"टोपरा": अवतरणों में अंतर
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*यह सभी प्रतिमाएं पर्यटकों को बहुत पसंद आती हैं।<ref>{{cite web |url=http://yatrasalah.com/touristPlaces.aspx?id=341 |title=यमुनानगर |accessmonthday=12 सितम्बर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | *यह सभी प्रतिमाएं पर्यटकों को बहुत पसंद आती हैं।<ref>{{cite web |url=http://yatrasalah.com/touristPlaces.aspx?id=341 |title=यमुनानगर |accessmonthday=12 सितम्बर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
*[[दिल्ली]] के फिरोजशाह कोटला में जो 'अशोक स्तंभ' लगा हुआ है, वह गांव टोपरा कलां से ही ले जाया गया था। इतिहासकार डॉ. राजपाल ने बताया कि [[अशोक|सम्राट अशोक]] ने [[गुजरात]] की [[गिरनार]] की पहाड़ियों में इस स्तंभ को बनवाया था, जिसकी लंबाई 42 फीट व चौड़ाई 2.5 फीट है। इस स्तंभ पर प्राचीन [[ब्राह्मी लिपि]] और [[प्राकृत भाषा]] में लिखी गई उनकी सात राजाज्ञाएं खुदी हुई हैं। देश का यह एकमात्र स्तंभ है, जिस पर सात राजाज्ञाएं खुदी हुई हैं। 1453 में [[फिरोजशाह तुगलक]] जब टोपरा कलां में शिकार के लिए आया तब उसकी नजर इस स्तंभ पर पड़ी। पहले वह इसे तोड़ना चाहता था, लेकिन बाद में इसे अपने साथ [[दिल्ली]] ले जाने का मन बनाया। इस बात का वर्णन इतिहासकार श्यामे सिराज ने तारीकी -फिरोजशाही में किया है। | *[[दिल्ली]] के फिरोजशाह कोटला में जो 'अशोक स्तंभ' लगा हुआ है, वह गांव टोपरा कलां से ही ले जाया गया था। इतिहासकार डॉ. राजपाल ने बताया कि [[अशोक|सम्राट अशोक]] ने [[गुजरात]] की [[गिरनार]] की पहाड़ियों में इस स्तंभ को बनवाया था, जिसकी लंबाई 42 फीट व चौड़ाई 2.5 फीट है। इस स्तंभ पर प्राचीन [[ब्राह्मी लिपि]] और [[प्राकृत भाषा]] में लिखी गई उनकी सात राजाज्ञाएं खुदी हुई हैं। देश का यह एकमात्र स्तंभ है, जिस पर सात राजाज्ञाएं खुदी हुई हैं। 1453 में [[फिरोजशाह तुगलक]] जब टोपरा कलां में शिकार के लिए आया तब उसकी नजर इस स्तंभ पर पड़ी। पहले वह इसे तोड़ना चाहता था, लेकिन बाद में इसे अपने साथ [[दिल्ली]] ले जाने का मन बनाया। इस बात का वर्णन इतिहासकार श्यामे सिराज ने तारीकी -फिरोजशाही में किया है। | ||
*यमुना के रास्ते इस स्तंभ को दिल्ली ले जाने के लिए एक बड़ी नाव तैयार की गई। स्तंभ पर कोई खरोंच न पडे़ इसके लिए उसे रेशम व रुई में लपेट कर ले जाया गया। डॉ. राजपाल ने बताया कि टोपरा से [[यमुना नदी]] तक इसे ले जाने के लिए 42 पहियों की गाड़ी तैयार की गई थी, जिसे आठ | *यमुना के रास्ते इस स्तंभ को दिल्ली ले जाने के लिए एक बड़ी नाव तैयार की गई। स्तंभ पर कोई खरोंच न पडे़ इसके लिए उसे रेशम व रुई में लपेट कर ले जाया गया। डॉ. राजपाल ने बताया कि टोपरा से [[यमुना नदी]] तक इसे ले जाने के लिए 42 पहियों की गाड़ी तैयार की गई थी, जिसे आठ हज़ार लोगों ने खींचा था। 18वीं शताब्दी में सबसे पहले [[कनिंघम|एलेग्जेंडर कनिंघम]] ने साबित किया था कि यह स्तंभ टोपरा कलां से लाया गया है। उसके सहकर्मी जेम्स पि्रंसेप ने पहली बार [[ब्राह्मी लिपि]] में लिखे संदेश को पढ़ा था।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/news/local/haryana/4_6_7597431.html |title=टोपरा कलां में स्थापित होगा अशोक स्तंभ का प्रारूप |accessmonthday=12 सितम्बर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
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08:25, 12 मार्च 2012 के समय का अवतरण
- टोपरा कलां, हरनोल रोड यमुनानगर हरियाणा से 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
- इस रोड पर कई मन्दिर और गुरुद्वार हैं। यह मन्दिर और गुरुद्वारे हिंदुओं व सिक्खों में आपसी भाई-चारे और प्रेम का प्रतीक हैं।
- इनके अलावा यहां पर भगवान राम, सीता और पाण्डवों की प्रतिमाओं को भी देखा जा सकता है।
- यह सभी प्रतिमाएं पर्यटकों को बहुत पसंद आती हैं।[1]
- दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में जो 'अशोक स्तंभ' लगा हुआ है, वह गांव टोपरा कलां से ही ले जाया गया था। इतिहासकार डॉ. राजपाल ने बताया कि सम्राट अशोक ने गुजरात की गिरनार की पहाड़ियों में इस स्तंभ को बनवाया था, जिसकी लंबाई 42 फीट व चौड़ाई 2.5 फीट है। इस स्तंभ पर प्राचीन ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में लिखी गई उनकी सात राजाज्ञाएं खुदी हुई हैं। देश का यह एकमात्र स्तंभ है, जिस पर सात राजाज्ञाएं खुदी हुई हैं। 1453 में फिरोजशाह तुगलक जब टोपरा कलां में शिकार के लिए आया तब उसकी नजर इस स्तंभ पर पड़ी। पहले वह इसे तोड़ना चाहता था, लेकिन बाद में इसे अपने साथ दिल्ली ले जाने का मन बनाया। इस बात का वर्णन इतिहासकार श्यामे सिराज ने तारीकी -फिरोजशाही में किया है।
- यमुना के रास्ते इस स्तंभ को दिल्ली ले जाने के लिए एक बड़ी नाव तैयार की गई। स्तंभ पर कोई खरोंच न पडे़ इसके लिए उसे रेशम व रुई में लपेट कर ले जाया गया। डॉ. राजपाल ने बताया कि टोपरा से यमुना नदी तक इसे ले जाने के लिए 42 पहियों की गाड़ी तैयार की गई थी, जिसे आठ हज़ार लोगों ने खींचा था। 18वीं शताब्दी में सबसे पहले एलेग्जेंडर कनिंघम ने साबित किया था कि यह स्तंभ टोपरा कलां से लाया गया है। उसके सहकर्मी जेम्स पि्रंसेप ने पहली बार ब्राह्मी लिपि में लिखे संदेश को पढ़ा था।[2]
इन्हें भी देखें: भारतीय पुरालिपियों का अन्वेषण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यमुनानगर (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 सितम्बर, 2011।
- ↑ टोपरा कलां में स्थापित होगा अशोक स्तंभ का प्रारूप (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 सितम्बर, 2011।