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<span style="position:absolute;top:-30px;left:-100px;z-index:100">[[चित्र:India-flag1.gif|100px]]</span>[[चित्र:Tricolor.jpg|तिरंगा|left|150px]]
{{DISPLAYTITLE:सदस्य:<span style="color:red;">Dr</span><span style="color:orange;">M</span><span style="color:blue;">K</span><span style="color:green;">Vaish</span>}}[[चित्र:BharatMata.gif|200px|center|भारत माता]]
{{DISPLAYTITLE:सदस्य:<span style="color:red;">Dr</span><span style="color:orange;">M</span><span style="color:blue;">K</span><span style="color:green;">Vaish</span>}}[[चित्र:BharatMata.gif|200px|center|भारत माता]]


{{दाँयाबक्सा|पाठ=<font color="orange" size="+2"> मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।</font>|विचारक=<font color="orange" size="+2">महात्मा गांधी</font> }}
{{दाँयाबक्सा|पाठ=<font color="orange" size="+2"> मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।</font>|विचारक=<font color="orange" size="+2">महात्मा गांधी</font> }}
<br /><center><div style="text-align:center;width:90%;padding:1em;border:solid 6px green;letter-spacing: 1px;background-color:orange;color:blue;font-weight:bold"><font color="blue" size="+1">'''ख़ूबसूरत बातें'''
* ख़ूबसूरत है वो लब जिन पर दूसरों के लिए एक दुआ है।
* ख़ूबसूरत है वो मुस्कान जो दूसरों की खुशी देख कर खिल जाए।
* ख़ूबसूरत है वो दिल जो किसी के दुख मे शामिल हो जाए और किसी के प्यार के रंग मे रंग जाए।
* ख़ूबसूरत है वो जज़बात जो दूसरो की भावनाओं को समझे।
* ख़ूबसूरत है वो एहसास जिस मे प्यार की मिठास हो।
* ख़ूबसूरत है वो बातें जिनमे शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से कहानियाँ।
* ख़ूबसूरत है वो आँखे जिनमे कितने ख़ूबसूरत ख्वाब समा जाएँ।
* ख़ूबसूरत है वो आसूँ जो किसी के ग़म मे बह जाएँ।
* ख़ूबसूरत है वो हाथ जो किसी के लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए।
* ख़ूबसूरत है वो कदम जो अमन और शान्ति का रास्ता तय कर जाएँ।
* ख़ूबसूरत है वो सोच जिस मे पूरी दुनिया की भलाई का ख्याल आ जाए।
</font></div></center><br />
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'''डा॰ मनीष कुमार'''<sup>'''वैश्य'''</sup>
|}


'''National Anthem''' = <center>[[File:A R  Rahman - Jana Gana Mana (2007) - Asha Bhonsle.ogg]]</center><br />
'''National Anthem''' = <center>[[File:A R  Rahman - Jana Gana Mana (2007) - Asha Bhonsle.ogg]]</center><br />
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<font color="maroon" size="+2"> मेरे पृष्ट पर आप का स्वागत है ! </font>  
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<div align ="center" style="position:absolute; right:1.25em; top:0.1em; font-size:100%">Hello. </div>
<div align ="center" style="position:absolute; right:1.25em; top:0.1em; font-size:100%">Hello. </div>
<br /><center><div style="text-align:center;width:30%;padding:1em;border:solid 6px green;letter-spacing: 1px;background-color:orange;color:blue;font-weight:bold"><font color="blue" size="+2">'''माँ तुझे सलाम'''</font></div></center><br />


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<div style="background-color:#F6D6E4; font-weight: bold; width:60%; padding-left:5px; border: 1px solid #E7D1DA;">'''मेरा संपादन क्षेत्र'''</div>
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# [[सिद्धार्थनगर ज़िला]]
# [[सिद्धार्थनगर ज़िला]]
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# [[गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर]]
# [[तामेश्वरनाथ मंदिर]]
# [[चन्दो ताल]]
# [[रामगढ़ ताल]]
# [[पिण्डारी]]
# [[पिण्डारी]]
# [[महुआ डाबर]]
# [[महुआ डाबर]]
# [[मगहर]]
# [[मगहर]]
# [[बखिरा झील]]
# [[अष्टभुजा शुक्ल]]
# [[अष्टभुजा शुक्ल]]
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# [[डाक टिकट]]
# [[डाक टिकट]]
# [[डाक टिकटों में महात्मा गाँधी]]
# [[डाक टिकटों में महात्मा गाँधी]]
# [[भारतीय डाक टिकटों में बाल दिवस]]
# [[डाक सूचक संख्या]]
# [[डाक सूचक संख्या]]
# [[भारतीय स्टेट बैंक]]
# [[भारतीय स्टेट बैंक]]
# [[पंजाब नैशनल बैंक]]
# [[पंजाब नैशनल बैंक]]
# [[राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन]]
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# [[बीमारी और फ़िल्म]]
# [[बीमारी और फ़िल्म]]
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# [[पोलियो]]
# [[पोलियो]]
# [[मिर्गी]]
# [[मिर्गी]]
# [[हिस्टीरिया]]
# [[कब्ज]]
# [[स्केबीज़]]
# [[सोरियासिस]]
# [[नींद में चलने की बीमारी]]
# [[डाउन सिन्‍ड्रोम]]
# [[हर्पिस जोस्टर]]
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# [[वैष्णो देवी]]
# [[वैष्णो देवी]]
# [[शक्तिपीठ]]
# [[अमरनाथ]]
# [[अमरनाथ]]
# [[कैलाश मानसरोवर]]
# [[कैलाश मानसरोवर]]
# [[देवीपाटन मंदिर]]
# [[मारकण्डेय महादेव मंदिर]]
# [[पाताल भुवनेश्‍वर गुफ़ा]]
# [[जीण माता धाम]]
# [[बृहदेश्वर मन्दिर]]
# [[भोजेश्वर मंदिर]]
# [[पार्वती तुकेश्वर महादेव मंदिर]]
# [[बगलामुखी मंदिर]]
# [[ॐ]]
# [[ॐ]]
# [[स्वस्तिक]]
# [[स्वस्तिक]]
# [[786]]
# [[शंख]]
# [[शंख]]
# [[गंगाजल]]
# [[गंगाजल]]
# [[रामसेतु]]
# [[रामसेतु]]
# [[माउंट एवरेस्ट]]
# [[कुण्डलिनी]]
# [[कुण्डलिनी]]
# [[पद्मनाभस्वामी मंदिर]]
# [[पद्मनाभस्वामी मंदिर]]
# [[पंचगव्य]]
# [[अघोरी]]
# [[हिंदू विवाह में सात फेरे और सात वचन]]
# [[अंक 7]]
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# [[विलोम शब्द]]
# [[पर्यायवाची शब्द]]
# [[कबीर के दोहे]]
# [[तुलसीदास के दोहे]]
# [[रहीम के दोहे]]
# [[भारतीय नाम]]
# [[मधुशाला]]
# [[एस एम एस]]
# [[ट्विटर]]
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# [[माउंट एवरेस्ट]]
# [[गाडविन आस्टिन]]
# [[कावर झील]]
# [[डल झील]]
# [[रूपकुंड झील]]
# [[लोनार झील]]
# [[जवाहर सुरंग]]
# [[भूकंप]]
# [[हिममानव]]
# [[पुनर्जन्म]]
# [[स्वप्न]]
# [[सम्मोहन]]
# [[कोहिनूर हीरा]]
# [[जैकब हीरा]]
# [[ग्रेट मुग़ल हीरा]]
# [[फ़ॉर्मूला वन]]
# [[बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट]]
# [[गुलाल]]
# [[मिट्टी]]
# [[भारत में प्रथम]]
# [[आविष्कार और आविष्कारक]]
# [[भारत के सात आश्चर्य]]
# [[सूचना का अधिकार अधिनियम 2005]]
# [[चुनाव आचार संहिता]]
# [[जनगणना]]
# [[सांता क्लॉज]]
# [[क्रिसमस ट्री]]
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# [[मैडम तुसाद संग्रहालय]]
# [[बुर्ज ख़लीफ़ा]]
# [[बरमूडा त्रिकोण]]
# [[ईस्टर द्वीप]]
# [[माया कैलेंडर]]
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# [[महत्त्वपूर्ण दिवस]]
# [[महत्त्वपूर्ण दिवस]]
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# [[विश्व रक्तदान दिवस]]
# [[विश्व रक्तदान दिवस]]
# [[विश्व पर्यावरण दिवस]]
# [[विश्व पर्यावरण दिवस]]
# [[विश्व स्वास्थ्य दिवस]]
# [[राष्ट्रीय विज्ञान दिवस]]
# [[विश्व रेडक्रॉस दिवस]]
# [[अप्रैल फूल दिवस]]
# [[विश्व जल दिवस]]
# [[विश्व धूम्रपान निषेध दिवस]]
# [[पाई दिवस]]
# [[विश्व कैंसर दिवस]]
# [[अन्तर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस]]
# [[अंतराष्ट्रीय विकलांग दिवस]]
# [[अंतरराष्ट्रीय मैत्री दिवस]]
# [[विश्व ओजोन दिवस]]
-----
# [[परमवीर चक्र]]
# [[अशोक चक्र]]
# [[महावीर चक्र]]
# [[वीर चक्र]]
# [[कीर्ति चक्र]]
# [[शौर्य चक्र]]
# [[जीवन रक्षा पदक]]
# [[अर्जुन पुरस्कार]]
# [[ऑस्कर पुरस्कार]]
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# [[पृथ्वी-2 मिसाइल]]
# [[ब्रह्मोस मिसाइल]]
# [[अग्नि-2 मिसाइल]]
# [[शौर्य मिसाइल]]
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# [[अण्णा हज़ारे]]
# [[स्वामी रामदेव]]
# [[किरण बेदी]]
# [[मेधा पाटकर]]
# [[अरविंद केजरीवाल]]
# [[सत्य साईं बाबा]]
# [[राहुल गांधी]]
# [[दलाईलामा तेनजिन ग्यात्सो]]
# [[पंडित जसराज]]
# [[श्रीलाल शुक्ल]]
# [[श्रीनिवास अयंगर रामानुजन]]
# [[तिरुवल्लुवर]]
# [[स्टीफन हॉकिंग]]
# [[गैलिलियो गैलीली]]
# [[पंडित श्रद्धाराम शर्मा]]
# [[जय गुरुदेव]]
# [[प्रणब मुखर्जी]]
# [[कैप्टन लक्ष्मी सहगल]]
# [[नील आर्मस्ट्रांग]]
# [[सुनीता विलियम्स]]
# [[के एस सुदर्शन]]
# [[मोहन भागवत]]
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# [[दिलीप कुमार]]
# [[दिलीप कुमार]]
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# [[राज कुमार]]
# [[राज कुमार]]
# [[शशि कपूर]]
# [[शशि कपूर]]
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# [[देव आनंद]]
# [[आरती पूजन]]
# [[दारा सिंह]]
# [[शनिदेव जी की आरती]]
# [[शत्रुघ्न सिन्हा]]
# [[वृहस्पतिदेव जी की आरती]]
# [[कैटरीना कैफ़]]
# [[गायत्री माता की आरती]]
# [[ऐश्वर्या राय]]
# [[श्यामबाबा जी की आरती]]
# [[भूपेन हज़ारिका]]
# [[कृष्ण जी की आरती]]
# [[सत्यदेव दुबे]]
# [[काली माता की आरती]]
# [[लक्ष्मीकांत]]
# [[संतोषी माता की आरती]]
# [[बी आर इशारा]]
# [[सरस्वती माता की आरती]]
# [[साधना (अभिनेत्री)]]
# [[रविवार व्रत की आरती]]
# [[ए. के. हंगल]]
# [[बुधवार व्रत की आरती]]
# [[रामानन्द सागर]]
# [[शुक्रवार व्रत की आरती]]
# [[साईबाबा जी की आरती]]
# [[श्री रामायण जी की आरती]]
# [[वैष्णो माता की आरती]]
# [[गंगा माता की आरती]]
# [[युगलकिशोर जी की आरती]]
# [[पार्वती माता की आरती]]
# [[भैंरव जी की आरती]]
# [[अन्नपूर्णा देवी की आरती]]
# [[केदार नाथ जी की आरती]]
# [[बद्री नाथ जी की आरती]]
# [[शाकम्भरी देवी की आरती]]
# [[सूर्यदेव जी की आरती]]
# [[विन्ध्येश्वरी माता की आरती]]
# [[नवग्रह आरती]]
# [[सरस्वती प्रार्थना]]
# [[राम स्तुति]]
# [[गणेश स्तुति]]
# [[नवदुर्गा रक्षामंत्र]]
# [[संकटमोचन हनुमानाष्टक]]
# [[सरस्वती चालीसा]]
# [[शिव चालीसा]]
# [[शनि चालीसा]]
# [[विन्ध्येश्‍वरी चालीसा]]
# [[गायत्री चालीसा]]
# [[कृष्ण चालीसा]]
# [[साईं चालीसा]]
# [[श्याम चालीसा]]
# [[भैरव चालीसा]]
# [[शीतला चालीसा]]
# [[संतोषी चालीसा]]
# [[गंगा चालीसा]]
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# [[कर्णवेध संस्कार]]
# [[नामकरण संस्कार]]
# [[विवाह संस्कार]]
# [[गर्भाधान संस्कार]]
# [[चूड़ाकरण संस्कार]]
# [[अन्नप्राशन संस्कार]]
# [[जातकर्म संस्कार]]
# [[सीमन्तोन्नयन संस्कार]]
# [[पुंसवन संस्कार]]
# [[निष्क्रमण संस्कार]]
# [[समावर्तन संस्कार]]
# [[वानप्रस्थ संस्कार]]
# [[पितृमेध या अन्त्यकर्म संस्कार]]
# [[श्राद्ध संस्कार]]
# [[विद्यारंभ संस्कार]]
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# [[सिंह]]
# [[सिंह]]
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# [[हैली धूमकेतु]]
# [[हैली धूमकेतु]]
# [[ल्यूलिन धूमकेतु]]
# [[ल्यूलिन धूमकेतु]]
# [[एपोफिस क्षुद्र ग्रह]]
# [[सेरेस]]
# [[हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन]]
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# [[एस एम एस]]
# [[अनमोल वचन 1]]
# [[बरमूडा त्रिकोण]]
# [[हिममानव]]
# [[विलोम शब्द]]
# [[पर्यायवाची शब्द]]
# [[पुनर्जन्म]]
# [[गुलाल]]
# [[मिट्टी]]
# [[भारतीय नाम]]
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# [[अनमोल वचन]]
# [[अनमोल वचन 2]]
# [[अनमोल वचन 2]]
# [[अनमोल वचन 3]]
# [[अनमोल वचन 3]]
# [[अनमोल वचन 4]]
# [[अनमोल वचन 4]]
# [[अनमोल वचन 5]]
# [[अनमोल वचन 5]]
# [[अनमोल वचन 6]]
# [[अनमोल वचन 7]]
# [[अनमोल वचन 8]]
# [[अनमोल वचन 9]]
# [[अनमोल वचन 10]]
# [[अनमोल वचन 11]]
# [[अनमोल वचन 12]]
# [[अनमोल वचन 13]]
# [[अनमोल वचन 14]]
# [[अनमोल वचन 15]]
# [[महात्मा गाँधी के अनमोल वचन]]
# [[महात्मा गाँधी के अनमोल वचन]]
# [[स्वामी विवेकानन्द के अनमोल वचन]]
# [[स्वामी विवेकानन्द के अनमोल वचन]]
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# [[बाँस]]
# [[बाँस]]
# [[तुलसी]]
# [[तुलसी]]
# [[पुदीना]]
# [[शीशम]]
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# [[साबूदाना]]
# [[साबूदाना]]
# [[मखाना]]
# [[हल्दी]]
# [[हल्दी]]
# [[केसर]]
# [[केसर]]
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# [[लौंग]]
# [[लौंग]]
# [[शहद]]
# [[शहद]]
# [[घी]]
# [[अदरक]]
# [[अदरक]]
# [[सोयाबीन]]
# [[सोयाबीन]]
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# [[बादाम]]
# [[अण्णा हज़ारे]]
# [[नाशपाती]]
# [[स्वामी रामदेव]]
# [[केला]]
# [[किरण बेदी]]
# [[करौंदा]]
# [[मेधा पाटकर]]
# [[इमली]]
# [[अरविंद केजरीवाल]]
# [[दाल]]
# [[सत्य साईं बाबा]]
# [[राहुल गांधी]]
# [[दलाईलामा तेनजिन ग्यात्सो]]
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# [[इंडियन प्रीमियर लीग]]
# [[इंडियन प्रीमियर लीग]]
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# [[सुनील गावस्कर]]
# [[सुनील गावस्कर]]
# [[रवि शास्त्री]]
# [[रवि शास्त्री]]
# [[मंसूर अली खान पटौदी]]
# [[वीरेन्द्र सहवाग]]
# [[महेन्द्र सिंह धोनी]]
# [[ओलंपिक खेल]]
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# [[दे दी हमें आज़ादी]]
# [[रघुपति राघव राजा राम]]
# [[वैष्णव जन तो तेने कहिये]]
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# [[मेरे देश की धरती]]
# [[हर करम अपना करेंगे]]
# [[ऐ मेरे प्यारे वतन]]
# [[इन्साफ की डगर पर]]
# [[हम लाये हैं तूफ़ान से]]
# [[जिस देश में गंगा बहती है]]
# [[यह देश है वीर जवानों का]]
# [[है प्रीत जहाँ की रीत सदा]]
# [[नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी मैं क्या है]]
# [[मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये]]
# [[भारत हमको जान से प्यारा है]]
# [[अपनी आजादी को हम]]
# [[ऐ वतन ऐ वतन]]
# [[मेरा रंग दे बसंती चोला]]
# [[सरफरोशी की तमन्ना]]
# [[नन्हा मुन्ना राही हूँ]]
# [[जहाँ डाल डाल पर]]
# [[संदेशे आते है]]
# [[बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो]]
# [[छोड़ो कल की बातें]]
# [[कदम कदम बढाये जा]]
# [[विजयी विश्व तिरंगा प्यारा]]
# [[आओ बच्चों तुम्हे दिखाएं]]
# [[चन्दन है इस देश की माटी]]
# [[नफ़रत की लाठी तोड़ो]]
# [[थोड़ी सी धूल मेरी]]
# [[कर चले हम फ़िदा]]
# [[जय जननी ने भारत माँ]]
# [[वतन पे जो फ़िदा होगा]]
# [[ए मेरे वतन के लोगो]]
# [[पासे सभी उलट गए]]
-----
# [[दुर्गा माता के 108 नाम]]
# [[शिव जी के 108 नाम]]
# [[श्री हनुमत्सहस्त्र नामावली]]
# [[श्री गणेश सहस्त्रनामावली]]
# [[श्री राम सहस्रनामस्तोत्र]]
# [[श्री लक्ष्म्यष्टोत्तरशत सहस्रनामावली]]
# [[आरती पूजन]]
# [[गायत्री माता की आरती]]
# [[सोमवार व्रत की आरती]]
# [[मंगलवार व्रत की आरती]]
# [[बुधवार व्रत की आरती]]
# [[वृहस्पतिवार व्रत की आरती]]
# [[शुक्रवार व्रत की आरती]]
# [[शनिवार व्रत की आरती]]
# [[रविवार व्रत की आरती]]
# [[रामायण जी की आरती]]
# [[गीता जी की आरती]]
# [[श्रीमद् भागवत पुराण की आरती]]
# [[वैष्णो माता की आरती]]
# [[दुर्गा जी की आरती]]
# [[शारदा माता की आरती]]
# [[शीतला माता की आरती]]
# [[काली माता की आरती]]
# [[संतोषी माता की आरती]]
# [[सरस्वती माता की आरती]]
# [[लक्ष्मी रमणा जी की आरती]]
# [[रानी सती जी की आरती]]
# [[गंगा माता की आरती]]
# [[यमुना माता की आरती]]
# [[तुलसी माता की आरती]]
# [[पार्वती माता की आरती]]
# [[अन्नपूर्णा देवी की आरती]]
# [[नैना देवी की आरती]]
# [[शाकम्भरी देवी की आरती]]
# [[विन्ध्येश्वरी माता की आरती]]
# [[चिन्तपूर्णी देवी की आरती]]
# [[नवग्रह आरती]]
# [[श्यामबाबा जी की आरती]]
# [[गणेश जी की आरती]]
# [[कृष्ण जी की आरती]]
# [[युगलकिशोर जी की आरती]]
# [[केदार नाथ जी की आरती]]
# [[बद्री नाथ जी की आरती]]
# [[रामचंद्र जी की आरती]]
# [[साईबाबा जी की आरती]]
# [[सूर्यदेव जी की आरती]]
# [[शनिदेव जी की आरती]]
# [[वृहस्पतिदेव जी की आरती]]
# [[भैंरव जी की आरती]]
# [[सरस्वती प्रार्थना]]
# [[राम स्तुति]]
# [[गणेश स्तुति]]
# [[नवदुर्गा रक्षामंत्र]]
# [[संकटमोचन हनुमानाष्टक]]
# [[सरस्वती चालीसा]]
# [[शिव चालीसा]]
# [[शनि चालीसा]]
# [[विन्ध्येश्‍वरी चालीसा]]
# [[गायत्री चालीसा]]
# [[कृष्ण चालीसा]]
# [[साईं चालीसा]]
# [[श्याम चालीसा]]
# [[भैरव चालीसा]]
# [[शीतला चालीसा]]
# [[संतोषी चालीसा]]
# [[गंगा चालीसा]]
-----
# [[कर्णवेध संस्कार]]
# [[नामकरण संस्कार]]
# [[विवाह संस्कार]]
# [[गर्भाधान संस्कार]]
# [[चूड़ाकरण संस्कार]]
# [[अन्नप्राशन संस्कार]]
# [[जातकर्म संस्कार]]
# [[सीमन्तोन्नयन संस्कार]]
# [[पुंसवन संस्कार]]
# [[निष्क्रमण संस्कार]]
# [[समावर्तन संस्कार]]
# [[वानप्रस्थ संस्कार]]
# [[पितृमेध या अन्त्यकर्म संस्कार]]
# [[श्राद्ध संस्कार]]
# [[विद्यारंभ संस्कार]]
-----
# [[पंचतंत्र]]
# [[अक्लमंद हंस]]
# [[आपस की फूट]]
# [[एक और एक ग्यारह]]
# [[एकता का बल]]
# [[कौए और उल्लू]]
# [[खरगोश की चतुराई]]
# [[गजराज व मूषकराज]]
# [[गधा रहा गधा ही]]
# [[गोलू-मोलू और भालू]]
# [[घंटीधारी ऊंट]]
# [[चापलूस मंडली]]
# [[झगडालू मेढक]]
# [[झूठी शान]]
# [[ढोंगी सियार]]
# [[ढोल की पोल]]
# [[तीन मछलियां]]
# [[दुश्मन का स्वार्थ]]
# [[दुष्ट सर्प]]
# [[नकल करना बुरा है]]
# [[बंदर का कलेजा]]
# [[बगुला भगत]]
# [[बडे नाम का चमत्कार]]
# [[बहरुपिया गधा]]
# [[बिल्ली का न्याय]]
# [[बुद्धिमान सियार]]
# [[मक्खीचूस गीदड]]
# [[मित्र की सलाह]]
# [[मुफ़्तखोर मेहमान]]
# [[मूर्ख गधा]]
# [[मूर्ख को सीख]]
# [[मूर्ख बातूनी कछुआ]]
# [[रंग में भंग]]
# [[रंगा सियार]]
# [[शत्रु की सलाह]]
# [[शरारती बंदर]]
# [[संगठन की शक्ति]]
# [[सच्चा शासक]]
# [[सच्चे मित्र]]
# [[सांड और गीदड़]]
# [[सिंह और सियार]]
# [[स्वजाति प्रेम]]
-----
# [[हितोपदेश]]
# [[सुवर्णकंकणधारी बूढ़ा बाघ और मुसाफिर की कहानी]]
# [[कबुतर, काक, कछुआ, मृग और चूहे की कहानी]]
# [[मृग, काक और गीदड़ की कहानी]]
# [[भैरव नामक शिकारी, मृग, शूकर, साँप और गीदड़ की कहानी]]
# [[धूर्त गीदड़ और हाथी की कहानी]]
# [[एक बनिया, बैल, सिंह और गीदड़ों की कहानी]]
# [[धोबी, धोबन, गधा और कुत्ते की कहानी]]
# [[सिंह, चूहा और बिलाव की कहानी]]
# [[बंदर, घंटा और कराला नामक कुटनी की कहानी]]
# [[सिंह और बूढ़ शशक की कहानी]]
# [[कौए का जोड़ा और काले साँप की कहानी]]
# [[पक्षी और बंदरो की कहानी]]
# [[बाघंबर ओढ़ा हुआ धोबी का गधा और खेतवाले की कहानी]]
# [[हाथियों का झुंड और बूढ़े शशक की कहानी]]
# [[हंस, कौआ और एक मुसाफिर की कहानी]]
# [[नील से रंगे हुए एक गीदड़ की कहानी]]
# [[राजकुमार और उसके पुत्र के बलिदान की कहानी]]
# [[एक क्षत्रिय, नाई और भिखारी की कहानी]]
# [[सन्न्यासी और एक चूहे की कहानी]]
# [[बूढ़े बगुले, केंकड़े और मछलियों की कहानी]]
# [[सुन्द, उपसुन्द नामक दो दैत्यों की कहानी]]
# [[एक ब्राह्मण, बकरा और तीन धुता की कहानी]]
# [[माधव ब्राह्मण, उसका बालक, नेवला और साँप की कहानी]]
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# [[चाणक्य नीति]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 1]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 2]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 3]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 4]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 5]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 6]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 7]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 8]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 9]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 10]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 11]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 12]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 13]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 14]]
# [[चाणक्यनीति - अध्याय 15]]
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| style="background-color: #FF0084; text-align:center" | '''मेरा परिचय'''
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| '''नाम''' -->  <div style="text-align: center;"><span style="font-family: Algerian; font-size: 20pt">डा॰ मनीष कुमार वैश्य</span></div> <br>
| [[चित्र:mkv.gif|150px|right|डा॰ मनीष कुमार वैश्य]]
'''नाम''' -->  <div style="text-align: center;"><span style="font-family: Algerian; font-size: 20pt">डा॰ मनीष कुमार वैश्य</span></div> <br>
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| भारतवर्ष में कॉवर के त्योहार का बहुत ज्यादा महत्व है। इस तौहार में आमलोग भगवन शिव की भक्ति में डुबकर कॉवर उठाते है। इन कॉवर उठाने वाले शिव भक्तो को कॉवरिया कहते है। यह त्योहार हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार श्रावण ( सावन )  के महीने में पड़ता है। कॉवर के इस त्योहार में शिव भक्त एक निश्चित स्थान से गेरुआ वस्त्र धारण कर कन्धे पर कॉवर लेकर और कॉवर में गंगाजल रखकर उठाते है तथा कई किलोमीटर की नंगे पैर पैदल यात्रा करके एक निश्चित स्थान के शिव मंदिर में आकर भगवन शिव और माता पर्वती पर गंगाजल चढाते है। यह गंगाजल का अभिषेक श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन होता है। कॉवर का त्योहार भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है लेकिन विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, उत्तराँचल, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल के राज्यों में मनाया जाता है।  
| भारतवर्ष में कॉवर के त्योहार का बहुत ज़्यादा महत्व है। इस तौहार में आमलोग भगवन शिव की भक्ति में डुबकर कॉवर उठाते है। इन कॉवर उठाने वाले शिव भक्तो को कॉवरिया कहते है। यह त्योहार हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार श्रावण (सावन)  के महीने में पड़ता है। कॉवर के इस त्योहार में शिव भक्त एक निश्चित स्थान से गेरुआ वस्त्र धारण कर कन्धे पर कॉवर लेकर और कॉवर में गंगाजल रखकर उठाते है तथा कई किलोमीटर की नंगे पैर पैदल यात्रा करके एक निश्चित स्थान के शिव मंदिर में आकर भगवन शिव और माता पर्वती पर गंगाजल चढाते है। यह गंगाजल का अभिषेक श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन होता है। कॉवर का त्योहार भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है लेकिन विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, उत्तराँचल, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल के राज्यों में मनाया जाता है।  
 


आषाढ़ी पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर तीर्थनगरी में गंगा स्नान करने व गुरु पूजन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी, दिल्ली के कोने-कोने से आज पूर्णिमा स्नान के साथ ही कस्बे में एक माह तक चलने वाला कॉवर मेला प्रारम्भ हो जाएगा।
आषाढ़ी पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर तीर्थनगरी में गंगा स्नान करने व गुरु पूजन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी, दिल्ली के कोने-कोने से आज पूर्णिमा स्नान के साथ ही कस्बे में एक माह तक चलने वाला कॉवर मेला प्रारम्भ हो जाएगा।


मकर संकंराति के अवसर पर बरमान से बांदकपुर भगवान भोलेशंकर के चरणों में जल चढ़ाने के लिए जा रहे कावडिय़ों का गुरुवार को तालसेमरा में संतश्री १०८ सीताराम महराज बादकपुर जाकर भगवान भोलेशंकर के चरणों में अर्पित करते हैं। कॉवरियों द्वारा यह सारी यात्रा पैदल ही की जाती है। स्वागत करने वालों में लक्ष्मीनारायण जारोलिया, पप्पू जारोलिया, हरदास पटेल, अशोक पटेल आदि शामिल हैं।
मकर संकंराति के अवसर पर बरमान से बांदकपुर भगवान भोलेशंकर के चरणों में जल चढ़ाने के लिए जा रहे कावडिय़ों का गुरुवार को तालसेमरा में संतश्री 108 सीताराम महराज बादकपुर जाकर भगवान भोलेशंकर के चरणों में अर्पित करते हैं। कॉवरियों द्वारा यह सारी यात्रा पैदल ही की जाती है। स्वागत करने वालों में लक्ष्मीनारायण जारोलिया, पप्पू जारोलिया, हरदास पटेल, अशोक पटेल आदि शामिल हैं।


बेवर: महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर काबड़ियों ने फर्रुखाबाद से जल भरकर विभिन्न शिवालयों में चढ़ाकर मन्नत मांगी तो कुछ काबड़ियों ने भोलेनाथ से पुन: जल लेकर आने का वादा किया।
बेवर: महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर काबड़ियों ने फर्रुखाबाद से जल भरकर विभिन्न शिवालयों में चढ़ाकर मन्नत मांगी तो कुछ काबड़ियों ने भोलेनाथ से पुन: जल लेकर आने का वादा किया।
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सर्वविदित है कि श्रावण के महीने में कॉवर चढ़ाना बेहद पुनीत माना जाता है। सच्ची भक्ति भावना से जो भी भोले बाबा के नाम की कॉवर चढ़ाता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
सर्वविदित है कि श्रावण के महीने में कॉवर चढ़ाना बेहद पुनीत माना जाता है। सच्ची भक्ति भावना से जो भी भोले बाबा के नाम की कॉवर चढ़ाता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।


रांची, तैयार हो जाइए, बाबा भोले नाथ की पूजा में लीन होने के लिए। भगवान शिव का प्रसन्न करने के लिए। उनका जलाभिषेक करने का महीना आ गया है। भगवान शंकर को खुश करने का विशेष महीना श्रावण ( सावन ) आषढ खत्म होते ही शनिवार कृष्ण पक्ष 16 जुलाई से शुरु हो जायेगा। सावन की पहली सोमवारी 18 जुलाई को है। अगले सप्ताह से शुरु होने वाले सावन को लेकर शिवालयों और अन्य मंदिरों में विशेष तैयारियां की जा रही है। देवघर स्थित प्रसिध्द श्रावणी मेले की तैयारियों को भी अंतिम रुप दिया जा रहा है।
रांची, तैयार हो जाइए, बाबा भोले नाथ की पूजा में लीन होने के लिए। भगवान शिव का प्रसन्न करने के लिए। उनका जलाभिषेक करने का महीना आ गया है। भगवान शंकर को खुश करने का विशेष महीना श्रावण ( सावन ) आषढ खत्म होते ही शनिवार कृष्ण पक्ष 16 जुलाई से शुरू हो जायेगा। सावन की पहली सोमवारी 18 जुलाई को है। अगले सप्ताह से शुरू होने वाले सावन को लेकर शिवालयों और अन्य मंदिरों में विशेष तैयारियां की जा रही है। देवघर स्थित प्रसिध्द श्रावणी मेले की तैयारियों को भी अंतिम रुप दिया जा रहा है।
इधर, राजधानी रांची स्थित पहाड़ी मंदिर में भी सावन महीने को लेकर विशेष तैयारियां की गयी है। मंदिर को आकर्षक तरीके से संजाने-संवारने का काम चल रहा है। खूंटी स्थित अमरेश्वरधाम में भी तैयारियों को अंतिम रुप दिया जा रहा है।
इधर, राजधानी रांची स्थित पहाड़ी मंदिर में भी सावन महीने को लेकर विशेष तैयारियां की गयी है। मंदिर को आकर्षक तरीके से संजाने-संवारने का काम चल रहा है। खूंटी स्थित अमरेश्वरधाम में भी तैयारियों को अंतिम रुप दिया जा रहा है।
इस सावन में चार सोमवारी
इस सावन में चार सोमवारी
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संजने लगी हैं कांवर की दुकानें
संजने लगी हैं कांवर की दुकानें
सजने लगी हैं कॉवर की दुकानें, गेरुवा वस्त्र की सिलाई और नये स्टोक की बिक्री के लिए तैयार
सजने लगी हैं कॉवर की दुकानें, गेरुवा वस्त्र की सिलाई और नये स्टोक की बिक्री के लिए तैयार
पूरे जिलों एवं ग्रामीण क्षेत्रों तक बाबा भोले की नगरी देवघर जाने की तैयारी के लिए श्रध्दालु भक्त कॉवर की खरीदारी करते हैं ऐसे में नये स्टोक आ चुके हैं। इस सप्ताह बिक्री परवान पर होगी वहीं गेरुवा वस्त्र की नये स्टोक भी दुकानों में पहुँच चुके है। लोग वस्त्रों के अलावा झोले टॉर्च आदि की खरीदारी में लग गये हैं।
पूरे ज़िलों एवं ग्रामीण क्षेत्रों तक बाबा भोले की नगरी देवघर जाने की तैयारी के लिए श्रध्दालु भक्त कॉवर की ख़रीदारी करते हैं ऐसे में नये स्टोक आ चुके हैं। इस सप्ताह बिक्री परवान पर होगी वहीं गेरुवा वस्त्र की नये स्टोक भी दुकानों में पहुँच चुके है। लोग वस्त्रों के अलावा झोले टॉर्च आदि की ख़रीदारी में लग गये हैं।


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| () सबकी गति है एक सी अंत समय पर होय, जो आये हैं जायेंगे राजा रंक फकीर ।
| संस्कृत सुभाषित एवं सूक्तियाँ हिन्दी में अर्थ सहित----
जनम होत नंगे भये, चौपायों की चाल, न वाणी वाक्‍य थे पशुवत पाये शरीर
 
धीरे धीरे बदल गये चौपायों से बन इंसान । वाक्‍य और वाणी मिली वस्‍त्र पहन कर हुये बने महान ।
(1) न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो च दाण्डिकः
जाति बनी और ज्ञान बढ़ा तो बॉंट दिया फिर इंसान ।अंत समय नंगे फिर भये, गये सब वेद शास्‍त्र और ज्ञान ।।
स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥
() अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं
(न राज्य था और ना राजा था, न दण्ड था और न दण्ड देने वाला। स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी॥)
(३) कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है
(2) रत्नं रत्नेन संगच्छते
() हताश होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है ।
(रत्न, रत्न के साथ जाता है)
() बहुमत की आवाज न्याय का द्योतक नही है
(3) गुणः खलु अनुरागस्य कारणं , बलात्कारः ।
() हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हो, परन्तु दुनिया हमे हमारे कर्मो के द्वारा पहचानती है |
(केवल गुण ही प्रेम होने का कारण है, बल प्रयोग नहीं)
() यदि आप मरने का डर है तो इसका यही अर्थ है की आप जीवन के महत्व को ही नहीं समझते |
(4) निर्धनता प्रकारमपरं षष्टं महापातकम्
() अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते है उतनी ही नम्रता आती है |
(गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है।)
() मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है
(5) अपेयेषु तडागेषु बहुतरं उदकं भवति ।
(१०) अपने शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नही होता ।
(जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता, उसमें बहुत जल भरा होता है।)
(११) मुस्कान प्रेम की भाषा है ।
(6) अङ्गुलिप्रवेशात्‌ बाहुप्रवेश: |
(१२) सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है ।
(अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है।)
(१३) अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नही किया जा सकता ।
(7) अति तृष्णा विनाशाय |
(१४) अल्प ज्ञान खतरनाक होता है ।
(अधिक लालच नाश कराती है।)
(१५) कर्म सरल है, विचार कठिन ।
(8) अति सर्वत्र वर्जयेत् ।
(१६) उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन
(अति (को करने) से सब जगह बचना चाहिये।)
(१७) धन अपना पराया नही देखता ।
(9) अजा सिंहप्रसादेन वने चरति निर्भयम्‌।
(१८) पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं ।
(शेर की कृपा से बकरी जंगल मे बिना भय के चरती है।)
(१९) संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं ; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति ।
(10) अतिभक्ति चोरलक्षणम्‌।
(२०) हजारों मष्तिषकों में बुद्धिपूर्ण विचार आते रहे हैं ।लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड जमा लें
(अति-भक्ति चोर का लक्षण है।)
(२१) उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है । परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता ।
(11) अल्पविद्या भयङ्करी।
(अल्पविद्या भयंकर होती है।)
(12) कुपुत्रेण कुलं नष्टम्‌।
( कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है।)
(13) ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:
(ज्ञानहीन पशु के समान हैं।)
(14) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्दभी ह्यप्सरा भवेत्‌।
(सोलह वर्ष की होने पर गदही भी अप्सरा बन जाती है।)
(15) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्‌।
(सोलह वर्ष की अवस्था को प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरण करना चाहिये।)
(16) मधुरेण समापयेत्‌।
(मिठास के साथ (मीठे वचन या मीठा स्वाद) समाप्त करना चाहिये।)
(17) मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना।
(हर व्यक्ति अलग तरह से सोचता है।)
(18) शठे शाठ्यं समाचरेत्
(दुष्ट के साथ दुष्टता का वर्ताव करना चाहिये।)
(19) सत्यं शिवं सुन्दरम्‌।
(सत्य, कल्याणकारी और सुन्दर। (किसी रचना/कृति या विचार को परखने की कसौटी))
(20) सा विद्या या विमुक्तये।
(विद्या वह है जो बन्धन-मुक्त करती है।)
(21) त्रियाचरित्रं पुरुषस्य भग्यं दैवो जानाति कुतो नरम्
(स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता, मनुष्य कहाँ लगता है।)
(22) कामासक्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है। - नीतिवाक्यामृत-3।12
 


संस्कृत सुभाषित एवं सूक्तियाँ हिन्दी में अर्थ सहित----
* सबकी गति है एक सी अंत समय पर होय, जो आये हैं जायेंगे राजा रंक फ़कीर।
जनम होत नंगे भये, चौपायों की चाल, न वाणी न वाक्‍य थे पशुवत पाये शरीर।
धीरे धीरे बदल गये चौपायों से बन इंसान। वाक्‍य और वाणी मिली वस्‍त्र पहन कर हुये बने महान।
जाति बनी और ज्ञान बढ़ा तो बॉंट दिया फिर इंसान। अंत समय नंगे फिर भये, गये सब वेद शास्‍त्र और ज्ञान।।
* अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं।
* कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है।
* हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है।
* बहुमत की आवाज न्याय का द्योतक नहीं है।
* हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हो, परन्तु दुनिया हमे हमारे कर्मो के द्वारा पहचानती है|
* यदि आप मरने का डर है तो इसका यही अर्थ है की आप जीवन के महत्व को ही नहीं समझते|
* अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते है उतनी ही नम्रता आती है|
* मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है।
* अपने शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता।
* मुस्कान प्रेम की भाषा है।
* सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है।
* अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता।
* अल्प ज्ञान खतरनाक होता है।
* कर्म सरल है, विचार कठिन।
* उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन।
* धन अपना पराया नहीं देखता।
* पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित। लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं।
* संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति।
* हजारों मष्तिषकों में बुद्धिपूर्ण विचार आते रहे हैं। लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें।
* उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है। परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता।


(१) न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः ।
स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥
( न राज्य था और ना राजा था , न दण्ड था और न दण्ड देने वाला । स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी ॥ )
(२) रत्नं रत्नेन संगच्छते ।
( रत्न , रत्न के साथ जाता है )
(३) गुणः खलु अनुरागस्य कारणं , न बलात्कारः ।
( केवल गुण ही प्रेम होने का कारण है , बल प्रयोग नहीं )
(४) निर्धनता प्रकारमपरं षष्टं महापातकम् ।
( गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है । )
(५) अपेयेषु तडागेषु बहुतरं उदकं भवति ।
( जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता , उसमें बहुत जल भरा होता है । )
(६) अङ्गुलिप्रवेशात्‌ बाहुप्रवेश: |
( अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है । )
(७) अति तृष्णा विनाशाय.
( अधिक लालच नाश कराती है । )
(८) अति सर्वत्र वर्जयेत् ।
( अति ( को करने ) से सब जगह बचना चाहिये । )
(९) अजा सिंहप्रसादेन वने चरति निर्भयम्‌.
( शेर की कृपा से बकरी जंगल मे बिना भय के चरती है । )
(१०) अतिभक्ति चोरलक्षणम्‌.
( अति-भक्ति चोर का लक्षण है । )
(११) अल्पविद्या भयङ्करी.
( अल्पविद्या भयंकर होती है । )
(१२) कुपुत्रेण कुलं नष्टम्‌.
( कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है । )
(१३) ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:.
( ज्ञानहीन पशु के समान हैं । )
(१४) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्दभी ह्यप्सरा भवेत्‌.
( सोलह वर्ष की होने पर गदही भी अप्सरा बन जाती है । )
(१५) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्‌.
( सोलह वर्ष की अवस्था को प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरण करना चाहिये । )
(१६) मधुरेण समापयेत्‌.
( मिठास के साथ ( मीठे वचन या मीठा स्वाद ) समाप्त करना चाहिये । )
(१७) मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना.
( हर व्यक्ति अलग तरह से सोचता है । )
(१८) शठे शाठ्यं समाचरेत् ।
( दुष्ट के साथ दुष्टता का वर्ताव करना चाहिये । )
(१९) सत्यं शिवं सुन्दरम्‌.
( सत्य , कल्याणकारी और सुन्दर । ( किसी रचना/कृति या विचार को परखने की कसौटी ) )
(२०) सा विद्या या विमुक्तये.
( विद्या वह है जो बन्धन-मुक्त करती है । )
(२१) त्रियाचरित्रं पुरुषस्य भग्यं दैवो न जानाति कुतो नरम् ।
( स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता , मनुष्य कहाँ लगता है । )
(२२) कामासक्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है। - नीतिवाक्यामृत-३।१२


महापुरुषों एवम संतों के अनमोल वचन-----


* जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।  - महर्षि वाल्मीकि (रामायण)
* ऊँच अटारी मधुर वतास। कहैं घाघ घर ही कैलाश।  - घाघ भड्डरी (अकबर के समकालीन, कानपुर ज़िले के निवासी)
( जननी ( माता ) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है)
* तुलसी इस संसार मे, सबसे मिलिये धाय। ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाँय॥
* जो दूसरों से घृणा करता है वह स्वयं पतित होता है।  – विवेकानन्द
* कबिरा घास न निन्दिये जो पाँवन तर होय। उड़ि कै परै जो आँख में खरो दुहेलो होय।।  - सन्त कबीर
* ऊँच अटारी मधुर वतास। कहैं घाघ घर ही कैलाश।  - घाघ भड्डरी (अकबर के समकालीन, कानपुर जिले के निवासी )
* तुलसी इस संसार मे, सबसे मिलिये धाय।
ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाँय॥
* कोई भी देश अपनी अच्छाईयों को खो देने पर पतीत होता है।  - गुरू नानक
* प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर लाए जा सकते हैं।  - ईसा मसीह
* प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर लाए जा सकते हैं।  - ईसा मसीह
* जो हमारा हितैषी हो, दुख-सुख में बराबर साथ निभाए, गलत राह पर जाने से रोके और अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है।  - वेद
* जो हमारा हितैषी हो, दुख-सुख में बराबर साथ निभाए, ग़लत राह पर जाने से रोके और अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है।  - वेद
* ज्ञानीजन विद्या विनय युक्त ब्राम्हण तथा गौ हाथी कुत्ते और चाण्डाल मे भी समदर्शी होते हैं।
* यदि सज्जनो के मार्ग पर पूरा नही चला जा सकता तो थोडा ही चले। सन्मार्ग पर चलने वाला पुरूष नष्ट नही होता।
* कोई भी वस्तु निरर्थक या तुच्छ नही है। प्रत्येक वस्तु अपनी स्थिति मे सर्वोत्कृष्ट है।  - लांगफेलो
* दुनिया में ही मिलते हैं हमे दोजखो-जन्नत। इंसान जरा सैर करे, घर से निकल कर॥  - दाग
* दुनिया में ही मिलते हैं हमे दोजखो-जन्नत। इंसान जरा सैर करे, घर से निकल कर॥  - दाग
* विश्व एक महान पुस्तक है जिसमें वे लोग केवल एक ही पृष्ठ पढ पाते हैं जो कभी घर से बाहर नहीं निकलते।  - आगस्टाइन
* दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है।  - डा रामकुमार वर्मा
* डूबते को बचाना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है।  - डॉ.मनोज चतुर्वेदी
* जिसने अकेले रह कर अकेलेपन को जीता उसने सब कुछ जीता। -अज्ञात
* अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का।  - डॉ. तपेश चतुर्वेदी
* ऐसे देश को छोड़ देना चाहिये जहां न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा।  – विनोबा
* विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है।  – रवींद्रनाथ ठाकुर
* आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।  - महात्मा गांधी
* पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है।  - जयशंकर प्रसाद
* उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं।  – अज्ञात
* विश्वास हृदय की वह कलम है जो स्वर्गीय वस्तुओं को चित्रित करती है।  - अज्ञात
* गरीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार गऱीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं।  - सादी
* जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का पतिबिम्ब नहीं पड़ सकता।  - रामकृष्ण परमहंस
* मित्र के मिलने पर पूर्ण सम्मान सहित आदर करो, मित्र के पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद अवश्य करो।  - डॉ.मनोज चतुर्वेदी
* जैसे छोटा सा तिनका हवा का स्र्ख़ बताता है वैसे ही मामूली घटनाएं मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं।  - महात्मा गांधी
* देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है।  - बलभद्र प्रसाद गुप्त ‘रसिक’
* दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएं चाहता है, विलासी बहुत सी और लालची सभी वस्तुएं चाहता है।  - अज्ञात
* चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है।  - रवीन्द्र नाथ ठाकुर
* जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत सबकुछ है।  - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं।  - सत्यसांई बाबा
* अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है।  - प्रेमचंद
* खातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास जरूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद।  - शरतचन्द्र
* लगन और योग्यता एक साथ मिलें तो निश्चय ही एक अद्वितीय रचना का जन्म होता है।  - मुक्ता
* अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं।  - हरिऔध
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है।  - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है।  - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है।  - गौतम बुद्ध
* स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।  - लोकमान्य तिलक
* त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहां भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं।  - बस्र्आ
* दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते।  - प्रेमचंद
* अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है।  - जयशंकर प्रसाद
* द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है।  - विनोबा
* सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिये उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना।  - डा शंकर दयाल शर्मा
* सारा जगत स्वतंत्रताके लिये लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है।  - श्री अरविंद
* सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है। एक जुल्मों के खिलाफ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरूद्ध ।  - सरदार पटेल
* तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं।  - वाल्मीकि
* भूलना प्रायः प्राकृतिक है जबकि याद रखना प्रायः कृत्रिम है।  - रत्वान रोमेन खिमेनेस
* हँसमुख चेहरा रोगी के लिये उतना ही लाभकर है जितना कि स्वस्थ ऋतु।  - बेन्जामिन
* हम उन लोगों को प्रभावित करने के लिये महंगे ढंग से रहते हैं जो हम पर प्रभाव जमाने के लिये महंगे ढंग से रहते है।  - अनोन
* कीरति भनिति भूति भलि सो, सुरसरि सम सबकँह हित होई ॥  - तुलसीदास
* स्पष्टीकरण से बचें। मित्रों को इसकी आवश्यकता नहीं; शत्रु इस पर विश्वास नहीं करेंगे।  - अलबर्ट हबर्ड
* अपने उसूलों के लिये, मैं स्वंय मरने तक को भी तैयार हूँ, लेकिन किसी को मारने के लिये, बिल्कुल नहीं।  - महात्मा गाँधी
* विजयी व्यक्ति स्वभाव से, बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है।  - प्रेमचंद
* अतीत चाहे जैसा हो, उसकी स्मृतियाँ प्रायः सुखद होती हैं।  - प्रेमचंद
* अपनी आंखों को सितारों पर टिकाने से पहले अपने पैर जमीन में गड़ा लो| – थियोडॉर रूज़वेल्ट
* आमतौर पर आदमी उन चीजों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है जिनका उससे कोई लेना देना नहीं होता| – जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
* स्वास्थ्य के संबंध में, पुस्तकों पर भरोसा न करें। छपाई की एक गलती जानलेवा भी हो सकती है।  - मार्क ट्वेन
* मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय।  - श्रीराम शर्मा , आचार्य
* जिसका यह दावा है कि वह आध्यात्मिक चेतना के शिखर पर है मगर उसका स्वास्थ्य अक्सर खराब रहता है तो इसका अर्थ है कि मामला कहीं गड़बड़ है।  - महात्मा गांधी
* स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है।
* स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है।
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम। (यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है / सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते है)
* शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम। (यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है / सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते है)
आहार, स्वप्न (नींद) और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ हैं।  - महर्षि चरक
* मुक्त बाज़ार में स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी न्याय, मानवाधिकार, पेयजल तथा स्वच्छ हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है। यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो उन्हें ख़रीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने में करते हैं जो सर्वथा उनके अनुकूल होता है।  - अरुंधती राय
* यदि आप इस बात की चिंता न करें कि आपके काम का श्रेय किसे मिलने वाला है तो आप आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं  – हैरी एस. ट्रूमेन
* कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए।  - दर्पदलनम् 1।29
* श्रेष्ठ आचरण का जनक परिपूर्ण उदासीनता ही हो सकती है  – काउन्ट रदरफ़र्ड
* तुम प्लास्टिक सर्जरी करवा सकते हो, तुम सुन्दर चेहरा बनवा सकते हो, सुंदर आंखें सुंदर नाक, तुम अपनी चमड़ी बदलवा सकते हो, तुम अपना आकार बदलवा सकते हो। इससे तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलेगा। भीतर तुम लोभी बने रहोगे, वासना से भरे रहोगे, हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक सर्जन कुछ कर नहीं सकता। - ओशो
* उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं। संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं।  - गौतम बुद्ध
* पशु पालक की भांति देवता लाठी ले कर रक्षा नहीं करते, वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं उसे बुद्धी से समायुक्त कर देते है। महाभारत -उद्योग पर्व
* कबिरा आप ठगाइये, और न ठगिये कोय। आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय॥  - कबीर
* विषयों का चिंतन करने वाले मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है। आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से मूढ़ता और बुद्धि भ्रष्टता उत्पन्न होती है। बुद्धि के भ्रष्ट होने से स्मरण-शक्ति विलुप्त हो जाती है, यानी ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है। और जब बुद्धि तथा स्मृति का विनाश होता है, तो सब कुछ नष्ट हो जाता है। - गीता (अध्याय 2/62, 63)
* प्रत्येक मनुष्य में तीन चरित्र होता है| एक जो वह दिखाता है, दूसरा जो उसके पास होता है, तीसरी जो वह सोचता है कि उसके पास है| – अलफ़ॉसो कार
* एक साधै सब सधे, सब साधे सब जाये, रहीमन, मुलही सिंचीबो, फुले फले अगाय -रहीम
* जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती।  - विनोबा
* जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंग, चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग । -रहीम
* मनुष्य की महानता उसके कपडों से नहीं बल्कि उसके चरित्र से आँकी जाती है।  - स्वामी विवेकानन्द
* रहीमन देखि बडेन को, लघु ना दिजिए डारी, जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारी । -रहीम
* अनेक लोग वह धन व्यय करते हैं जो उनके द्वारा उपार्जित नहीं होता, वे चीज़ें खरीदते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, उनको प्रभावित करना चाहते हैं जिन्हें वे पसंद नहीं करते।  - जानसन
 
* मुक्त बाजार में स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी न्याय, मानवाधिकार, पेयजल तथा स्वच्छ हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है।यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो उन्हें खरीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने में करते हैं जो सर्वथा उनके अनुकूल होता है।  - अरुंधती राय
* अध्ययन हमें आनन्द तो प्रदान करता ही है, अलंकृत भी करता है और योग्य भी बनाता है, मस्तिष्क के लिये अध्ययन की उतनी ही आवश्यकता है जितनी शरीर के लिये व्यायाम की | — जोसेफ एडिशन
* पढने से सस्ता कोई मनोरंजन नहीं ; न ही कोई खुशी , उतनी स्थायी । — जोसेफ एडिशन
* सही किताब वह नहीं है जिसे हम पढ़ते हैं – सही किताब वह है जो हमें पढ़ता है | — डबल्यू एच ऑदेन
* पुस्तक एक बग़ीचा है जिसे जेब में रखा जा सकता है, किताबों को नहीं पढ़ना किताबों को जलाने से बढ़कर अपराध है | -– रे ब्रेडबरी
* पुस्तक प्रेमी सबसे धनवान व सुखी होता है, संपूर्ण रूप से त्रुटिहीन पुस्तक कभी पढ़ने लायक नहीं होती। - जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
* यदि किसी असाधारण प्रतिभा वाले आदमी से हमारा सामना हो तो हमें उससे पूछना चाहिये कि वो कौन सी पुस्तकें पढता है । — एमर्शन
* किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं । –अज्ञात
* चिड़ियों की तरह हवा में उड़ना और मछलियों की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें इन्सानों की तरह ज़मीन पर चलना सीखना है। - सर्वपल्ली राधाकृष्णन
* हिन्दुस्तान का आदमी बैल तो पाना चाहता है लेकिन गाय की सेवा करना नहीं चाहता। वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही कद्र करता है |हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो बैल। योजना तो ठीक है लेकिन वह भगवान को मंजूर नहीं है। - विनोबा
* भारतीय संस्कृति और धर्म के नाम पर लोगों को जो परोसा जा रहा है वह हमें धर्म के अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी, राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। - स्वामी रामदेव
* ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ एक चेहरा दिया है और तुम उस पर कई चेहरे चढ़ा लेते हो, जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते | -– नवाजो
* जब तुम्हारे खुद के दरवाजे की सीढ़ियाँ गंदी हैं तो पड़ोसी की छत पर पड़ी गंदगी का उलाहना मत दीजिए | -– कनफ़्यूशियस
* सोचना, कहना व करना सदा समान हो, नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है । –संत तिस्र्वल्लुवर
* यदि आपको रास्ते का पता नहीं है, तो जरा धीरे चलें | महान ध्येय ( लक्ष्य ) महान मस्तिष्क की जननी है । — इमन्स
* जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और ख़तरनाक नहीं जितना डांवांडोल स्थिति में रहना । — सुभाषचंद्र बोस!
* जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिये समर्पित हो । यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो । –इंदिरा गांधी
* विफलता नहीं , बल्कि दोयम दर्जे का लक्ष्य एक अपराध है । --अज्ञात
* मनुष्य की इच्छाओं का पेट आज तक कोई नहीं भर सका है | – वेदव्यास
* इच्छा ही सब दुःखों का मूल है | -– बुद्ध
* भ्रमरकुल आर्यवन में ऐसे ही कार्य (मधुपान की चाह) के बिना नहीं घूमता है। क्या बिना अग्नि के धुएं की शिखा कभी दिखाई देती है ? - गाथासप्तशती
* स्वप्न वही देखना चाहिए, जो पूरा हो सके । –आचार्य तुलसी
* माया मरी न मन मरा , मर मर गये शरीर । आशा तृष्ना ना मरी , कह गये दास कबीर ॥ — कबीर
* कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और स्र्आब दिखाने से नहीं । — प्रेमचंद
* आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता । –चाणक्य
* जहां प्रकाश रहता है वहां अंधकार कभी नहीं रह सकता । — माघ्र
* जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं । –रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* जहाँ अकारण अत्यन्त सत्कार हो , वहाँ परिणाम में दुख की आशंका करनी चाहिये । — कुमार सम्भव
* विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी मिठास । एक जीवन को सुरक्षित रखता है और दूसरा उसे मधुर बनाता है । –अज्ञात
* मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता | –चाणक्य
* आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं । इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता । –पंडित रामप्रताप त्रिपाठी
* कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं । –लोकमान्य तिलक
* प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन हर दर्द की दवा हैं । — अज्ञात
* जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिये | — वेदव्यास
* जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं । –गौतम बुद्ध
* वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। -स्वामी रामतीर्थ
* अपने विषय में कुछ कहना प्राय:बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को । –महादेवी वर्मा
* जैसे अंधे के लिये जगत अंधकारमय है और आंखों वाले के लिये प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिये जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिये आनंदमय | — सम्पूर्णानंद
* बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिये, मंद नहीं पड़ना चाहिये । — यशपाल
* कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढाती है । — वीर सावरकर
* जिसके पास न विद्या है, न तप है, न दान है , न ज्ञान है , न शील है , न गुण है और न धर्म है ; वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर पशु की तरह चरते हैं (जीवन व्यतीत करते हैं ) । — भर्तृहरि
* मनुष्य कुछ और नहीं , भटका हुआ देवता है । — श्रीराम शर्मा , आचार्य
* मानव तभी तक श्रेष्ठ है , जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त है । बतौर पशु , मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है। — रवीन्द्र नाथ टैगोर
* आदर्श के दीपक को , पीछे रखने वाले , अपनी ही छाया के कारण , अपने पथ को , अंधकारमय बना लेते हैं। — रवीन्द्र नाथ टैगोर
* क्लोज़-अप में जीवन एक त्रासदी (ट्रेजेडी) है, तो लंबे शॉट में प्रहसन (कॉमेडी) | -– चार्ली चेपलिन
* आपके जीवन की खुशी आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है | -– मार्क ऑरेलियस अन्तोनियस
* हमेशा बत्तख की तरह व्यवहार रखो. सतह पर एकदम शांत , परंतु सतह के नीचे दीवानों की तरह पैडल मारते हुए | -– जेकब एम ब्रॉदे
* जैसे जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, सुंदरता भीतर घुसती जाती है | -– रॉल्फ वाल्डो इमर्सन
* अव्यवस्था से जीवन का प्रादुर्भाव होता है , तो अनुक्रम और व्यवस्थाओं से आदत | -– हेनरी एडम्स
* दृढ़ निश्चय ही विजय है, जब आपके पास कोई पैसा नहीं होता है तो आपके लिए समस्या होती है भोजन का जुगाड़. जब आपके पास पैसा आ जाता है तो समस्या सेक्स की हो जाती है, जब आपके पास दोनों चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है और जब सारी चीज़ें आपके पास होती हैं, तो आपको मृत्यु भय सताने लगता है | -– जे पी डोनलेवी
* दुनिया में सिर्फ दो सम्पूर्ण व्यक्ति हैं – एक मर चुका है, दूसरा अभी पैदा नहीं हुआ है |
प्रसिद्धि व धन उस समुद्री जल के समान है, जितना ज्यादा हम पीते हैं, उतने ही प्यासे होते जाते हैं |
हम जानते हैं कि हम क्या हैं, पर ये नहीं जानते कि हम क्या बन सकते हैं | -- शेक्सपीयर
* दूब की तरह छोटे बनकर रहो. जब घास-पात जल जाते हैं तब भी दूब जस की तस बनी रहती है | – गुरु नानक देव
* यदि कोई लडकी लज्जा का त्याग कर देती है तो अपने सौन्दर्य का सबसे बडा आकर्षण खो देती है । — सेंट ग्रेगरी
* सबसे उत्तम बदला क्षमा करना है | — रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* दुष्टो का बल हिन्सा है, शासको का बल शक्ती है,स्त्रीयों का बल सेवा है और गुणवानो का बल क्षमा है । — रामधारी सिंह दिनकर
* उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है। -- तिरुवल्लुवर
* जो अकारण अनुराग होता है उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती है क्योंकि वह तो स्नेहयुक्त सूत्र है जो प्राणियों को भीतर-ही-भीतर (ह्रदय में) सी देती है। -- उत्तररामचरित
* पुरुष के लिए प्रेम उसके जीवन का एक अलग अंग है पर स्त्री के लिए उसका संपूर्ण अस्तित्व है । - लार्ड बायरन
* संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास । — काका कालेलकर
* जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है | – कबीर
* गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है | – शेक्सपीयर
* कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का) मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक बढते-फैलते हैं। - मृच्छकटिक
* सभी लोगों के स्वभाव की ही परिक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरिहै)। - हितोपदेश
* पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है । – गौतम बुद्ध
* आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, मम्त्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता । - भगवान महावीर
* कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे । - पंडितराज जगन्नाथ
* कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए । - दर्पदलनम् १।२९
* गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है । - वासवदत्ता
* घमंड करना जाहिलों का काम है । - शेख सादी
* तुम प्लास्टिक सर्जरी करवा सकते हो, तुम सुन्दर चेहरा बनवा सकते हो, सुंदर आंखें सुंदर नाक, तुम अपनी चमड़ी बदलवा सकते हो, तुम अपना आकार बदलवा सकते हो। इससे तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलेगा। भीतर तुम लोभी बने रहोगे, वासना से भरे रहोगे, हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक सर्जन कुछ कर नहीं सकता। - ओशो
* मछली एवं अतिथि , तीन दिनों के बाद दुर्गन्धजनक और अप्रिय लगने लगते हैं । — बेंजामिन फ्रैंकलिन
* जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। - फुलर
* आंदोलन से विद्रोह नहीं पनपता बल्कि शांति कायम रहती है। - वेडेल फिलिप्स
* ‘हिंसा’ को आप सर्वाधिक शक्ति संपन्न मानते हैं तो मानें पर एक बात निश्चित है कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के लिए मस्तिष्क की और काम करने के लिए हाथ की। - स्वामी विवेकानंद
* सत्य को कह देना ही मेरा मज़ाक करने का तरीका है। संसार में यह सब से विचित्र मज़ाक है। - जार्ज बर्नार्ड शॉ
* सत्य बोलना श्रेष्ठ है ( लेकिन ) सत्य क्या है , यही जानाना कठिन है । जो प्राणिमात्र के लिये अत्यन्त हितकर हो , मै इसी को सत्य कहता हूँ — वेद व्यास
* सही या गलत कुछ भी नहीं है – यह तो सिर्फ सोच का खेल है, पूरी इमानदारी से जो व्यक्ति अपना जीविकोपार्जन करता है, उससे बढ़कर दूसरा कोई महात्मा नहीं है। - लिन यूतांग
* झूठ का कभी पीछा मत करो । उसे अकेला छोड़ दो। वह अपनी मौत खुद मर जायेगा । - लीमैन बीकर
* धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है । — डा. शंकरदयाल शर्मा
* धर्मरहित विज्ञान लंगडा है, और विज्ञान रहित धर्म अंधा । — आइन्स्टाइन
* बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है । - अष्टावक्र
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* जो समय को नष्‍ट करता है, समय भी उसे नष्‍ट कर देता है, समय का हनन करने वाले व्‍यक्ति का चित्‍त सदा उद्विग्‍न रहता है और वह असहाय तथा भ्रमित होकर यूं ही भटकता रहता है, प्रति पल का उपयोग करने वाले कभी भी पराजित नहीं हो सकते, समय का हर क्षण का उपयोग मनुष्‍य को विलक्षण और अदभुत बना देता है।
* जैसे का साथ तैसा, वह भी ब्‍याज सहित व्‍यवहार करना ही सर्वोत्‍तम नीति है, शठे शाठयम और उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्‍तये के सूत्र को अमल में लाना ही गुणकारी उपाय है।
* गुड़, घी से सींचा गयो नीम ना मीठा होय। लोहे से लोहा कटे, जानि परे सब कोय।। यानि शठ जाने शठ ही की बानीं, दुष्‍ट व्‍यक्ति को लाखों यत्‍न के बाद भी नहीं सुधारा जा सकता, उसे तो दुष्‍टता से ही काबू किया जा सकता है।
* खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग। अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना तथा घोड़ा या जिस वाहन पर सवारी करनी हो उसकी जाँच और तैयारी मनुष्‍य को स्‍वयं ही खुद करनी चाहिये, भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्‍य का नुक़सान तय शुदा है।
* जो किसी से कुछ ले कर भूल जाते हैं, अपने ऊपर किये उपकार को मानते नहीं, एहसान को भुला देते हैं उन्हें कृतघ्‍नी कहा जाता है और जो सदा इसे याद रख कर प्रति उपकार करने और अहसान चुकाने का प्रयास करते हैं, उन्‍हें कृतज्ञ कहा जाता है।
* दूसरों को ख़ुशी देना सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है।
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| वृक्ष तथा विभिन्न वनस्पतियां धारती पर हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी हैं। भारतीय संस्कृति में भी प्राचीन समय से ही वृक्षो तथा वनस्पतियों को पूजनीय माना जाता रहा हैं। विभिन्न वनस्पतियां हमारे स्वास्थ्य की रक्षा में भी सहायक सिद्ध होती हैं। ऐसा ही एक छोटा परन्तु बहुत महत्त्वपूर्ण पौधा तुलसी है। तुलसी को हजारों वर्षों से विभिन्न रोगों के इलाज के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जा रहा हैं। आयुर्वेद में भी तुलसी तथा उसके विभिन्न औषधीय प्रयोगों का विशेष स्थान हैं। आपके आंगन में लगा छोटा सा तुलसी का पौधा, अनेक बीमारियो का इलाज करने के आचर्यजनक गुण लिए हुए होता हैं।
सर्दी के मौसम में खांसी जुकाम होना एक आम समस्या हैं। इनसे बचे रहने का सबसे सरल उपाय है तुलसी की चाय। तुलसी की चाय बनाने के लिए, तुलसी की दस पन्द्रह ग्राम ताजी पत्रितयां लें और धो कर कुचल लें। फिर उसे एक कप पानी में डालें उसमें पीपला मूल, सौंठ, इलायची पाउड़र तथा एक चम्मच चीनी मिला लें, इस मिश्रण को उबालकर बिना छाने सुबह गर्मा-गर्म पीना चाहिये। इस प्रकार की चाय पीने से शरीर में चुस्ती स्फूर्ति आती है और भूख बढ़ती हैं। जिन लोगों को सर्दियों में बारबार चाय पीने की आदत है। उनके लिए तुलसी की चाय बहुत लाभदायक होगी। जो न केवल उन्हें स्वास्थ्य लाभ देगी अपितु उन्हें साधारण चाय के हानिकारक प्रभावो से भी बचाएगीं।
सर्दी, जवर, अरूचि, सुस्ती, दाह, वायु तथा पित्त संबंधी विकारों को दूर करने के लिए भी तुलसी की औषधीय रचना और अपना महत्व हैं। इसके लिए तुलसी की दस पन्द्रह ग्राम ताजी धुली पत्तियों को लगभग 150 ग्राम पानी में उबाल लें। जब लगभग आधा या चौथाई पानी ही शेष रह जाए। तो उसमें उतनी ही मात्रा में दूध तथा जरूरत के अनुसार मिश्री मिला लें। यह अनेक रोगों को तो दूर करता ही है साथ ही क्षुधावर्धक भी होता हैं। इसी विधि के अनुसार काढ़ा बनाकर उसमें एक दो इलायची का चूर्ण और दस पन्द्रह सुधामूली डालकर सर्दियों में पीना बहुत लाभकारी होता हैं। इसमें शारीरिक पुष्टता बढ़ती हैं। तुलसी के पत्ते का चूर्ण बनाकर मर्तबान में रख लें, जब भी चाय बनाएं तो दस पन्द्रह ग्राम इस चूर्ण का प्रयोग करें यह चाय ज्वर, दमा, जुकाम, कफ तथा गले के रोगों के लिए बहुत लाभकारी हैं।
तुलसी का काढ़ा बनाने के लिए तीन चार काली मिर्च के साथ तुलसी की सात आठ पत्रितयों को रगड़ लें और अच्छी तरह मिलाकर एक गिलास द्रव तैयार करें इक्कीस दिनों तक सुबह लगातार ख़ाली पेट इस काढ़े का सेवन करने से मस्तिष्क की गर्मी दूर होती है और उसे शांति मिलती हैं। क्योंकि यह काढ़ा हृदयोत्तेजक होता है, इसलिए यह हृदय को पुष्ट करता है और हृदय संबंधी रोगों से बचाव करता हैं।
एसिडिटी संधिवात मधुमेह, स्थूलता, खुजली, यौन दुर्बलता, प्रदाह आदि अनेक बीमारियों के उपचार के लिए तुलसी की चटनी बनाई जा सकती हैं। इसके लिए लगभग दस-दस ग्राम धानिया, पुदिना लें उसमें थोड़ा सा लहसुन अदरख, सेंधा नमक, खजूर का गुड़, अंकुरित मेथी, अंकुरित चने, अंकुरित मूग, तिल और लगभग पांच ग्राम तुलसी के पत्ते मिलाकर महीन पीस लें। अब इसमें एक नींबू का रस और लगभग पन्द्रह ग्राम नारियल की छीन डाले। इस चटनी को रोटी के साथ या साग में मिलाकर खाया जा सकता हैं। चटनी से कैल्शियम, पोटेशियम, गंधाक, आयरन, प्रोटीन तथा एन्जाइम आदि हमारे शरीर को प्राप्त होते हैं। एक बात ध्यान रखें कि यह चटनी दो घांटे तक ही अच्छी रहती है। अत: इसका प्रयोग सदा ताजा बनाकर ही करें दो घांटे के बाद इसके गुण में परिवर्तन आ जाता हैं। इस चटनी को कभी फ्रिज में नहीं रखें।
शीतऋतु में तुलसी का पाक भी एक गुणकारी औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता हैं। इसके लिए तुलसी के बीजों को निकाल कर आटे जैसा बारीक पीस लें अब लगभग 125 ग्राम चने के आटे में मोयन के लिए देसी घी व थोड़ा सा दूध डालकर उसे लोहे या पीतल की कड़ाही में घी डालकर धीमी आंच पर भूनें। बाद में लगभग 125 ग्राम खोआ डालकर, उसे भूनें इसके बात उसमें बादाम की गिरि व तुलसी के बीजों का चूर्ण मिला लें। जब लाल हो जाए, तो इसमें इलायची व काली मिर्च ड़ालकर इस मिश्रण को तुरंत उतार लें। अब मिश्री की चाशनी में केसर डालकर, इस मिश्रण को उसमें डाल दें और अच्छी तरह मिलाएं, गाढ़ा होने पर थाली में ठंड़ा कर टुकड़े करें सर्दी में प्रतिदिन 20 से 100 ग्राम मात्रा दूध के साथ खाने से बल वीर्य बढ़ता हैं। इससे पेट के रोग वातजन्य रोग, शीघ्रपतन, कामशीलता, मस्तिष्क की कमज़ोरी, पुराना जुकाम, कफ आदि में बहुत लाभ होता हैं।
अरिष्ट आसव बनाने के लिए 100 ग्राम बबूल की छाल को लगभग डेढ़ किलो पानी में तब तक उबालें जब तक कि पानी एक चौथाई न हो जाएं। अब इसे छानकर इसमें लगभग अस्सी ग्राम तुलसी का चूर्ण, पांच सौ ग्राम गुड़, 10 ग्राम पीपल तथा 80 ग्राम आंवले के फूल मिला दें। काली मिर्च, जायफल, दालचीनी,ाीतलचीनी, नागकेसर, तमालपत्र तथा छोटी इलायचीं,
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| ;टैगोर व मदर टेरेसा की जयंती पर विशेष डाक टिकट व ट्रेन
| ;टैगोर व मदर टेरेसा की जयंती पर विशेष डाक टिकट व ट्रेन
* डाक विभाग, कोलकाता नोबल पुरस्कार से सम्मानित विश्व कवि कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर की 150 वीं जयंती तथा मिशनरीज आफ चैरिटी की संस्थापक मदर टेरेसा की 100वीं जन्म शताब्दी पर डाक टिकट जारी करेगा। संयोग से वर्ष 2010 में टैगोर की 150वी और मदर टेरेसा की 100वीं जयंती है। कोलकाता जीपीओ के निदेशक अनिल कुमार ने बताया कि कविगुरु ने एक नाटक '''डाक घर''' लिखा था तथा बचपन में वह पोस्टऑफिस में ही काम करना चाहते थे। कविगुरु और मदर पर डाक टिकट के अलावा डायरी, ग्रीटिंग कार्ड और कैलेंडर भी इस वर्ष जारी किये जायेंगे। श्री कुमार ने बताया कि इस बारे में शोध कार्य किया जा रहा है कि मदर टेरेसा के मिशनरोज ऑफ चैरिटी के जरिए गरीबों की सेवा तथा उनके जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यो को ‘बेहतर तरीके’ से कैसे व्यक्त किया जा सके।  
* डाक विभाग, कोलकाता नोबल पुरस्कार से सम्मानित विश्व कवि कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर की 150 वीं जयंती तथा मिशनरीज आफ चैरिटी की संस्थापक मदर टेरेसा की 100वीं जन्म शताब्दी पर डाक टिकट जारी करेगा। संयोग से वर्ष 2010 में टैगोर की 150वी और मदर टेरेसा की 100वीं जयंती है। कोलकाता जीपीओ के निदेशक अनिल कुमार ने बताया कि कविगुरु ने एक नाटक '''डाक घर''' लिखा था तथा बचपन में वह पोस्टऑफिस में ही काम करना चाहते थे। कविगुरु और मदर पर डाक टिकट के अलावा डायरी, ग्रीटिंग कार्ड और कैलेंडर भी इस वर्ष जारी किये जायेंगे। श्री कुमार ने बताया कि इस बारे में शोध कार्य किया जा रहा है कि मदर टेरेसा के मिशनरोज ऑफ चैरिटी के जरिए गरीबों की सेवा तथा उनके जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यो को ‘बेहतर तरीके’ से कैसे व्यक्त किया जा सके।  
* इसके अलावा इस साल टैगोर तथा मदर पर डाक टिकट, डायरियां, ग्रीटिंग कार्ड और कलेंडर जारी किए जाएंगे। कॉफी के मग पर दोनों महान विभूतियां के दुर्लभ चित्र और संदेश लिखकर उन्हें बेचा जाएगा। ये सभी वस्तुएं फिलाटेलिक ब्यूरो में उपलब्ध रहेंगे, जिन्हें कलेक्टर्स (संग्रहकर्ता) को पार्सल या वीपीपी से भेजा जायेगा. डाक विभाग को आशा है कि इन उत्पादों की कोलकाता में काफ़ी कद्र होगी, क्योंकि देश भर में सर्वाधिक 52 हजार स्टैंप कलेक्टर यहां हैं। उन्होंने बताया कि यह टिकट संग्रहण ब्यूरो में उपलब्ध होगा तथा मांग पर ज़िलाधिकारी को भेजा जाएगा।  
* इसके अलावा इस साल टैगोर तथा मदर पर डाक टिकट, डायरियां, ग्रीटिंग कार्ड और कलेंडर जारी किए जाएंगे। कॉफी के मग पर दोनों महान विभूतियां के दुर्लभ चित्र और संदेश लिखकर उन्हें बेचा जाएगा। ये सभी वस्तुएं फिलाटेलिक ब्यूरो में उपलब्ध रहेंगे, जिन्हें कलेक्टर्स (संग्रहकर्ता) को पार्सल या वीपीपी से भेजा जायेगा। डाक विभाग को आशा है कि इन उत्पादों की कोलकाता में काफ़ी कद्र होगी, क्योंकि देश भर में सर्वाधिक 52 हज़ार स्टैंप कलेक्टर यहां हैं। उन्होंने बताया कि यह टिकट संग्रहण ब्यूरो में उपलब्ध होगा तथा मांग पर ज़िलाधिकारी को भेजा जाएगा।  
* श्री कुमार ने बताया कि अभिनेता उत्तम कुमार और जादूगर पीसी सरकार पर आधारित उत्पादों की बिक्री भी खासी हुई थी. नदिया ज़िले के कृष्णनगर पोस्ट ऑफिस से भगवान कृष्ण पर आधारित 10 हजार कैलेंडर बेचे गये थे। उन्होंने बताया कि वह लोगों को डाक टिकट के क़रीब लाना चाहते हैं, क्योंकि इसके जरिये देश के इतिहास, संस्कृति, जीवन और विकास का पता चलता है।
* श्री कुमार ने बताया कि अभिनेता उत्तम कुमार और जादूगर पीसी सरकार पर आधारित उत्पादों की बिक्री भी ख़ासी हुई थी। नदिया ज़िले के कृष्णनगर पोस्ट ऑफिस से भगवान कृष्ण पर आधारित 10 हज़ार कैलेंडर बेचे गये थे। उन्होंने बताया कि वह लोगों को डाक टिकट के क़रीब लाना चाहते हैं, क्योंकि इसके ज़रिये देश के इतिहास, संस्कृति, जीवन और विकास का पता चलता है।
* इधर रेलवे की ओर से घोषणा की गयी है कि मदर टेरेसा के नाम पर मदर एक्सप्रेस की शुरूआत की जायेगी. गुरुवार को रेल मंत्री ममता बनर्जी इसकी शुरूआत सियालदह से करेंगी. यह ट्रेन देश भर के विभिन्न स्टेशनों पर अगले छह महीने तक जायेगी।
* इधर रेलवे की ओर से घोषणा की गयी है कि मदर टेरेसा के नाम पर मदर एक्सप्रेस की शुरूआत की जायेगी। गुरुवार को रेल मंत्री ममता बनर्जी इसकी शुरूआत सियालदह से करेंगी। यह ट्रेन देश भर के विभिन्न स्टेशनों पर अगले छह महीने तक जायेगी।
* उदघाटन के मौके पर मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सुपीरियर जनरल सिस्टर प्रेमा, सिस्टर निर्मला, सिस्टर ऐंसी, सिस्टर जोसफ, सिस्टर गेरार्ड, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री दिनेश त्रिवेदी, केंद्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री मुकुल राय, केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री सुलतान अहमद, सुदीप बनर्जी, सोमेन मित्रा, शोभन चटर्जी, शिखा मित्रा, शुभाप्रसन्ना, सांवली मित्रा, डेरेक ओ ब्रायन व अन्य मौजूद रहेंगे।
* उदघाटन के मौके पर मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सुपीरियर जनरल सिस्टर प्रेमा, सिस्टर निर्मला, सिस्टर ऐंसी, सिस्टर जोसफ, सिस्टर गेरार्ड, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री दिनेश त्रिवेदी, केंद्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री मुकुल राय, केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री सुलतान अहमद, सुदीप बनर्जी, सोमेन मित्रा, शोभन चटर्जी, शिखा मित्रा, शुभाप्रसन्ना, सांवली मित्रा, डेरेक ओ ब्रायन व अन्य मौजूद रहेंगे।
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| विभिन्न क्षेत्रों भारत में प्रथम
 
6. फील्ड मार्शल - S.H.F.J. मानेकशा
9. वायसराय एक्जिक्यूटिव कौंसिल के प्रथम भारतीय सदस्य - एस. पी. सिन्हा
26. भारत में निर्मित प्रथम भारतीय फ़िल्म (silent film) - राजा हरिश्चन्द्र, 1913 में
27. भारत में निर्मित प्रथम भारतीय फ़िल्म (silent film) के निर्माण कर्ता - दादा साहेब फाल्के
28. प्रथम भारतीय रंगीन फ़िल्म - किशन कन्हैया (1937)
29. सिनेमास्कोप फ़िल्म - काग़ज़ के फूल (1959)
30. लाइफ टाइम अचिवमेंट के ऑस्कर पुरस्कार विजेता - सत्यजीत राय (1992)
31. बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन ऑस्कर विजेता - भानु अथैया (1982)
45. ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाली प्रथम भारोत्तोलक - कर्णम मल्लेश्वरी देवी (सिडनी, 2000)
46. शतरंज में प्रथम विश्व चैम्पियन भारतीय  -  विश्वनाथन आनंद
49. दलित वर्ग से प्रथम लोकसभा अध्यक्ष - G. M. C. बालयोगी
 
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| कन्या द्वारा वर से लिए जाने वाले सात वचन इस प्रकार है।
विवाह के बाद कन्या वर के वाम अंग में बैठने से पूर्व उससे सात वचन लेती है।
1-तीर्थव्रतोद्यापनयज्ञ दानं मया सह त्वं यदि कान्तकुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद वाक्यं प्रथमं कुमारी।।
कन्या कहती है, स्वामिन् तीर्थ व्रत, उद्यापन, यज्ञ, दान आदि सभी शुभ कार्य तुम मेरे साथ करो तो में तुम्हारे वाम अंग में आऊ।।
2-हव्यप्रदानैरमरान् पितृश्चं कव्यं प्रदानैर्यदि पूजयेथा:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं द्वितीयकम्।।
यदि तुम हव्य देकर देवताओं को और कव्य देकर पितरों की पूजा करो तो मैं तुम्हारे वाम अंग मैं आऊ।
3-कुटुम्बरक्षाभरंणं यदि त्वं कुर्या: पशूनां परिपालनं च।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं तृतीयम्।।
यदि तुम मेरी तथा परिवार की रक्षा करो तथा पशुओं का पालन करो तो मै तुम्हारे वाम अंग मै आऊँ। यह तीसरी बात कन्या ने कही।
4-आयं व्ययं धान्यधनादिकानां पृष्टवा निवेशं प्रगृहं निदध्या:।।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं चतुर्थकम्।।
यदि तुम धन-धान्यादिकों का आय व्यय मेरी सम्मती से करो तो मै तुम्हारे वाग अंग में आऊँ। यह चौथा वचन है।
5-देवालयारामतडागकूपं वापी विदध्या:यदि पूजयेथा:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं पंचमम्।।
यदि देवालय, बाग, कूप, तालाब, बावली बनवाकर पूजा करो तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आऊँ।
6-देशान्तरे वा स्वपुरान्तरे वा यदा विदध्या:क्रयविक्रये त्वम्।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं षष्ठम्।।
यदि तुम अपने नगर में या किसी विदेश में जाकर व्यापार या नौकरी करो तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आऊँ।
7-न सेवनीया परिकी यजाया त्वया भवेभाविनि कामनीश्च।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं सप्तम्।।
यदि तुम परायी स्त्री को स्पर्श न करो तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आऊँ। यह सातवां वचन है।
 
 
 
चलिये हम याद दिलवा देते हैं उन वचनों को।
 
वधू के द्वारा वर से लिये गये वचनः
 
प्रथम वचनः यदि यज्ञं कुर्यात्तस्मिन्मम सम्मतिं गृ्हणीयात !!
 
अर्थात् यज्ञादि शुभ कार्य मेरी सम्मति से ही करेंगे।
 
द्वितीय वचनः यदि दानं कुर्यात्तस्मिन्नपि मम सम्मति गृ्हणियात !!
 
दानादि मेरी सम्मति से ही करेंगे।
 
तृतीय वचनः अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात !!
 
अर्थात् युवा, प्रौढ़ और वृ्द्ध तीनों अवस्थाओं में मेरा पालन करेंगे।
 
चतुर्थ वचनः धनादिगोपने मम सम्मतिं गृ्हणीयात !!
 
अर्थात् गुप्त रूप से धनादि संचय मेरी सम्मति से ही करेंगे।
 
पंचम वचनः गवादि पशु क्रय-विक्रये मम सम्मतिं गृ्हणीयात !!
 
अर्थात् गाय, बैल, घोडा आदि पशुओं (वर्तमान में वाहनादि) के क्रय विक्रय में भी मेरी सम्मति लेंगे।
 
षष्ठम वचनः बसन्तादि षटऋतुषु मम पालनं कुर्यात !!
 
अर्थात् वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर इन छहों ऋतुओं में मेरा पालन करेंगे।
 
सप्तम वचनः सखीष्य मम हास्यं कटुवाक्यम न वदेत न कुर्यात! तद्दहं भवतां वामांगें आगच्छामि !!
 
अर्थात् मेरे साथ की सखी सहेलियों के सामने मेरी हँसीं न उडाएं और न ही कठोर कटु वचनों का प्रयोग करें।
 
आप उपरोक्त सातों वचनों का पालन करेंगे तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।
 
वर के द्वारा वधू से लिया गया वचनः
 
उद्याने मद्यपाने च पितागृ्हगमनेन च !!
आज्ञा भंगो न कर्तव्यं वरवाक्यचतुष्टयकम !!
 
अर्थात निर्जन स्थान, उद्यान, वनादि में न जाए, दूसरे मद्य (शराब) पीने वाले मनुष्य के सामने न जाए, तीसरे यहाँ तक कि अपने पिता के घर भी मेरी आज्ञा के बिना न जाए, चौथे धर्म शास्त्रोचित कभी भी मेरी आज्ञा भंग न करे तो ही तुम मेरे वामांग में स्थान ग्रहण कर सकती हो।
 
 
 
शादी में सात फेरे क्यों लगाए जाते हैं?
जिसमें पहला वचन होता है, पति-पत्नी को जीवन भर पर्याप्त और सम्मानित ढंग से भोजन मिलता रहे, दूसरा दोनों का जीवन शांतिपूर्ण और स्वस्थ ढंग से बीते, तीसरा दोनों अपने जीवन में आध्यात्मिक और धार्मिक दायित्वों को निभा सकें, चौथा फेरा इस वचन के साथ लिया जाता है कि दोनों सौहार्द्र और परस्पर प्रेम के साथ जीवन बितायें, पाँचवे फेरे का वचन होता है विश्व का कल्याण हो और संतान कि प्राप्ति हो, छठे में प्रार्थना की जाती है कि सभी ऋतुएं अपने अपने ढंग से समुचित धनधान्य उत्पन्न करके दुनिया भर को सुख दें क्योंकि सभी के सुख में दंपत्ति का भी भला होता है और सातवें फेरे में पति-पत्नी परस्पर विश्वास, एकता, मतैक्य और शांति के साथ जीवन बिता सकें। इन सात फेरों के साथ लिए वचनों में अपने और विश्व की शांति और सुख की प्रार्थना की जाती है।
 
वर के द्वारा दिए जाने वाले वचन ऐसे है जिनमें उसे गृहस्थी का सम्पूर्ण दायित्व सौपा जाता है ताकि दोनों की गृहस्थी सुख पूर्वक चले।
 
वर से वधु द्वारा लिए जाने वाले वचन इस प्रकार है। गृहस्थ जीवन में सुख-दु:ख की स्थितियां आती रहती हैं, लेकिन तुम हमेशा अपना स्वभाव मधुर रखोगे। मुझे बताये बिना कुआं - बावड़ी - तालाब का निर्माण, यज्ञ-महोत्सव का आयोजन और यात्रा नहीं करोगे।
 
मेरे व्रत, दान और धर्म कार्यों में रोक-टोक नहीं करोगे। मेहनत से जो कुछ भी अर्जित करोगे, मुझे सौंपोगे। मेरी राय के बिना कोई भी चल-अचल सम्पति का क्रय-विक्रय नहीं करोगे। घर की सभी कीमती चीजें, गहने, आभूषण मुझे रखने के लिए दोगे। माता-पिता के किसी आयोजन में मेरे मायके जाने पर आपत्ति नहीं लोगे।
 
वचन जो वर लेता है वधु से
पहला – अगर तुम मेरी अर्द्धांगिनी बनना चाहती हो तो किसी पर पुरुष से नहीं मिलना, बिना बताए मायके नहीं जाना और किसी निर्जन स्थान पर नहीं जाना।
दूसरा – रात में घर से नहीं निकलना और पानी भरने नहीं जाना।
तीसरा – किसी भी पूजन, जप, तप में मेरे साथ रहना।
चौथा – कभी कोई दान अकेले नहीं करना, उसमें मुझे सहभागी बनाना।
पांचवां – किसी पर पुरुष के साथ नहीं रहना और कहीं भी अकेले नहीं जाना।
 
वचन जो वधु लेती है वर से
छठवां – आप मुझे हर स्थान पर अपने साथ लेकर चलना, देश हो या विदेश।
सातवां – किसी भी काम को करने से पहले मुझसे सलाह ज़रूर लेना।
 
और ये वचन दोनों के लिए
आठवां – शादी के तुरंत बाद अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन ज़रूर कराएंगे।
 
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| ओ३म् (ॐ) नाम में हिन्दू, मुस्लिम या ईसाइ जैसी कोई बात नहीं है। यह सोचना कि ओ३म् किसी एक धर्म की निशानी है, ठीक बात नहीं, अपितु यह तो तब से चला आया है जब कोई अलग धर्म ही नहीं बना था। बल्कि ओ३म् तो किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है। यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति और आदर का प्रतीक है। उदाहरण के लिए अगर हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में इसको शामिल करते हैं तो ईसाई और यहूदी भी इसके जैसे ही एक शब्द आमेन का प्रयोग धार्मिक सहमति दिखाने के लिए करते हैं। मुस्लिम इसको आमीन कह कर याद करते हैं, बौद्ध इसे ओं मणिपद्मे हूं कह कर प्रयोग करते हैं। सिख मत भी इक ओंकार अर्थात एक ओ३म के गुण गाता है। अंग्रेज़ी का शब्द omni, जिसके अर्थ अनंत और कभी ख़त्म न होने वाले तत्त्वों पर लगाए जाते हैं (जैसे omnipresent, omnipotent) भी वास्तव में इस ओ३म् शब्द से ही बना है। इतने से यह सिद्ध है कि ओ३म् किसी मत, मज़हब या सम्प्रदाय से न होकर पूरी इंसानियत का है। ठीक उसी तरह जैसे कि हवा, पानी, सूर्य, ईश्वर, वेद आदि सब पूरी इंसानियत के लिए हैं न कि केवल किसी एक सम्प्रदाय के लिए।
| ओ3म् (ॐ) नाम में हिन्दू, मुस्लिम या ईसाइ जैसी कोई बात नहीं है। यह सोचना कि ओ3म् किसी एक धर्म की निशानी है, ठीक बात नहीं, अपितु यह तो तब से चला आया है जब कोई अलग धर्म ही नहीं बना था। बल्कि ओ3म् तो किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है। यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति और आदर का प्रतीक है। उदाहरण के लिए अगर हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में इसको शामिल करते हैं तो ईसाई और यहूदी भी इसके जैसे ही एक शब्द आमेन का प्रयोग धार्मिक सहमति दिखाने के लिए करते हैं। मुस्लिम इसको आमीन कह कर याद करते हैं, बौद्ध इसे ओं मणिपद्मे हूं कह कर प्रयोग करते हैं। सिख मत भी इक ओंकार अर्थात एक ओ3म के गुण गाता है। अंग्रेज़ी का शब्द omni, जिसके अर्थ अनंत और कभी ख़त्म न होने वाले तत्त्वों पर लगाए जाते हैं (जैसे omnipresent, omnipotent) भी वास्तव में इस ओ3म् शब्द से ही बना है। इतने से यह सिद्ध है कि ओ3म् किसी मत, मज़हब या सम्प्रदाय से न होकर पूरी इंसानियत का है। ठीक उसी तरह जैसे कि हवा, पानी, सूर्य, ईश्वर, वेद आदि सब पूरी इंसानियत के लिए हैं न कि केवल किसी एक सम्प्रदाय के लिए।


यजुर्वेद [2/13, 40/15, 17] ऋग्वेद [1/3/7] आदि स्थानों पर तथा इसके अलावा गीता और उपनिषदों में ओ३म् का बहुत गुणगान हुआ है। मांडूक्य उपनिषद तो इसकी महिमा को ही समर्पित है।  
यजुर्वेद [2/13, 40/15, 17] ऋग्वेद [1/3/7] आदि स्थानों पर तथा इसके अलावा गीता और उपनिषदों में ओ3म् का बहुत गुणगान हुआ है। मांडूक्य उपनिषद तो इसकी महिमा को ही समर्पित है।  


;ओ३म् का अर्थ  
;ओ3म् का अर्थ  
वैदिक साहित्य इस बात पर एकमत है कि ओ३म् ईश्वर का मुख्य नाम है। योग दर्शन [1/27, 28] में यह स्पष्ट है। यह ओ३म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है - अ, उ, म । प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है। जैसे अ से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है। उ से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है। म से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है। ये तो बहुत थोड़े से उदाहरण हैं जो ओ३म् के प्रत्येक अक्षर से समझे जा सकते हैं। वास्तव में अनंत ईश्वर के अनगिनत नाम केवल इस ओ३म् शब्द में ही आ सकते हैं, और किसी में नहीं।  
वैदिक साहित्य इस बात पर एकमत है कि ओ3म् ईश्वर का मुख्य नाम है। योग दर्शन [1/27, 28] में यह स्पष्ट है। यह ओ3म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है - अ, उ, म । प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है। जैसे अ से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है। उ से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है। म से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है। ये तो बहुत थोड़े से उदाहरण हैं जो ओ3म् के प्रत्येक अक्षर से समझे जा सकते हैं। वास्तव में अनंत ईश्वर के अनगिनत नाम केवल इस ओ3म् शब्द में ही आ सकते हैं, और किसी में नहीं।  


वास्तव में हरेक ध्वनि हमारे मन में कुछ भाव उत्पन्न करती है। सृष्टि की शुरूआत में जब ईश्वर ने ऋषियों के हृदयों में वेद प्रकाशित किये तो हरेक शब्द से सम्बंधित उनके निश्चित अर्थ ऋषियों ने ध्यान अवस्था में प्राप्त किये। ऋषियों के अनुसार ओ३म् शब्द के तीन अक्षरों से भिन्न भिन्न अर्थ निकलते हैं, जिनमें से कुछ ऊपर दिए गए हैं।  
वास्तव में हरेक ध्वनि हमारे मन में कुछ भाव उत्पन्न करती है। सृष्टि की शुरूआत में जब ईश्वर ने ऋषियों के हृदयों में वेद प्रकाशित किये तो हरेक शब्द से सम्बंधित उनके निश्चित अर्थ ऋषियों ने ध्यान अवस्था में प्राप्त किये। ऋषियों के अनुसार ओ3म् शब्द के तीन अक्षरों से भिन्न भिन्न अर्थ निकलते हैं, जिनमें से कुछ ऊपर दिए गए हैं।  


ऊपर दिए गए शब्द-अर्थ सम्बन्ध का ज्ञान ही वास्तव में वेद मन्त्रों के अर्थ में सहायक होता है और इस ज्ञान के लिए मनुष्य को योगी अर्थात ईश्वर को जानने और अनुभव करने वाला होना चाहिए। परन्तु दुर्भाग्य से वेद पर अधिकतर उन लोगों ने कलम चलाई है जो योग तो दूर, यम नियमों की परिभाषा भी नहीं जानते थे। सब पश्चिमी वेद भाष्यकार इसी श्रेणी में आते हैं। तो अब प्रश्न यह है कि जब तक साक्षात ईश्वर का प्रत्यक्ष ना हो तब तक वेद कैसे समझें ? तो इसका उत्तर है कि ऋषियों के लेख और अपनी बुद्धि से सत्य असत्य का निर्णय करना ही सब बुद्धिमानों को अत्यंत उचित है। ऋषियों के ग्रन्थ जैसे उपनिषद्, दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ, निरुक्त, निघंटु, सत्यार्थ प्रकाश, भाष्य भूमिका इत्यादि की सहायता से वेद मन्त्रों पर विचार करके अपने सिद्धांत बनाने चाहियें और इसमें यह भी है कि पढने के साथ साथ यम नियमों का कड़ाई से पालन बहुत जरूरी है। वास्तव में वेदों का सच्चा स्वरुप तो समाधि अवस्था में ही स्पष्ट होता है, जो कि यम नियमों के अभ्यास से आती है।  
ऊपर दिए गए शब्द-अर्थ सम्बन्ध का ज्ञान ही वास्तव में वेद मन्त्रों के अर्थ में सहायक होता है और इस ज्ञान के लिए मनुष्य को योगी अर्थात ईश्वर को जानने और अनुभव करने वाला होना चाहिए। परन्तु दुर्भाग्य से वेद पर अधिकतर उन लोगों ने कलम चलाई है जो योग तो दूर, यम नियमों की परिभाषा भी नहीं जानते थे। सब पश्चिमी वेद भाष्यकार इसी श्रेणी में आते हैं। तो अब प्रश्न यह है कि जब तक साक्षात ईश्वर का प्रत्यक्ष ना हो तब तक वेद कैसे समझें ? तो इसका उत्तर है कि ऋषियों के लेख और अपनी बुद्धि से सत्य असत्य का निर्णय करना ही सब बुद्धिमानों को अत्यंत उचित है। ऋषियों के ग्रन्थ जैसे उपनिषद्, दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ, निरुक्त, निघंटु, सत्यार्थ प्रकाश, भाष्य भूमिका इत्यादि की सहायता से वेद मन्त्रों पर विचार करके अपने सिद्धांत बनाने चाहियें और इसमें यह भी है कि पढने के साथ साथ यम नियमों का कड़ाई से पालन बहुत जरूरी है। वास्तव में वेदों का सच्चा स्वरुप तो समाधि अवस्था में ही स्पष्ट होता है, जो कि यम नियमों के अभ्यास से आती है।  
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# अहिंसा (किसी सज्जन और बेगुनाह को मन, वचन या कर्म से दुःख न देना)   
# अहिंसा (किसी सज्जन और बेगुनाह को मन, वचन या कर्म से दुःख न देना)   
# सत्य (जो मन में सोचा हो वही वाणी से बोलना और वही अपने कर्म में करना)   
# सत्य (जो मन में सोचा हो वही वाणी से बोलना और वही अपने कर्म में करना)   
# अस्तेय (किसी की कोई चीज विना पूछे न लेना)   
# अस्तेय (किसी की कोई चीज़ विना पूछे न लेना)   
# ब्रह्मचर्य (अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना विशेषकर अपनी यौन इच्छाओं पर पूर्ण नियंत्रण)   
# ब्रह्मचर्य (अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना विशेषकर अपनी यौन इच्छाओं पर पूर्ण नियंत्रण)   
# अपरिग्रह (सांसारिक वस्तु भोग व धन आदि में लिप्त न होना)   
# अपरिग्रह (सांसारिक वस्तु भोग व धन आदि में लिप्त न होना)   
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# ईश्वर प्रणिधान (अपने सब काम ऐसे करना जैसे कि ईश्वर सदा देख रहा है और फिर काम करके उसके फल की चिंता ईश्वर पर ही छोड़ देना)   
# ईश्वर प्रणिधान (अपने सब काम ऐसे करना जैसे कि ईश्वर सदा देख रहा है और फिर काम करके उसके फल की चिंता ईश्वर पर ही छोड़ देना)   


*'''ध्यान का नियम'''  --  यम नियम तो आत्मा रुपी बर्तन की सफाई के लिए है ताकि उसमें ईश्वर अपने प्रेम का भोजन दे सके। वह भोजन सुबह शाम एकाग्र मन के साथ ईश्वर से माँगना चाहिए। ओ३म् का उच्चारण इसी भोजन मांगने की प्रक्रिया है, अब क्या करना चाहिए वह नीचे लिखते हैं।   
*'''ध्यान का नियम'''  --  यम नियम तो आत्मा रुपी बर्तन की सफाई के लिए है ताकि उसमें ईश्वर अपने प्रेम का भोजन दे सके। वह भोजन सुबह शाम एकाग्र मन के साथ ईश्वर से माँगना चाहिए। ओ3म् का उच्चारण इसी भोजन मांगने की प्रक्रिया है, अब क्या करना चाहिए वह नीचे लिखते हैं।   
# किसी जगह जहाँ शुद्ध हवा हो, वहां अच्छी जगह पर कमर सीधी कर के बैठ जाएँ, आँख बंद करके थोड़ी देर गहरे सांस धीरे धीरे लीजिये और छोड़िये जिससे शरीर में कोई तनाव न रहे।   
# किसी जगह जहाँ शुद्ध हवा हो, वहां अच्छी जगह पर कमर सीधी कर के बैठ जाएँ, आँख बंद करके थोड़ी देर गहरे सांस धीरे धीरे लीजिये और छोड़िये जिससे शरीर में कोई तनाव न रहे।   
# दिन में 4 बार ओ३म् का उच्चारण बहुत उपयोगी है, पहला सुबह सोकर उठते ही, दूसरा शौच व स्नान के बाद, तीसरा सूर्यास्त के समय शाम को और चौथा रात सोने से एकदम पहले. इसके अलावा जब कभी ख़ाली बैठे किसी की प्रतीक्षा या यात्रा कर रहे हों तो भी इसे कर सकते हैं।   
# दिन में 4 बार ओ3म् का उच्चारण बहुत उपयोगी है, पहला सुबह सोकर उठते ही, दूसरा शौच व स्नान के बाद, तीसरा सूर्यास्त के समय शाम को और चौथा रात सोने से एकदम पहले। इसके अलावा जब कभी ख़ाली बैठे किसी की प्रतीक्षा या यात्रा कर रहे हों तो भी इसे कर सकते हैं।   
# धीरे धीरे उच्चारण की लम्बाई बढ़ा सकते हैं, पर उतनी ही जितनी अपने सामर्थ्य में हो।   
# धीरे धीरे उच्चारण की लम्बाई बढ़ा सकते हैं, पर उतनी ही जितनी अपने सामर्थ्य में हो।   
# कम से कम एक समय में 5 बार जरूर उच्चारण करें, मुंह से बोलने के बजाय मन में भी उच्चारण कर सकते हैं।   
# कम से कम एक समय में 5 बार ज़रूर उच्चारण करें, मुंह से बोलने के बजाय मन में भी उच्चारण कर सकते हैं।   
# अपने हर बार के उच्चारण में ईश्वर को पाने की इच्छा और उसके लिए प्रयास करने का वादा मन ही मन ईश्वर से करना चाहिए।   
# अपने हर बार के उच्चारण में ईश्वर को पाने की इच्छा और उसके लिए प्रयास करने का वादा मन ही मन ईश्वर से करना चाहिए।   
# हर बार उठने से पहले यह प्रतिज्ञा करनी कि अगली बार बैठूँगा तो इस बार से श्रेष्ठ चरित्र का व्यक्ति होकर बैठूँगा, अर्थात हर बार उठने के बाद अपने जीवन का हर काम अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा करते हुए करना, कभी ईश्वर को दी हुई प्रतिज्ञा नहीं तोड़ना।   
# हर बार उठने से पहले यह प्रतिज्ञा करनी कि अगली बार बैठूँगा तो इस बार से श्रेष्ठ चरित्र का व्यक्ति होकर बैठूँगा, अर्थात हर बार उठने के बाद अपने जीवन का हर काम अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा करते हुए करना, कभी ईश्वर को दी हुई प्रतिज्ञा नहीं तोड़ना।   
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*विजेता उस समय विजेता नहीं बनते, जब वे किसी प्रतियोगिता को जीतते हैं! विजेता तो वे उन घंटों, सप्ताहों महीनों और वर्षों में बनते हैं, जब वे इसकी तयारी कर रहे होते हैं!  --  टी एलन आर्मस्ट्रांग
*जो तर्क को अनसुना कर देते हैं, वह कटर हैं! जो तर्क ही नहीं कर सकते, वह मुर्ख हैं और जो तर्क करने का साहस ही नहीं दिखा सकते, वह गुलाम हैं!  --  विलियम ड्रूमंड
*जो सत्य विषय हैं, वे तो सबमें एक से हैं, झगड़ा झूठे विषयों में होता है। -  सत्यार्थप्रकाश
*जिस तरह एक दीपक पूरे घर का अंधेरा दूर कर देता है, उसी तरह एक योग्य पुत्र सारे कुल का दरिद्र दूर कर देता है।  -  कहावत
*सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है।  -  कथा सरित्सागर
*बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए।  -  यशपाल
*जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है।  -  नारदभक्ति
*त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहाँ भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं।  -  बरुआ
*हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही परम सुख है।  -  वाल्मीकि
*सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकांत साधना में होता है।  -  अनंत गोपाल शेवडे
*कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार अच्छी नीति नहीं।  -  श्री हर्ष
*अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं।  -  हरिऔध
*जहाँ प्रकाश रहता है, वहाँ अंधकार कभी नहीं रह सकता।  -  माघ्र
*कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है।  -  अज्ञात
*अधिक अनुभव, अधिक सहनशीलता और अधिक अध्ययन, यही विद्वत्ता के तीन महास्तंभ हैं।  -  अज्ञात
*जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं, वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं।  -  रवींद्र
*जो समय को नष्‍ट करता है, समय भी उसे नष्‍ट कर देता है, समय का हनन करने वाले व्‍यक्ति का चित्‍त सदा उद्विग्‍न रहता है और वह असहाय तथा भ्रमित होकर यूं ही भटकता रहता है, प्रति पल का उपयोग करने वाले कभी भी पराजित नहीं हो सकते, समय का हर क्षण का उपयोग मनुष्‍य को विलक्षण और अदभुत बना देता है।
*जैसे का साथ तैसा, वह भी ब्‍याज सहित व्‍यवहार करना ही सर्वोत्‍तम नीति है, शठे शाठयम और उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्‍तये के सूत्र को अमल में लाना ही गुणकारी उपाय है।
*गुड़, घी से सींचा गयो नीम ना मीठा होय। लोहे से लोहा कटे, जानि परे सब कोय।। यानि शठ जाने शठ ही की बानीं, दुष्‍ट व्‍यक्ति को लाखों यत्‍न के बाद भी नहीं सुधारा जा सकता, उसे तो दुष्‍टता से ही काबू किया जा सकता है।
*खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग। अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना तथा घोड़ा या जिस वाहन पर सवारी करनी हो उसकी जाँच और तैयारी मनुष्‍य को स्‍वयं ही खुद करनी चाहिये, भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्‍य का नुक़सान तय शुदा है।
*जो किसी से कुछ ले कर भूल जाते हैं, अपने ऊपर किये उपकार को मानते नहीं, एहसान को भुला देते हैं उन्हें कृतघ्‍नी कहा जाता है और जो सदा इसे याद रख कर प्रति उपकार करने और अहसान चुकाने का प्रयास करते हैं, उन्‍हें कृतज्ञ कहा जाता है।
*समूचे लोक व्यवहार की स्थिति बिना नीतिशास्त्र के उसी प्रकार नहीं हो सकती, जिस प्रकार भोजन के बिना प्राणियों के शरीर की स्थिति नहीं रह सकती!  --  शुक्र नीति
*यदि कोई व्यक्ति अपने धन को ज्ञान अर्जित करने में ख़र्च करता है, तो उससे उस ज्ञान को कोई नहीं छीन सकता! ज्ञान के लिए किये गए निवेश में हमेशा अच्छा प्रतिफल प्राप्त होता है! --  बेंजामिन फ्रेंकलिन
*यह मत मानिये की जीत ही सब कुछ है, अधिक महत्त्व इस बात का है, की आप किसी आदर्श के लिए संघर्षरत हों! यदि आप आदर्श पर ही नहीं डट सकते, तो जीतोगे क्या?  --  लेन कर्कलैंड
*दूसरों को ख़ुशी देना सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है!
*ईशावास्यमिदं सर्व यत्किज्च जगत्यां जगत  -  भगवन इस जग के कण कण में विद्यमान है! --  संतवाणी
*सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है। एक जुल्मों के खिलाफ़ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरुद्ध।  -  सरदार पटेल
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12:05, 2 मई 2015 के समय का अवतरण

तिरंगा
तिरंगा
भारत माता
भारत माता


मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।

- महात्मा गांधी



ख़ूबसूरत बातें
  • ख़ूबसूरत है वो लब जिन पर दूसरों के लिए एक दुआ है।
  • ख़ूबसूरत है वो मुस्कान जो दूसरों की खुशी देख कर खिल जाए।
  • ख़ूबसूरत है वो दिल जो किसी के दुख मे शामिल हो जाए और किसी के प्यार के रंग मे रंग जाए।
  • ख़ूबसूरत है वो जज़बात जो दूसरो की भावनाओं को समझे।
  • ख़ूबसूरत है वो एहसास जिस मे प्यार की मिठास हो।
  • ख़ूबसूरत है वो बातें जिनमे शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से कहानियाँ।
  • ख़ूबसूरत है वो आँखे जिनमे कितने ख़ूबसूरत ख्वाब समा जाएँ।
  • ख़ूबसूरत है वो आसूँ जो किसी के ग़म मे बह जाएँ।
  • ख़ूबसूरत है वो हाथ जो किसी के लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए।
  • ख़ूबसूरत है वो कदम जो अमन और शान्ति का रास्ता तय कर जाएँ।
  • ख़ूबसूरत है वो सोच जिस मे पूरी दुनिया की भलाई का ख्याल आ जाए।


डा॰ मनीष कुमारवैश्य

National Anthem =

चित्र:A R Rahman - Jana Gana Mana (2007) - Asha Bhonsle.ogg


मेरे पृष्ट पर आप का स्वागत है !

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मेरा संपादन क्षेत्र
हिन्दुस्तानी तिरंगा
हिन्दुस्तानी तिरंगा
मेरा भारत
मेरा भारत
  1. बस्ती ज़िला
  2. गोरखपुर ज़िला
  3. संत कबीर नगर ज़िला
  4. सिद्धार्थनगर ज़िला

  1. गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर
  2. तामेश्वरनाथ मंदिर
  3. चन्दो ताल
  4. रामगढ़ ताल
  5. पिण्डारी
  6. महुआ डाबर
  7. मगहर
  8. बखिरा झील
  9. अष्टभुजा शुक्ल

  1. डाक टिकट
  2. डाक टिकटों में महात्मा गाँधी
  3. भारतीय डाक टिकटों में बाल दिवस
  4. डाक सूचक संख्या
  5. भारतीय स्टेट बैंक
  6. पंजाब नैशनल बैंक
  7. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन

  1. बीमारी और फ़िल्म
  2. प्रोजेरिया
  3. सीज़ोफ़्रेनिया
  4. अल्ज़ाइमर
  5. ऑटिज़्म
  6. पार्किंसन
  7. डेंगू
  8. प्लेग
  9. रेबीज़
  10. बवासीर
  11. पोलियो
  12. मिर्गी
  13. हिस्टीरिया
  14. कब्ज
  15. स्केबीज़
  16. सोरियासिस
  17. नींद में चलने की बीमारी
  18. डाउन सिन्‍ड्रोम
  19. हर्पिस जोस्टर

  1. वैष्णो देवी
  2. शक्तिपीठ
  3. अमरनाथ
  4. कैलाश मानसरोवर
  5. देवीपाटन मंदिर
  6. मारकण्डेय महादेव मंदिर
  7. पाताल भुवनेश्‍वर गुफ़ा
  8. जीण माता धाम
  9. बृहदेश्वर मन्दिर
  10. भोजेश्वर मंदिर
  11. पार्वती तुकेश्वर महादेव मंदिर
  12. बगलामुखी मंदिर
  13. स्वस्तिक
  14. 786
  15. शंख
  16. गंगाजल
  17. रामसेतु
  18. कुण्डलिनी
  19. पद्मनाभस्वामी मंदिर
  20. पंचगव्य
  21. अघोरी
  22. हिंदू विवाह में सात फेरे और सात वचन
  23. अंक 7

  1. विलोम शब्द
  2. पर्यायवाची शब्द
  3. कबीर के दोहे
  4. तुलसीदास के दोहे
  5. रहीम के दोहे
  6. भारतीय नाम
  7. मधुशाला
  8. एस एम एस
  9. ट्विटर

  1. माउंट एवरेस्ट
  2. गाडविन आस्टिन
  3. कावर झील
  4. डल झील
  5. रूपकुंड झील
  6. लोनार झील
  7. जवाहर सुरंग
  8. भूकंप
  9. हिममानव
  10. पुनर्जन्म
  11. स्वप्न
  12. सम्मोहन
  13. कोहिनूर हीरा
  14. जैकब हीरा
  15. ग्रेट मुग़ल हीरा
  16. फ़ॉर्मूला वन
  17. बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट
  18. गुलाल
  19. मिट्टी
  20. भारत में प्रथम
  21. आविष्कार और आविष्कारक
  22. भारत के सात आश्चर्य
  23. सूचना का अधिकार अधिनियम 2005
  24. चुनाव आचार संहिता
  25. जनगणना
  26. सांता क्लॉज
  27. क्रिसमस ट्री

  1. मैडम तुसाद संग्रहालय
  2. बुर्ज ख़लीफ़ा
  3. बरमूडा त्रिकोण
  4. ईस्टर द्वीप
  5. माया कैलेंडर

  1. महत्त्वपूर्ण दिवस
  2. गणतंत्र दिवस
  3. हिन्दी दिवस
  4. विश्व हिन्दी दिवस
  5. विश्व हास्य दिवस
  6. मातृ दिवस
  7. विश्व रक्तदान दिवस
  8. विश्व पर्यावरण दिवस
  9. विश्व स्वास्थ्य दिवस
  10. राष्ट्रीय विज्ञान दिवस
  11. विश्व रेडक्रॉस दिवस
  12. अप्रैल फूल दिवस
  13. विश्व जल दिवस
  14. विश्व धूम्रपान निषेध दिवस
  15. पाई दिवस
  16. विश्व कैंसर दिवस
  17. अन्तर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस
  18. अंतराष्ट्रीय विकलांग दिवस
  19. अंतरराष्ट्रीय मैत्री दिवस
  20. विश्व ओजोन दिवस

  1. परमवीर चक्र
  2. अशोक चक्र
  3. महावीर चक्र
  4. वीर चक्र
  5. कीर्ति चक्र
  6. शौर्य चक्र
  7. जीवन रक्षा पदक
  8. अर्जुन पुरस्कार
  9. ऑस्कर पुरस्कार

  1. पृथ्वी-2 मिसाइल
  2. ब्रह्मोस मिसाइल
  3. अग्नि-2 मिसाइल
  4. शौर्य मिसाइल

  1. अण्णा हज़ारे
  2. स्वामी रामदेव
  3. किरण बेदी
  4. मेधा पाटकर
  5. अरविंद केजरीवाल
  6. सत्य साईं बाबा
  7. राहुल गांधी
  8. दलाईलामा तेनजिन ग्यात्सो
  9. पंडित जसराज
  10. श्रीलाल शुक्ल
  11. श्रीनिवास अयंगर रामानुजन
  12. तिरुवल्लुवर
  13. स्टीफन हॉकिंग
  14. गैलिलियो गैलीली
  15. पंडित श्रद्धाराम शर्मा
  16. जय गुरुदेव
  17. प्रणब मुखर्जी
  18. कैप्टन लक्ष्मी सहगल
  19. नील आर्मस्ट्रांग
  20. सुनीता विलियम्स
  21. के एस सुदर्शन
  22. मोहन भागवत

  1. दिलीप कुमार
  2. धर्मेन्द्र
  3. संजीव कुमार
  4. राज कुमार
  5. शशि कपूर
  6. देव आनंद
  7. दारा सिंह
  8. शत्रुघ्न सिन्हा
  9. कैटरीना कैफ़
  10. ऐश्वर्या राय
  11. भूपेन हज़ारिका
  12. सत्यदेव दुबे
  13. लक्ष्मीकांत
  14. बी आर इशारा
  15. साधना (अभिनेत्री)
  16. ए. के. हंगल
  17. रामानन्द सागर

  1. सिंह
  2. बंदर
  3. कंगारू

  1. सौरमण्डल
  2. सूर्य (तारा)
  3. बुध ग्रह
  4. शुक्र ग्रह
  5. मंगल ग्रह
  6. यम ग्रह
  7. सूर्य ग्रहण
  8. चन्द्र ग्रहण
  9. क्षुद्र ग्रह
  10. धूमकेतु
  11. हैली धूमकेतु
  12. ल्यूलिन धूमकेतु
  13. एपोफिस क्षुद्र ग्रह
  14. सेरेस
  15. हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन

  1. अनमोल वचन 1
  2. अनमोल वचन 2
  3. अनमोल वचन 3
  4. अनमोल वचन 4
  5. अनमोल वचन 5
  6. अनमोल वचन 6
  7. अनमोल वचन 7
  8. अनमोल वचन 8
  9. अनमोल वचन 9
  10. अनमोल वचन 10
  11. अनमोल वचन 11
  12. अनमोल वचन 12
  13. अनमोल वचन 13
  14. अनमोल वचन 14
  15. अनमोल वचन 15
  16. महात्मा गाँधी के अनमोल वचन
  17. स्वामी विवेकानन्द के अनमोल वचन

  1. पीपल
  2. नीम
  3. बरगद
  4. अशोक वृक्ष
  5. चन्दन
  6. बाँस
  7. तुलसी
  8. पुदीना
  9. शीशम

  1. साबूदाना
  2. मखाना
  3. हल्दी
  4. केसर
  5. खजूर
  6. लहसुन
  7. आंवला
  8. लौंग
  9. शहद
  10. घी
  11. अदरक
  12. सोयाबीन
  13. बादाम
  14. नाशपाती
  15. केला
  16. करौंदा
  17. इमली
  18. दाल

  1. इंडियन प्रीमियर लीग
  2. इंडियन प्रीमियर लीग 2008
  3. इंडियन प्रीमियर लीग 2009
  4. इंडियन प्रीमियर लीग 2010
  5. इंडियन प्रीमियर लीग 2011
  6. मुंबई इंडियंस
  7. चेन्नई सुपर किंग्स
  8. कोलकाता नाईटराइडर्स
  9. डेक्कन चार्जर्स
  10. राजस्थान रॉयल्स
  11. रॉयल चैलेंजर्स बैंगलौर
  12. किंग्स इलेवन पंजाब
  13. दिल्ली डेयरडेविल्स
  14. सहारा पुणे वॉरियर्स
  15. कोच्चि टस्कर्स केरल
  16. सचिन तेंदुलकर
  17. कपिल देव
  18. सुनील गावस्कर
  19. रवि शास्त्री
  20. मंसूर अली खान पटौदी
  21. वीरेन्द्र सहवाग
  22. महेन्द्र सिंह धोनी
  23. ओलंपिक खेल

  1. दे दी हमें आज़ादी
  2. रघुपति राघव राजा राम
  3. वैष्णव जन तो तेने कहिये

  1. मेरे देश की धरती
  2. हर करम अपना करेंगे
  3. ऐ मेरे प्यारे वतन
  4. इन्साफ की डगर पर
  5. हम लाये हैं तूफ़ान से
  6. जिस देश में गंगा बहती है
  7. यह देश है वीर जवानों का
  8. है प्रीत जहाँ की रीत सदा
  9. नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी मैं क्या है
  10. मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये
  11. भारत हमको जान से प्यारा है
  12. अपनी आजादी को हम
  13. ऐ वतन ऐ वतन
  14. मेरा रंग दे बसंती चोला
  15. सरफरोशी की तमन्ना
  16. नन्हा मुन्ना राही हूँ
  17. जहाँ डाल डाल पर
  18. संदेशे आते है
  19. बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो
  20. छोड़ो कल की बातें
  21. कदम कदम बढाये जा
  22. विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
  23. आओ बच्चों तुम्हे दिखाएं
  24. चन्दन है इस देश की माटी
  25. नफ़रत की लाठी तोड़ो
  26. थोड़ी सी धूल मेरी
  27. कर चले हम फ़िदा
  28. जय जननी ने भारत माँ
  29. वतन पे जो फ़िदा होगा
  30. ए मेरे वतन के लोगो
  31. पासे सभी उलट गए

  1. दुर्गा माता के 108 नाम
  2. शिव जी के 108 नाम
  3. श्री हनुमत्सहस्त्र नामावली
  4. श्री गणेश सहस्त्रनामावली
  5. श्री राम सहस्रनामस्तोत्र
  6. श्री लक्ष्म्यष्टोत्तरशत सहस्रनामावली
  7. आरती पूजन
  8. गायत्री माता की आरती
  9. सोमवार व्रत की आरती
  10. मंगलवार व्रत की आरती
  11. बुधवार व्रत की आरती
  12. वृहस्पतिवार व्रत की आरती
  13. शुक्रवार व्रत की आरती
  14. शनिवार व्रत की आरती
  15. रविवार व्रत की आरती
  16. रामायण जी की आरती
  17. गीता जी की आरती
  18. श्रीमद् भागवत पुराण की आरती
  19. वैष्णो माता की आरती
  20. दुर्गा जी की आरती
  21. शारदा माता की आरती
  22. शीतला माता की आरती
  23. काली माता की आरती
  24. संतोषी माता की आरती
  25. सरस्वती माता की आरती
  26. लक्ष्मी रमणा जी की आरती
  27. रानी सती जी की आरती
  28. गंगा माता की आरती
  29. यमुना माता की आरती
  30. तुलसी माता की आरती
  31. पार्वती माता की आरती
  32. अन्नपूर्णा देवी की आरती
  33. नैना देवी की आरती
  34. शाकम्भरी देवी की आरती
  35. विन्ध्येश्वरी माता की आरती
  36. चिन्तपूर्णी देवी की आरती
  37. नवग्रह आरती
  38. श्यामबाबा जी की आरती
  39. गणेश जी की आरती
  40. कृष्ण जी की आरती
  41. युगलकिशोर जी की आरती
  42. केदार नाथ जी की आरती
  43. बद्री नाथ जी की आरती
  44. रामचंद्र जी की आरती
  45. साईबाबा जी की आरती
  46. सूर्यदेव जी की आरती
  47. शनिदेव जी की आरती
  48. वृहस्पतिदेव जी की आरती
  49. भैंरव जी की आरती
  50. सरस्वती प्रार्थना
  51. राम स्तुति
  52. गणेश स्तुति
  53. नवदुर्गा रक्षामंत्र
  54. संकटमोचन हनुमानाष्टक
  55. सरस्वती चालीसा
  56. शिव चालीसा
  57. शनि चालीसा
  58. विन्ध्येश्‍वरी चालीसा
  59. गायत्री चालीसा
  60. कृष्ण चालीसा
  61. साईं चालीसा
  62. श्याम चालीसा
  63. भैरव चालीसा
  64. शीतला चालीसा
  65. संतोषी चालीसा
  66. गंगा चालीसा

  1. कर्णवेध संस्कार
  2. नामकरण संस्कार
  3. विवाह संस्कार
  4. गर्भाधान संस्कार
  5. चूड़ाकरण संस्कार
  6. अन्नप्राशन संस्कार
  7. जातकर्म संस्कार
  8. सीमन्तोन्नयन संस्कार
  9. पुंसवन संस्कार
  10. निष्क्रमण संस्कार
  11. समावर्तन संस्कार
  12. वानप्रस्थ संस्कार
  13. पितृमेध या अन्त्यकर्म संस्कार
  14. श्राद्ध संस्कार
  15. विद्यारंभ संस्कार

  1. पंचतंत्र
  2. अक्लमंद हंस
  3. आपस की फूट
  4. एक और एक ग्यारह
  5. एकता का बल
  6. कौए और उल्लू
  7. खरगोश की चतुराई
  8. गजराज व मूषकराज
  9. गधा रहा गधा ही
  10. गोलू-मोलू और भालू
  11. घंटीधारी ऊंट
  12. चापलूस मंडली
  13. झगडालू मेढक
  14. झूठी शान
  15. ढोंगी सियार
  16. ढोल की पोल
  17. तीन मछलियां
  18. दुश्मन का स्वार्थ
  19. दुष्ट सर्प
  20. नकल करना बुरा है
  21. बंदर का कलेजा
  22. बगुला भगत
  23. बडे नाम का चमत्कार
  24. बहरुपिया गधा
  25. बिल्ली का न्याय
  26. बुद्धिमान सियार
  27. मक्खीचूस गीदड
  28. मित्र की सलाह
  29. मुफ़्तखोर मेहमान
  30. मूर्ख गधा
  31. मूर्ख को सीख
  32. मूर्ख बातूनी कछुआ
  33. रंग में भंग
  34. रंगा सियार
  35. शत्रु की सलाह
  36. शरारती बंदर
  37. संगठन की शक्ति
  38. सच्चा शासक
  39. सच्चे मित्र
  40. सांड और गीदड़
  41. सिंह और सियार
  42. स्वजाति प्रेम

  1. हितोपदेश
  2. सुवर्णकंकणधारी बूढ़ा बाघ और मुसाफिर की कहानी
  3. कबुतर, काक, कछुआ, मृग और चूहे की कहानी
  4. मृग, काक और गीदड़ की कहानी
  5. भैरव नामक शिकारी, मृग, शूकर, साँप और गीदड़ की कहानी
  6. धूर्त गीदड़ और हाथी की कहानी
  7. एक बनिया, बैल, सिंह और गीदड़ों की कहानी
  8. धोबी, धोबन, गधा और कुत्ते की कहानी
  9. सिंह, चूहा और बिलाव की कहानी
  10. बंदर, घंटा और कराला नामक कुटनी की कहानी
  11. सिंह और बूढ़ शशक की कहानी
  12. कौए का जोड़ा और काले साँप की कहानी
  13. पक्षी और बंदरो की कहानी
  14. बाघंबर ओढ़ा हुआ धोबी का गधा और खेतवाले की कहानी
  15. हाथियों का झुंड और बूढ़े शशक की कहानी
  16. हंस, कौआ और एक मुसाफिर की कहानी
  17. नील से रंगे हुए एक गीदड़ की कहानी
  18. राजकुमार और उसके पुत्र के बलिदान की कहानी
  19. एक क्षत्रिय, नाई और भिखारी की कहानी
  20. सन्न्यासी और एक चूहे की कहानी
  21. बूढ़े बगुले, केंकड़े और मछलियों की कहानी
  22. सुन्द, उपसुन्द नामक दो दैत्यों की कहानी
  23. एक ब्राह्मण, बकरा और तीन धुता की कहानी
  24. माधव ब्राह्मण, उसका बालक, नेवला और साँप की कहानी

  1. चाणक्य नीति
  2. चाणक्यनीति - अध्याय 1
  3. चाणक्यनीति - अध्याय 2
  4. चाणक्यनीति - अध्याय 3
  5. चाणक्यनीति - अध्याय 4
  6. चाणक्यनीति - अध्याय 5
  7. चाणक्यनीति - अध्याय 6
  8. चाणक्यनीति - अध्याय 7
  9. चाणक्यनीति - अध्याय 8
  10. चाणक्यनीति - अध्याय 9
  11. चाणक्यनीति - अध्याय 10
  12. चाणक्यनीति - अध्याय 11
  13. चाणक्यनीति - अध्याय 12
  14. चाणक्यनीति - अध्याय 13
  15. चाणक्यनीति - अध्याय 14
  16. चाणक्यनीति - अध्याय 15
यह सदस्य भारतीय है।
मेरा परिचय
डा॰ मनीष कुमार वैश्य
डा॰ मनीष कुमार वैश्य
नाम -->
डा॰ मनीष कुमार वैश्य

जन्मदिन --> 8 जुलाई
जन्मस्थान --> बस्ती ज़िला
ई.मेल --> drmkvaish26@yahoo.com
फ़ोन --> 09451908700
सदस्य --> भारतकोश परिवार

प्रशासक आदित्य चौधरी प्रशासक . वार्ता 18:55, 4 फ़रवरी 2011 (IST)

‍‍‍डाक टिकटों में महात्मा गाँधी लेख के लिए मैं
डा॰ मनीष कुमार वैश्य को सम्मानित कर रहा हूँ।
प्रशासक आदित्य चौधरी प्रशासक . वार्ता 18:55, 4 फ़रवरी 2011 (IST)

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डा॰ मनीष कुमार वैश्य
मेरा भारत
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8 जुलाई
ताज महल, आगरा
मेरा भारत
मेरा भारत

TAJ MAHAL, AGRA


शोध क्षेत्र
भारतवर्ष में कॉवर के त्योहार का बहुत ज़्यादा महत्व है। इस तौहार में आमलोग भगवन शिव की भक्ति में डुबकर कॉवर उठाते है। इन कॉवर उठाने वाले शिव भक्तो को कॉवरिया कहते है। यह त्योहार हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार श्रावण (सावन) के महीने में पड़ता है। कॉवर के इस त्योहार में शिव भक्त एक निश्चित स्थान से गेरुआ वस्त्र धारण कर कन्धे पर कॉवर लेकर और कॉवर में गंगाजल रखकर उठाते है तथा कई किलोमीटर की नंगे पैर पैदल यात्रा करके एक निश्चित स्थान के शिव मंदिर में आकर भगवन शिव और माता पर्वती पर गंगाजल चढाते है। यह गंगाजल का अभिषेक श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन होता है। कॉवर का त्योहार भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है लेकिन विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, उत्तराँचल, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल के राज्यों में मनाया जाता है।

आषाढ़ी पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर तीर्थनगरी में गंगा स्नान करने व गुरु पूजन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी, दिल्ली के कोने-कोने से आज पूर्णिमा स्नान के साथ ही कस्बे में एक माह तक चलने वाला कॉवर मेला प्रारम्भ हो जाएगा।

मकर संकंराति के अवसर पर बरमान से बांदकपुर भगवान भोलेशंकर के चरणों में जल चढ़ाने के लिए जा रहे कावडिय़ों का गुरुवार को तालसेमरा में संतश्री 108 सीताराम महराज बादकपुर जाकर भगवान भोलेशंकर के चरणों में अर्पित करते हैं। कॉवरियों द्वारा यह सारी यात्रा पैदल ही की जाती है। स्वागत करने वालों में लक्ष्मीनारायण जारोलिया, पप्पू जारोलिया, हरदास पटेल, अशोक पटेल आदि शामिल हैं।

बेवर: महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर काबड़ियों ने फर्रुखाबाद से जल भरकर विभिन्न शिवालयों में चढ़ाकर मन्नत मांगी तो कुछ काबड़ियों ने भोलेनाथ से पुन: जल लेकर आने का वादा किया। श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन भोले बाबा के भक्तों ने घटिया घाट, श्रंगीरामपुर से जल भरकर पूरे मनोयोग के साथ पैदल चलकर कॉवर धारण कर मंछना, मैनपुरी हजारी मंदिर सरसईनावर में शिवालयों पर जल चढ़ाया। कॉबड़ियों की टोली, भोले तेरी बम बम बम भोले के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। कॉबरधारी पुनीत दुबे, रानू शाक्य, पुष्पेन्द्र राठौर, शोभाराम, मुन्ना सिंह, मूलचन्द्र ने बताया कि कॉवर धारण करना कठिन व्रत है। जिसमें बहुत से नियमों का पालन करना अनिवार्य है। भक्त जन होते हैं। एक तो ऐसे जिनकी मन्नत भोले बाबा पूरी कर चुके होते है तथा दूसरे जल चढ़ाकर मन्नत मांगकर पुन: आने का वादा करते है। जल भरकर दूध वाले वृक्षों के नीचे से चलना सर्वथा मना है। भोले नाथ बड़े दयालू है। जो भी शिवलिंग पर पूजा अर्चन कर जल चढ़ता है भोले नाथ उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। हम लोग लगभग 75 किमी पैदल चलकर जल चढ़ाएंगे।

सर्वविदित है कि श्रावण के महीने में कॉवर चढ़ाना बेहद पुनीत माना जाता है। सच्ची भक्ति भावना से जो भी भोले बाबा के नाम की कॉवर चढ़ाता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

रांची, तैयार हो जाइए, बाबा भोले नाथ की पूजा में लीन होने के लिए। भगवान शिव का प्रसन्न करने के लिए। उनका जलाभिषेक करने का महीना आ गया है। भगवान शंकर को खुश करने का विशेष महीना श्रावण ( सावन ) आषढ खत्म होते ही शनिवार कृष्ण पक्ष 16 जुलाई से शुरू हो जायेगा। सावन की पहली सोमवारी 18 जुलाई को है। अगले सप्ताह से शुरू होने वाले सावन को लेकर शिवालयों और अन्य मंदिरों में विशेष तैयारियां की जा रही है। देवघर स्थित प्रसिध्द श्रावणी मेले की तैयारियों को भी अंतिम रुप दिया जा रहा है। इधर, राजधानी रांची स्थित पहाड़ी मंदिर में भी सावन महीने को लेकर विशेष तैयारियां की गयी है। मंदिर को आकर्षक तरीके से संजाने-संवारने का काम चल रहा है। खूंटी स्थित अमरेश्वरधाम में भी तैयारियों को अंतिम रुप दिया जा रहा है। इस सावन में चार सोमवारी अगस्त को चौथी सोमवारी पडेगी। धार्मिक मान्यता है कि सावन की सोमवारी बाबा भोलेनाथ को जल चढाने से बाबा की असीम कृपा भक्तों को मिलती है। श्रध्दालु भक्त बाबा को जल चढाने के लिए कॉवर लेकर मिलो पैदल भी चलते हैं। सबसे अधिक भक्तों की भीड बाबा की नगरी देवघर पहुँचती है। वहीं कई श्रध्दालु भक्त वाराणसी और तारकेश्वर (पश्चिम बंगाल) आदि सावन सात्विक होने का महीना सावन सात्विक हो कर बाबा की आराधना की विशेष महत्व है। मत्स्यपुराण के मुताबिक सावन में मछली को अंडा होता है यानि एक नये प्राणी का आगमन । इसी वजह से सावन में मछली खाने से लोग परहेज करते हैं। वहीं सावन माह में लहसून-प्याज को भी त्याग करते हैं। संजने लगी हैं कांवर की दुकानें सजने लगी हैं कॉवर की दुकानें, गेरुवा वस्त्र की सिलाई और नये स्टोक की बिक्री के लिए तैयार पूरे ज़िलों एवं ग्रामीण क्षेत्रों तक बाबा भोले की नगरी देवघर जाने की तैयारी के लिए श्रध्दालु भक्त कॉवर की ख़रीदारी करते हैं ऐसे में नये स्टोक आ चुके हैं। इस सप्ताह बिक्री परवान पर होगी वहीं गेरुवा वस्त्र की नये स्टोक भी दुकानों में पहुँच चुके है। लोग वस्त्रों के अलावा झोले टॉर्च आदि की ख़रीदारी में लग गये हैं।

संस्कृत सुभाषित एवं सूक्तियाँ हिन्दी में अर्थ सहित----

(1) न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः । स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥ (न राज्य था और ना राजा था, न दण्ड था और न दण्ड देने वाला। स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी॥) (2) रत्नं रत्नेन संगच्छते । (रत्न, रत्न के साथ जाता है) (3) गुणः खलु अनुरागस्य कारणं , न बलात्कारः । (केवल गुण ही प्रेम होने का कारण है, बल प्रयोग नहीं) (4) निर्धनता प्रकारमपरं षष्टं महापातकम् । (गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है।) (5) अपेयेषु तडागेषु बहुतरं उदकं भवति । (जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता, उसमें बहुत जल भरा होता है।) (6) अङ्गुलिप्रवेशात्‌ बाहुप्रवेश: | (अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है।) (7) अति तृष्णा विनाशाय | (अधिक लालच नाश कराती है।) (8) अति सर्वत्र वर्जयेत् । (अति (को करने) से सब जगह बचना चाहिये।) (9) अजा सिंहप्रसादेन वने चरति निर्भयम्‌। (शेर की कृपा से बकरी जंगल मे बिना भय के चरती है।) (10) अतिभक्ति चोरलक्षणम्‌। (अति-भक्ति चोर का लक्षण है।) (11) अल्पविद्या भयङ्करी। (अल्पविद्या भयंकर होती है।) (12) कुपुत्रेण कुलं नष्टम्‌। ( कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है।) (13) ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:। (ज्ञानहीन पशु के समान हैं।) (14) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्दभी ह्यप्सरा भवेत्‌। (सोलह वर्ष की होने पर गदही भी अप्सरा बन जाती है।) (15) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्‌। (सोलह वर्ष की अवस्था को प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरण करना चाहिये।) (16) मधुरेण समापयेत्‌। (मिठास के साथ (मीठे वचन या मीठा स्वाद) समाप्त करना चाहिये।) (17) मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना। (हर व्यक्ति अलग तरह से सोचता है।) (18) शठे शाठ्यं समाचरेत् । (दुष्ट के साथ दुष्टता का वर्ताव करना चाहिये।) (19) सत्यं शिवं सुन्दरम्‌। (सत्य, कल्याणकारी और सुन्दर। (किसी रचना/कृति या विचार को परखने की कसौटी)) (20) सा विद्या या विमुक्तये। (विद्या वह है जो बन्धन-मुक्त करती है।) (21) त्रियाचरित्रं पुरुषस्य भग्यं दैवो न जानाति कुतो नरम् । (स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता, मनुष्य कहाँ लगता है।) (22) कामासक्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है। - नीतिवाक्यामृत-3।12


  • सबकी गति है एक सी अंत समय पर होय, जो आये हैं जायेंगे राजा रंक फ़कीर।

जनम होत नंगे भये, चौपायों की चाल, न वाणी न वाक्‍य थे पशुवत पाये शरीर। धीरे धीरे बदल गये चौपायों से बन इंसान। वाक्‍य और वाणी मिली वस्‍त्र पहन कर हुये बने महान। जाति बनी और ज्ञान बढ़ा तो बॉंट दिया फिर इंसान। अंत समय नंगे फिर भये, गये सब वेद शास्‍त्र और ज्ञान।।

  • अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं।
  • कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है।
  • हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है।
  • बहुमत की आवाज न्याय का द्योतक नहीं है।
  • हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हो, परन्तु दुनिया हमे हमारे कर्मो के द्वारा पहचानती है|
  • यदि आप मरने का डर है तो इसका यही अर्थ है की आप जीवन के महत्व को ही नहीं समझते|
  • अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते है उतनी ही नम्रता आती है|
  • मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है।
  • अपने शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता।
  • मुस्कान प्रेम की भाषा है।
  • सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है।
  • अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता।
  • अल्प ज्ञान खतरनाक होता है।
  • कर्म सरल है, विचार कठिन।
  • उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन।
  • धन अपना पराया नहीं देखता।
  • पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित। लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं।
  • संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति।
  • हजारों मष्तिषकों में बुद्धिपूर्ण विचार आते रहे हैं। लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें।
  • उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है। परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता।


  • ऊँच अटारी मधुर वतास। कहैं घाघ घर ही कैलाश। - घाघ भड्डरी (अकबर के समकालीन, कानपुर ज़िले के निवासी)
  • तुलसी इस संसार मे, सबसे मिलिये धाय। ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाँय॥
  • प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर लाए जा सकते हैं। - ईसा मसीह
  • जो हमारा हितैषी हो, दुख-सुख में बराबर साथ निभाए, ग़लत राह पर जाने से रोके और अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है। - वेद
  • दुनिया में ही मिलते हैं हमे दोजखो-जन्नत। इंसान जरा सैर करे, घर से निकल कर॥ - दाग
  • स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है।
  • शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम। (यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है / सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते है)
  • मुक्त बाज़ार में स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी न्याय, मानवाधिकार, पेयजल तथा स्वच्छ हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है। यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो उन्हें ख़रीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने में करते हैं जो सर्वथा उनके अनुकूल होता है। - अरुंधती राय
  • कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए। - दर्पदलनम् 1।29
  • तुम प्लास्टिक सर्जरी करवा सकते हो, तुम सुन्दर चेहरा बनवा सकते हो, सुंदर आंखें सुंदर नाक, तुम अपनी चमड़ी बदलवा सकते हो, तुम अपना आकार बदलवा सकते हो। इससे तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलेगा। भीतर तुम लोभी बने रहोगे, वासना से भरे रहोगे, हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक सर्जन कुछ कर नहीं सकता। - ओशो
  • पशु पालक की भांति देवता लाठी ले कर रक्षा नहीं करते, वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं उसे बुद्धी से समायुक्त कर देते है। महाभारत -उद्योग पर्व
  • विषयों का चिंतन करने वाले मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है। आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से मूढ़ता और बुद्धि भ्रष्टता उत्पन्न होती है। बुद्धि के भ्रष्ट होने से स्मरण-शक्ति विलुप्त हो जाती है, यानी ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है। और जब बुद्धि तथा स्मृति का विनाश होता है, तो सब कुछ नष्ट हो जाता है। - गीता (अध्याय 2/62, 63)
  • एक साधै सब सधे, सब साधे सब जाये, रहीमन, मुलही सिंचीबो, फुले फले अगाय । -रहीम
  • जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंग, चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग । -रहीम
  • रहीमन देखि बडेन को, लघु ना दिजिए डारी, जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारी । -रहीम
  • जो समय को नष्‍ट करता है, समय भी उसे नष्‍ट कर देता है, समय का हनन करने वाले व्‍यक्ति का चित्‍त सदा उद्विग्‍न रहता है और वह असहाय तथा भ्रमित होकर यूं ही भटकता रहता है, प्रति पल का उपयोग करने वाले कभी भी पराजित नहीं हो सकते, समय का हर क्षण का उपयोग मनुष्‍य को विलक्षण और अदभुत बना देता है।
  • जैसे का साथ तैसा, वह भी ब्‍याज सहित व्‍यवहार करना ही सर्वोत्‍तम नीति है, शठे शाठयम और उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्‍तये के सूत्र को अमल में लाना ही गुणकारी उपाय है।
  • गुड़, घी से सींचा गयो नीम ना मीठा होय। लोहे से लोहा कटे, जानि परे सब कोय।। यानि शठ जाने शठ ही की बानीं, दुष्‍ट व्‍यक्ति को लाखों यत्‍न के बाद भी नहीं सुधारा जा सकता, उसे तो दुष्‍टता से ही काबू किया जा सकता है।
  • खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग। अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना तथा घोड़ा या जिस वाहन पर सवारी करनी हो उसकी जाँच और तैयारी मनुष्‍य को स्‍वयं ही खुद करनी चाहिये, भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्‍य का नुक़सान तय शुदा है।
  • जो किसी से कुछ ले कर भूल जाते हैं, अपने ऊपर किये उपकार को मानते नहीं, एहसान को भुला देते हैं उन्हें कृतघ्‍नी कहा जाता है और जो सदा इसे याद रख कर प्रति उपकार करने और अहसान चुकाने का प्रयास करते हैं, उन्‍हें कृतज्ञ कहा जाता है।
  • दूसरों को ख़ुशी देना सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है।
;टैगोर व मदर टेरेसा की जयंती पर विशेष डाक टिकट व ट्रेन
  • डाक विभाग, कोलकाता नोबल पुरस्कार से सम्मानित विश्व कवि कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर की 150 वीं जयंती तथा मिशनरीज आफ चैरिटी की संस्थापक मदर टेरेसा की 100वीं जन्म शताब्दी पर डाक टिकट जारी करेगा। संयोग से वर्ष 2010 में टैगोर की 150वी और मदर टेरेसा की 100वीं जयंती है। कोलकाता जीपीओ के निदेशक अनिल कुमार ने बताया कि कविगुरु ने एक नाटक डाक घर लिखा था तथा बचपन में वह पोस्टऑफिस में ही काम करना चाहते थे। कविगुरु और मदर पर डाक टिकट के अलावा डायरी, ग्रीटिंग कार्ड और कैलेंडर भी इस वर्ष जारी किये जायेंगे। श्री कुमार ने बताया कि इस बारे में शोध कार्य किया जा रहा है कि मदर टेरेसा के मिशनरोज ऑफ चैरिटी के जरिए गरीबों की सेवा तथा उनके जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यो को ‘बेहतर तरीके’ से कैसे व्यक्त किया जा सके।
  • इसके अलावा इस साल टैगोर तथा मदर पर डाक टिकट, डायरियां, ग्रीटिंग कार्ड और कलेंडर जारी किए जाएंगे। कॉफी के मग पर दोनों महान विभूतियां के दुर्लभ चित्र और संदेश लिखकर उन्हें बेचा जाएगा। ये सभी वस्तुएं फिलाटेलिक ब्यूरो में उपलब्ध रहेंगे, जिन्हें कलेक्टर्स (संग्रहकर्ता) को पार्सल या वीपीपी से भेजा जायेगा। डाक विभाग को आशा है कि इन उत्पादों की कोलकाता में काफ़ी कद्र होगी, क्योंकि देश भर में सर्वाधिक 52 हज़ार स्टैंप कलेक्टर यहां हैं। उन्होंने बताया कि यह टिकट संग्रहण ब्यूरो में उपलब्ध होगा तथा मांग पर ज़िलाधिकारी को भेजा जाएगा।
  • श्री कुमार ने बताया कि अभिनेता उत्तम कुमार और जादूगर पीसी सरकार पर आधारित उत्पादों की बिक्री भी ख़ासी हुई थी। नदिया ज़िले के कृष्णनगर पोस्ट ऑफिस से भगवान कृष्ण पर आधारित 10 हज़ार कैलेंडर बेचे गये थे। उन्होंने बताया कि वह लोगों को डाक टिकट के क़रीब लाना चाहते हैं, क्योंकि इसके ज़रिये देश के इतिहास, संस्कृति, जीवन और विकास का पता चलता है।
  • इधर रेलवे की ओर से घोषणा की गयी है कि मदर टेरेसा के नाम पर मदर एक्सप्रेस की शुरूआत की जायेगी। गुरुवार को रेल मंत्री ममता बनर्जी इसकी शुरूआत सियालदह से करेंगी। यह ट्रेन देश भर के विभिन्न स्टेशनों पर अगले छह महीने तक जायेगी।
  • उदघाटन के मौके पर मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सुपीरियर जनरल सिस्टर प्रेमा, सिस्टर निर्मला, सिस्टर ऐंसी, सिस्टर जोसफ, सिस्टर गेरार्ड, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री दिनेश त्रिवेदी, केंद्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री मुकुल राय, केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री सुलतान अहमद, सुदीप बनर्जी, सोमेन मित्रा, शोभन चटर्जी, शिखा मित्रा, शुभाप्रसन्ना, सांवली मित्रा, डेरेक ओ ब्रायन व अन्य मौजूद रहेंगे।
विभिन्न क्षेत्रों भारत में प्रथम

6. फील्ड मार्शल - S.H.F.J. मानेकशा 9. वायसराय एक्जिक्यूटिव कौंसिल के प्रथम भारतीय सदस्य - एस. पी. सिन्हा 26. भारत में निर्मित प्रथम भारतीय फ़िल्म (silent film) - राजा हरिश्चन्द्र, 1913 में 27. भारत में निर्मित प्रथम भारतीय फ़िल्म (silent film) के निर्माण कर्ता - दादा साहेब फाल्के 28. प्रथम भारतीय रंगीन फ़िल्म - किशन कन्हैया (1937) 29. सिनेमास्कोप फ़िल्म - काग़ज़ के फूल (1959) 30. लाइफ टाइम अचिवमेंट के ऑस्कर पुरस्कार विजेता - सत्यजीत राय (1992) 31. बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन ऑस्कर विजेता - भानु अथैया (1982) 45. ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाली प्रथम भारोत्तोलक - कर्णम मल्लेश्वरी देवी (सिडनी, 2000) 46. शतरंज में प्रथम विश्व चैम्पियन भारतीय - विश्वनाथन आनंद 49. दलित वर्ग से प्रथम लोकसभा अध्यक्ष - G. M. C. बालयोगी

AA
BB
CC
D D2
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F1
F2

कन्या द्वारा वर से लिए जाने वाले सात वचन इस प्रकार है।

विवाह के बाद कन्या वर के वाम अंग में बैठने से पूर्व उससे सात वचन लेती है।

1-तीर्थव्रतोद्यापनयज्ञ दानं मया सह त्वं यदि कान्तकुर्या:। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद वाक्यं प्रथमं कुमारी।।

कन्या कहती है, स्वामिन् तीर्थ व्रत, उद्यापन, यज्ञ, दान आदि सभी शुभ कार्य तुम मेरे साथ करो तो में तुम्हारे वाम अंग में आऊ।।

2-हव्यप्रदानैरमरान् पितृश्चं कव्यं प्रदानैर्यदि पूजयेथा:। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं द्वितीयकम्।।

यदि तुम हव्य देकर देवताओं को और कव्य देकर पितरों की पूजा करो तो मैं तुम्हारे वाम अंग मैं आऊ।

3-कुटुम्बरक्षाभरंणं यदि त्वं कुर्या: पशूनां परिपालनं च। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं तृतीयम्।।

यदि तुम मेरी तथा परिवार की रक्षा करो तथा पशुओं का पालन करो तो मै तुम्हारे वाम अंग मै आऊँ। यह तीसरी बात कन्या ने कही।

4-आयं व्ययं धान्यधनादिकानां पृष्टवा निवेशं प्रगृहं निदध्या:।। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं चतुर्थकम्।।

यदि तुम धन-धान्यादिकों का आय व्यय मेरी सम्मती से करो तो मै तुम्हारे वाग अंग में आऊँ। यह चौथा वचन है।

5-देवालयारामतडागकूपं वापी विदध्या:यदि पूजयेथा:। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं पंचमम्।।

यदि देवालय, बाग, कूप, तालाब, बावली बनवाकर पूजा करो तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आऊँ।

6-देशान्तरे वा स्वपुरान्तरे वा यदा विदध्या:क्रयविक्रये त्वम्। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं षष्ठम्।।

यदि तुम अपने नगर में या किसी विदेश में जाकर व्यापार या नौकरी करो तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आऊँ।

7-न सेवनीया परिकी यजाया त्वया भवेभाविनि कामनीश्च। वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं सप्तम्।।

यदि तुम परायी स्त्री को स्पर्श न करो तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आऊँ। यह सातवां वचन है।


चलिये हम याद दिलवा देते हैं उन वचनों को।

वधू के द्वारा वर से लिये गये वचनः

प्रथम वचनः यदि यज्ञं कुर्यात्तस्मिन्मम सम्मतिं गृ्हणीयात !!

अर्थात् यज्ञादि शुभ कार्य मेरी सम्मति से ही करेंगे।

द्वितीय वचनः यदि दानं कुर्यात्तस्मिन्नपि मम सम्मति गृ्हणियात !!

दानादि मेरी सम्मति से ही करेंगे।

तृतीय वचनः अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात !!

अर्थात् युवा, प्रौढ़ और वृ्द्ध तीनों अवस्थाओं में मेरा पालन करेंगे।

चतुर्थ वचनः धनादिगोपने मम सम्मतिं गृ्हणीयात !!

अर्थात् गुप्त रूप से धनादि संचय मेरी सम्मति से ही करेंगे।

पंचम वचनः गवादि पशु क्रय-विक्रये मम सम्मतिं गृ्हणीयात !!

अर्थात् गाय, बैल, घोडा आदि पशुओं (वर्तमान में वाहनादि) के क्रय विक्रय में भी मेरी सम्मति लेंगे।

षष्ठम वचनः बसन्तादि षटऋतुषु मम पालनं कुर्यात !!

अर्थात् वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर इन छहों ऋतुओं में मेरा पालन करेंगे।

सप्तम वचनः सखीष्य मम हास्यं कटुवाक्यम न वदेत न कुर्यात! तद्दहं भवतां वामांगें आगच्छामि !!

अर्थात् मेरे साथ की सखी सहेलियों के सामने मेरी हँसीं न उडाएं और न ही कठोर कटु वचनों का प्रयोग करें।

आप उपरोक्त सातों वचनों का पालन करेंगे तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।

वर के द्वारा वधू से लिया गया वचनः

उद्याने मद्यपाने च पितागृ्हगमनेन च !! आज्ञा भंगो न कर्तव्यं वरवाक्यचतुष्टयकम !!

अर्थात निर्जन स्थान, उद्यान, वनादि में न जाए, दूसरे मद्य (शराब) पीने वाले मनुष्य के सामने न जाए, तीसरे यहाँ तक कि अपने पिता के घर भी मेरी आज्ञा के बिना न जाए, चौथे धर्म शास्त्रोचित कभी भी मेरी आज्ञा भंग न करे तो ही तुम मेरे वामांग में स्थान ग्रहण कर सकती हो।


शादी में सात फेरे क्यों लगाए जाते हैं? जिसमें पहला वचन होता है, पति-पत्नी को जीवन भर पर्याप्त और सम्मानित ढंग से भोजन मिलता रहे, दूसरा दोनों का जीवन शांतिपूर्ण और स्वस्थ ढंग से बीते, तीसरा दोनों अपने जीवन में आध्यात्मिक और धार्मिक दायित्वों को निभा सकें, चौथा फेरा इस वचन के साथ लिया जाता है कि दोनों सौहार्द्र और परस्पर प्रेम के साथ जीवन बितायें, पाँचवे फेरे का वचन होता है विश्व का कल्याण हो और संतान कि प्राप्ति हो, छठे में प्रार्थना की जाती है कि सभी ऋतुएं अपने अपने ढंग से समुचित धनधान्य उत्पन्न करके दुनिया भर को सुख दें क्योंकि सभी के सुख में दंपत्ति का भी भला होता है और सातवें फेरे में पति-पत्नी परस्पर विश्वास, एकता, मतैक्य और शांति के साथ जीवन बिता सकें। इन सात फेरों के साथ लिए वचनों में अपने और विश्व की शांति और सुख की प्रार्थना की जाती है।

वर के द्वारा दिए जाने वाले वचन ऐसे है जिनमें उसे गृहस्थी का सम्पूर्ण दायित्व सौपा जाता है ताकि दोनों की गृहस्थी सुख पूर्वक चले।

वर से वधु द्वारा लिए जाने वाले वचन इस प्रकार है। गृहस्थ जीवन में सुख-दु:ख की स्थितियां आती रहती हैं, लेकिन तुम हमेशा अपना स्वभाव मधुर रखोगे। मुझे बताये बिना कुआं - बावड़ी - तालाब का निर्माण, यज्ञ-महोत्सव का आयोजन और यात्रा नहीं करोगे।

मेरे व्रत, दान और धर्म कार्यों में रोक-टोक नहीं करोगे। मेहनत से जो कुछ भी अर्जित करोगे, मुझे सौंपोगे। मेरी राय के बिना कोई भी चल-अचल सम्पति का क्रय-विक्रय नहीं करोगे। घर की सभी कीमती चीजें, गहने, आभूषण मुझे रखने के लिए दोगे। माता-पिता के किसी आयोजन में मेरे मायके जाने पर आपत्ति नहीं लोगे।

वचन जो वर लेता है वधु से पहला – अगर तुम मेरी अर्द्धांगिनी बनना चाहती हो तो किसी पर पुरुष से नहीं मिलना, बिना बताए मायके नहीं जाना और किसी निर्जन स्थान पर नहीं जाना। दूसरा – रात में घर से नहीं निकलना और पानी भरने नहीं जाना। तीसरा – किसी भी पूजन, जप, तप में मेरे साथ रहना। चौथा – कभी कोई दान अकेले नहीं करना, उसमें मुझे सहभागी बनाना। पांचवां – किसी पर पुरुष के साथ नहीं रहना और कहीं भी अकेले नहीं जाना।

वचन जो वधु लेती है वर से छठवां – आप मुझे हर स्थान पर अपने साथ लेकर चलना, देश हो या विदेश। सातवां – किसी भी काम को करने से पहले मुझसे सलाह ज़रूर लेना।

और ये वचन दोनों के लिए आठवां – शादी के तुरंत बाद अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन ज़रूर कराएंगे।

ओ3म् (ॐ) नाम में हिन्दू, मुस्लिम या ईसाइ जैसी कोई बात नहीं है। यह सोचना कि ओ3म् किसी एक धर्म की निशानी है, ठीक बात नहीं, अपितु यह तो तब से चला आया है जब कोई अलग धर्म ही नहीं बना था। बल्कि ओ3म् तो किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है। यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति और आदर का प्रतीक है। उदाहरण के लिए अगर हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में इसको शामिल करते हैं तो ईसाई और यहूदी भी इसके जैसे ही एक शब्द आमेन का प्रयोग धार्मिक सहमति दिखाने के लिए करते हैं। मुस्लिम इसको आमीन कह कर याद करते हैं, बौद्ध इसे ओं मणिपद्मे हूं कह कर प्रयोग करते हैं। सिख मत भी इक ओंकार अर्थात एक ओ3म के गुण गाता है। अंग्रेज़ी का शब्द omni, जिसके अर्थ अनंत और कभी ख़त्म न होने वाले तत्त्वों पर लगाए जाते हैं (जैसे omnipresent, omnipotent) भी वास्तव में इस ओ3म् शब्द से ही बना है। इतने से यह सिद्ध है कि ओ3म् किसी मत, मज़हब या सम्प्रदाय से न होकर पूरी इंसानियत का है। ठीक उसी तरह जैसे कि हवा, पानी, सूर्य, ईश्वर, वेद आदि सब पूरी इंसानियत के लिए हैं न कि केवल किसी एक सम्प्रदाय के लिए।

यजुर्वेद [2/13, 40/15, 17] ऋग्वेद [1/3/7] आदि स्थानों पर तथा इसके अलावा गीता और उपनिषदों में ओ3म् का बहुत गुणगान हुआ है। मांडूक्य उपनिषद तो इसकी महिमा को ही समर्पित है।

ओ3म् का अर्थ

वैदिक साहित्य इस बात पर एकमत है कि ओ3म् ईश्वर का मुख्य नाम है। योग दर्शन [1/27, 28] में यह स्पष्ट है। यह ओ3म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है - अ, उ, म । प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है। जैसे अ से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है। उ से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है। म से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है। ये तो बहुत थोड़े से उदाहरण हैं जो ओ3म् के प्रत्येक अक्षर से समझे जा सकते हैं। वास्तव में अनंत ईश्वर के अनगिनत नाम केवल इस ओ3म् शब्द में ही आ सकते हैं, और किसी में नहीं।

वास्तव में हरेक ध्वनि हमारे मन में कुछ भाव उत्पन्न करती है। सृष्टि की शुरूआत में जब ईश्वर ने ऋषियों के हृदयों में वेद प्रकाशित किये तो हरेक शब्द से सम्बंधित उनके निश्चित अर्थ ऋषियों ने ध्यान अवस्था में प्राप्त किये। ऋषियों के अनुसार ओ3म् शब्द के तीन अक्षरों से भिन्न भिन्न अर्थ निकलते हैं, जिनमें से कुछ ऊपर दिए गए हैं।

ऊपर दिए गए शब्द-अर्थ सम्बन्ध का ज्ञान ही वास्तव में वेद मन्त्रों के अर्थ में सहायक होता है और इस ज्ञान के लिए मनुष्य को योगी अर्थात ईश्वर को जानने और अनुभव करने वाला होना चाहिए। परन्तु दुर्भाग्य से वेद पर अधिकतर उन लोगों ने कलम चलाई है जो योग तो दूर, यम नियमों की परिभाषा भी नहीं जानते थे। सब पश्चिमी वेद भाष्यकार इसी श्रेणी में आते हैं। तो अब प्रश्न यह है कि जब तक साक्षात ईश्वर का प्रत्यक्ष ना हो तब तक वेद कैसे समझें ? तो इसका उत्तर है कि ऋषियों के लेख और अपनी बुद्धि से सत्य असत्य का निर्णय करना ही सब बुद्धिमानों को अत्यंत उचित है। ऋषियों के ग्रन्थ जैसे उपनिषद्, दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ, निरुक्त, निघंटु, सत्यार्थ प्रकाश, भाष्य भूमिका इत्यादि की सहायता से वेद मन्त्रों पर विचार करके अपने सिद्धांत बनाने चाहियें और इसमें यह भी है कि पढने के साथ साथ यम नियमों का कड़ाई से पालन बहुत जरूरी है। वास्तव में वेदों का सच्चा स्वरुप तो समाधि अवस्था में ही स्पष्ट होता है, जो कि यम नियमों के अभ्यास से आती है।

व्याकरण मात्र पढने से वेदों के अर्थ कोई भी नहीं कर सकता। वेद समझने के लिए आत्मा की शुद्धता सबसे आवश्यक है। उदाहरण के लिए संस्कृत में गो शब्द का वास्तविक अर्थ है गतिमान। इससे इस शब्द के बहुत से अर्थ जैसे पृथ्वी, नक्षत्र आदि दिखने में आते हैं। परन्तु मूर्ख और हठी लोग हर स्थान पर इसका अर्थ गाय ही कहते हैं और मंत्र के वास्तविक अर्थ से दूर हो जाते हैं। वास्तव में किसी शब्द के वास्तविक अर्थ के लिए उसके मूल को जानना जरूरी है, और मूल बिना समाधि को जाना नहीं जा सकता। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि हम वेद का अभ्यास ही न करें। किन्तु अपने सर्व सामर्थ्य से कर्मों में शुद्धता से आत्मा में शुद्धता धारण करके वेद का अभ्यास करना सबका कर्त्तव्य है।

यह शब्द अर्थ सम्बन्ध योगाभ्यास से स्पष्ट होता जाता है। परन्तु कुछ उदाहरण तो प्रत्यक्ष ही हैं। जैसे म से ईश्वर के पालन आदि गुण प्रकाशित होते हैं। पालन आदि गुण मुख्य रूप से माता से ही पहचाने जाते हैं। अब विचारना चाहिए कि सब संस्कृतियों में माता के लिए क्या शब्द प्रयोग होते हैं। संस्कृत में माता, हिन्दी में माँ, उर्दू में अम्मी, अंग्रेज़ी में मदर, मम्मी, मॉम आदि, फ़ारसी में मादर, चीनी भाषा में माकुन इत्यादि, सो इतने से ही स्पष्ट हो जाता है कि पालन करने वाले मातृत्व गुण से म का और सभी संस्कृतियों से वेद का कितना अधिक सम्बन्ध है। एक छोटा बच्चा भी सबसे पहले इस म को ही सीखता है और इसी से अपने भाव व्यक्त करता है। इसी से पता चलता है कि ईश्वर की सृष्टि और उसकी विद्या वेद में कितना गहरा सम्बन्ध है।

यम नियम -- यम नियमों का अभ्यास इसका सबसे बड़ा साधन है, यम व नियम संक्षेप से नीचे दिए जाते हैं।

यम
  1. अहिंसा (किसी सज्जन और बेगुनाह को मन, वचन या कर्म से दुःख न देना)
  2. सत्य (जो मन में सोचा हो वही वाणी से बोलना और वही अपने कर्म में करना)
  3. अस्तेय (किसी की कोई चीज़ विना पूछे न लेना)
  4. ब्रह्मचर्य (अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना विशेषकर अपनी यौन इच्छाओं पर पूर्ण नियंत्रण)
  5. अपरिग्रह (सांसारिक वस्तु भोग व धन आदि में लिप्त न होना)
नियम
  1. शौच (मन, वाणी व शरीर की शुद्धता)
  2. संतोष (पूरे प्रयास करते हुए सदा प्रसन्न रहना, विपरीत परिस्थितियों से दुखी न होना)
  3. तप (सुख, दुःख, हानि, लाभ, सर्दी, गर्मी, भूख, प्यास, डर आदि की वजह से कभी भी धर्म को न छोड़ना)
  4. स्वाध्याय (अच्छे ज्ञान, विज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयास करना)
  5. ईश्वर प्रणिधान (अपने सब काम ऐसे करना जैसे कि ईश्वर सदा देख रहा है और फिर काम करके उसके फल की चिंता ईश्वर पर ही छोड़ देना)
  • ध्यान का नियम -- यम नियम तो आत्मा रुपी बर्तन की सफाई के लिए है ताकि उसमें ईश्वर अपने प्रेम का भोजन दे सके। वह भोजन सुबह शाम एकाग्र मन के साथ ईश्वर से माँगना चाहिए। ओ3म् का उच्चारण इसी भोजन मांगने की प्रक्रिया है, अब क्या करना चाहिए वह नीचे लिखते हैं।
  1. किसी जगह जहाँ शुद्ध हवा हो, वहां अच्छी जगह पर कमर सीधी कर के बैठ जाएँ, आँख बंद करके थोड़ी देर गहरे सांस धीरे धीरे लीजिये और छोड़िये जिससे शरीर में कोई तनाव न रहे।
  2. दिन में 4 बार ओ3म् का उच्चारण बहुत उपयोगी है, पहला सुबह सोकर उठते ही, दूसरा शौच व स्नान के बाद, तीसरा सूर्यास्त के समय शाम को और चौथा रात सोने से एकदम पहले। इसके अलावा जब कभी ख़ाली बैठे किसी की प्रतीक्षा या यात्रा कर रहे हों तो भी इसे कर सकते हैं।
  3. धीरे धीरे उच्चारण की लम्बाई बढ़ा सकते हैं, पर उतनी ही जितनी अपने सामर्थ्य में हो।
  4. कम से कम एक समय में 5 बार ज़रूर उच्चारण करें, मुंह से बोलने के बजाय मन में भी उच्चारण कर सकते हैं।
  5. अपने हर बार के उच्चारण में ईश्वर को पाने की इच्छा और उसके लिए प्रयास करने का वादा मन ही मन ईश्वर से करना चाहिए।
  6. हर बार उठने से पहले यह प्रतिज्ञा करनी कि अगली बार बैठूँगा तो इस बार से श्रेष्ठ चरित्र का व्यक्ति होकर बैठूँगा, अर्थात हर बार उठने के बाद अपने जीवन का हर काम अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा करते हुए करना, कभी ईश्वर को दी हुई प्रतिज्ञा नहीं तोड़ना।
परिवर्तन , संभावना , गति , क्रिया प्रतिक्रिया
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मुझे हिन्दुस्तानी, हिन्दू और हिन्दी भाषी होने का गर्व है |

_ डा॰ मनीष कुमार वैश्य _