"पाबूजी की फड़": अवतरणों में अंतर
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[[राजस्थान]] के प्रसिद्ध लोक देवता '[[पाबूजी]]' के यशगान में 'पावड़े' (गीत) गाये जाते हैं व मनौती पूर्ण होने पर फड़ भी बाँची जाती है। 'पाबूजी की फड़' पूरे राजस्थान में विख्यात है, जिसे 'भोपे' बाँचते हैं। ये भोपे विशेषकर थोरी जाति के होते हैं। फड़ कपड़े पर पाबूजी के जीवन प्रसंगों के चित्रों से युक्त एक पेंटिंग होती है। भोपे पाबूजी के जीवन कथा को इन चित्रों के माध्यम से कहते हैं और गीत भी गाते हैं। इन भोपों के साथ एक स्त्री भी होती है, जो भोपे के गीतोच्चारण के बाद सुर में सुर मिलाकर पाबूजी की जीवन लीलाओं के गीत गाती है। फड़ के सामने ये [[नृत्य]] भी करते हैं। ये गीत [[रावण हत्था]] पर गाये जाते हैं, जो [[सारंगी]] के जैसा [[वाद्य यंत्र]] होता है। 'पाबूजी की फड़' लगभग 30 फीट लम्बी तथा 5 फीट चौड़ी होती है। इस फड़ को एक [[बाँस]] में लपेट कर रखा जाता है।<ref>{{cite web |url=http://rajasthanstudy.blogspot.in/2011/01/blog-post_4904.html|title=लोक देवता पाबूजी|accessmonthday=25 अप्रैल|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | [[राजस्थान]] के प्रसिद्ध लोक देवता '[[पाबूजी]]' के यशगान में 'पावड़े' (गीत) गाये जाते हैं व मनौती पूर्ण होने पर फड़ भी बाँची जाती है। 'पाबूजी की फड़' पूरे राजस्थान में विख्यात है, जिसे 'भोपे' बाँचते हैं। ये भोपे विशेषकर थोरी जाति के होते हैं। फड़ कपड़े पर पाबूजी के जीवन प्रसंगों के चित्रों से युक्त एक पेंटिंग होती है। भोपे पाबूजी के जीवन कथा को इन चित्रों के माध्यम से कहते हैं और गीत भी गाते हैं। इन भोपों के साथ एक स्त्री भी होती है, जो भोपे के गीतोच्चारण के बाद सुर में सुर मिलाकर पाबूजी की जीवन लीलाओं के गीत गाती है। फड़ के सामने ये [[नृत्य]] भी करते हैं। ये गीत [[रावण हत्था]] पर गाये जाते हैं, जो [[सारंगी]] के जैसा [[वाद्य यंत्र]] होता है। 'पाबूजी की फड़' लगभग 30 फीट लम्बी तथा 5 फीट चौड़ी होती है। इस फड़ को एक [[बाँस]] में लपेट कर रखा जाता है।<ref>{{cite web |url=http://rajasthanstudy.blogspot.in/2011/01/blog-post_4904.html|title=लोक देवता पाबूजी|accessmonthday=25 अप्रैल|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
====लोक देवता की कथा==== | ====लोक देवता की कथा==== | ||
[[राजस्थान]] में कुछ जगहों पर जाति विशेष के भोपे पेशेवर [[पुरोहित]] होते हैं। उनका मुख्य कार्य किसी मन्दिर में [[देवता]] की [[पूजा]] करना तथा देवता के आगे नाचना, गाना तथा कीर्तन आदि करना होता है। [[पाबूजी]] तथा देवनारायण के भोपे अपने संरक्षकों (धाताओं) के घर पर जाकर अपना पेशेवर गाना व [[नृत्य]] के साथ फड़ के आधार पर लोक देवता की कथा कहते हैं। राजस्थान में पाबूजी तथा देवनारायण के [[भक्त]] लाखों की संख्या में हैं। इन लोक देवताओं को 'कुटुम्ब के देवता' के रूप में पूजा जाता है और उनकी वीरता के गीत चारण और भाटों द्वारा गाए जाते हैं। भोपों ने पाबूजी और देवनारायण जी की वीरता के सम्बन्ध में सैंकड़ों लोक गीत रचें हैं और इनकी गीतात्मक शौर्यगाथा को इनके द्वारा फड़ का प्रदर्शन करके आकर्षक और रोचक ढंग से किया जाता है। | [[राजस्थान]] में कुछ जगहों पर जाति विशेष के भोपे पेशेवर [[पुरोहित]] होते हैं। उनका मुख्य कार्य किसी मन्दिर में [[देवता]] की [[पूजा]] करना तथा देवता के आगे नाचना, गाना तथा कीर्तन आदि करना होता है। [[पाबूजी]] तथा देवनारायण के भोपे अपने संरक्षकों (धाताओं) के घर पर जाकर अपना पेशेवर गाना व [[नृत्य]] के साथ फड़ के आधार पर लोक देवता की कथा कहते हैं। राजस्थान में पाबूजी तथा देवनारायण के [[भक्त]] लाखों की संख्या में हैं। इन लोक देवताओं को 'कुटुम्ब के देवता' के रूप में पूजा जाता है और उनकी वीरता के गीत [[चारण]] और भाटों द्वारा गाए जाते हैं। भोपों ने पाबूजी और देवनारायण जी की वीरता के सम्बन्ध में सैंकड़ों लोक गीत रचें हैं और इनकी गीतात्मक शौर्यगाथा को इनके द्वारा फड़ का प्रदर्शन करके आकर्षक और रोचक ढंग से किया जाता है। | ||
==भोपा== | ==भोपा== | ||
[[पाबूजी]] के भोपों ने पाबूजी की फड़ के गीत को अभिनय के साथ गाने की एक विशेष शैली विकसित कर ली है। पाबूजी की फड़ लगभग 30 फीट लम्बी तथा 5 फीट चौड़ी होती है। इसमें पाबूजी के जीवन चरित्र शैली के चित्रों में अनुपात रंगों एवं [[रंग]] एवं फलक संयोजन के जरिए प्रस्तुत करता है। राजस्थान में 'भोपा' का अर्थ किसी [[देवता]] का पुजारी होता है। ये मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। यह मंदिर भेरूजी, माताजी अन्य स्थानीय देवता अथवा लोक देवता या लोक देवी का हो सकता है। सामान्यतः भोपा किसी भी जाति, जैसे- [[ब्राह्मण]], [[राजपूत]], [[गुर्जर]], [[जाट]], रेबारी, डांगी, मेघवाल, [[भील]] आदि किसी का भी हो सकता है, किंतु पाबूजी तथा देवनारायण जी की कथा व फड़ बांचने वाले भोपे "भोपा" नामक विशेष जाति के होते हैं।<ref>{{cite web |url=http://bmrnewstrack.blogspot.in/2012/12/blog-post_9548.html|title=राजस्थान की फड़ कला व भोपों का संक्षिप्त परिचय|accessmonthday=25 अप्रैल|accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | [[पाबूजी]] के भोपों ने पाबूजी की फड़ के गीत को अभिनय के साथ गाने की एक विशेष शैली विकसित कर ली है। पाबूजी की फड़ लगभग 30 फीट लम्बी तथा 5 फीट चौड़ी होती है। इसमें पाबूजी के जीवन चरित्र शैली के चित्रों में अनुपात रंगों एवं [[रंग]] एवं फलक संयोजन के जरिए प्रस्तुत करता है। राजस्थान में 'भोपा' का अर्थ किसी [[देवता]] का पुजारी होता है। ये मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। यह मंदिर भेरूजी, माताजी अन्य स्थानीय देवता अथवा लोक देवता या लोक देवी का हो सकता है। सामान्यतः भोपा किसी भी जाति, जैसे- [[ब्राह्मण]], [[राजपूत]], [[गुर्जर]], [[जाट]], रेबारी, डांगी, मेघवाल, [[भील]] आदि किसी का भी हो सकता है, किंतु पाबूजी तथा देवनारायण जी की कथा व फड़ बांचने वाले भोपे "भोपा" नामक विशेष जाति के होते हैं।<ref>{{cite web |url=http://bmrnewstrack.blogspot.in/2012/12/blog-post_9548.html|title=राजस्थान की फड़ कला व भोपों का संक्षिप्त परिचय|accessmonthday=25 अप्रैल|accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> |
09:30, 22 जुलाई 2014 का अवतरण
पाबूजी की फड़ एक प्रकार का गीत नाट्य है, जिसे अभिनय के साथ गाया जाता है। यह सम्पूर्ण राजस्थान में विख्यात है। 'फड़' लम्बे कपड़े पर बनाई गई एक कलाकृति होती है, जिसमें किसी लोक देवता (विशेष रूप से पाबूजी या देवनारायण) की कथा का चित्रण किया जाता है। फड़ को लकड़ी पर लपेट कर रखा जाता है। इसे धीरे-धीरे खोल कर भोपा तथा भोपी द्वारा लोक देवता की कथा को गीत व संगीत के साथ सुनाया जाता है। पाबूजी के अलावा अन्य लोकप्रिय फड़ 'देवनारायण जी की फड़' होती है।
फड़
राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता 'पाबूजी' के यशगान में 'पावड़े' (गीत) गाये जाते हैं व मनौती पूर्ण होने पर फड़ भी बाँची जाती है। 'पाबूजी की फड़' पूरे राजस्थान में विख्यात है, जिसे 'भोपे' बाँचते हैं। ये भोपे विशेषकर थोरी जाति के होते हैं। फड़ कपड़े पर पाबूजी के जीवन प्रसंगों के चित्रों से युक्त एक पेंटिंग होती है। भोपे पाबूजी के जीवन कथा को इन चित्रों के माध्यम से कहते हैं और गीत भी गाते हैं। इन भोपों के साथ एक स्त्री भी होती है, जो भोपे के गीतोच्चारण के बाद सुर में सुर मिलाकर पाबूजी की जीवन लीलाओं के गीत गाती है। फड़ के सामने ये नृत्य भी करते हैं। ये गीत रावण हत्था पर गाये जाते हैं, जो सारंगी के जैसा वाद्य यंत्र होता है। 'पाबूजी की फड़' लगभग 30 फीट लम्बी तथा 5 फीट चौड़ी होती है। इस फड़ को एक बाँस में लपेट कर रखा जाता है।[1]
लोक देवता की कथा
राजस्थान में कुछ जगहों पर जाति विशेष के भोपे पेशेवर पुरोहित होते हैं। उनका मुख्य कार्य किसी मन्दिर में देवता की पूजा करना तथा देवता के आगे नाचना, गाना तथा कीर्तन आदि करना होता है। पाबूजी तथा देवनारायण के भोपे अपने संरक्षकों (धाताओं) के घर पर जाकर अपना पेशेवर गाना व नृत्य के साथ फड़ के आधार पर लोक देवता की कथा कहते हैं। राजस्थान में पाबूजी तथा देवनारायण के भक्त लाखों की संख्या में हैं। इन लोक देवताओं को 'कुटुम्ब के देवता' के रूप में पूजा जाता है और उनकी वीरता के गीत चारण और भाटों द्वारा गाए जाते हैं। भोपों ने पाबूजी और देवनारायण जी की वीरता के सम्बन्ध में सैंकड़ों लोक गीत रचें हैं और इनकी गीतात्मक शौर्यगाथा को इनके द्वारा फड़ का प्रदर्शन करके आकर्षक और रोचक ढंग से किया जाता है।
भोपा
पाबूजी के भोपों ने पाबूजी की फड़ के गीत को अभिनय के साथ गाने की एक विशेष शैली विकसित कर ली है। पाबूजी की फड़ लगभग 30 फीट लम्बी तथा 5 फीट चौड़ी होती है। इसमें पाबूजी के जीवन चरित्र शैली के चित्रों में अनुपात रंगों एवं रंग एवं फलक संयोजन के जरिए प्रस्तुत करता है। राजस्थान में 'भोपा' का अर्थ किसी देवता का पुजारी होता है। ये मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। यह मंदिर भेरूजी, माताजी अन्य स्थानीय देवता अथवा लोक देवता या लोक देवी का हो सकता है। सामान्यतः भोपा किसी भी जाति, जैसे- ब्राह्मण, राजपूत, गुर्जर, जाट, रेबारी, डांगी, मेघवाल, भील आदि किसी का भी हो सकता है, किंतु पाबूजी तथा देवनारायण जी की कथा व फड़ बांचने वाले भोपे "भोपा" नामक विशेष जाति के होते हैं।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ लोक देवता पाबूजी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 अप्रैल, 2014।
- ↑ राजस्थान की फड़ कला व भोपों का संक्षिप्त परिचय (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 अप्रैल, 2014।
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