335-375 ई.)
- रामगुप्त (375 ई.)
- चंद्रगुप्त द्वितीय (375-414 ई.)
- कुमारगुप्त प्रथम महेन्द्रादित्य (415-454 ई.)
- स्कन्दगुप्त (455-467 ई.)
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