"मर गए होते -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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पहचान भी तो रस्म है, वो कर गए होते | पहचान भी तो रस्म है, वो कर गए होते | ||
उस मुफ़लिसी के दौर में हम ही थे राज़दार<ref>मुफ़लिसी = | उस मुफ़लिसी के दौर में हम ही थे राज़दार<ref>मुफ़लिसी = ग़रीबी</ref> | ||
आसाइशों की बज्म़ दिखा कर गए होते<ref>आसाइश = | आसाइशों की बज्म़ दिखा कर गए होते<ref>आसाइश =समृद्धि</ref><ref>बज़्म = सभा, महफिल</ref> | ||
हर रोज़ मुलाक़ात औ बातों के सिलसिले | हर रोज़ मुलाक़ात औ बातों के सिलसिले | ||
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माज़ूर बनके क्या मिलें अब दोस्तों से हम<ref>माज़ूर = जिसे किसी श्रम या सेवा का फल दिया गया हो, प्रतिफलित</ref> | माज़ूर बनके क्या मिलें अब दोस्तों से हम<ref>माज़ूर = जिसे किसी श्रम या सेवा का फल दिया गया हो, प्रतिफलित</ref> | ||
कुछ दोस्ती का पास निभा कर गए होते<ref>पास = | कुछ दोस्ती का पास निभा कर गए होते<ref>पास = लिहाज़</ref> | ||
पहले बहुत ग़ुरूर था तुम दोस्त हो मेरे | पहले बहुत ग़ुरूर था तुम दोस्त हो मेरे | ||
अब दुश्मनी के तौर बता कर गए होते<ref>तौर = | अब दुश्मनी के तौर बता कर गए होते<ref>तौर = आचरण</ref> | ||
'बंदा' नहीं है मुंतज़िर अब रहमतों का यार<ref>मुंतज़िर = इंतज़ार या प्रतीक्षा करने वाला</ref><ref>रहमत = दया | 'बंदा' नहीं है मुंतज़िर अब रहमतों का यार<ref>मुंतज़िर = इंतज़ार या प्रतीक्षा करने वाला</ref><ref>रहमत = दया</ref> | ||
ताकीद हर एक दोस्त को हम कर गये होते<ref>ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना | ताकीद हर एक दोस्त को हम कर गये होते<ref>ताकीद = कोई बात ज़ोर देकर कहना</ref> | ||
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07:07, 16 जनवरी 2014 के समय का अवतरण
मर गए होते -आदित्य चौधरी
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टीका टिप्पणी और संदर्भ