"प्रयोग:कविता बघेल": अवतरणों में अंतर
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||वॉलीबॉल एक ऐसा खेल है जो हाथों से खेला जाता है, इस खेल का नाम वॉलीबॉल इसलिए पड़ा क्योंकि इस खेल में गेंद को जमीन पर | ||वॉलीबॉल एक ऐसा खेल है जो हाथों से खेला जाता है, इस खेल का नाम वॉलीबॉल इसलिए पड़ा क्योंकि इस खेल में गेंद को जमीन पर टपपा खाने नहीं दिया जाता गेंद ऊपर-ही-ऊपर हाथ के प्रहार से जाल के एक तरफ से दूसरे तरफ खिलाड़ियों द्वारा फेंकी जाती है। वॉलीबॉल खेल के मैदान की लंबाई 18 मीटर चौड़ाई 9 मीटर होती है। मैदान के रेखांकन में सभी लाइनों की चौड़ाई 5 से.मी. होती है। | ||
{निम्न खेल कूद में 'स्कोलियोसिस' की उच्च दर किसमें देखी गयी है- (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-17 प्रश्न-91 | {निम्न खेल कूद में 'स्कोलियोसिस' की उच्च दर किसमें देखी गयी है- (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-17 प्रश्न-91 | ||
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-2000 मिलीमीटर | -2000 मिलीमीटर | ||
-2500 मिलीमीटर | -2500 मिलीमीटर | ||
||[[किडनी]] में [[द्रव]] से अलग हुए | ||[[किडनी]] में [[द्रव]] से अलग हुए व्यर्थ पदार्थ इकट्ठा हो जाता है, उसे मूत्र कहते हैं। यह [[किडनी]] से दो नलियों से गुजरता है, जिन्हें मूल नलियां कहते हैं। वहां से यह एक लचीले थैले में जाता है जिसे यूरिनरी ब्लैडर कहते हैं, [[मानव शरीर|शरीर]] से मूत्र नलियों द्बारा ब्लैडर में इकट्ठी हुई मूत्र बाहर निकाल दी जाती है। एक व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 1500 मिलीमीटर तक मूत्र बाहर निकालता है। | ||
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+उज्जायी | +उज्जायी | ||
-उड्डियान | -उड्डियान | ||
||प्राणायाम श्वसन प्रक्रिया का नियंत्रक होता है। इसका अर्थ है श्वास को अंदर ले जाने व बाहर निकालने पर उचित नियंत्रण रखना। मूल रूप से प्राणायाम के तीन घटक अर्थात पूरक, कुंभक व रेचक होते हैं। प्राणायाम के विभिन्न प्रकार होते हैं। जैसे-उज्जायी, सूर्यभेदी, शीतकारी, शीलती, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्च्छा, प्लाविनी। यह उपापचय क्रियाओं में सहायता करता है तथा [[हृदय]] व [[फेफड़ा|फेफड़ों]] की क्रियाओं में वृद्धि करता है। यह जीवन को दीर्घायु भी बनाता है। | ||प्राणायाम श्वसन प्रक्रिया का नियंत्रक होता है। इसका अर्थ है श्वास को अंदर ले जाने व बाहर निकालने पर उचित नियंत्रण रखना। मूल रूप से प्राणायाम के तीन घटक अर्थात पूरक, कुंभक व रेचक होते हैं। प्राणायाम के विभिन्न प्रकार होते हैं। जैसे- उज्जायी, सूर्यभेदी, शीतकारी, शीलती, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्च्छा, प्लाविनी। यह उपापचय क्रियाओं में सहायता करता है तथा [[हृदय]] व [[फेफड़ा|फेफड़ों]] की क्रियाओं में वृद्धि करता है। यह जीवन को दीर्घायु भी बनाता है। | ||
{शारीरिक शिक्षा के क्रिया-कलापों के चयन करते समय किस बात का ध्यान रखना आवश्यक है? (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-60 प्रश्न-93 | {शारीरिक शिक्षा के क्रिया-कलापों के चयन करते समय किस बात का ध्यान रखना आवश्यक है? (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-60 प्रश्न-93 | ||
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+पद्मासन और वज्रासन | +पद्मासन और वज्रासन | ||
-भुजंगासन और चक्रासन | -भुजंगासन और चक्रासन | ||
- | -मयूरासन और पश्चिमोत्तानासन | ||
-शीर्षासन और धनुरासन | -शीर्षासन और धनुरासन | ||
||"पद्मासन और वज्रासन' ध्यानात्मक आसन के अंतर्गत आते हैं। वज्रासन अकेला ऐसा आसन है, जिसे भोजन करने के बाद किया जा सकता है, खासकर दोपहर के भोजन के बाद। | ||"पद्मासन और वज्रासन' ध्यानात्मक आसन के अंतर्गत आते हैं। वज्रासन अकेला ऐसा आसन है, जिसे भोजन करने के बाद किया जा सकता है, खासकर दोपहर के भोजन के बाद। | ||
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||फार्टलेक एक स्वीडिया शब्द है जिसका अर्थ है 'गतिखेल' अर्थात स्पीड प्ले (Speed play)। फार्टलेक प्रशिक्षण विधि का प्रयोग व्यक्ति की सहन क्षमता को बढ़ाने के लिए की जाती है और इस विधि में विधि में गति व स्थान पहले से नियोजित नहीं होता है। इसका निर्णय व्यक्तिगत होता है तथा खिलाड़ी अपनी गति पहाड़ियों, जंगल, कीचड़ तथा घास के मैदान अर्थात स्थान के अनुरूप रखता है। इस प्रकार फार्टलेक प्रशिक्षण विधि द्वारा व्यक्ति के सहन क्षमता या दमखम (Endurance) का परीक्षण कर उसका विकास किया जाता है। | ||फार्टलेक एक स्वीडिया शब्द है जिसका अर्थ है 'गतिखेल' अर्थात स्पीड प्ले (Speed play)। फार्टलेक प्रशिक्षण विधि का प्रयोग व्यक्ति की सहन क्षमता को बढ़ाने के लिए की जाती है और इस विधि में विधि में गति व स्थान पहले से नियोजित नहीं होता है। इसका निर्णय व्यक्तिगत होता है तथा खिलाड़ी अपनी गति पहाड़ियों, जंगल, कीचड़ तथा घास के मैदान अर्थात स्थान के अनुरूप रखता है। इस प्रकार फार्टलेक प्रशिक्षण विधि द्वारा व्यक्ति के सहन क्षमता या दमखम (Endurance) का परीक्षण कर उसका विकास किया जाता है। | ||
{[[खो-खो]] में डाइविंग के समय बेहतरीन | {[[खो-खो]] में डाइविंग के समय बेहतरीन टाइमिंग और गति के साथ निम्न में से किसकी आवश्यकता होती है? (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-7 प्रश्न-15 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[मांसपेशी]] ज्ञान | -[[मांसपेशी]] ज्ञान | ||
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+आइसोमेट्रिक व्यायाम | +आइसोमेट्रिक व्यायाम | ||
-आइसो काइनेटिक व्यायाम | -आइसो काइनेटिक व्यायाम | ||
||यदि कोई व्यक्ति काफी देर तक कोई भारी चीज उठाता है, या भार को हाथों से आगे धकेलता है तो इसमें हाथों में कोई गतिशीलता नहीं होती है परंतु बल तो लग रहा है इसलिए [[ऊर्जा]] भी | ||यदि कोई व्यक्ति काफी देर तक कोई भारी चीज उठाता है, या भार को हाथों से आगे धकेलता है तो इसमें हाथों में कोई गतिशीलता नहीं होती है परंतु बल तो लग रहा है इसलिए [[ऊर्जा]] भी इस्तेमाल हो रही है। परंतु पेशियों के तंतुओं की लंबाई पर कोई असर नहीं होता है। ऐसी क्रिया को आइसोमेट्रिक व्यायाम कहते हैं। स्पष्ट है कि इसमें मांसपेशी संकुचन नहीं होता है। | ||
{एंथ्रोलॉजी अध्ययन करता है- (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-51 प्रश्न-18 | {एंथ्रोलॉजी अध्ययन करता है- (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-51 प्रश्न-18 | ||
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-[[मांसपेशी|मांसपेशियों]] का | -[[मांसपेशी|मांसपेशियों]] का | ||
+जोड़ों का | +जोड़ों का | ||
||जंतुओं के [[तंत्रिका तंत्र]] का अध्ययन न्यूरोलॉजी या तंत्रिका विज्ञान के अंतर्गत, [[मांसपेशी|मांसपेशियों]] का अध्ययन 'Myology' (मायोलॉजी) के अंतर्गत तथा हड्डियों का अध्ययन ऑस्टियोलॉजी (ostheology) के अंतर्गत किया जाता है। दो या दो से अधिक अस्थियों का संयोजन ही जोड़ कहलाता है। जोड़ों के अध्ययन को | ||जंतुओं के [[तंत्रिका तंत्र]] का अध्ययन न्यूरोलॉजी या तंत्रिका विज्ञान के अंतर्गत, [[मांसपेशी|मांसपेशियों]] का अध्ययन 'Myology' (मायोलॉजी) के अंतर्गत तथा हड्डियों का अध्ययन ऑस्टियोलॉजी (ostheology) के अंतर्गत किया जाता है। दो या दो से अधिक अस्थियों का संयोजन ही जोड़ कहलाता है। जोड़ों के अध्ययन को ऑर्थोलॉजी (Arthology) कहा जाता है। जोड़ को इस तरह पारिभाषित करते हैं- प्रत्येक उस स्थान को जहां दो अथवा दो से अधिक अस्थियों के सिरे मिलते हैं, जोड़ कहलाते हैं।" लंबी अस्थियां अनेक तलों के कुछ भागों से तथा चपटी अस्थियां अपने किनारों से- जोड़ों का निर्माण करती हैं। एंथ्रोलॉजी, एंथ्रोपोलॉजी का ही समानार्थक है जिसका अर्थ है मनुष्य के शारीरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास और मानव जाति के व्यवहार का अध्ययन। | ||
{विम्बलडन चैंपियनशिप किस [[खेल]] से संबंधित है? (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-60 प्रश्न-96 | {विम्बलडन चैंपियनशिप किस [[खेल]] से संबंधित है? (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-60 प्रश्न-96 | ||
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-बलविंदर सिंह | -बलविंदर सिंह | ||
-परगट सिंह | -परगट सिंह | ||
||[[ध्यानचंद]] अद्भुत निपुणता वाले खिलाड़ी थे। ये अपने [[भाई|भ्राता]] रूपसिंह के साथ [[इंदौर]] की | ||[[ध्यानचंद]] अद्भुत निपुणता वाले खिलाड़ी थे। ये अपने [[भाई|भ्राता]] रूपसिंह के साथ [[इंदौर]] की कल्याणमल मिल की टीम से खेला करते थे। ध्यानचंद वर्ष [[1936]] के बर्लिन [[ओलंपिक खेल|ओलंपिक खेलों]] में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे। बर्लिन में, [[भारत]] ने तीसरी बार [[हॉकी]] का स्वर्ण पदक जीता था। तभी से इनको 'हॉकी का जादूगर' कहा जाने लग। | ||
{[[राष्ट्रीय खेल दिवस]] किस विधि को मनाया जाता है? (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-65 प्रश्न-17 | {[[राष्ट्रीय खेल दिवस]] किस विधि को मनाया जाता है? (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-65 प्रश्न-17 | ||
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|type="()"} | |type="()"} | ||
-कॉर्नर किक | -कॉर्नर किक | ||
+ | +पेनल्टी किक | ||
-गोल किक | -गोल किक | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
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-[[विटामिन के|विटामिन-के]] | -[[विटामिन के|विटामिन-के]] | ||
-[[विटामिन ए|विटामिन-ए]] | -[[विटामिन ए|विटामिन-ए]] | ||
||[[सूर्य]] की किरणें, [[दूध]], [[माखन|मक्खन]] व [[मछली]] का तेल आदि [[विटामिन डी]] के मुख्य स्त्रोत हैं। इसकी कमी के कारण रिकेट्स, | ||[[सूर्य]] की किरणें, [[दूध]], [[माखन|मक्खन]] व [[मछली]] का तेल आदि [[विटामिन डी]] के मुख्य स्त्रोत हैं। इसकी कमी के कारण रिकेट्स, ऑस्टियोमैलेसिया, ऑस्टियोपोरोसिस आदि रोग हो जाता है। | ||
{शारीरिक शिक्षक में गुण होने चाहिए- (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-200 प्रश्न-119 | {शारीरिक शिक्षक में गुण होने चाहिए- (शारीरिक शिक्षा,पृ.सं-200 प्रश्न-119 |
19:19, 21 जनवरी 2017 का अवतरण
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