"डाकिनी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
धार्मिक मान्यतानुसार '''डाकिनी''' को छिन्नमस्तिका देवी का रक्तपान करते हुए बताया गया है। [[बौद्ध धर्म]] में '''डाकिनी''' को [[वज्रयोगिनी]] कहा गया है।<br />
;शब्दिक अर्थ
{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[वज्रयोगिनी]]
श्मशान आदि की देवी, एक पिशाचिनी या देवी जो [[काली]] के गले में समझी जाती है, भूत-प्रेत योनि की स्त्री।  
{{शब्द संदर्भ लघु
<poem>कबीर माया '''डाकिनी''', सब काहू को खाय
|हिन्दी=श्मशाम आदि की देवी, एक पिशाचिनी या देवी जो [[काली]] के गले में समझी जाती है, भूत-प्रेत योनि की स्त्री।  
दांत उपारुं पापिनी, सन्तो नियरै जाय।<ref>संत शिरोमणि [[कबीरदास]] जी कहते हैं कि माया तो एक डायन की तरह है जो अपना शिकार ढूंढकर खा जाती है। यही माया जब सिद्ध संतों के पास जाती है तो वह इसके दांत उखाड़ देते है।</ref></poem>
|व्याकरण=स्त्रीलिंग, धातु
*धार्मिक मान्यतानुसार '''डाकिनी''' को छिन्नमस्तिका देवी का रक्तपान करते हुए बताया गया है। [[बौद्ध धर्म]] में '''डाकिनी''' को [[वज्रयोगिनी]] कहा गया है।
|उदाहरण=<poem>कबीर माया '''डाकिनी''', सब काहू को खाय
{{main|वज्रयोगिनी}}
दांत उपारुं पापिनी, सन्तो नियरै जाय।</poem>
 
|विशेष=संत शिरोमणि [[कबीरदास]] जी कहते हैं कि माया तो एक डायन की तरह है जो अपना शिकार ढूंढकर खा जाती है। यही माया जब सिद्ध संतों के पास जाती है तो वह इसके दांत उखाड़ देते है।
{{प्रचार}}
|पर्यायवाची=अनुचरी, चुड़ैल, डंकिनी, डायन, पूतना रक्तपा
{{लेख प्रगति
|संस्कृत=[डअक्+णिनि+ङीप्]
|आधार=
|अन्य ग्रंथ=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
}}


==टीका टिप्पणी==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{हिन्दू धर्म}}
[[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]]
[[Category:हिन्दू_धर्म]]
__INDEX__
__INDEX__

08:03, 17 जून 2011 के समय का अवतरण

शब्दिक अर्थ

श्मशान आदि की देवी, एक पिशाचिनी या देवी जो काली के गले में समझी जाती है, भूत-प्रेत योनि की स्त्री।

कबीर माया डाकिनी, सब काहू को खाय
दांत उपारुं पापिनी, सन्तो नियरै जाय।[1]

  • धार्मिक मान्यतानुसार डाकिनी को छिन्नमस्तिका देवी का रक्तपान करते हुए बताया गया है। बौद्ध धर्म में डाकिनी को वज्रयोगिनी कहा गया है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी

  1. संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि माया तो एक डायन की तरह है जो अपना शिकार ढूंढकर खा जाती है। यही माया जब सिद्ध संतों के पास जाती है तो वह इसके दांत उखाड़ देते है।

संबंधित लेख