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[[चित्र:Panthi-Dance.gif|thumb|पंथी नृत्य]]
'''पंथी नृत्य''' [[छत्तीसगढ़]] राज्य में बसे सतनामी समुदाय का प्रमुख [[नृत्य]] है। इस नृत्य से सम्बन्धित गीतों में मनुष्य जीवन की महत्ता के साथ आध्यात्मिक संदेश भी होता है, जिस पर निर्गुण भक्ति व [[दर्शन]] का गहरा प्रभाव है। [[कबीर]], [[रैदास]] तथा [[दादू दयाल|दादू]] आदि संतों का वैराग्य-युक्त आध्यात्मिक संदेश भी इसमें पाया जाता है।
'''पंथी नृत्य''' [[छत्तीसगढ़]] राज्य में बसे सतनामी समुदाय का प्रमुख [[नृत्य]] है। इस नृत्य से सम्बन्धित गीतों में मनुष्य जीवन की महत्ता के साथ आध्यात्मिक संदेश भी होता है, जिस पर निर्गुण भक्ति व [[दर्शन]] का गहरा प्रभाव है। [[कबीर]], [[रैदास]] तथा [[दादू दयाल|दादू]] आदि संतों का वैराग्य-युक्त आध्यात्मिक संदेश भी इसमें पाया जाता है।
==नृत्य प्रक्रिया==
==नृत्य प्रक्रिया==
[[गुरु घासीदास]] के पंथ के लिए [[माघ मास|माघ माह]] की [[पूर्णिमा]] अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन सतनामी अपने गुरु की जन्म तिथि के अवसर पर 'जैतखाम' की स्थापना कर 'पंथी नृत्य' में मग्न हो जाते हैं। यह द्रुत गति का नृत्य है, जिसमें नर्तक अपना शारीरिक कौशल और चपलता प्रदर्शित करते हैं। [[सफ़ेद रंग]] की धोती, कमरबन्द तथा घुंघरू पहने नर्तक [[मृदंग]] एवं [[झांझ]] की लय पर आंगिक चेष्टाएँ करते हुए मंत्र-मुग्ध प्रतीत होते हैं।<ref>{{cite web |url=http://sczcc.gov.in/CG/InternalPage.aspx?Antispam=aOVv2ZXPBd4&ContentID=76&MyAntispam=ZJhp45i4l15|title=लोक नृत्य|accessmonthday=07 मार्च|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
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मुख्य नर्तक पहले गीत की कड़ी उठाता है, जिसे अन्य नर्तक दोहराते हुए नाचना शुरू करते हैं। प्रारंभ में गीत, [[संगीत]] और नृत्य की गति धीमी होती है। जैसे-जैसे गीत आगे बढ़ता है और मृदंग की लय तेज होती जाती है, वैसे-वैसे पंथी नर्तकों की आंगिक चेष्टाएँ भी तेज होती जाती हैं। गीत के बोल और अंतरा के साथ ही नृत्य की मुद्राएँ बदलती जाती हैं, बीच-बीच में मानव मीनारों की रचना और हैरतअंगेज कारनामें भी दिखाए जाते हैं। इस दौरान भी गीत-संगीत व नृत्य का प्रवाह बना रहता है और पंथी का जादू सिर चढ़कर बोलने लगता है। प्रमुख नर्तक बीच-बीच में 'अहा, अहा...' शब्द का उच्चारण करते हुए नर्तकों का उत्साहवर्धन करता है। गुरु घासीदास बाबा का जयकारा भी लगाया जाता है। थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद प्रमुख नर्तक सीटी भी बजाता है, जो नृत्य की मुद्राएँ बदलने का संकेत होता है।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%A5%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%A5%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81-%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%A8%E0%A4%BE-1101222020_1.htm|title=छत्तीसगढ़ का पंथी नृत्य|accessmonthday=07 मार्च|accessyear=2012|last=मानिकपुरी|first=ललितदास|authorlink= |format=एच.टी.एम.एल.|publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
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====वस्त्र तथा वाद्ययंत्र====
====वस्त्र तथा वाद्ययंत्र====
नृत्य का समापन तीव्र गति के साथ चरम पर होता है। इस नृत्य की तेजी, नर्तकों की तेजी से बदलती मुद्राएँ एवं देहगति दर्शकों को आश्चर्यचकित कर देती है। पंथी नर्तकों की वेशभूषा सादी होती है। सादा बनियान, घुटने तक साधारण धोती, गले में हार, सिर पर सादा फेटा और माथे पर सादा तिलक। अधिक वस्त्र या श्रृंगार इस नर्तकों की सुविधा की दृष्टि से अनुकूल भी नहीं है। वर्तमान समय के साथ इस नृत्य की वेशभूषा में भी कुछ परिवर्तन आया है। अब रंगीन कमीज और जैकेट भी पहन लिये जाते हैं। मांदर एवं झाँझ पंथी के प्रमुख [[वाद्ययंत्र]] होते हैं। अब बेंजो, [[ढोलक]], [[तबला]] और केसियो का भी प्रयोग होने लगा है।<ref name="mcc"/>
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==विशेषताएँ==
==विशेषताएँ==
पंथी [[छत्तीसगढ़]] का एक ऐसा [[लोक नृत्य]] है, जिसमें आध्यात्मिकता की गहराई तो है ही, साथ ही [[भक्त]] की भावनाओं का ज्वार भी है। इसमें जितनी सादगी है, उतना ही आकर्षण और मनोरंजन भी है। पंथी नृत्य की यही विशेषताएँ इसे अनूठा बनाती हैं। वास्तव में 'पंथी नृत्य', [[धर्म]], जाति, [[रंग]]-रूप आदि के आधार पर भेदभाव, आडंबरों और मानवता के विरोधी विचारों का संपोषण करने वाली व्यवस्था पर हज़ारों वर्षों से शोषित लोगों और दलितों का करारा, किंतु सुमधुर प्रहार है। यह छत्तीसगढ़ की सतनामी जाति के लोगों का पारंपरिक नृत्य है, जो सतनाम पंथ के पथिक हैं। इस पंथ की स्थापना छत्तीसगढ़ के महान संत [[गुरु घासीदास]] ने की थी।
पंथी [[छत्तीसगढ़]] का एक ऐसा [[लोक नृत्य]] है, जिसमें आध्यात्मिकता की गहराई तो है ही, साथ ही [[भक्त]] की भावनाओं का ज्वार भी है। इसमें जितनी सादगी है, उतना ही आकर्षण और मनोरंजन भी है। पंथी नृत्य की यही विशेषताएँ इसे अनूठा बनाती हैं। वास्तव में 'पंथी नृत्य', [[धर्म]], जाति, [[रंग]]-रूप आदि के आधार पर भेदभाव, आडंबरों और मानवता के विरोधी विचारों का संपोषण करने वाली व्यवस्था पर हज़ारों वर्षों से शोषित लोगों और दलितों का करारा, किंतु सुमधुर प्रहार है। यह छत्तीसगढ़ की सतनामी जाति के लोगों का पारंपरिक नृत्य है, जो सतनाम पंथ के पथिक हैं। इस पंथ की स्थापना छत्तीसगढ़ के महान् संत [[गुरु घासीदास]] ने की थी।
====मनमोहक====
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गुरु घासीदास के पंथ से ही 'पंथी नृत्य' का नामकरण हुआ है। पंथी गीत आम [[छत्तीसगढ़ी बोली]] में होते हैं, जिनके शब्दों और संदेशों को साधारण से साधारण व्यक्ति भी सरलता से समझ सकता है। पंथी नृत्य जितना मनमोहक एवं मनोरंजक है, इसमें उतनी ही आध्यात्मिकता की गहराई और भक्ति का ज्वार भी है। छत्तीसगढ़ी बोली को नहीं जानने-समझने वाले देश-विदेश के लोग भी पंथी नृत्य देख खो जाते हैं। वर्तमान समय में भी ये छत्तीसगढ़ के कलाकारों की साधना, परिश्रम और लगन का परिणाम है कि पंथी नृत्य देश-विदेश में प्रतिष्ठित है।<ref name="mcc"/>
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08:20, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

पंथी नृत्य

पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ राज्य में बसे सतनामी समुदाय का प्रमुख नृत्य है। इस नृत्य से सम्बन्धित गीतों में मनुष्य जीवन की महत्ता के साथ आध्यात्मिक संदेश भी होता है, जिस पर निर्गुण भक्ति व दर्शन का गहरा प्रभाव है। कबीर, रैदास तथा दादू आदि संतों का वैराग्य-युक्त आध्यात्मिक संदेश भी इसमें पाया जाता है।

नृत्य प्रक्रिया

गुरु घासीदास के पंथ के लिए माघ माह की पूर्णिमा अति महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन सतनामी अपने गुरु की जन्म तिथि के अवसर पर 'जैतखाम' की स्थापना कर 'पंथी नृत्य' में मग्न हो जाते हैं। यह द्रुत गति का नृत्य है, जिसमें नर्तक अपना शारीरिक कौशल और चपलता प्रदर्शित करते हैं। सफ़ेद रंग की धोती, कमरबन्द तथा घुंघरू पहने नर्तक मृदंग एवं झांझ की लय पर आंगिक चेष्टाएँ करते हुए मंत्र-मुग्ध प्रतीत होते हैं।[1]

मुख्य नर्तक पहले गीत की कड़ी उठाता है, जिसे अन्य नर्तक दोहराते हुए नाचना शुरू करते हैं। प्रारंभ में गीत, संगीत और नृत्य की गति धीमी होती है। जैसे-जैसे गीत आगे बढ़ता है और मृदंग की लय तेज होती जाती है, वैसे-वैसे पंथी नर्तकों की आंगिक चेष्टाएँ भी तेज होती जाती हैं। गीत के बोल और अंतरा के साथ ही नृत्य की मुद्राएँ बदलती जाती हैं, बीच-बीच में मानव मीनारों की रचना और हैरतअंगेज कारनामें भी दिखाए जाते हैं। इस दौरान भी गीत-संगीत व नृत्य का प्रवाह बना रहता है और पंथी का जादू सिर चढ़कर बोलने लगता है। प्रमुख नर्तक बीच-बीच में 'अहा, अहा...' शब्द का उच्चारण करते हुए नर्तकों का उत्साहवर्धन करता है। गुरु घासीदास बाबा का जयकारा भी लगाया जाता है। थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद प्रमुख नर्तक सीटी भी बजाता है, जो नृत्य की मुद्राएँ बदलने का संकेत होता है।[2]

वस्त्र तथा वाद्ययंत्र

नृत्य का समापन तीव्र गति के साथ चरम पर होता है। इस नृत्य की तेजी, नर्तकों की तेज़ीसे बदलती मुद्राएँ एवं देहगति दर्शकों को आश्चर्यचकित कर देती है। पंथी नर्तकों की वेशभूषा सादी होती है। सादा बनियान, घुटने तक साधारण धोती, गले में हार, सिर पर सादा फेटा और माथे पर सादा तिलक। अधिक वस्त्र या श्रृंगार इस नर्तकों की सुविधा की दृष्टि से अनुकूल भी नहीं है। वर्तमान समय के साथ इस नृत्य की वेशभूषा में भी कुछ परिवर्तन आया है। अब रंगीन कमीज और जैकेट भी पहन लिये जाते हैं। मांदर एवं झाँझ पंथी के प्रमुख वाद्ययंत्र होते हैं। अब बेंजो, ढोलक, तबला और केसियो का भी प्रयोग होने लगा है।[2]

विशेषताएँ

पंथी छत्तीसगढ़ का एक ऐसा लोक नृत्य है, जिसमें आध्यात्मिकता की गहराई तो है ही, साथ ही भक्त की भावनाओं का ज्वार भी है। इसमें जितनी सादगी है, उतना ही आकर्षण और मनोरंजन भी है। पंथी नृत्य की यही विशेषताएँ इसे अनूठा बनाती हैं। वास्तव में 'पंथी नृत्य', धर्म, जाति, रंग-रूप आदि के आधार पर भेदभाव, आडंबरों और मानवता के विरोधी विचारों का संपोषण करने वाली व्यवस्था पर हज़ारों वर्षों से शोषित लोगों और दलितों का करारा, किंतु सुमधुर प्रहार है। यह छत्तीसगढ़ की सतनामी जाति के लोगों का पारंपरिक नृत्य है, जो सतनाम पंथ के पथिक हैं। इस पंथ की स्थापना छत्तीसगढ़ के महान् संत गुरु घासीदास ने की थी।

मनमोहक

गुरु घासीदास के पंथ से ही 'पंथी नृत्य' का नामकरण हुआ है। पंथी गीत आम छत्तीसगढ़ी बोली में होते हैं, जिनके शब्दों और संदेशों को साधारण से साधारण व्यक्ति भी सरलता से समझ सकता है। पंथी नृत्य जितना मनमोहक एवं मनोरंजक है, इसमें उतनी ही आध्यात्मिकता की गहराई और भक्ति का ज्वार भी है। छत्तीसगढ़ी बोली को नहीं जानने-समझने वाले देश-विदेश के लोग भी पंथी नृत्य देख खो जाते हैं। वर्तमान समय में भी ये छत्तीसगढ़ के कलाकारों की साधना, परिश्रम और लगन का परिणाम है कि पंथी नृत्य देश-विदेश में प्रतिष्ठित है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लोक नृत्य (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 07 मार्च, 2012।
  2. 2.0 2.1 2.2 मानिकपुरी, ललितदास। छत्तीसगढ़ का पंथी नृत्य (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.)। । अभिगमन तिथि: 07 मार्च, 2012।

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