"पुलह": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replacement - " जगत " to " जगत् ")
 
(4 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''पुलह ऋषि'''<br />
'''पुलह ऋषि'''<br />


विश्व के सोलह प्रजापतियों में पुलह ऋषि का भी नाम आता है। यह भी [[ब्रह्मा]] जी के मानस पुत्र माने जाते हैं। इनके जीवन का मुख्य लक्ष्य जगत को अधिकाधिक सुख, शान्ति व समृध्दि दिलाना है। ब्रह्मा जी ने इन्हें सृष्टि की वृध्दि करने के लिए विवाह करने के लिए कहा। इन्होंने आदेश का पालन करते हुए महर्षि [[कर्दम]] की पुत्रियों तथा [[दक्ष प्रजापति]] की पाँच बेटियों से विवाह रचाए। उनसे सतानें पैदा की। इनकी संतानें अनेक योनि व जातियों की हैं।
विश्व के सोलह प्रजापतियों में पुलह ऋषि का भी नाम आता है। यह भी [[ब्रह्मा]] जी के मानस पुत्र माने जाते हैं। इनके जीवन का मुख्य लक्ष्य जगत् को अधिकाधिक सुख, शान्ति व समृध्दि दिलाना है। ब्रह्मा जी ने इन्हें सृष्टि की वृध्दि करने के लिए विवाह करने के लिए कहा। इन्होंने आदेश का पालन करते हुए महर्षि [[कर्दम]] की पुत्रियों तथा [[दक्ष|दक्ष प्रजापति]] की पाँच बेटियों से विवाह रचाए। उनसे सतानें पैदा की। इनकी संतानें अनेक योनि व जातियों की हैं।


महर्षि  पुलह ने महर्षि सनंदन को गुरु स्वीकार किया। उनसे शिक्षा दीक्षा ग्रहण की। संप्रदाय की रक्षा की ज़िम्मेदारी ली। आश्रम में रह कर तत्वज्ञान का संपादन किया। बाद में महर्षि [[गौतम]] ने इन्हें गुरु बनाया। उन्होंने गौतम को अपने ज्ञान का भंडार दिया। गौतम ने भी पुलह  ऋषि से प्राप्त ज्ञान का विस्तार किया।
महर्षि  पुलह ने महर्षि सनंदन को गुरु स्वीकार किया। उनसे शिक्षा दीक्षा ग्रहण की। संप्रदाय की रक्षा की ज़िम्मेदारी ली। आश्रम में रह कर तत्वज्ञान का संपादन किया। बाद में महर्षि [[गौतम]] ने इन्हें गुरु बनाया। उन्होंने गौतम को अपने ज्ञान का भंडार दिया। गौतम ने भी पुलह  ऋषि से प्राप्त ज्ञान का विस्तार किया।
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
वर्णन मिलता है- 'ये महर्षि शिव जी के बड़े भक्त थे। इन्होंने [[काशी]] में पुलहेश्वर नामक लिंग की स्थापना की, जो अभी तक है। इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान शिव ने अपना श्रीविग्रह प्रकट किया था।'
वर्णन मिलता है- 'ये महर्षि शिव जी के बड़े भक्त थे। इन्होंने [[काशी]] में पुलहेश्वर नामक लिंग की स्थापना की, जो अभी तक है। इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान शिव ने अपना श्रीविग्रह प्रकट किया था।'


पुलह ऋषि का वर्णन [[पुराण|पुराणों]] और अन्य ग्रंथों में मिलता है। लगातार जप, तप करने में लीन रहने वाले पुलह ऋषि ने जगत को आध्यात्मिक, आधिदैविक और  आधिभौतिक शान्ति प्रदान करने का कार्य किया।
पुलह ऋषि का वर्णन [[पुराण|पुराणों]] और अन्य ग्रंथों में मिलता है। लगातार जप, तप करने में लीन रहने वाले पुलह ऋषि ने जगत् को आध्यात्मिक, आधिदैविक और  आधिभौतिक शान्ति प्रदान करने का कार्य किया।
 
{{प्रचार}}
 
==संबंधित लेख==
 
{{ऋषि मुनि2}}{{ऋषि मुनि}}{{पौराणिक चरित्र}}
 
[[Category:पौराणिक चरित्र]]
{{ॠषि-मुनि}}
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:ॠषि मुनि]]
[[Category:ऋषि मुनि]]
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

13:54, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

पुलह ऋषि

विश्व के सोलह प्रजापतियों में पुलह ऋषि का भी नाम आता है। यह भी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र माने जाते हैं। इनके जीवन का मुख्य लक्ष्य जगत् को अधिकाधिक सुख, शान्ति व समृध्दि दिलाना है। ब्रह्मा जी ने इन्हें सृष्टि की वृध्दि करने के लिए विवाह करने के लिए कहा। इन्होंने आदेश का पालन करते हुए महर्षि कर्दम की पुत्रियों तथा दक्ष प्रजापति की पाँच बेटियों से विवाह रचाए। उनसे सतानें पैदा की। इनकी संतानें अनेक योनि व जातियों की हैं।

महर्षि पुलह ने महर्षि सनंदन को गुरु स्वीकार किया। उनसे शिक्षा दीक्षा ग्रहण की। संप्रदाय की रक्षा की ज़िम्मेदारी ली। आश्रम में रह कर तत्वज्ञान का संपादन किया। बाद में महर्षि गौतम ने इन्हें गुरु बनाया। उन्होंने गौतम को अपने ज्ञान का भंडार दिया। गौतम ने भी पुलह ऋषि से प्राप्त ज्ञान का विस्तार किया।

वर्णन मिलता है- 'ये महर्षि शिव जी के बड़े भक्त थे। इन्होंने काशी में पुलहेश्वर नामक लिंग की स्थापना की, जो अभी तक है। इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान शिव ने अपना श्रीविग्रह प्रकट किया था।'

पुलह ऋषि का वर्णन पुराणों और अन्य ग्रंथों में मिलता है। लगातार जप, तप करने में लीन रहने वाले पुलह ऋषि ने जगत् को आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक शान्ति प्रदान करने का कार्य किया।

संबंधित लेख