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उत्‍तरी गोलार्ध में स्थित भारत की मुख्‍यभूमि 8 डिग्री 4 मिनट और 37 डिग्री 6 मिनट उत्‍तरी अक्षांश और 68 डिग्री 7 मिनट तथा 97 डिग्री 25 मिनट पूर्वी देशान्‍तर के बीच स्थित है । उत्‍तर से दक्षिण तक इसकी अधिकतम लंबाई 3,214 कि.मी. और पूर्व से पश्चिम तक अधिकतम चौड़ाई 2,933 कि.मी. है। इसकी ज़मीनी सीमाओं की लंबाई लगभग 15,200 कि.मी. और  तटरेखा की कुल लम्‍बाई 7,516.6 कि.मी है। यह उत्‍तर में हिमालय पर्वत, पूर्व में [[बंगाल की खाड़ी]], पश्चिम में [[अरब सागर]] तथा दक्षिण में [[हिंद महासागर]] से घिरा हुआ है।
उत्‍तरी गोलार्ध में स्थित भारत की मुख्‍यभूमि 8 डिग्री 4 मिनट और 37 डिग्री 6 मिनट उत्‍तरी अक्षांश और 68 डिग्री 7 मिनट तथा 97 डिग्री 25 मिनट पूर्वी देशान्‍तर के बीच स्थित है । उत्‍तर से दक्षिण तक इसकी अधिकतम लंबाई 3,214 कि.मी. और पूर्व से पश्चिम तक अधिकतम चौड़ाई 2,933 कि.मी. है। इसकी ज़मीनी सीमाओं की लंबाई लगभग 15,200 कि.मी. और  तटरेखा की कुल लम्‍बाई 7,516.6 कि.मी है। यह उत्‍तर में हिमालय पर्वत, पूर्व में [[बंगाल की खाड़ी]], पश्चिम में [[अरब सागर]] तथा दक्षिण में [[हिंद महासागर]] से घिरा हुआ है।


{{Point}} विस्तार में पढ़ने के लिए देखें:[[भारत आलेख]]
==इतिहास==
==इतिहास==
{{मुख्य|भारत का इतिहास}}
{{मुख्य|भारत का इतिहास}}
[[भारत]] में मानवीय कार्यकलाप के जो प्राचीनतम चिह्न अब तक मिले हैं, वे 4,00,000 ई. पू. और 2,00,000 ई. पू. के बीच दूसरे और तीसरे हिम-युगों के संधिकाल के हैं और वे इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि उस समय पत्थर के उपकरण काम में लाए जाते थे। इसके पश्चात् एक लम्बे अरसे तक विकास मन्द गति से होता रहा, जिसमें अन्तिम समय में जाकर तीव्रता आई और उसकी परिणति 2300 ई. पू. के लगभग सिन्धु घाटी की आलीशान सभ्यता (अथवा नवीनतम नामकरण के अनुसार हड़प्पा संस्कृति) के रूप में हुई। [[हड़प्पा]] की पूर्ववर्ती संस्कृतियाँ हैं: [[बलूचिस्तान|बलूचिस्तानी पहाड़ियों]] के गाँवों की कुल्ली संस्कृति और [[राजस्थान]] तथा [[पंजाब]] की नदियों के किनारे बसे कुछ ग्राम-समुदायों की संस्कृति।<ref>पुस्तक 'भारत का इतिहास' रोमिला थापर) पृष्ठ संख्या-19</ref>
[[भारत]] में मानवीय कार्यकलाप के जो प्राचीनतम चिह्न अब तक मिले हैं, वे 4,00,000 ई. पू. और 2,00,000 ई. पू. के बीच दूसरे और तीसरे हिम-युगों के संधिकाल के हैं और वे इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि उस समय पत्थर के उपकरण काम में लाए जाते थे। इसके पश्चात् एक लम्बे अरसे तक विकास मन्द गति से होता रहा, जिसमें अन्तिम समय में जाकर तीव्रता आई और उसकी परिणति 2300 ई. पू. के लगभग सिन्धु घाटी की आलीशान सभ्यता (अथवा नवीनतम नामकरण के अनुसार हड़प्पा संस्कृति) के रूप में हुई। [[हड़प्पा]] की पूर्ववर्ती संस्कृतियाँ हैं: [[बलूचिस्तान|बलूचिस्तानी पहाड़ियों]] के गाँवों की कुल्ली संस्कृति और [[राजस्थान]] तथा [[पंजाब]] की नदियों के किनारे बसे कुछ ग्राम-समुदायों की संस्कृति।<ref>पुस्तक 'भारत का इतिहास' रोमिला थापर) पृष्ठ संख्या-19</ref>
<blockquote>'''प्राचीन भारतीयों ने कोई तिथि क्रमानुसार इतिहास नहीं सुरक्षित रखा है।''' सबसे प्राचीन सुनिश्चित तिथि जो हमें ज्ञात है, 326 ई. पू. है, जब मक़दूनिया के राजा [[सिकन्दर]] ने भारत पर आक्रमण किया। इस तिथि से पहले की घटनाओं का तारतम्य जोड़ कर तथा साहित्य में सुरक्षित ऐतिहासिक अनुश्रुतियों का उपयोग करके भारत का इतिहास सातवीं शताब्दी ई. पू. तक पहुँच जाता है। इस काल में भारत [[क़ाबुल]] की घाटी से लेकर [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] तक [[सोलह महाजनपद|षोडश जनपदों]] में विभाजित था।</blockquote>


[[मौर्य काल|मौर्य]] (तीसरी शताब्दी ई.पू.), [[शुंग]] (प्रथम शताब्दी ई.पू.), [[शक]] (प्रथम शताब्दी), [[कुषाण]] (द्वितीय शताब्दी), [[गुप्त]] (चौथी शताब्दी) और [[राजपूत]] (नौवीं शताब्दी) जब उत्तरी भारत में शासन कर रहे थे तब दक्षिण में [[सातवाहन]], [[चालुक्य]], [[चोल]] आदि का दौर चल रहा था। उसके बाद में मुस्लिम आक्रमण कारी आये और भारत में शासन करने लगे। जिनमें [[ग़ुलाम वंश]], [[ख़िलजी वंश|ख़िलजी]], [[तुग़लक़ वंश|तुग़लक़]], [[लोदी वंश|लोदी]] और [[मुग़ल|मुग़लों]] का शासन रहा। सोलह-सत्रहवीं शती से 1947 ईसवी तक [[पुर्तग़ाली]], [[फ़्राँसीसी]] और [[अंग्रेज़]] यहाँ शासन करते रहे। [[15 अगस्त]], [[1947]] को भारत स्वतंत्र हुआ।
[[मौर्य काल|मौर्य]] (तीसरी शताब्दी ई.पू.), [[शुंग]] (प्रथम शताब्दी ई.पू.), [[शक]] (प्रथम शताब्दी), [[कुषाण]] (द्वितीय शताब्दी), [[गुप्त]] (चौथी शताब्दी) और [[राजपूत]] (नौवीं शताब्दी) जब उत्तरी भारत में शासन कर रहे थे तब दक्षिण में [[सातवाहन]], [[चालुक्य]], [[चोल]] आदि का दौर चल रहा था। उसके बाद में मुस्लिम आक्रमण कारी आये और भारत में शासन करने लगे। जिनमें [[ग़ुलाम वंश]], [[ख़िलजी वंश|ख़िलजी]], [[तुग़लक़ वंश|तुग़लक़]], [[लोदी वंश|लोदी]] और [[मुग़ल|मुग़लों]] का शासन रहा। सोलह-सत्रहवीं शती से 1947 ईसवी तक [[पुर्तग़ाली]], [[फ़्राँसीसी]] और [[अंग्रेज़]] यहाँ शासन करते रहे। [[15 अगस्त]], [[1947]] को भारत स्वतंत्र हुआ।
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*उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग  
*उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग  
*कल्‍पना (किन्‍नौर) के उत्तर - पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा
*कल्‍पना (किन्‍नौर) के उत्तर - पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा
पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक फैली है, जो 240 कि.मी. से 320 कि.मी. तक चौड़ी है। पूर्व में भारत तथा [[म्यांमार]] और भारत एवं [[बांग्लादेश]] के बीच में पहाड़ी श्रृंखलाओं की ऊंचाई बहुत कम है। लगभग पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई गारो, खासी, जैंतिया और नगा पहाडियाँ उत्तर से दक्षिण तक फैली मिज़ो तथा रखाइन पहाडियों की श्रृंखला से जा मिलती हैं।
मरुस्‍थली क्षेत्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है बड़ा मरुस्‍थल कच्‍छ के रण की सीमा से लुनी नदी के उत्‍तरी ओर आगे तक फैला हुआ है। [[राजस्थान]] सिंध की पूरी सीमा इससे होकर गुजरती है। छोटा मरुस्‍थल लुनी से [[जैसलमेर]] और [[जोधपुर]] के बीच उत्‍तरी भूभाग तक फैला हुआ बड़े और छोटे मरुस्‍थल के बीच का क्षेत्र बिल्‍कुल ही बंजर है जिसमें चूने के पत्‍थर की पर्वत माला द्वारा पृथक किया हुआ पथरीला भूभाग है।
पर्वत समूह और पहाड़ी श्रृंखलाएँ जिनकी ऊँचाई 460 से 1,220 मीटर है, प्रायद्वीपीय पठार को [[गंगा]] और [[सिंधु नदी|सिंधु]] के मैदानी क्षेत्रों से अलग करती हैं। इनमें प्रमुख हैं अरावली, विंध्‍य, सतपुड़ा, मैकाला और अजन्‍ता। इस प्रायद्वीप की एक ओर पूर्व घाट दूसरी ओर पश्चिमी घाट है जिनकी ऊँचाई सामान्‍यत: 915 से 1,220 मीटर है,  कुछ स्‍थानों में 2,440 मीटर से अधिक ऊँचाई है। पश्चिमी घाटों और अरब सागर के बीच एक संकीर्ण तटवर्ती पट्टी है जबकि पूर्व घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच का विस्‍तृत तटवर्ती क्षेत्र है। पठार का दक्षिणी भाग [[नीलगिरि पहाड़ियाँ|नीलगिरी पहाड़ियों]] द्वारा निर्मित है जहाँ पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके आगे इलायची की पहाडियाँ पश्चिमी घाट के विस्‍तारण के रुप में मानी जा सकती हैं।


==भूगर्भीय संरचना==
==भूगर्भीय संरचना==
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उत्‍तर में हिमाचलय पर्वत क्षेत्र और पूर्व में नागालुशाई पर्वत, पर्वत निर्माण गतिविधि के क्षेत्र है। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग जो वर्तमान समय में विश्‍व का सार्वधिक सुंदर पर्वत दृश्‍य प्रस्‍तुत करता है, 60 करोड़ वर्ष पहले समुद्री क्षेत्र में था। 7 करोड़ वर्ष पहले शुरू हुए पर्वत-निर्माण गतिविधियों की श्रृंखला में तलछटें और आधार चट्टानें काफ़ी ऊँचाई तक पहुँच गई। आज हम जो इन पर उभार देखते हैं, उनको उत्‍पन्‍न करने में अपक्षय और अपरदक ने कार्य किया। भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्र एक जलोढ़ भूभाग हैं जो दक्षिण के प्रायद्वीप से उत्‍तर में हिमाचल को अलग करते हैं।
उत्‍तर में हिमाचलय पर्वत क्षेत्र और पूर्व में नागालुशाई पर्वत, पर्वत निर्माण गतिविधि के क्षेत्र है। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग जो वर्तमान समय में विश्‍व का सार्वधिक सुंदर पर्वत दृश्‍य प्रस्‍तुत करता है, 60 करोड़ वर्ष पहले समुद्री क्षेत्र में था। 7 करोड़ वर्ष पहले शुरू हुए पर्वत-निर्माण गतिविधियों की श्रृंखला में तलछटें और आधार चट्टानें काफ़ी ऊँचाई तक पहुँच गई। आज हम जो इन पर उभार देखते हैं, उनको उत्‍पन्‍न करने में अपक्षय और अपरदक ने कार्य किया। भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्र एक जलोढ़ भूभाग हैं जो दक्षिण के प्रायद्वीप से उत्‍तर में हिमाचल को अलग करते हैं।
प्रायद्वीप सापेक्ष स्थिरता और कभी-कभार भूकंपीय परेशानियों का क्षेत्र है। 380 करोड़ वर्ष पहले के प्रारंभिक काल की अत्‍याधिक कायांतरित चट्टानें इस क्षेत्र में पायी जाती हैं, बाक़ी क्षेत्र गोंदवाना के तटवर्ती क्षेत्र से घिरा है, दक्षिण में सीढ़ीदार रचना और छोटी तलछटें लावा के प्रवाह से निर्मित हैं।


==नदियाँ==
==नदियाँ==
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*तटवर्ती नदियाँ
*तटवर्ती नदियाँ
*अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ
*अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ
[[हिमालय]] से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्‍लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्‍तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्‍थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी होती हैं। पश्चिमी राजस्थान के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ्‍ नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी प्रकृति की हैं। हिमालय से निकलने वाली नदी की मुख्‍य प्रणाली [[सिंधु नदी|सिंधु]], [[गंगा]], [[ब्रह्मपुत्र]] और मेघना नदी की प्रणाली की तरह है। दक्‍कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्‍यत पूर्व दिशा में बहती हैं और [[बंगाल की खाड़ी]] में मिल जाती हैं। भारत में कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्‍टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है। [[राजस्थान]] में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्‍त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है।
====भारत की प्रमुख नदियों की सूची====
{{भारत की प्रमुख नदियाँ सूची1}}


== भारत का संविधान ==
== भारत का संविधान ==
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भारत का संविधान [[26 जनवरी]], 1950 को लागू हुआ। इसका निर्माण संविधान सभा ने किया था, जिसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था।
भारत का संविधान [[26 जनवरी]], 1950 को लागू हुआ। इसका निर्माण संविधान सभा ने किया था, जिसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था।
संविधान सभा की पहली बैठक अविभाजित भारत के लिए बुलाई गई थी। 4 अगस्त, 1947 को संविधान सभा की बैठक पुनः हुई और उसके अध्यक्ष [[सच्चिदानन्द सिन्हा]] थे। सिन्हा के निधन के बाद [[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] संविधान सभा के अध्यक्ष बने। फ़रवरी 1948 में संविधान का मसौदा प्रकाशित हुआ। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान अन्तिम रूप में स्वीकृत हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
संविधान सभा की पहली बैठक अविभाजित भारत के लिए बुलाई गई थी। 4 अगस्त, 1947 को संविधान सभा की बैठक पुनः हुई और उसके अध्यक्ष [[सच्चिदानन्द सिन्हा]] थे। सिन्हा के निधन के बाद [[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] संविधान सभा के अध्यक्ष बने। फ़रवरी 1948 में संविधान का मसौदा प्रकाशित हुआ। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान अन्तिम रूप में स्वीकृत हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
 
==राज्यों की एक झलक==
भारत का संविधान ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली के नमूने पर है, किन्तु एक विषय में यह उससे भिन्न है, ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है। भारत में संसद नहीं; बल्कि संविधान सर्वोच्च है। भारत में न्यायालयों को भारत की संसद द्वारा पास किए गए क़ानून की संवैधानिकता पर फ़ैसला करने का अधिकार प्राप्त है।
{{राज्य मानचित्र}}
 
====भारतीय संविधान सभा====
भारतीय संविधान सभा की कार्रवाई [[13 दिसम्बर]], सन [[1946]] ई. को [[जवाहर लाल नेहरू]] द्वारा पेश किये गए उद्देश्य प्रस्ताव के साथ प्रारम्भ हुई।
{{संविधान सभा सूची1}}
 
==राज्यों का गठन एक झलक==
{{राज्यों का गठन सूची1}}


==धर्म==
==धर्म==
{{Main|धर्म}}
भारतीय संस्कृति में विभिन्नता उसका भूषण है। यहाँ हिन्दू धर्म के अगणित रूपों और संप्रदायों के अतिरिक्त, [[बौद्ध]], [[जैन]], [[सिक्ख धर्म|सिक्ख]], [[इस्लाम धर्म|इस्लाम]], [[ईसाई धर्म|ईसाई]], यहूदी आदि धर्मों की विविधता का भी एक सांस्कृतिक समायोजन देखने को मिलता है। [[हिन्दू धर्म]] के विविध सम्प्रदाय एवं मत सारे देश में फैले हुए हैं, जैसे [[वैदिक धर्म]], [[शैव सम्प्रदाय|शैव]], [[वैष्णव धर्म|वैष्णव]], [[शाक्त सम्प्रदाय|शाक्त]] आदि पौराणिक धर्म, राधा-बल्लभ संप्रदाय, श्री संप्रदाय, [[आर्य समाज]], समाज आदि। परन्तु इन सभी मतवादों में सनातन धर्म की एकरसता खण्डित न होकर विविध रूपों में गठित होती है। यहाँ के निवासियों में भाषा की विविधता भी इस देश की मूलभूत सांस्कृतिक एकता के लिए बाधक न होकर साधक प्रतीत होती है।  
भारतीय संस्कृति में विभिन्नता उसका भूषण है। यहाँ हिन्दू धर्म के अगणित रूपों और संप्रदायों के अतिरिक्त, [[बौद्ध]], [[जैन]], [[सिक्ख धर्म|सिक्ख]], [[इस्लाम धर्म|इस्लाम]], [[ईसाई धर्म|ईसाई]], यहूदी आदि धर्मों की विविधता का भी एक सांस्कृतिक समायोजन देखने को मिलता है। [[हिन्दू धर्म]] के विविध सम्प्रदाय एवं मत सारे देश में फैले हुए हैं, जैसे [[वैदिक धर्म]], [[शैव सम्प्रदाय|शैव]], [[वैष्णव धर्म|वैष्णव]], [[शाक्त सम्प्रदाय|शाक्त]] आदि पौराणिक धर्म, राधा-बल्लभ संप्रदाय, श्री संप्रदाय, [[आर्य समाज]], समाज आदि। परन्तु इन सभी मतवादों में सनातन धर्म की एकरसता खण्डित न होकर विविध रूपों में गठित होती है। यहाँ के निवासियों में भाषा की विविधता भी इस देश की मूलभूत सांस्कृतिक एकता के लिए बाधक न होकर साधक प्रतीत होती है।  
{{धर्मावलम्बियों की संख्या सूची1}}
आध्यात्मिकता हमारी संस्कृति का [[प्राणतत्त्व]] है। इनमें ऐहिक अथवा भौतिक सुखों की तुलना में आत्मिक अथवा पारलौकिक सुख के प्रति आग्रह देखा जा सकता है। चतुराश्रम-व्यवस्था (अर्थात ब्रह्मचर्य, गृहस्थ तथा संन्यास आश्रम) तथा पुरुषार्थ-चतुष्टम (धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष) का विधान मनुष्य की आध्यात्मिक साधना के ही प्रतीक हैं। इसमें जीवन का मुख्य ध्येय धर्म अर्थात मूल्यों का अनुरक्षण करते हुए मोक्ष माना गया है। भारतीय आध्यात्मिकता में धर्मान्धता को महत्त्व नहीं दिया गया। इस संस्कृति की मूल विशेषता यह रही है कि व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के अनुरूप मूल्यों की रक्षा करते हुए कोई भी मत, विचार अथवा धर्म अपना सकता है यही कारण है कि यहाँ समय-समय पर विभिन्न धर्मों को उदय तथा साम्प्रदायिक विलय होता रहा है। धार्मिक सहिष्णुता इसमें कूट-कूट कर भरी हुई है। वस्तुत: हमारी संस्कृति में ग्रहण-शीलता की प्रवृत्ति रही है। इसमें प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाकर अपने में समाहित कर लेने की अद्भुत शक्ति है। ऐतिहासिक काल से लेकर मध्य काल तक भारत में विभिन्न धर्मों एवं जातियों का भारत पर आक्रमण एवं शासन स्थापित हुआ। परन्तु भारतीय संस्कृति की ग्रहणशील प्रकृति के कारण समयान्तर में वे सब इसमें समाहित हो गये।


==अर्थव्यवस्था==
==अर्थव्यवस्था==
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{{Main|कृषि}}
{{Main|कृषि}}
कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों एवं प्रयासों से कृषि को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में गरिमापूर्ण दर्जा मिला है। कृषि क्षेत्रों में लगभग 64% श्रमिकों को रोजगार मिला हुआ है। 1950-51 में कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 59.2% था जो घटकर 1982-83 में 36.4% और 1990-91 में 34.9% तथा 2001-2002 में 25% रह गया। यह 2006-07 की अवधि के दौरान औसत आधार पर घटकर 18.5% रह गया। दसवीं योजना (2002-2007) के दौरान समग्र सकल घरेलू उत्पाद की औसत वार्षिक वृद्धि पद 7.6% थी जबकि इस दौरान कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 2.3% रही। 2001-02 से प्रारंभ हुई नव सहस्त्राब्दी के प्रथम 6 वर्षों में 3.0% की वार्षिक सामान्य औसत वृद्धि दर 2003-04 में 10% और 2005-06 में 6% की रही।  
कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों एवं प्रयासों से कृषि को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में गरिमापूर्ण दर्जा मिला है। कृषि क्षेत्रों में लगभग 64% श्रमिकों को रोजगार मिला हुआ है। 1950-51 में कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 59.2% था जो घटकर 1982-83 में 36.4% और 1990-91 में 34.9% तथा 2001-2002 में 25% रह गया। यह 2006-07 की अवधि के दौरान औसत आधार पर घटकर 18.5% रह गया। दसवीं योजना (2002-2007) के दौरान समग्र सकल घरेलू उत्पाद की औसत वार्षिक वृद्धि पद 7.6% थी जबकि इस दौरान कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 2.3% रही। 2001-02 से प्रारंभ हुई नव सहस्त्राब्दी के प्रथम 6 वर्षों में 3.0% की वार्षिक सामान्य औसत वृद्धि दर 2003-04 में 10% और 2005-06 में 6% की रही।  
देश में राष्ट्रीय आय का लगभग 28% कृषि से प्राप्त होता है। लगभग 70% जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। देश से होने वाले निर्यातों का बड़ा हिस्सा भी कृषि से ही आता है। ग़ैर कृषि-क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में उपभोक्ता वस्तुएं एवं बहुतायत उद्योगों को कच्चा माल इसी क्षेत्र द्वारा भेजा जाता है।
भारत में पाँचवें दशक के शुरुआती वर्षों में अनाज की प्रति व्यक्ति दैनिक उपलब्धता 395 ग्राम थी, जो 1990-91 में बढ़कर 468 ग्राम, 1996-97 में 528.77 ग्राम, 1999-2000 में 467 ग्राम, 2000-01 में 455 ग्राम, 2001-02 में 416 ग्राम, 2002-03 में 494 ग्राम और 2003-04 में 436 ग्राम तक पहुँच गई। वर्ष 2005-06 में यह उपलब्धता प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 412 ग्राम हो गई। विश्व में सबसे अधिक क्षेत्रों में दलहनी खेती करने वाला देश भी भारत ही है। इसके बावजूद प्रति व्यक्ति दाल की दैनिक उपलब्धता संतोषजनक नहीं रही है। इसमें सामान्यत: प्रति वर्ष गिरावट दर्ज़ की गई है। वर्ष 1951 में दाल की प्रति व्यक्ति दैनिक उपलब्धता 60.7 ग्राम थी वही यह 1961 में 69.0 ग्राम, 1971 में 51.2 ग्राम, 1981 में 37.5 ग्राम, 1991 में 41.6 ग्राम और 2001 में 30.0 ग्राम हो गई। वर्ष 2005 में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दाल की निवल उपलब्ध मात्रा 31.5 ग्राम तथा 2005-06 के दौरान 33 ग्राम प्रतिदिन प्रति व्यक्ति हो गई। भारत में ही सर्वप्रथम कपास का संकर बीज तैयार किया गया है। विभिन्न कृषि क्षेत्रों में आधुनिकतम एवं उपयुक्त प्रौद्योगिकी का विकास करने में भी भारतीय वैज्ञानिकों ने सफलता अर्जित की है।


==खनिज संपदा==
==खनिज संपदा==
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==ऊर्जा और ईंधन==
==ऊर्जा और ईंधन==
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|+ '''बिजली, कोयला, तेल और गैस'''
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{{बाँध सूची1}}{{ईंधन सूची1}}
|}
====परमाणु ऊर्जा====
====परमाणु ऊर्जा====
भारत का परमाणु ऊर्जा विभाग तीन चरणों में नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम चला रहा है-
भारत का परमाणु ऊर्जा विभाग तीन चरणों में नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम चला रहा है-
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#दूसरे चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बनाने का प्रावधान है, जिनके साथ पुनः प्रसंस्करण संयंत्र और प्लूटोनियम-आधारित ईंधन संविचरण संयंत्र भी होंगे। प्लूटोनियम को यूरेनियम 238 के विखंडन से प्राप्त किया जाता है।
#दूसरे चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बनाने का प्रावधान है, जिनके साथ पुनः प्रसंस्करण संयंत्र और प्लूटोनियम-आधारित ईंधन संविचरण संयंत्र भी होंगे। प्लूटोनियम को यूरेनियम 238 के विखंडन से प्राप्त किया जाता है।
#तीसरा चरण थोरियम-यूरेनियम-233 चक्र पर आधारित है। यूरेनियम-233 को थोरियम के विकिरण से हासिल किया जाता है।
#तीसरा चरण थोरियम-यूरेनियम-233 चक्र पर आधारित है। यूरेनियम-233 को थोरियम के विकिरण से हासिल किया जाता है।
{{Point}} विस्तार में पढ़ने के लिए देखें:[[भारत आलेख]]
==रक्षा==
==रक्षा==
{{Main|भारतीय सशस्त्र सेना}}
{{Main|भारतीय सशस्त्र सेना}}
भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष 1946 के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय देश के रक्षा मंत्री बलदेव सिंह बने। हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा । 1947 में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंट पाकिस्तान चली गयीं। गोरखा फ़ौज की 6 रेजीमेंटं (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से 28 फ़रवरी, 1948 को स्वदेश रवाना हुई। कुछ अंग्रेज़ अफ़सर परामर्शक के रूप में कुछ समय तक भारत में रहे लेकिन स्वतंत्रता के पहले क्षण से ही भारतीय सेना पूर्णत: भारतीयों के हाथों में आ गयी थी। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात भारत सरकार ने भारतीय सेना के ढांचे में कतिपय परिवर्तन किये। थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना अपने-अपने मुख्य सेनाध्यक्षों के अधीन आयी। भारतीय रियासतों की सेना को भी देश की सैन्य व्यवस्था में शामिल कर लिया गया। 26 जनवरी, 1950 को देश के गणतंत्र बनने पर भारतीय सेनाओं की संरचनाओं में आवश्यक परिवर्तन किये गये।  
भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष 1946 के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय देश के रक्षा मंत्री बलदेव सिंह बने। हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा । 1947 में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंट पाकिस्तान चली गयीं। गोरखा फ़ौज की 6 रेजीमेंटं (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से 28 फ़रवरी, 1948 को स्वदेश रवाना हुई। कुछ अंग्रेज़ अफ़सर परामर्शक के रूप में कुछ समय तक भारत में रहे लेकिन स्वतंत्रता के पहले क्षण से ही भारतीय सेना पूर्णत: भारतीयों के हाथों में आ गयी थी। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात भारत सरकार ने भारतीय सेना के ढांचे में कतिपय परिवर्तन किये। थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना अपने-अपने मुख्य सेनाध्यक्षों के अधीन आयी। भारतीय रियासतों की सेना को भी देश की सैन्य व्यवस्था में शामिल कर लिया गया। 26 जनवरी, 1950 को देश के गणतंत्र बनने पर भारतीय सेनाओं की संरचनाओं में आवश्यक परिवर्तन किये गये।  
{{प्रक्षेपास्त्र सूची1}}
भारत की रक्षा सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर भारत का राष्ट्रपति है, किन्तु देश रक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल की है। रक्षा से संबंधित सभी महत्त्वपूर्ण मामलों का फैसला राजनीतिक कार्यों संबंधी मंत्रिमंडल समिति (कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स) करती है, जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। रक्षा मंत्री सेवाओं से संबंधित सभी विषयों के बारे में संसद के समक्ष उत्तरदायी है।


==अंतरिक्ष कार्यक्रम==
==अंतरिक्ष कार्यक्रम==
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==पशु पक्षी जगत==
==पशु पक्षी जगत==
{{Main|भारत में वन्य जीवन}}
{{Main|भारत में वन्य जीवन}}
वन्य जीवन प्रकृति की अमूल्य देन है। भविष्य में वन्य प्राणियों की समाप्ति की आशंका के कारण भारत में सर्वप्रथम 7 जुलाई, 1955 को वन्य प्राणी दिवस मनाया गया । यह भी निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष दो अक्तूबर से पूरे सप्ताह तक वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जाएगा। वर्ष 1956 से वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जा रहा है। भारत के संरक्षण कार्यक्रम की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक मज़बूत संस्थागत ढांचे की रचना की गयी है । जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, बोटेनिकल सर्वे आफ इण्डिया जैसी प्रमुख संस्थाओं तथा भारतीय वन्य जीवन संस्थान, भारतीय वन्य अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी तथा सलीम अली स्कूल ऑफ आरिन्थोलॉजी जैसे संस्थान वन्य जीवन संबंधी शिक्षा और अनुसंधान कार्य में लगे हैं।
वन्य जीवन प्रकृति की अमूल्य देन है। भविष्य में वन्य प्राणियों की समाप्ति की आशंका के कारण भारत में सर्वप्रथम 7 जुलाई, 1955 को वन्य प्राणी दिवस मनाया गया । यह भी निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष दो अक्तूबर से पूरे सप्ताह तक वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जाएगा। वर्ष 1956 से वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जा रहा है। भारत के संरक्षण कार्यक्रम की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक मज़बूत संस्थागत ढांचे की रचना की गयी है । जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, बोटेनिकल सर्वे आफ इण्डिया जैसी प्रमुख संस्थाओं तथा भारतीय वन्य जीवन संस्थान, भारतीय वन्य अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी तथा सलीम अली स्कूल ऑफ आरिन्थोलॉजी जैसे संस्थान वन्य ====भारत का वन्य जीवन====
भारत कई प्रकार के जंगलों जीवों का, अनेक पेड़ पौधों और पशु-पक्षियों का घर है। शानदार हाथी, मोर का नाच, ऊँट की [[सैर]], शेरों की दहाड़ सभी एक अनोखे अनुभव है। यहाँ के पशु पक्षियों को अपने प्राकृतिक निवासस्थान में देखना आनन्दायक है। भारत में जंगली जीवों को देखने पर्यटक आते हैं। यहाँ जंगली जीवों की बहुत बड़ी संख्या है। भारत में 70 से अधिक राष्ट्रीय उद्यान और 400 जंगली जीवों के अभयारण्य है और पक्षी अभयारण्य भी हैं।
====भारत का वन्य जीवन====
*संसार में पौधों की 2,50,000 ज्ञात प्रजातियों में से 15,000 प्रजातियां भारत में मिलती हैं।  
*संसार में पौधों की 2,50,000 ज्ञात प्रजातियों में से 15,000 प्रजातियां भारत में मिलती हैं।  
*इस प्रकार संसार में जीव-जन्तुओं की कुल 15 लाख प्रजातियों में से 75,000 प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं।  
*इस प्रकार संसार में जीव-जन्तुओं की कुल 15 लाख प्रजातियों में से 75,000 प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं।  
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{{Main|भारतीय भाषाएँ}}
{{Main|भारतीय भाषाएँ}}
[[भारत]] की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। भारत में विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 344 के अंतर्गत पहले केवल 15 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता दी गयी थी, लेकिन 21वें संविधान संशोधन के द्वारा सिन्धी को तथा 71वाँ संविधान संशोधन द्वारा नेपाली, कोंकणी तथा मणिपुरी को भी राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। बाद में 92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में चार नई भाषाओं बोडो, डोगरी, मैथिली तथा संथाली को राजभाषा में शामिल कर लिया गया। इस प्रकार अब संविधान में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है। भारत में इन 22 भाषाओं को बोलने वाले लोगों की कुल संख्या लगभग 90% है। इन 22 भाषाओं के अतिरिक्त [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] भी सहायक राजभाषा है और यह [[मिज़ोरम]], [[नागालैण्ड]] तथा [[मेघालय]] की राजभाषा भी है। कुल मिलाकर भारत में 58 भाषाओं में स्कूलों में पढ़ायी की जाती है। संविधान की आठवीं अनुसूची में उन भाषाओं का उल्लेख किया गया है, जिन्हें राजभाषा की संज्ञा दी गई है।  
[[भारत]] की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। भारत में विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 344 के अंतर्गत पहले केवल 15 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता दी गयी थी, लेकिन 21वें संविधान संशोधन के द्वारा सिन्धी को तथा 71वाँ संविधान संशोधन द्वारा नेपाली, कोंकणी तथा मणिपुरी को भी राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। बाद में 92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में चार नई भाषाओं बोडो, डोगरी, मैथिली तथा संथाली को राजभाषा में शामिल कर लिया गया। इस प्रकार अब संविधान में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है। भारत में इन 22 भाषाओं को बोलने वाले लोगों की कुल संख्या लगभग 90% है। इन 22 भाषाओं के अतिरिक्त [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] भी सहायक राजभाषा है और यह [[मिज़ोरम]], [[नागालैण्ड]] तथा [[मेघालय]] की राजभाषा भी है। कुल मिलाकर भारत में 58 भाषाओं में स्कूलों में पढ़ायी की जाती है। संविधान की आठवीं अनुसूची में उन भाषाओं का उल्लेख किया गया है, जिन्हें राजभाषा की संज्ञा दी गई है।  
====भारतीय भाषा सूची====
{{भारतीय भाषा सूची1}}


==शिक्षा==
==शिक्षा==
{{Main|भारत में शिक्षा}}
{{Main|भारत में शिक्षा}}
1911 में भारतीय जनगणना के समय साक्षरता को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि "एक पत्र पढ़-लिखकर उसका उत्तर दे देने की योग्यता" साक्षरता है। भारत में लम्बे समय से लिखित भाषा का अस्तित्व है, किन्तु प्रत्यक्ष सूचना के अभाव के कारण इसका संतोषजनक विकास नहीं हुआ। [[हड़प्पा]] और [[मोहनजोदड़ो]] की लेखन चित्रलिपि तीन हज़ार वर्ष ईसा पूर्व और बाद की है। यद्यपि अभी तक इस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है, तथापि इससे यह स्पष्ट है कि भारतीयों के पास कई शताब्दियों पहले से ही एक लिखित भाषा थी और यहाँ के लोग पढ़ और लिख सकते थे। हड़प्पा और [[अशोक]] के काल के बीच में पन्द्रह सौ वर्षों का ऐसा समय रहा है, जिसमें की कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन [[पाणिनि]] ने उस समय भारतीयों के द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं का उल्लेख किया है। [[बुद्ध]] के समय में और उनसे भी पहले इस देश में भाषा के 60 से भी अधिक रूपों को जाना जाता था तथा शाक्यमुनि ने लेखन की एक पद्धति की शिक्षा दी थी। भारत के एक राष्ट्र के रूप में विकसित होने से पहले [[संस्कृत भाषा]] एकता का महत्त्वपूर्ण कारक थी।  
1911 में भारतीय जनगणना के समय साक्षरता को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि "एक पत्र पढ़-लिखकर उसका उत्तर दे देने की योग्यता" साक्षरता है। भारत में लम्बे समय से लिखित भाषा का अस्तित्व है, किन्तु प्रत्यक्ष सूचना के अभाव के कारण इसका संतोषजनक विकास नहीं हुआ। [[हड़प्पा]] और [[मोहनजोदड़ो]] की लेखन चित्रलिपि तीन हज़ार वर्ष ईसा पूर्व और बाद की है। यद्यपि अभी तक इस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है, तथापि इससे यह स्पष्ट है कि भारतीयों के पास कई शताब्दियों पहले से ही एक लिखित भाषा थी और यहाँ के लोग पढ़ और लिख सकते थे। हड़प्पा और [[अशोक]] के काल के बीच में पन्द्रह सौ वर्षों का ऐसा समय रहा है, जिसमें की कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन [[पाणिनि]] ने उस समय भारतीयों के द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं का उल्लेख किया है। [[बुद्ध]] के समय में और उनसे भी पहले इस देश में भाषा के 60 से भी अधिक रूपों को जाना जाता था तथा शाक्यमुनि ने लेखन की एक पद्धति की शिक्षा दी थी। भारत के एक राष्ट्र के रूप में विकसित होने से पहले [[संस्कृत भाषा]] एकता का महत्त्वपूर्ण कारक थी।  
यदि यह मान भी लिया जाए कि उस समय देश की सम्पूर्ण आबादी की एक तिहाई से ज़्यादा ऊँची जातियों की आबादी नहीं थी तो भी यह माना जा सकता है कि अशोक के समय में भारत में दो करोड़ से ज़्यादा लोग शिक्षित थे (यह मानते हुए कि उस समय की जनसंख्या में लगभग 1/5 छोटी आयु वाले बच्चे थे तथा सभी लड़कियाँ शिक्षा प्राप्त नहीं कर रही थीं)। यह संख्या बहुत अधिक प्रतीत नहीं होती, क्योंकि उस भारत की जनसंख्या पूरी मानवता के एक-तिहाई के लगभग थी। अतः उस समय के शिक्षित लोगों की संख्या इससे अधिक रही होगी और यह उस समय की सबसे कम संख्या ही मानी जा सकती है। आरम्भ में महिलाओं के लिए भी शिक्षा अनिवार्य थी, लेकिन समय के साथ उनकी विवाह आयु कम होती गई और इस वजह से महिलाओं की शिक्षा में बाधा आई, उसे प्रतिबन्धित कर दिया गया।<ref name="जनसंख्या">भारत का जनसंख्या मूलक अध्ययन, लेखक- विक्तर पेत्रोव</ref>


==समाचार-पत्रों का इतिहास==
==समाचार-पत्रों का इतिहास==
{{समाचार पत्र सूची1}}
{{समाचार पत्र सूची1}}
यूरोपीय लोगों के भारत में प्रवेश के साथ ही समाचारों एवं समाचार पत्रों के इतिहास की शुरुआत होती है। भारत में प्रिटिंग प्रेस लाने का श्रेय पुर्तग़ालियों को दिया जाता है। 1557 ई. में गोवा के कुछ पादरी लोगों ने भारत की पहली पुस्तक छापी। 1684 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भी भारत में प्रिटिंग प्रेस (मुद्रणालय) की स्थापना की। भारत में पहला समाचार पत्र कम्पनी के एक असंतुष्ट सेवक वोल्ट्स ने 1766 ई. में निकालने का प्रयास किया, पर वह असफल रहा। भारत में प्रथम समाचार-पत्र निकालने का श्रेय जेम्स आगस्टस हिक्की को मिला। उसने 1780 ई. में बंगाल के गजट (Bangal Guzette) का प्रकाशन किया, किन्तु कम्पनी सरकार की आलोचना के कारण उसका प्रेस जब्त कर लिया गया। इस दौरान कुछ अन्य अंग्रेज़ी अख़बारों का प्रकाशन हुआ-बंगाल में कलकत्ता कैरियर, एशियाटिक मिरर, ओरिंयटल स्टार, मद्रास में मद्रास कैरियर, मद्रास गजट, बम्बई में हेराल्ड, बांबे गजट आदि। 1818 ई. में ब्रिटिश व्यापारी जेम्स सिल्क बर्किघम ने 'कलकत्ता जनरल' का सम्पादन किया। बर्किघम ही वह पहला प्रकाशक था, जिसने प्रेस को जनता के प्रतिबिम्ब के स्वरूप में प्रस्तुत किया। प्रेस का आधुनिक रूप उसी की देन है।
यूरोपीय लोगों के भारत में प्रवेश के साथ ही समाचारों एवं समाचार पत्रों के इतिहास की शुरुआत होती है। भारत में प्रिटिंग प्रेस लाने का श्रेय पुर्तग़ालियों को दिया जाता है। 1557 ई. में गोवा के कुछ पादरी लोगों ने भारत की पहली पुस्तक छापी। 1684 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भी भारत में प्रिटिंग प्रेस (मुद्रणालय) की स्थापना की। भारत में पहला समाचार पत्र कम्पनी के एक असंतुष्ट सेवक वोल्ट्स ने 1766 ई. में निकालने का प्रयास किया, पर वह असफल रहा। भारत में प्रथम समाचार-पत्र निकालने का श्रेय जेम्स आगस्टस हिक्की को मिला। उसने 1780 ई. में बंगाल के गजट (Bangal Guzette) का प्रकाशन किया, किन्तु कम्पनी सरकार की आलोचना के कारण उसका प्रेस जब्त कर लिया गया। इस दौरान कुछ अन्य अंग्रेज़ी अख़बारों का प्रकाशन हुआ-बंगाल में कलकत्ता कैरियर, एशियाटिक मिरर, ओरिंयटल स्टार, मद्रास में मद्रास कैरियर, मद्रास गजट, बम्बई में हेराल्ड, बांबे गजट आदि। 1818 ई. में ब्रिटिश व्यापारी जेम्स सिल्क बर्किघम ने 'कलकत्ता जनरल' का सम्पादन किया। बर्किघम ही वह पहला प्रकाशक था, जिसने प्रेस को जनता के प्रतिबिम्ब के स्वरूप में प्रस्तुत किया। प्रेस का आधुनिक रूप उसी की देन है।


==भारतीय कला==
==भारतीय कला==
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====भारतीय संगीत====
====भारतीय संगीत====
{{Main|संगीत}}
{{Main|संगीत}}
{{वाद्य यंत्र सूची1}}
संगीत मानवीय  लय एवं तालबद्ध अभिव्यक्ति है। भारतीय संगीत अपनी मधुरता, लयबद्धता तथा विविधता के लिए जाना जाता है। वर्तमान भारतीय संगीत का जो रूप दृष्टिगत होता है, वह आधुनिक युग की प्रस्तुति नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास के प्रासम्भ के साथ ही जुड़ा हुआ है। बैदिक काल में ही भारतीय संगीत के बीज पड़ चुके थे। सामवेद उन वैदिक ॠचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। प्राचीन काल से ही ईश्वर आराधना हेतु भजनों के प्रयोग की परम्परा रही है। यहाँ तक की यज्ञादि के अवसर पर भी समूहगान होते थे।
संगीत मानवीय  लय एवं तालबद्ध अभिव्यक्ति है। भारतीय संगीत अपनी मधुरता, लयबद्धता तथा विविधता के लिए जाना जाता है। वर्तमान भारतीय संगीत का जो रूप दृष्टिगत होता है, वह आधुनिक युग की प्रस्तुति नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास के प्रासम्भ के साथ ही जुड़ा हुआ है। बैदिक काल में ही भारतीय संगीत के बीज पड़ चुके थे। सामवेद उन वैदिक ॠचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। प्राचीन काल से ही ईश्वर आराधना हेतु भजनों के प्रयोग की परम्परा रही है। यहाँ तक की यज्ञादि के अवसर पर भी समूहगान होते थे।
====नृत्य कला====
====नृत्य कला====
{{main|नृत्य कला}}
{{main|नृत्य कला}}
भारत में नृत्य की अनेक शैलियाँ हैं। [[भरतनाट्यम]] , [[ओडिसी]] , [[कुचिपुड़ी]] , [[कथकली]] ,[[मणिपुरी]] , [[कथक]] आदि परंपरागत नृत्य शैलियाँ हैं तो [[भंगड़ा]] , [[गिद्दा]] , [[नगा]] , [[बिहू नृत्य|बिहू]] आदि लोकप्रचलित नृत्य है। ये नृत्य शैलियाँ पूरे देश में विख्यात है। गुजरात का [[गरबा नृत्य|गरबा]] हरियाणा में भी मंचो की शोभा को बढ़ाता है और पंजाब का भंगड़ा दक्षिण भारत में भी बड़े शौक़ से देखा जाता है!
भारत में नृत्य की अनेक शैलियाँ हैं। [[भरतनाट्यम]] , [[ओडिसी]] , [[कुचिपुड़ी]] , [[कथकली]] ,[[मणिपुरी]] , [[कथक]] आदि परंपरागत नृत्य शैलियाँ हैं तो [[भंगड़ा]] , [[गिद्दा]] , [[नगा]] , [[बिहू नृत्य|बिहू]] आदि लोकप्रचलित नृत्य है। ये नृत्य शैलियाँ पूरे देश में विख्यात है। गुजरात का [[गरबा नृत्य|गरबा]] हरियाणा में भी मंचो की शोभा को बढ़ाता है और पंजाब का भंगड़ा दक्षिण भारत में भी बड़े शौक़ से देखा जाता है। भारत के संगीत को विकसित करने में [[अमीर ख़ुसरो]], [[तानसेन]], [[बैजू बावरा]] जैसे संगीतकारों का विशेष योगदान रहा है। आज भारत के संगीत-क्षितिज पर [[बिस्मिल्ला ख़ाँ‎]], [[ज़ाकिर हुसैन]], [[रवि शंकर]] समान रूप से सम्मानित हैं।
भारत के संगीत को विकसित करने में [[अमीर ख़ुसरो]], [[तानसेन]], [[बैजू बावरा]] जैसे संगीतकारों का विशेष योगदान रहा है। आज भारत के संगीत-क्षितिज पर [[बिस्मिल्ला ख़ाँ‎]], [[ज़ाकिर हुसैन]], [[रवि शंकर]] समान रूप से सम्मानित हैं।


==== भारतीय मूर्तिकला ====
{{Point}} विस्तार में पढ़ने के लिए देखें:[[भारत आलेख]]
अन्य कलाओं के समान ही भारतीय मूर्तिकला भी अत्यन्त प्राचीन है। यद्यपि पाषाण काल में भी मानव अपने पाषाण उपकरणों को कुशलतापूर्वक काट-छाँटकर विशेष आकार देता था और पत्थर के टुकड़े से फलक निकालते हेतु 'दबाव' तकनीक या पटककर तोड़ने की तकनीक का इस्तेमाल करने लगा था, परन्तु भारत में मूर्तिकला अपने वास्तविक रूप में हड़प्पा सभ्यता के दौरान ही अस्तित्व में आई। इस सभ्यता की खुदाई में अनेक मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं जो लगभग 4000 वर्ष पूर्व ही भारत में मूर्ति निर्माण तकनीक के विकास का द्योतक हैं। भारतीय मूर्ति कला की प्रमुख शैलियाँ इस प्रकार हैं-
{|
|
#सिंधु घाटी सभ्यता की मूर्ति कला
#मौर्य मूर्तिकला
#मौर्योत्तर मूर्तिकला
#गान्धार कला की मूर्तियाँ
#मथुरा कला की मूर्तियाँ
#गुप्तकाल की मूर्तिकला
#बाकाटक की मूर्तिकला
#मध्यकाल की भारतीय मूर्तिकला
#चोल मूर्तिकला
#आधुनिक मूर्तिकाल
|}


==संस्कृति==
==संस्कृति==
{{Main|भारतीय संस्कृति}}
{{Main|भारतीय संस्कृति}}
त्योहार और मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। यह भी कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति अपने हृदय के माधुर्य को त्योहार और मेलों में व्यक्त करती है, तो अधिक सार्थक होगा। भारतीय संस्कृति प्रेम, सौहार्द्र, करुणा, मैत्री, दया और उदारता जैसे मानवीय गुणों से परिपूर्ण है। यह उल्लास, उत्साह और विकास को एक साथ समेटे हुए है। आनन्द और माधुर्य तो जैसे इसके प्राण हैं। यहाँ हर कार्य आनन्द के साथ शुरू होता है और माधुर्य के साथ सम्पन्न होता है। भारत जैसे विशाल धर्मप्राण देश में आस्था और विश्वास के साथ मिल कर यही आनन्द और उल्लास त्योहार और मेलों में फूट पड़ता है। त्योहार और मेले हमारी धार्मिक आस्थाओं, सामाजिक परम्पराओं और आर्थिक आवश्यकताओं की त्रिवेणी है, जिनमें समूचा जनमानस भावविभोर होकर गोते लगाता है। यही कारण है कि जितने त्योहार और मेले भारत में मनाये जाते हैं, विश्व के किसी अन्य देश में नहीं। इस दृष्टि से यदि भारत को त्योहार और मेलों का देश कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हिमाचल से लेकर सुदूर दक्षिण तक और असम से लेकर महाराष्ट्र तक व्रत, पर्वों, त्योहारों और मेलों की अविच्छिन्न परम्परा विद्यमान है, जो पूरे वर्ष अनवरत चलती रहती है।
त्योहार और मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। यह भी कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति अपने हृदय के माधुर्य को त्योहार और मेलों में व्यक्त करती है, तो अधिक सार्थक होगा। भारतीय संस्कृति प्रेम, सौहार्द्र, करुणा, मैत्री, दया और उदारता जैसे मानवीय गुणों से परिपूर्ण है। यह उल्लास, उत्साह और विकास को एक साथ समेटे हुए है। आनन्द और माधुर्य तो जैसे इसके प्राण हैं। यहाँ हर कार्य आनन्द के साथ शुरू होता है और माधुर्य के साथ सम्पन्न होता है। भारत जैसे विशाल धर्मप्राण देश में आस्था और विश्वास के साथ मिल कर यही आनन्द और उल्लास त्योहार और मेलों में फूट पड़ता है। त्योहार और मेले हमारी धार्मिक आस्थाओं, सामाजिक परम्पराओं और आर्थिक आवश्यकताओं की त्रिवेणी है, जिनमें समूचा जनमानस भावविभोर होकर गोते लगाता है। यही कारण है कि जितने त्योहार और मेले भारत में मनाये जाते हैं, विश्व के किसी अन्य देश में नहीं। इस दृष्टि से यदि भारत को त्योहार और मेलों का देश कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हिमाचल से लेकर सुदूर दक्षिण तक और असम से लेकर महाराष्ट्र तक व्रत, पर्वों, त्योहारों और मेलों की अविच्छिन्न परम्परा विद्यमान है, जो पूरे वर्ष अनवरत चलती रहती है।
{{seealso|व्रत और उत्सव}}
== भारतीय भोजन ==
== भारतीय भोजन ==
{{Main|भारतीय भोजन}}
{{Main|भारतीय भोजन}}
{{भोजन सूची2}}
भारतीय भोजन स्वाद और सुगंध का मधुर संगम है। पूरन पूरी हो या दाल बाटी, तंदूरी रोटी हो या शाही पुलाव, पंजाबी भोजन हो या मारवाड़ी भोजन, ज़िक्र चाहे जिस किसी का भी हो रहा हो, केवल नाम सुनने से ही भूख जाग उठती है। भारत में पकवानों की विविधता भी बहुत अधिक है। [[राजस्थान]] में दाल-बाटी, [[कोलकाता]] में चावल-मछली, [[पंजाब]] में रोटी-साग, दक्षिण में इडली-डोसा। इतनी विविधता के बीच एकता का प्रमाण यह है कि आज दक्षिण भारत  के लोग दाल-रोटी उसी शौक़ से खाते हैं, जितने शौक़ से उत्तर भारतीय इडली-डोसा खाते हैं। सचमुच भारत एक रंगबिरंगा गुलदस्ता है।
भारतीय भोजन स्वाद और सुगंध का मधुर संगम है। पूरन पूरी हो या दाल बाटी, तंदूरी रोटी हो या शाही पुलाव, पंजाबी भोजन हो या मारवाड़ी भोजन, ज़िक्र चाहे जिस किसी का भी हो रहा हो, केवल नाम सुनने से ही भूख जाग उठती है। भारत में पकवानों की विविधता भी बहुत अधिक है। [[राजस्थान]] में दाल-बाटी, [[कोलकाता]] में चावल-मछली, [[पंजाब]] में रोटी-साग, दक्षिण में इडली-डोसा। इतनी विविधता के बीच एकता का प्रमाण यह है कि आज दक्षिण भारत  के लोग दाल-रोटी उसी शौक़ से खाते हैं, जितने शौक़ से उत्तर भारतीय इडली-डोसा खाते हैं। सचमुच भारत एक रंगबिरंगा गुलदस्ता है।
भारतीय संस्कृति में भोजन पकाने को पाक कला कहा गया है अर्थात् भोजन बनाना एक कला है। भारतीय भोजन तो विभिन्न प्रकार की पाक कलाओं का संगम ही है। इसमें पंजाबी भोजन, मारवाड़ी भोजन, दक्षिण भारतीय भोजन, शाकाहारी भोजन (निरामिष), मांसाहारी (सामिष) भोजन आदि सभी सम्मिलित हैं। भारतीय भोजन की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि आपको कई प्रकार के भोजन न भी मिलें तो भी आपको आम का अचार या नीबू का अचार या फिर टमाटर की चटनी से भी भरपूर स्वाद प्राप्त होता है।
====भारतीय भोजन के प्रकार====
====भारतीय भोजन के प्रकार====
#'''शाकाहारी भोजन (निरामिष)'''- शाकाहारी भोजन वह  भोजन है जिसमें  मांस, मछली, और अंडे का प्रयोग नहीं होता है।  
#'''शाकाहारी भोजन (निरामिष)'''- शाकाहारी भोजन वह  भोजन है जिसमें  मांस, मछली, और अंडे का प्रयोग नहीं होता है।  
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==पर्यटन==
==पर्यटन==
{{Main|पर्यटन}}
भारतवासी अपनी दीर्घकालीन, अनवरत एवं सतरंगी उपलब्धियों से युक्त इतिहास पर गर्व कर सकते हैं। प्राचीन काल से ही भारत एक अत्यन्त ही विविधता सम्पन्न देश रहा है और यह विशेषता आज भी समय की घड़ी पर अंकित है। यहाँ प्रारम्भ से अनेक अध्यावसायों का अनुसरण होता रहा है, पृथक्-पृथक् मान्यताएँ हैं, लोगों के रिवाज़ और दृष्टिकोणों के विभिन्न रंगों से सज़ा यह देश अतीत को भूत, वर्तमान एवं भविष्य की आँखों से देखने के लिए आह्वान कर रहा है। किन्तु बहुरंगी सभ्यता एवं संस्कृति वाले देश के सभी आयामों को समझने का प्रयास इतना आसान नहीं है।  
भारतवासी अपनी दीर्घकालीन, अनवरत एवं सतरंगी उपलब्धियों से युक्त इतिहास पर गर्व कर सकते हैं। प्राचीन काल से ही भारत एक अत्यन्त ही विविधता सम्पन्न देश रहा है और यह विशेषता आज भी समय की घड़ी पर अंकित है। यहाँ प्रारम्भ से अनेक अध्यावसायों का अनुसरण होता रहा है, पृथक्-पृथक् मान्यताएँ हैं, लोगों के रिवाज़ और दृष्टिकोणों के विभिन्न रंगों से सज़ा यह देश अतीत को भूत, वर्तमान एवं भविष्य की आँखों से देखने के लिए आह्वान कर रहा है। किन्तु बहुरंगी सभ्यता एवं संस्कृति वाले देश के सभी आयामों को समझने का प्रयास इतना आसान नहीं है।  
====ऐतिहासिक स्थल====
====ऐतिहासिक स्थल====
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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{{भारत गणराज्य}}
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08:02, 6 नवम्बर 2011 का अवतरण

भारत विषय सूची
भारत गणराज्य
Republic of India
भारत का ध्वज भारत का कुलचिह्न
राष्ट्रवाक्य: "सत्यमेव जयते" (संस्कृत) सत्य ही विजयी होता है[1]
राष्ट्रगान: जन गण मन
भारत की स्थिति
भारत की स्थिति
राजधानी नई दिल्ली
28° 34′ N 77° 12′ E
सबसे बड़े नगर दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई
राजभाषा(एँ) हिन्दी संघ की राजभाषा है,
अंग्रेज़ी "सहायक राजभाषा" है।
अन्य भाषाएँ बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी और अन्य
सरकार प्रकार गणराज्य
द्रौपदी मुर्मू
वेंकैया नायडू
ओम बिड़ला
नरेन्द्र मोदी
डी. वाई. चन्द्रचूड़
विधायिका
-उपरी सदन
-निचला सदन
भारतीय संसद
राज्य सभा
लोक सभा
स्वतंत्रता
तिथि
गणराज्य
संयुक्त राजशाही से
15 अगस्त, 1947
26 जनवरी, 1950
क्षेत्रफल
 - कुल
 
 - जलीय (%)
 
32,87,263 किमी² (सातवां)
12,22,559 मील² 
9.56
जनसंख्या
 - 2011
 - 2001 जनगणना
 - जनसंख्या घनत्व
 
1,21,01,93,422[2] (द्वितीय)
1,02,70,15,248
382[2]/किमी² (27 वाँ)
954[3]/ मील² 
सकल घरेलू उत्पाद (पीपीपी)
 - कुल
 - प्रतिव्यक्ति
2012 अनुमान
$4,824 अरब[4] 
$3,944[4] 
सकल घरेलू उत्पाद (सांकेतिक)
 - कुल
 - प्रतिव्यक्ति
2012 अनुमान
$1,779 अरब[4] 
$1,454[4] 
मानव विकास संकेतांक (एचडीआई) 0.547 (134 वीं) – मध्यम
मुद्रा भारतीय रुपया (आइएनआर (INR))
समय मण्डल
 - ग्रीष्म ऋतु (डेलाइट सेविंग टाइम)
आइएसटी (IST) (UTC+5:30)
अनुसरण नहीं किया जाता (UTC+5:30)
इंटरनेट टीएलडी .in
वाहन चलते हैं बाएं
दूरभाष कोड ++91
अन्य महत्वपूर्ण जानकारी
सीमाओं में स्थित देश उत्तर पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान, उत्तर में भूटान और नेपाल; पूरब में म्यांमार, बांग्लादेशश्रीलंका भारत से समुद्र के संकीर्ण नहर द्वारा अलग किया जाता है जो पाल्क स्ट्रेट और मन्नार की खाड़ी द्वारा निर्मित है।
समुद्र तट 7,516.6 किलोमीटर जिसमें मुख्य भूमि, लक्षद्वीप और अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह शामिल हैं।
जलवायु सर्दी (दिसम्बर-फ़रवरी); गर्मी (मार्च-जून); दक्षिण पश्चिम मानसून का मौसम (जून-सितम्बर); मानसून पश्च मौसम (अक्तूबर-नवम्बर)
भू-भाग मुख्य भूमि में चार क्षेत्र हैं- ग्रेट माउन्टेन जोन, गंगा और सिंधु का मैदान, रेगिस्तान क्षेत्र और दक्षिणी पेनिंसुला।
प्राकृतिक संसाधन कोयला, लौह अयस्क, मैगनीज अयस्क, माइका, बॉक्साइट, पेट्रोलियम, टाइटानियम अयस्क, क्रोमाइट, प्राकृतिक गैस, मैगनेसाइट, चूना पत्थर, अराबल लेण्ड, डोलोमाइट, माऊलिन, जिप्सम, अपादाइट, फोसफोराइट, स्टीटाइल, फ्लोराइट आदि।
प्राकृतिक आपदा मानसूनी बाढ़, फ्लेश बाढ़, भूकम्प, सूखा, ज़मीन खिसकना।
जनसंख्या वृद्धि दर औसत वार्षिक घातांकी वृद्धि दर वर्ष 2001-2011 के दौरान 1.64 प्रतिशत है।
लिंग अनुपात 1000:940 (2011)
धर्म वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार 1,028 मिलियन देश की कुल जनसंख्या में से 80.5 प्रतिशत के साथ हिन्दुओं की अधिकांशता है दूसरे स्थान पर 13.4 प्रतिशत की जनसंख्या वाले मुस्लिम इसके बाद ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और अन्य आते हैं।
साक्षरता 74.04% (2011) पुरुष- 82.14% महिलाएं- 65.46%
सम्भावित जीवन दर 65.8 वर्ष (पुरुष); 68.1 वर्ष (महिला)[5]
जातीय अनुपात सभी पांच मुख्य प्रकार की जातियाँ- ऑस्ट्रेलियाड, मोंगोलॉयड, यूरोपॉयड, कोकोसिन और नीग्रोइड।
कार्यपालिका शाखा भारत का राष्ट्रपति देश का प्रधान होता है, जबकि प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है और मंत्रिपरिषद् की सहायता से शासन चलाता है जो मंत्रिमंडल मंत्रालय का गठन करते हैं।
न्यायपालिका शाखा भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारतीय कानून व्यवस्था का शीर्ष निकाय है इसके बाद अन्य उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालय आते हैं।
अन्य जानकारी भारत का राष्ट्रीय ध्वज आयताकार तिरंगा है जिसमें केसरिया ऊपर है, बीच में सफ़ेद, और बराबर भाग में नीचे गहरा हरा है। सफ़ेद पट्टी के केन्द्र में गहरा नीला चक्र है जो सारनाथ में अशोक चक्र को दर्शाता है।
बाहरी कड़ियाँ भारत की आधिकारिक वेबसाइट
अद्यतन‎

भारत दुनियाँ की सबसे पुरानी सभ्‍यताओं में से एक है, जो 4,000 से अधिक वर्षों से चली आ रही है और जिसने अनेक रीति-रिवाज़ों और परम्‍पराओं का संगम देखा है। यह देश की समृद्ध संस्‍कृति और विरासत का परिचायक है। आज़ादी के बाद 62 वर्षों में भारत ने सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्‍मनिर्भर देश है और औद्योगीकरण में भी विश्व के चुने हुए देशों में भी इसकी गिनती की जाती है। यह उन देशों में से एक है, जो चाँद पर पहुँच चुके हैं और परमाणु शक्ति संपन्न हैं।

भौगोलिक दृष्टि

भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि.मी. है, जो हिमाच्‍छादित हिमालय की बुलन्दियों से दक्षिण के विषुवतीय वर्षा वनों तक विस्तृत है। क्षेत्रफल में विश्‍व का सातवां बड़ा देश होने के कारण भारत एशिया महाद्वीप में अलग दिखायी देता है। इसकी सरहदें हिमालय पर्वत और समुद्रों ने बांधी है, जो इसे एक विशिष्‍ट भौगोलिक पहचान देते हैं। उत्तर में बृहत् हिमालय की पर्वत श्रृंखला से घिरा यह देश कर्क रेखा से आगे संकरा होता चला जाता है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्द महासागर इसकी सीमाओं का निर्धारण करते हैं।

उत्‍तरी गोलार्ध में स्थित भारत की मुख्‍यभूमि 8 डिग्री 4 मिनट और 37 डिग्री 6 मिनट उत्‍तरी अक्षांश और 68 डिग्री 7 मिनट तथा 97 डिग्री 25 मिनट पूर्वी देशान्‍तर के बीच स्थित है । उत्‍तर से दक्षिण तक इसकी अधिकतम लंबाई 3,214 कि.मी. और पूर्व से पश्चिम तक अधिकतम चौड़ाई 2,933 कि.मी. है। इसकी ज़मीनी सीमाओं की लंबाई लगभग 15,200 कि.मी. और तटरेखा की कुल लम्‍बाई 7,516.6 कि.मी है। यह उत्‍तर में हिमालय पर्वत, पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिंद महासागर से घिरा हुआ है।

{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}} विस्तार में पढ़ने के लिए देखें:भारत आलेख

इतिहास

भारत में मानवीय कार्यकलाप के जो प्राचीनतम चिह्न अब तक मिले हैं, वे 4,00,000 ई. पू. और 2,00,000 ई. पू. के बीच दूसरे और तीसरे हिम-युगों के संधिकाल के हैं और वे इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि उस समय पत्थर के उपकरण काम में लाए जाते थे। इसके पश्चात् एक लम्बे अरसे तक विकास मन्द गति से होता रहा, जिसमें अन्तिम समय में जाकर तीव्रता आई और उसकी परिणति 2300 ई. पू. के लगभग सिन्धु घाटी की आलीशान सभ्यता (अथवा नवीनतम नामकरण के अनुसार हड़प्पा संस्कृति) के रूप में हुई। हड़प्पा की पूर्ववर्ती संस्कृतियाँ हैं: बलूचिस्तानी पहाड़ियों के गाँवों की कुल्ली संस्कृति और राजस्थान तथा पंजाब की नदियों के किनारे बसे कुछ ग्राम-समुदायों की संस्कृति।[6]

मौर्य (तीसरी शताब्दी ई.पू.), शुंग (प्रथम शताब्दी ई.पू.), शक (प्रथम शताब्दी), कुषाण (द्वितीय शताब्दी), गुप्त (चौथी शताब्दी) और राजपूत (नौवीं शताब्दी) जब उत्तरी भारत में शासन कर रहे थे तब दक्षिण में सातवाहन, चालुक्य, चोल आदि का दौर चल रहा था। उसके बाद में मुस्लिम आक्रमण कारी आये और भारत में शासन करने लगे। जिनमें ग़ुलाम वंश, ख़िलजी, तुग़लक़, लोदी और मुग़लों का शासन रहा। सोलह-सत्रहवीं शती से 1947 ईसवी तक पुर्तग़ाली, फ़्राँसीसी और अंग्रेज़ यहाँ शासन करते रहे। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।

भौतिक विशेषताएँ

मुख्‍य भूभाग में चार क्षेत्र हैं, नामत: महापर्वत क्षेत्र, गंगा और सिंधु नदी के मैदानी क्षेत्र और मरूस्‍थली क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप।

हिमालय की तीन श्रृंखलाएँ हैं, जो लगभग समानांतर फैली हुई हैं। इसके बीच बड़े - बड़े पठार और घाटियाँ हैं, इनमें कश्मीर और कुल्‍लू जैसी कुछ घाटियाँ उपजाऊ, विस्‍तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं। संसार की सबसे ऊंची चोटियों में से कुछ इन्‍हीं पर्वत श्रृंखलाओं में हैं। अधिक ऊंचाई के कारण आना -जाना केवल कुछ ही दर्रों से हो पाता है, जिनमें मुख्‍य हैं -

  • चुंबी घाटी से होते हुए मुख्‍य भारत-तिब्‍बत व्‍यापार मार्ग पर जेलप ला और नाथू-ला दर्रे
  • उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग
  • कल्‍पना (किन्‍नौर) के उत्तर - पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा

भूगर्भीय संरचना

आँकड़े एक झलक

क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी.[7]
-भूमध्य रेखा से दूरी [8] 876 किमी
-पूर्व से पश्चिम लंबाई 2,933 किमी
-उत्तर से दक्षिण लंबाई 3,214 किमी
-प्रादेशिक जलसीमा की चौड़ाई समुद्र तट से 12 समुद्री मील तक।
-एकान्तिक आर्थिक क्षेत्र संलग्न क्षेत्र से आगे 200 समुद्री मील तक।

सीमा 7 देश और 2 महासागर[9]
-समुद्री सीमा[10] 7516.5 किमी
-प्राकृतिक भाग (1) उत्तर का पर्वतीय प्रदेश (2) उत्तर का विशाल मैदान (3) दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार (4) समुद्र तटीय मैदान तथा (5) थार मरुस्थल
-स्थलीय सीमा[11] 15,200 किमी

राज्य 29
-संघशासित क्षेत्र[12] 7
-ज़िलों की संख्या 593
-उपज़िलों की संख्या 5,470
-सबसे बड़ा ज़िला लद्दाख (जम्मू-कश्मीर, क्षेत्रफल 82,665 वर्ग किमी.)।
-सबसे छोटा ज़िला थौबॅल (मणिपुर, क्षेत्रफल- 507 वर्ग किमी.)।
-द्वीपों की कुल संख्या 247 [13]
-तटरेखा से लगे राज्य गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल
-केन्द्रशासित प्रदेश (तटरेखा) दमन व दीव, दादरा एवं नगर हवेली, लक्षद्वीप, पांडिचेरी तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह
-कर्क रेखा [14] गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा तथा मिज़ोरम
-प्रमुख नगर मुम्बई, नई दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलोर, हैदराबाद, तिरुअनन्तपुरम, सिकन्दराबाद, कानपुर, अहमदाबाद, जयपुर, जोधपुर, अमृतसर, चण्‍डीगढ़, श्रीनगर, जम्मू, शिमला, दिसपुर, इटानगर, कोचीन, आगरा आदि।
-राजधानी नई दिल्ली
-पर्वतीय पर्यटन अल्मोड़ा, नैनीताल, लैन्सडाउन, गढ़मुक्तेश्वर, मसूरी, कसौली, शिमला, कुल्लू घाटी, डलहौज़ी, श्रीनगर, गुलबर्ग, सोनमर्ग, अमरनाथ, पहलगाम, दार्जिलिंग, कालिंपोंग, राँची, शिलांग, कुंजुर, ऊटकमंड (ऊटी), महाबलेश्वर, पंचमढ़ी, माउण्ट आबू
-प्रथम श्रेणी के नगरों की संख्या 300
-द्वितीय श्रेणी के नगरों की संख्या 345
-तृतीय श्रेणी के नगरों की संख्या 947
-चतुर्थ श्रेणी के नगरों की संख्या 1,167
-पंचम श्रेणी के नगरों की संख्या 740
-षष्ठम श्रेणी के नगरों की संख्या 197
-कुल नगरों की संख्या 5,161
-सर्वाधिक नगरों वाला राज्य उत्तर प्रदेश (704 नगर)
-सबसे कम नगर वाला राज्य मेघालय (7 नगर)
-सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश (3,45,39,582), मिज़ोरम (45.10%)
-सबसे कम नगरीय जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम (59,870), हिमाचल प्रदेश (8.69%)
-संघशासित क्षेत्र सर्वाधिक जनसंख्या[15] दिल्ली 89.93%
-संघ शासित क्षेत्र कम जनसंख्या [16] दादरा तथा नगर हवेली (8.47%)
-संघशासित क्षेत्र (सबसे बड़ा)[17] अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह (8,293 वर्ग किमी.)
-सबसे छोटा संघ शासित क्षेत्र लक्षद्वीप (32 वर्ग किमी.)
-शहरों की संख्या 5,161
-गांवों की संख्या 6,38,588
-आबाद गांवों की संख्या 5,93,732
-ग़ैर-आबाद गांवों की संख्या 44,856
-सामुद्रिक मत्स्ययन का प्रमुख क्षेत्र पश्चिमी तट (75% तथा पूर्वी तट (25%) [18]
-सबसे बड़ा राज्य (क्षेत्रफल) राजस्थान (3,42,239 वर्ग किमी.)
-सबसे छोटा राज्य गोवा (3,702 वर्ग किमी.)

भूगोल
-प्रमुख पर्वत हिमालय, कराकोरम, शिवालिक, अरावली, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, विन्ध्याचल, सतपुड़ा, अन्नामलाई, नीलगिरि, पालनी, नल्लामाला, मैकल, इलायची
-प्रमुख नदियाँ सिन्धु, सतलज, ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना, गोदावरी, दामोदर, नर्मदा, ताप्ती, कृष्णा, कावेरी, महानदी, घाघरा, गोमती, रामगंगा, चम्बल आदि।
-पर्वत शिखर गाडविन आस्टिन या माउण्ट के 2 (8,611 मी.), कंचनजंघा (8,598 मी.), नंगा पर्वत (8,126 मी.), नंदादेवी (7,717 मी.), कामेत (7,756 मी.), मकालू (8,078 मी.), अन्नपूर्णा (8,078 मी.), मनसालू (8,156 मी.), बद्रीनाथ, केदारनाथ, त्रिशूल, माना, गंगोत्री, गुरुशिखर, महेन्द्रगिरि, अनाईमुडी आदि।
-झील डल, वुलर, नैनी, सातताल, नागिन, सांभर, डीडवाना, चिल्का, हुसैन सागर, वेम्बानद आदि।
-जलवायु मानसूनी
-वनक्षेत्र 750 लाख हेक्टेयर [19]
-प्रमुख मिट्टियाँ जलोढ़, काली, लाल, पीली, लैटेराइट, मरुस्थलीय, पर्वतीय, नमकीन एवं पीट तथा दलदली।
-सिंचाई [20] नहरें (40.0%) कुएँ (37.8%), तालाब (14.5%) तथा अन्य (7.7%)।
-कृषि के प्रकार तर खेती [21], आर्द्र खेती [22], झूम कृषि [23] तथा पर्वतीय कृषि [24]
-खाद्यान्न फ़सलें चावल, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, रागी, जौ आदि।
-नक़दी फ़सलें गन्ना, चाय, काफ़ी, रबड़, नारियल, फल एवं सब्जियाँ, दालें, तम्बाकू, कपास तथा तिलहनी फ़सलें।
-खनिज संसाधन लौह अयस्क, कोयला, मैंगनीज, अभ्रक, बॉक्साइट, चूनापत्थर, यूरेनियम, सोना, चाँदी, हीरा, खनिज तेल आदि।

जनसंख्या 1,028,610,328 (2001) [25]
-पुरुष जनसंख्या 53,21,56,772
-महिला जनसंख्या 49,64,53,556
-अनुसूचित जाति [26] 16,66,35,700 (कुल जनसंख्या का 16.2%)
-अनुसूचित जनजाति [27] 8,43,26,240 (कुल जनसंख्या का 8.2%)
-प्रमुख जनजातियाँ गद्दी, गुज्जर, थारू, भोटिया, मिपुरी, रियाना, लेप्चा, मीणा, भील, गरासिया, कोली, महादेवी, कोंकना, संथाल, मुंडा, उराँव, बैगा, कोया, गोंड आदि।
-विश्व में स्थान (जनसंख्या) दूसरा
-विश्व जनसंख्या का प्रतिशत 16.87%
-जनसंख्या घनत्व 324 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी
-जनसंख्या वृद्धि दर (दशक) 21.54% (1991-2001)
-औसत वृद्धि दर [28] 1.95%
-लिंगानुपात ♀/♂ 933 : 1000
-राज भाषा हिन्दी [29]
-प्रति व्यक्ति आय 27,786 रु0 (2007-08)

अर्थव्यवस्था
-निर्यात की वस्तुएँ इंजीनियरी उपकरण, मसाले, तम्बाकू, चमड़े का सामान, चाय, लौह अयस्क आदि।
-आयात की वस्तुएँ रसायन, मशीनरी, उपकरण, उर्वरक, खनिज तेल आदि।
-व्यापार सहयोगी संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, नये राष्ट्रों के राष्ट्रकुल (सी.आई.एस.) के देश, जापान, इटली, जर्मनी, पूर्वी यूरोपीय देश।
-राष्ट्रीयकृत बैंकों की संख्या 20
-तेलशोधनशालाओं की संख्या 13
-कुल उद्यमों की संख्या 4,212 करोड़ (कृषि में संलग्न उद्यमों के अतिरिक्त)
-उद्यम (ग्रामीण क्षेत्र) 2,581 करोड़ (कृषि में संलग्न उद्यमों के अतिरिक्त)
-उद्यम (शहरी क्षेत्र) 1,631 करोड़ (38.7%)।
-कृषि कार्य का प्रतिशत [30] 15%
-गैर-कृषि कार्य का प्रतिशत [31] 85%
-उद्यम (10 या अधिक कामगार) 5.83 लाख [32]
-सर्वाधिक उद्यम (पांच राज्य) तमिलनाडु-4446999 (10.56%), महाराष्ट्र- 4374764 (10.39%), पश्चिम बंगाल- 4285688 (10.17%), आंध्र प्रदेश- 4023411 (9.55%), उत्तर प्रदेश- 4015926 (9.53%)।
-सर्वाधिक उद्यम (केन्द्र शासित) दिल्ली-753795(1.79%), चंडीगढ़- 65906 (0.16%), पाण्डिचेरी-49915 (0.12%)।
-प्रमुख उद्योग लौह-इस्पात, जलयान निर्माण, मोटर वाहन, साइकिल, सूतीवस्त्र, ऊनी वस्त्र, रेशमी वस्त्र, वायुयान, उर्वरक, दवाएं एवं औषधियां, रेलवे इंजन, रेल के डिब्बे, जूट, काग़ज़, चीनी, सीमेण्ट, मत्स्ययन, चमड़ा उद्योग, शीशा, भारी एवं हल्के रासायनिक उद्योग तथा रबड़ उद्योग।
-बड़े बन्दरगाहों की संख्या 12 बड़े एवं 139 छोटे बंदरगाह।
-प्रमुख बन्दरगाह मुम्बई, न्हावा शेवा, कलकत्ता, हल्दिया, गोवा, कोचीन, कांडला, चेन्नई, न्यू मंगलोर, तूतीकोरिन, विशाखापटनम, मझगाँव, अलेप्पी, भटकल, भावनगर, कालीकट, काकीनाडा, कुडलूर, धनुषकोडि, पाराद्वीप, गोपालपुर।
-पश्चिमी तट प्रमुख बंदरगाह कांडला, मुंबई, मार्मुगाओं, न्यू मंगलौर, कोचीन और जवाहरलाल नेहरू
-पूर्वी तट के प्रमुख बंदरगाह तूतीकोरिन, चेन्नई, विशाखापत्तनम, पारादीप और कोलकाता- हल्दिया।
-पुराना बंदरगाह (पूर्वी तट) चेन्नई
-सबसे गहरा बंदरगाह विशाखापत्तनम
-कार्यशील व्यक्तियों की संख्या 31.5 करोड़, मुख्य श्रमिक- 28.5 करोड़, सीमान्त श्रमिक- 3,0 करोड़
-ताजे जल की मछलियाँ सॉ-फिश, लाइवफिश, फैदरबैंक, एंकावी, ईल, बाटा, रेवा, तोर, चिताला, कटला, मिंगाल, मिल्कफिश, कार्प, पर्लशाट आदि।

परिवहन
-जल परिवहन कोलकाता (केन्द्रीय अन्तर्देशीय जल परिवहन निगम का मुख्यालय)
-सड़क मार्ग की कुल लम्बाई 33,19,664 किमी.
-राष्ट्रीय राजमार्गों की संख्या संख्यानुसार 109 जबकि कुल 143 (लगभग 19 निर्माणाधीन)।
-राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई 66,590 किमी.
-सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग राजमार्ग संख्या 7 (लंबाई- 2369 किमी वाराणसी से कन्याकुमारी)
-राष्ट्रीय राजमार्ग (स्वर्ण चतुर्भुज) 5,846 किमी (योजना के अंतर्गत शामिल राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई)
-राष्ट्रीय राजमार्ग (उत्तर-दक्षिण कॉरिडॉर) 7,300 किमी (योजना अंतर्गत शामिल राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई)
-रेलमार्ग 63,465 किमी.
-रेलवे परिमण्डलों की संख्या 16
-सबसे बड़ा रेलवे परिमण्डल उत्तर रेलवे (11,023 किमी., मुख्यालय- नई दिल्ली)
-रेलवे स्टेशनों की संख्या लगभग 7,133 (31 मार्च, 2006 तक)
-रेल यात्रियों की संख्या 50,927 लाख प्रतिदिन (2002-03)
-रेल इंजनों की संख्या</ref> 8,025 (मार्च, 2006)।
-रेल सवारी डिब्बों की संख्या 42,570 (2001)
-रेल माल डिब्बों की संख्या 2,22,147 (2001)
-यात्री रेलगाड़ियों की संख्या 44,090
-अन्य सवारी रेल गाड़ियाँ 5,990
-अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों की संख्या पाँच [33]
-मुक्त आकाशीय हवाई अड्डा गया (बिहार)
-प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे बंगलौर, हैदराबाद, अहमदाबाद, गोवा, अमृतसर, गुवाहाटी एवं कोचीन।

अन्य
-जीव-जन्तु (अनुमानित) 75,000 जिनमें उभयचर- 2,500, सरीसृप- 450, पक्षी- 2,000 तथा स्तनपायी- 850
-राष्ट्रीय उद्यान 70
-वन्य प्राणी विहार 412
-प्राणी उद्यान 35
-राष्ट्रीय प्रतीक राष्ट्रध्वज- तिरंगा
-राजचिन्ह सिंहशीर्ष (सारनाथ)
-राष्ट्र गान जन गण मन [34]
-राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् [35]
-राष्ट्रीय पशु बाघ (पैंथर टाइग्रिस)।
-राष्ट्रीय पक्षी मयूर (पावो क्रिस्टेशस)।
-स्वतन्त्रता दिवस 15 अगस्त
-गणतन्त्र दिवस 26 जनवरी

भू‍वैज्ञानिक क्षेत्र व्‍यापक रुप से भौतिक विशेषताओं का पालन करते हैं और इन्‍हें तीन क्षेत्रों के समूह में रखा जा सकता है:

  • हिमाचल पर्वत श्रृंखला और उनके संबद्ध पर्वत समूह
  • भारत-गंगा मैदान क्षेत्र
  • प्रायद्वीपीय ओट

उत्‍तर में हिमाचलय पर्वत क्षेत्र और पूर्व में नागालुशाई पर्वत, पर्वत निर्माण गतिविधि के क्षेत्र है। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग जो वर्तमान समय में विश्‍व का सार्वधिक सुंदर पर्वत दृश्‍य प्रस्‍तुत करता है, 60 करोड़ वर्ष पहले समुद्री क्षेत्र में था। 7 करोड़ वर्ष पहले शुरू हुए पर्वत-निर्माण गतिविधियों की श्रृंखला में तलछटें और आधार चट्टानें काफ़ी ऊँचाई तक पहुँच गई। आज हम जो इन पर उभार देखते हैं, उनको उत्‍पन्‍न करने में अपक्षय और अपरदक ने कार्य किया। भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्र एक जलोढ़ भूभाग हैं जो दक्षिण के प्रायद्वीप से उत्‍तर में हिमाचल को अलग करते हैं।

नदियाँ

भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :-

  • हिमाचल से निकलने वाली नदियाँ
  • दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ
  • तटवर्ती नदियाँ
  • अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ

भारत का संविधान

भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। इसका निर्माण संविधान सभा ने किया था, जिसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। संविधान सभा की पहली बैठक अविभाजित भारत के लिए बुलाई गई थी। 4 अगस्त, 1947 को संविधान सभा की बैठक पुनः हुई और उसके अध्यक्ष सच्चिदानन्द सिन्हा थे। सिन्हा के निधन के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष बने। फ़रवरी 1948 में संविधान का मसौदा प्रकाशित हुआ। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान अन्तिम रूप में स्वीकृत हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।

राज्यों की एक झलक

धर्म

भारतीय संस्कृति में विभिन्नता उसका भूषण है। यहाँ हिन्दू धर्म के अगणित रूपों और संप्रदायों के अतिरिक्त, बौद्ध, जैन, सिक्ख, इस्लाम, ईसाई, यहूदी आदि धर्मों की विविधता का भी एक सांस्कृतिक समायोजन देखने को मिलता है। हिन्दू धर्म के विविध सम्प्रदाय एवं मत सारे देश में फैले हुए हैं, जैसे वैदिक धर्म, शैव, वैष्णव, शाक्त आदि पौराणिक धर्म, राधा-बल्लभ संप्रदाय, श्री संप्रदाय, आर्य समाज, समाज आदि। परन्तु इन सभी मतवादों में सनातन धर्म की एकरसता खण्डित न होकर विविध रूपों में गठित होती है। यहाँ के निवासियों में भाषा की विविधता भी इस देश की मूलभूत सांस्कृतिक एकता के लिए बाधक न होकर साधक प्रतीत होती है।

अर्थव्यवस्था

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था क्रय शक्ति समानता के आधार पर दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है। यह विशाल जनशक्ति आधार, विविध प्राकृतिक संसाधनों और सशक्‍त वृहत अर्थव्‍यवस्‍था के मूलभूत तत्‍वों के कारण व्‍यवसाय और निवेश के अवसरों के सबसे अधिक आकर्षक गंतव्‍यों में से एक है। वर्ष 1991 में आरंभ की गई आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया से सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में फैले नीतिगत ढाँचे के उदारीकरण के माध्‍यम से एक निवेशक अनुकूल परिवेश मिलता रहा है। भारत को आज़ाद हुए 77 साल हो चुके हैं और इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा में ज़बरदस्त बदलाव आया है। औद्योगिक विकास ने अर्थव्यवस्था का रूप बदल दिया है। आज भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में होती है। विश्व की अर्थव्यवस्था को चलाने में भारत की भूमिका बढ़ती जा रही है। आईटी सॅक्टर में पूरी दुनिया भारत का लोहा मानती है।

कृषि

कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों एवं प्रयासों से कृषि को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में गरिमापूर्ण दर्जा मिला है। कृषि क्षेत्रों में लगभग 64% श्रमिकों को रोजगार मिला हुआ है। 1950-51 में कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 59.2% था जो घटकर 1982-83 में 36.4% और 1990-91 में 34.9% तथा 2001-2002 में 25% रह गया। यह 2006-07 की अवधि के दौरान औसत आधार पर घटकर 18.5% रह गया। दसवीं योजना (2002-2007) के दौरान समग्र सकल घरेलू उत्पाद की औसत वार्षिक वृद्धि पद 7.6% थी जबकि इस दौरान कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 2.3% रही। 2001-02 से प्रारंभ हुई नव सहस्त्राब्दी के प्रथम 6 वर्षों में 3.0% की वार्षिक सामान्य औसत वृद्धि दर 2003-04 में 10% और 2005-06 में 6% की रही।

खनिज संपदा

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में खनिजों के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि हुई है। कोयला, लौह, अयस्क, बॉक्साइड आदि का उत्पादन निरंतर बढ़ा है। 1951 में सिर्फ़ 83 करोड़ रुपये के खनिजों का खनन हुआ था, परन्तु 1970-71 में इनकी मात्रा बढ़कर 490 करोड़ रुपये हो गई। अगले 20 वर्षों में खनिजों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। 2001-02 में निकाले गये खनिजों का कुल मूल्य 58,516.36 करोड़ रुपये तक पहुँच गया जबकि 2005-06 के दौरान कुल 75,121.61 करोड़ रुपये मूल्य के खनिजों का उत्पादन किया गया। यदि मात्रा की दृष्टि से देखा जाये, तो भारत में खनिजों की मात्रा में लगभग तिगुनी वृद्धि हुई है, उसका 50% भाग सिर्फ़ पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के कारण तथा 40% कोयला के कारण हुआ है। अन्य शब्दों में 2005-06 में कुल खनिज मूल्य (75,121.61 करोड़ रु) में से पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस से 26,851.31 करोड़ रुपये तथा कोयला और लिग्नाइट से 29,560.75 करोड़ रुपये के मूल्य शामिल हैं। शेष 11,575.35 करोड़ रुपये मूल्य के अन्य धात्विक तथा अधात्विक खनिज थे।

देश के महत्त्वपूर्ण खनिज
खनिज अनुमानित भण्डार प्राप्ति के क्षेत्र विशेष बिन्दु
लौह खनिज 13 अरब टन उड़ीसा: सोनाई, क्योंझर, मयूरभंज · झारखण्ड: सिंहभूम, हज़ारीबाग़ पलामू · छत्तीसगढ़: बस्तर, दुर्ग, रायपुर, रायगढ़ · मध्य प्रदेश: जबलपुर, बिलासपुर, बालाघाट, छिन्दबाड़ा · आन्ध्र प्रदेश: कुडप्पा, कृष्णा, कुरनूल, गुंटूर, वारंगल, चित्तूर · कर्नाटक: बेलारी, चिकमंगलूर, चीतल दुर्ग · महाराष्ट्र: सलेम, तिरुचिरापल्ली · गोवा देश में विश्व का सर्वाधिक अनुमानित भण्डार[36] झारखण्ड तथा उड़ीसा राज्यों से देश का लगभग 75% लोहा प्राप्त किया जाता है।
मैंगनीज़ 16.7 करोड़ टन झारखण्ड: सिंहभूम · कर्नाटक: चीतलदुर्ग, तुमकुर, शिमोगा, किंमगलूर, उत्तरी कनारा, धारवाड़, बेलगाँव · आन्ध्र प्रदेश: विशाखापट्टनम · गुजरात पंचमहल· राजस्थान: उदयपुर तथा बाँसवाड़ा · मध्य प्रदेश: बालाघाट, छिन्दवाड़ा, सिवनी, जबलपुर · उड़ीसा: क्योंझर, कालाहांडी, तलचर, मयूरभंज · महाराष्ट्र: नागपुर, भण्डारा तथा रत्नागिरी मैंगनीज़ उत्पादन में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है। उड़ीसा देश का सर्वाधिक मैंगनीज़ उत्पादन करने वाला राज्य है।
अभ्रक 1.09 लाख टन बिहार: अभ्रक पेटी का विस्तार गया तथा मुंगेर ज़िलों में · झारखण्ड: हज़ारीबाग़ में · राजस्थान: अभ्रक पेटी का विस्तार अजमेर, शाहपुरा, टींका, भीलवाड़ा, जयपुर में · आन्ध्र प्रदेश: नेल्लोर भारत में विश्व का सर्वाधिक अभ्रक है तथा यहाँ पर से विश्व उत्पादन का लगभग दो तिहाई अभ्रक प्राप्त किया जाता है।
बॉक्साइट 303.7 करोड़ टन झारखण्ड: पलामू · गुजरात: खेड़ा · मध्य प्रदेश: कटनी, बालाघाट, बिलासपुर, बस्तर तथा जबलपुर · तमिलनाडु: सलेम · कर्नाटक: चीतलदुर्ग तथा बेलगाँव · महाराष्ट्र: कोल्हापुर · जम्मू कश्मीर: कोटली बाक्साइट से एल्युमीनियम धातु की प्राप्ति होती है। भारत का विश्व में बाक्साइट उत्पादन में तीसरा स्थान है।
ताँबा 67.41 करोड़ टन झारखण्ड: सिंहभूम, हज़ारीबाग़ · राजस्थान: खेतडी, झुंझुनू, भीलवाड़ा, अलवर, सिरोही · कर्नाटक: चीतलदुर्ग, हासन, रायचूर तथा चिकमंगलूर ·आन्ध्र प्रदेश: गुण्टूर, खम्माम तथा अग्रिगुण्डल · गुजरात: बनांसकाठा · मध्य प्रदेश: बालाघाट · देश में ताँबे की कुछ मात्रा पंजाब, उत्तर प्रदेश, सिक्किम तथा तमिलनाडु से भी प्राप्त होती है।
देश में ताँबा बहुत ही कम मात्रा में भण्डारित है। देश का लगभग ताँबा बिहार के सिंहभूम तथा हज़ारीबाग़ ज़िलों एवं राजस्थान की खेतड़ी खानों से प्राप्त किया जाता है।
सोना 176.9 लाख टन कर्नाटक [37]
मैग्रेसाइट 24.50 करोड़ टन कर्नाटक: मैसूर तथा हासन · उत्तराखण्ड: अल्मोड़ा, चमोली तथा पिथोरागढ़ · तमिलनाडु: सलेम
कोयला 2,0624 खरब टन झारखण्ड तथा बंगाल: रानीगंज, झरिया, गिरिडीह, बोकारो तथा करनपुरा · मध्य प्रदेश: सिंगरौली · छत्तीसगढ़: रायगढ़, सोनहट, सोहागपुर तथा उमरिया · उड़ीसा: देसगढ़, तलचर · महाराष्ट्र: चांदा ज़िला · असम: माकूम तथा लखीमपुर · आन्ध्र प्रदेश: सिंगरेनी · बहुत थोड़ी मात्रा में कोयला अरुणाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, मेघालय तथा नागालैण्ड से भी प्राप्त किया जाता है।
लिग्नाइट 260 करोड़ टन तमिलनाडु: नेबेली क्षेत्र · राजस्थान: पल्लू क्षेत्र · जम्मू कश्मीर: रियासी क्षेत्र · गुजरात तथा पाण्डिचेरी: लिग्नाइट के कुछ भण्डार मिलते हैं। देश में लिग्नाइट का सर्वाधिक भण्डार[38] केवल तमिलनाडु राज्य में ही है।
खनिज तेल 620 करोड़ टन इसकी प्राप्ति के प्रमुख क्षेत्र असम की ब्रह्मपुत्र घाटी तथा गुजरात राज्य में स्थित हैं। इनके अतिरिक्त त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, कच्छ क्षेत्र, आन्ध्र प्रदेश आदि में भी खनिज तेल का पता लगा है। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र तथा गुजरात के अपतटीय क्षेत्र में भी तेल भण्डार स्थित हैं।

ऊर्जा और ईंधन

परमाणु ऊर्जा

भारत का परमाणु ऊर्जा विभाग तीन चरणों में नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम चला रहा है-

  1. पहले चरण में दाबित गुरुजल रिएक्टरों (पी एच डब्ल्यू आर) और उनसे जुड़े ईंधन-चक्र के लिए विधा को स्थापित किया जाना है। ऐसे रिएक्टरों में प्राकृतिक यूरेनियम को ईंधन के रुप में गुरुजल को मॉडरेटर एवं कूलेंट के रुप में प्रयोग किया जाता है।
  2. दूसरे चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बनाने का प्रावधान है, जिनके साथ पुनः प्रसंस्करण संयंत्र और प्लूटोनियम-आधारित ईंधन संविचरण संयंत्र भी होंगे। प्लूटोनियम को यूरेनियम 238 के विखंडन से प्राप्त किया जाता है।
  3. तीसरा चरण थोरियम-यूरेनियम-233 चक्र पर आधारित है। यूरेनियम-233 को थोरियम के विकिरण से हासिल किया जाता है।

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रक्षा

भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष 1946 के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय देश के रक्षा मंत्री बलदेव सिंह बने। हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा । 1947 में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंट पाकिस्तान चली गयीं। गोरखा फ़ौज की 6 रेजीमेंटं (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से 28 फ़रवरी, 1948 को स्वदेश रवाना हुई। कुछ अंग्रेज़ अफ़सर परामर्शक के रूप में कुछ समय तक भारत में रहे लेकिन स्वतंत्रता के पहले क्षण से ही भारतीय सेना पूर्णत: भारतीयों के हाथों में आ गयी थी। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात भारत सरकार ने भारतीय सेना के ढांचे में कतिपय परिवर्तन किये। थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना अपने-अपने मुख्य सेनाध्यक्षों के अधीन आयी। भारतीय रियासतों की सेना को भी देश की सैन्य व्यवस्था में शामिल कर लिया गया। 26 जनवरी, 1950 को देश के गणतंत्र बनने पर भारतीय सेनाओं की संरचनाओं में आवश्यक परिवर्तन किये गये।

अंतरिक्ष कार्यक्रम

भारतीय अंतरिक्ष केन्द्र और इकाइयां
क्रम स्थान केन्द्र और इकाइयां
1 बंगलौर इसरो मुख्यालय, अंतरिक्ष आयोग, अंतरिक्ष विभाग, इस्ट्रैक मुख्यालय, उपग्रह नियंत्रण केन्द्र, एन.एन.आर.एम.एस सचिवालय, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र
2 हासन इन्सैट प्रधान नियंत्रण सुविधा
3 अहमदाबाद भौतिक अनुसंधान उपयोग केंद्र, प्रयोगशाला विकास, शैक्षिक एवं संचार इकाई
4 श्रीहरिकोटा शार केंद्र
5 महेंद्रगिरि द्रव नोदन जांच सुविधाएं
6 नागपुर केन्द्रीय प्र.रा.सं. से केंद्र
7 मुम्बई इसरो सम्पर्क कार्यालय
8 तिरुअनन्तपुरम विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र, सी.एल.एल.वी. सुविधाएं, इसरो जड़त्वीय प्रणाली इकाई
9 हैदराबाद राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेंसी
10 नई दिल्ली अंतरिक्ष विभाग शाखा, इसरो शाखा कार्यालय, दिल्ली भू-केंद्र
11 देहरादून भारतीय सुदूर संवेदन, उत्तरी 5 सं.सं. से केंद्र
12 लखनऊ इस्ट्रैक भू-केंद्र
13 बालासोर मौसम विज्ञानी रॉकेट केंद्र
14 कवलूर उपग्रह अनुवर्तन तथा सर्वेक्षण केंद्र
15 अलवाय अमोनियम परक्लोरेट प्रायोगिक संयंत्र
16 उदयपुर सौर वेधशाला
17 जोधपुर पश्चिमी प्र.सं.सं. से केंद्र
18 खड़गपुर पूर्वी प्र.सं.सं. से केंद्र

विकासशील अर्थव्‍यवस्‍था और उससे जुड़ी समस्‍याओं से घिरे होने के बावज़ूद भारत ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को प्रभावी ढंग से विकसित किया है और उसे अपने तीव्र विकास के लिए इस्‍तेमाल भी किया है तथा आज विश्‍व के अन्‍य देशों को विभिन्‍न अंतरिक्ष सेवाएं उपलब्‍ध करा रहा है। 1960 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में अंतरिक्ष अनुसंधान की शुरुआत भारत में मुख्‍यत: साउंडिंग रॉकेटों की मदद से हुई। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्‍थापना 1969 में की गई। भारत सरकार द्वारा 1972 में 'अंतरिक्ष आयोग' और 'अंतरिक्ष विभाग' के गठन से अंतरिक्ष शोध गतिविधियों को अतिरिक्‍त गति प्राप्‍त हुई। 'इसरो' को अंतरिक्ष विभाग के नियंत्रण में रखा गया। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में 70 का दशक प्रयोगात्‍मक युग था जिस दौरान 'आर्यभट्ट', 'भास्‍कर', 'रोहिणी' तथा 'एप्‍पल' जैसे प्रयोगात्‍मक उपग्रह कार्यक्रम चलाए गए। इन कार्यक्रमों की सफलता के बाद 80 का दशक संचालनात्‍मक युग बना जबकि 'इन्सेट' तथा 'आईआरएस' जैसे उपग्रह कार्यक्रम शुरू हुए। आज इन्सेट तथा आईआरएस इसरो के प्रमुख कार्यक्रम हैं।

पशु पक्षी जगत

वन्य जीवन प्रकृति की अमूल्य देन है। भविष्य में वन्य प्राणियों की समाप्ति की आशंका के कारण भारत में सर्वप्रथम 7 जुलाई, 1955 को वन्य प्राणी दिवस मनाया गया । यह भी निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष दो अक्तूबर से पूरे सप्ताह तक वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जाएगा। वर्ष 1956 से वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जा रहा है। भारत के संरक्षण कार्यक्रम की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक मज़बूत संस्थागत ढांचे की रचना की गयी है । जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, बोटेनिकल सर्वे आफ इण्डिया जैसी प्रमुख संस्थाओं तथा भारतीय वन्य जीवन संस्थान, भारतीय वन्य अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी तथा सलीम अली स्कूल ऑफ आरिन्थोलॉजी जैसे संस्थान वन्य ====भारत का वन्य जीवन====

  • संसार में पौधों की 2,50,000 ज्ञात प्रजातियों में से 15,000 प्रजातियां भारत में मिलती हैं।
  • इस प्रकार संसार में जीव-जन्तुओं की कुल 15 लाख प्रजातियों में से 75,000 प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं।
  • भारत में पक्षियों की 1,200 प्रजातियां और 900 उप-प्रजातियां पाई जाती हैं।
  • भारत के सुविख्यात पक्षियों में बहुरंगी राष्ट्रीय पक्षी मोर उल्लेखनीय है।
  • पांच फुट की ऊंचाई वाला भव्य सारस तथा संसार का दूसरा सबसे भारी पक्षी हुकना (सोहनचिड़िया) महत्त्वपूर्ण पक्षी हैं।
  • संसार में प्रसिद्ध केवलादेव (भरतपुर) के राष्ट्रीय उद्यान में ढाई लाख पक्षियों का घर है।

भारतीय भाषा परिवार

भारत की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। भारत में विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 344 के अंतर्गत पहले केवल 15 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता दी गयी थी, लेकिन 21वें संविधान संशोधन के द्वारा सिन्धी को तथा 71वाँ संविधान संशोधन द्वारा नेपाली, कोंकणी तथा मणिपुरी को भी राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। बाद में 92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में चार नई भाषाओं बोडो, डोगरी, मैथिली तथा संथाली को राजभाषा में शामिल कर लिया गया। इस प्रकार अब संविधान में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है। भारत में इन 22 भाषाओं को बोलने वाले लोगों की कुल संख्या लगभग 90% है। इन 22 भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी भी सहायक राजभाषा है और यह मिज़ोरम, नागालैण्ड तथा मेघालय की राजभाषा भी है। कुल मिलाकर भारत में 58 भाषाओं में स्कूलों में पढ़ायी की जाती है। संविधान की आठवीं अनुसूची में उन भाषाओं का उल्लेख किया गया है, जिन्हें राजभाषा की संज्ञा दी गई है।

शिक्षा

1911 में भारतीय जनगणना के समय साक्षरता को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि "एक पत्र पढ़-लिखकर उसका उत्तर दे देने की योग्यता" साक्षरता है। भारत में लम्बे समय से लिखित भाषा का अस्तित्व है, किन्तु प्रत्यक्ष सूचना के अभाव के कारण इसका संतोषजनक विकास नहीं हुआ। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की लेखन चित्रलिपि तीन हज़ार वर्ष ईसा पूर्व और बाद की है। यद्यपि अभी तक इस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है, तथापि इससे यह स्पष्ट है कि भारतीयों के पास कई शताब्दियों पहले से ही एक लिखित भाषा थी और यहाँ के लोग पढ़ और लिख सकते थे। हड़प्पा और अशोक के काल के बीच में पन्द्रह सौ वर्षों का ऐसा समय रहा है, जिसमें की कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन पाणिनि ने उस समय भारतीयों के द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं का उल्लेख किया है। बुद्ध के समय में और उनसे भी पहले इस देश में भाषा के 60 से भी अधिक रूपों को जाना जाता था तथा शाक्यमुनि ने लेखन की एक पद्धति की शिक्षा दी थी। भारत के एक राष्ट्र के रूप में विकसित होने से पहले संस्कृत भाषा एकता का महत्त्वपूर्ण कारक थी।

समाचार-पत्रों का इतिहास

समाचार पत्र प्रकाशन स्थल भाषा
प्रमुख हिन्दी समाचार पत्र
दैनिक जागरण कानपुर, बनारस, पटना, लखनऊ, मेरठ, गोरखपुर हिन्दी
जनसत्ता कलकत्ता, दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़ हिन्दी
नवभारत टाइम्स दिल्ली, मुंबई हिन्दी
हिन्दुस्तान बनारस, पटना, लखनऊ, दिल्ली, मुजफ्फरपुर हिन्दी
पंजाब केसरी दिल्ली, जालंधर हिन्दी
प्रताप दिल्ली हिन्दी
विश्वामित्र कलकत्ता, दिल्ली, मुंबई, पटना, कानपुर हिन्दी
वीर अर्जुन दिल्ली हिन्दी
राष्ट्रीय सहारा लखनऊ, दिल्ली, गोरखपुर हिन्दी
अमर उजाला आगरा, बरेली, मेरठ हिन्दी
अमृत प्रभात इलाहाबाद, लखनऊ हिन्दी
आज बनारस, पटना, गोरखपुर हिन्दी
राजस्थान पत्रिका जयपुर, बंगलौर हिन्दी
नई दुनिया जयपुर, इन्दौर हिन्दी
दैनिक भास्कर भोपाल हिन्दी
प्रमुख अंग्रेज़ी समाचार पत्र
टाइम्स ऑफ इंडिया पटना, अहमदाबाद, लखनऊ, दिल्ली, मुंबई अंग्रेज़ी
हिन्दुस्तान टाइम्स दिल्ली, पटना अंग्रेज़ी
द हिन्दू चेन्नई, कोयम्बतूर, दिल्ली, हैदराबाद अंग्रेज़ी
इंडियन एक्सप्रेस दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, लखनऊ, मदुराई, विजयबाड़ा, अहमदाबाद अंग्रेज़ी
द हितवाद नागपुर अंग्रेज़ी
फाइनेंशियल एक्सप्रेस मुंबई अंग्रेज़ी
पायनियर दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, अंग्रेज़ी
इकोनॉमिक टाइम्स मुंबई अंग्रेज़ी
स्टेट्समैन नई दिल्ली, कलकत्ता अंग्रेज़ी
स्वतंत्र भारत लखनऊ अंग्रेज़ी
अमृत बाज़ार पत्रिका कलकत्ता अंग्रेज़ी
असम ट्रिब्यून गुवाहाटी अंग्रेज़ी
ट्रिब्यून अम्बाला, चंडीगढ़ अंग्रेज़ी
द टेलीग्राफ कलकत्ता अंग्रेज़ी
पैट्रियट दिल्ली अंग्रेज़ी
नॉदर्न इंडिया लखनऊ, इलाहाबाद अंग्रेज़ी
डक्कन क्रॉनिकल बंगलौर अंग्रेज़ी
हेरॉल्ड क्रॉनिकल बंगलौर अंग्रेज़ी
प्रमुख अन्य समाचार पत्र
ब्लिट्ज मुंबई मराठी
सामना मुंबई मराठी
हिन्दुस्तान स्टैण्डर्ड कलकत्ता बांग्ला
नूतन असमिया गुवाहाटी असमिया
अकाली पत्रिका जालन्धर पंजाबी
दिनामनि मदुराई, चितू रतमिल
मथरूभूमि कोजीकोड मलयालम
मातृभूमि, समाज, प्रजातंत्र कटक उड़िया
संवाद भुवनेश्वर
तेज दिल्ली उर्दू
दिनावन्दी मदुरै, चेन्नई, कोयम्बतूर तमिल
दिनामलर चेन्नई, मदुरै तमिल
मलयाला मनोरमा तिरुवनंतपुरम मलयालम

यूरोपीय लोगों के भारत में प्रवेश के साथ ही समाचारों एवं समाचार पत्रों के इतिहास की शुरुआत होती है। भारत में प्रिटिंग प्रेस लाने का श्रेय पुर्तग़ालियों को दिया जाता है। 1557 ई. में गोवा के कुछ पादरी लोगों ने भारत की पहली पुस्तक छापी। 1684 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भी भारत में प्रिटिंग प्रेस (मुद्रणालय) की स्थापना की। भारत में पहला समाचार पत्र कम्पनी के एक असंतुष्ट सेवक वोल्ट्स ने 1766 ई. में निकालने का प्रयास किया, पर वह असफल रहा। भारत में प्रथम समाचार-पत्र निकालने का श्रेय जेम्स आगस्टस हिक्की को मिला। उसने 1780 ई. में बंगाल के गजट (Bangal Guzette) का प्रकाशन किया, किन्तु कम्पनी सरकार की आलोचना के कारण उसका प्रेस जब्त कर लिया गया। इस दौरान कुछ अन्य अंग्रेज़ी अख़बारों का प्रकाशन हुआ-बंगाल में कलकत्ता कैरियर, एशियाटिक मिरर, ओरिंयटल स्टार, मद्रास में मद्रास कैरियर, मद्रास गजट, बम्बई में हेराल्ड, बांबे गजट आदि। 1818 ई. में ब्रिटिश व्यापारी जेम्स सिल्क बर्किघम ने 'कलकत्ता जनरल' का सम्पादन किया। बर्किघम ही वह पहला प्रकाशक था, जिसने प्रेस को जनता के प्रतिबिम्ब के स्वरूप में प्रस्तुत किया। प्रेस का आधुनिक रूप उसी की देन है।

भारतीय कला

भारतीय कला अपनी प्राचीनता तथा विवधता के लिए विख्यात रही है। आज जिस रूप में 'कला' शब्द अत्यन्त व्यापक और बहुअर्थी हो गया है, प्राचीन काल में उसका एक छोटा हिस्सा भी न था। यदि ऐतिहासिक काल को छोड़ और पीछे प्रागैतिहासिक काल पर दृष्टि डाली जाए तो विभिन्न नदियों की घाटियों में पुरातत्त्वविदों को खुदाई में मिले असंख्य पाषाण उपकरण भारत के आदि मनुष्यों की कलात्मक प्रवृत्तियों के साक्षात प्रमाण हैं। पत्थर के टुकड़े को विभिन्न तकनीकों से विभिन्न प्रयोजनों के अनुरूप स्वरूप प्रदान किया जाता था। हस्तकुल्हाड़े, खुरचनी, छिद्रक, तक्षिणियाँ तथा बेधक आदि पाषाण-उपकरण सिर्फ़ उपयोगिता की दृष्टि से ही महत्त्वपूर्ण नहीं थे, बल्कि उनका कलात्मक पक्ष भी ज्ञातव्य है। जैसे-जैसे मनुष्य सभ्य होता गया उसकी जीवन शैली के साथ-साथ उसका कला पक्ष भी मज़बूत होता गया। जहाँ पर एक ओर मृदभांण्ड, भवन तथा अन्य उपयोगी सामानों के निर्माण में वृद्धि हुई वहीं पर दूसरी ओर आभूषण, मूर्ति कला, मुहर निर्माण, गुफ़ा चित्रकारी आदि का भी विकास होता गया। भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में विकसित सैंधव सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) भारत के इतिहास के प्रारम्भिक काल में ही कला की परिपक्वता का साक्षात् प्रमाण है। खुदाई में लगभग 1,000 केन्द्रों से प्राप्त इस सभ्यता के अवशेषों में अनेक ऐसे तथ्य सामने आये हैं, जिनको देखकर बरबर ही मन यह मानने का बाध्य हो जाता है कि हमारे पूर्वज सचमुच उच्च कोटि के कलाकार थे।

भारतीय संगीत

संगीत मानवीय लय एवं तालबद्ध अभिव्यक्ति है। भारतीय संगीत अपनी मधुरता, लयबद्धता तथा विविधता के लिए जाना जाता है। वर्तमान भारतीय संगीत का जो रूप दृष्टिगत होता है, वह आधुनिक युग की प्रस्तुति नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास के प्रासम्भ के साथ ही जुड़ा हुआ है। बैदिक काल में ही भारतीय संगीत के बीज पड़ चुके थे। सामवेद उन वैदिक ॠचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। प्राचीन काल से ही ईश्वर आराधना हेतु भजनों के प्रयोग की परम्परा रही है। यहाँ तक की यज्ञादि के अवसर पर भी समूहगान होते थे।

नृत्य कला

भारत में नृत्य की अनेक शैलियाँ हैं। भरतनाट्यम , ओडिसी , कुचिपुड़ी , कथकली ,मणिपुरी , कथक आदि परंपरागत नृत्य शैलियाँ हैं तो भंगड़ा , गिद्दा , नगा , बिहू आदि लोकप्रचलित नृत्य है। ये नृत्य शैलियाँ पूरे देश में विख्यात है। गुजरात का गरबा हरियाणा में भी मंचो की शोभा को बढ़ाता है और पंजाब का भंगड़ा दक्षिण भारत में भी बड़े शौक़ से देखा जाता है। भारत के संगीत को विकसित करने में अमीर ख़ुसरो, तानसेन, बैजू बावरा जैसे संगीतकारों का विशेष योगदान रहा है। आज भारत के संगीत-क्षितिज पर बिस्मिल्ला ख़ाँ‎, ज़ाकिर हुसैन, रवि शंकर समान रूप से सम्मानित हैं।

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संस्कृति

त्योहार और मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। यह भी कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति अपने हृदय के माधुर्य को त्योहार और मेलों में व्यक्त करती है, तो अधिक सार्थक होगा। भारतीय संस्कृति प्रेम, सौहार्द्र, करुणा, मैत्री, दया और उदारता जैसे मानवीय गुणों से परिपूर्ण है। यह उल्लास, उत्साह और विकास को एक साथ समेटे हुए है। आनन्द और माधुर्य तो जैसे इसके प्राण हैं। यहाँ हर कार्य आनन्द के साथ शुरू होता है और माधुर्य के साथ सम्पन्न होता है। भारत जैसे विशाल धर्मप्राण देश में आस्था और विश्वास के साथ मिल कर यही आनन्द और उल्लास त्योहार और मेलों में फूट पड़ता है। त्योहार और मेले हमारी धार्मिक आस्थाओं, सामाजिक परम्पराओं और आर्थिक आवश्यकताओं की त्रिवेणी है, जिनमें समूचा जनमानस भावविभोर होकर गोते लगाता है। यही कारण है कि जितने त्योहार और मेले भारत में मनाये जाते हैं, विश्व के किसी अन्य देश में नहीं। इस दृष्टि से यदि भारत को त्योहार और मेलों का देश कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हिमाचल से लेकर सुदूर दक्षिण तक और असम से लेकर महाराष्ट्र तक व्रत, पर्वों, त्योहारों और मेलों की अविच्छिन्न परम्परा विद्यमान है, जो पूरे वर्ष अनवरत चलती रहती है।

भारतीय भोजन

भारतीय भोजन स्वाद और सुगंध का मधुर संगम है। पूरन पूरी हो या दाल बाटी, तंदूरी रोटी हो या शाही पुलाव, पंजाबी भोजन हो या मारवाड़ी भोजन, ज़िक्र चाहे जिस किसी का भी हो रहा हो, केवल नाम सुनने से ही भूख जाग उठती है। भारत में पकवानों की विविधता भी बहुत अधिक है। राजस्थान में दाल-बाटी, कोलकाता में चावल-मछली, पंजाब में रोटी-साग, दक्षिण में इडली-डोसा। इतनी विविधता के बीच एकता का प्रमाण यह है कि आज दक्षिण भारत के लोग दाल-रोटी उसी शौक़ से खाते हैं, जितने शौक़ से उत्तर भारतीय इडली-डोसा खाते हैं। सचमुच भारत एक रंगबिरंगा गुलदस्ता है।

भारतीय भोजन के प्रकार

  1. शाकाहारी भोजन (निरामिष)- शाकाहारी भोजन वह भोजन है जिसमें मांस, मछली, और अंडे का प्रयोग नहीं होता है।
  2. मांसाहारी भोजन (सामिष)- मांसाहारी भोजन वह भोजन है जिसमें मांस, मछली, और अंडे का प्रयोग होता है।

पर्यटन

भारतवासी अपनी दीर्घकालीन, अनवरत एवं सतरंगी उपलब्धियों से युक्त इतिहास पर गर्व कर सकते हैं। प्राचीन काल से ही भारत एक अत्यन्त ही विविधता सम्पन्न देश रहा है और यह विशेषता आज भी समय की घड़ी पर अंकित है। यहाँ प्रारम्भ से अनेक अध्यावसायों का अनुसरण होता रहा है, पृथक्-पृथक् मान्यताएँ हैं, लोगों के रिवाज़ और दृष्टिकोणों के विभिन्न रंगों से सज़ा यह देश अतीत को भूत, वर्तमान एवं भविष्य की आँखों से देखने के लिए आह्वान कर रहा है। किन्तु बहुरंगी सभ्यता एवं संस्कृति वाले देश के सभी आयामों को समझने का प्रयास इतना आसान नहीं है।

ऐतिहासिक स्थल

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में इतने अधिक विचार एवं दृष्टिकोण केवल इसीलिए फल-फूल पाएँ हैं कि यहाँ वैचारिक विविधता और वाद-संवाद को प्रायः सर्व- सहमति प्राप्त रही है। भारत की विविधता हमें स्थलों के अनुशीलन में भी दिखाई देती है। ऐतिहासिक स्थलों के अध्ययन तथा विवेचन में भारतीय संस्कृति का स्वरूप स्वयं प्रकाशित होता है। इससे इतिहास के बिखरे सूत्रों की प्रभावी रूप से तलाश संभव है। यह भी उल्लेखनीय है कि नगर एवं नगर-जीवन के विकास का विविरण सभ्यता के विकास का प्रधान सूत्र है। राजनीतिक और आर्थिक प्रगति तथा शिल्प, कला एवं विद्या का बहुमुखी विकास के साथ ही सम्पन्न हुआ है।

प्राचीन धार्मिक स्थल

प्राचीन काल से ही भव्य देवालयों और धर्म स्थलों से भरपूर भारत स्थापत्य कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

धार्मिक स्थल

अनेक धर्म और परंपराओं से सज़ा भारत अपने भीतर हज़ारों धार्मिक स्थल बसाए हुए है। जो पूरे भारत में देशी और विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं का मुख्य आकर्षण हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पंथा विततो देवयानः।
    येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र सत्सत्यस्य परमं निधानम्॥

    मुण्डकोपनिषद् तृतीय मुण्डक श्लोक 6
  2. 2.0 2.1 India : Census 2011
  3. Population Density per Square Mile of Countries
  4. 4.0 4.1 4.2 4.3 Report for Selected Countries and Subjects (अंग्रेज़ी) (ए.एस.पी) International Monetory Fund। अभिगमन तिथि: 15 मई, 2012।
  5. सितम्बर 2006-2011 की स्थिति के अनुसार
  6. पुस्तक 'भारत का इतिहास' रोमिला थापर) पृष्ठ संख्या-19
  7. (विश्व का 2.2% विश्व में 7वां स्थान)
  8. एकदम दक्षिणी भाग की भूमध्य रेखा से दूरी
  9. उत्तर में हिमालय पर्वतमाला से लगे हुए चीन, नेपाल तथा भूटान, पूर्व में पर्वतीय श्रृंखला से अलग हुआ म्यान्मार तथा पूर्व में ही बांग्लादेश, पश्चिम में पाकिस्तान एवं अफ़ग़ानिस्तान तथा दक्षिण में हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर
  10. द्वीपों सहित समुद्री सीमा की कुल लंबाई
  11. स्थलीय सीमा की लंबाई
  12. संघशासित क्षेत्रों की संख्या
  13. बंगाल की खाड़ी में द्वीपों की संख्या- 204, अरब सागर में द्वीपों की संख्या- 43।
  14. वे राज्य जिनसे होकर कर्क रेखा गुजरती है
  15. सर्वाधिक नगरीय जनसंख्या वाला संघ शासित क्षेत्र
  16. सबसे कम नगरीय जनसंख्या वाला संघ शासित क्षेत्र
  17. क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा संघशासित क्षेत्र
  18. प्रमुख सागरीय मछलियाँ- बटरफिश, स्वेत बेट, सारडाइन, प्रान, मैकरेल, ज्यूफिश, रिबनफिश, कैटफिश, सारंगा, दारा, ट्यूना, मुलेट्स, सियरफिश, शार्क, पामफ्रेट, श्रिम्प आदि। विश्व मत्स्ययन का- 2.7%।
  19. कुल क्षेत्रफल का 22.7%
  20. सिंचाई के साधन
  21. 200 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में बिना सिंचाई के
  22. 100 से 200 सेमी. वर्षा वालेऐ जलोढ़ एंव काली मिट्टी के क्षेत्रों में
  23. उत्तर-पूर्वी भारत, पश्चिमी घाट आदि क्षेत्रों में
  24. विशेष रूप से हिमालय के ढालों पर
  25. मणिपुर के सेनापति ज़िले के तीन उपज़िलों को छोड़कर
  26. अनुसूचित जातियों की संख्या
  27. अनुसूचित जनजातियों की संख्या
  28. औसत वार्षिक घातीय वृद्धि दर
  29. अनुच्छेद 344 (1), 351, आठवीं अनुसूची के अनुसार 22 भाषाऐं है जिनके नाम इस प्रकार है:- असमिया , बांग्ला , गुजराती , हिन्दी , कन्नड़ , कश्मीरी , कोंकणी , मलयालम , मणिपुरी , मराठी , नेपाली , उड़िया , पंजाबी , संस्कृत , सिंधी , तमिल , उर्दू , तेलुगु , बोडो , डोगरी , मैथिली , संथाली
  30. कृषि से संबंधित कार्य में संलग्न उद्यमों का प्रतिशत
  31. गैर-कृषि संबंधी कार्यों में संलग्न उद्यमों का प्रतिशत
  32. कुल उद्यमों का 1.4%
  33. जवाहर लाल नेहरू अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (सान्ताक्रुज, मुम्बई), सुभाष चन्द्र बोस हवाई अड्डा (दमदम- कोलकाता), इन्दिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (पालम, दिल्ली), मीनाम्बकम हवाई अड्डा (चेन्नई) तथा तिरुवनन्तपुरम।
  34. रचयिता-गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर
  35. रचयिता- बंकिमचन्द्र चटर्जी
  36. सम्पूर्ण विश्व का लगभग 25% विद्यमान है।
  37. (कोल्लार स्वर्ण क्षेत्र तथा अनन्तपुर ज़िले से बहुत कम मात्रा में सोना निकाला जाता है)
  38. लगभग 383 करोड़ टन
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