"स्वयंवर": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
('{{पुनरीक्षण}}<!-- कृपया इस साँचे को हटाएँ नहीं (डिलीट न क...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
छो (Adding category Category:हिन्दू धर्म कोश (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
पंक्ति 26: | पंक्ति 26: | ||
[[Category:नया पन्ना]][[Category:हिन्दू धर्म]] | [[Category:नया पन्ना]][[Category:हिन्दू धर्म]] | ||
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
12:05, 22 अप्रैल 2011 का अवतरण
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
- स्वयंवर का हिंदू समाज में एक विशिष्ट सामाजिक स्थान था।
- इस बात के प्रमाण हैं कि वैदिक काल में यह प्रथा समाज के चारों वर्णों में प्रचलित थी और यह विवाह का प्रारूप था।
- रामायण और महाभारत काल में भी यह प्रथा राजन्य वर्ग में प्रचलित थी। पर इसका रूप कुछ संकुचित हो गया था।
- राजन्य कन्या पति का वरण स्वयंवर में करती थी परंतु यह समाज द्वारा मान्यता प्रदान करने के हेतु थी।
- कन्या को पति के वरण में स्वतंत्रता न थी।
- पिता की शर्तों के अनुसार पूर्ण योग्यता प्राप्त व्यक्ति ही चुना जा सकता था।
- पूर्व मध्यकाल में भी इस प्रथा के प्रचलित रहने के प्रमाण मिले हैं, जैसा संयोगिता के स्वयंवर से स्पष्ट है।
- आर्यों के आदर्श ज्यों-ज्यों विरमत होते गए, इस प्रथा में कमी होती गई और आज तो स्वयंवर को उपहास का विषय ही माना जाता है।
- आर्यों ने स्त्रियों को संपत्ति का अधिकार मान्य किया था और उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता दी थी।
- इसी पृष्ठभूमि में स्वयंवर प्रथा की प्रतिस्थापना हुई पर धीरे-धीरे यह संकुचित और फिर विलुप्त हो गई।
(रामस्वरूप)
|
|
|
|
|