"मौसम है ओलम्पिकाना -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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अब आइए ज़रा ओलम्पिक के हालात भी देखें- | अब आइए ज़रा ओलम्पिक के हालात भी देखें- | ||
आपने अनेक खेल आयोजन ऐसे देखे होंगे जिनमें कुर्सियाँ ख़ाली पड़ी रहती हैं बावजूद इसके कि वह खेल काफ़ी लोकप्रिय होता है। इस बार ओलम्पिक में भी यही हो रहा है। आप जानते हैं इसका कारण क्या है ? इसका कारण है ओलम्पिक समिति द्वारा बाँटे गए मुफ़्त टिकिट। इन | आपने अनेक खेल आयोजन ऐसे देखे होंगे जिनमें कुर्सियाँ ख़ाली पड़ी रहती हैं बावजूद इसके कि वह खेल काफ़ी लोकप्रिय होता है। इस बार ओलम्पिक में भी यही हो रहा है। आप जानते हैं इसका कारण क्या है ? इसका कारण है ओलम्पिक समिति द्वारा बाँटे गए मुफ़्त टिकिट। इन टिकिटों को प्राप्त करने वाले लोग बहुत कम ही खेलों को देखने जाते हैं केवल परम्परा के रूप में सम्मानार्थ इन्हें टिकिट दी जाती हैं। यदि आप ऐसे किसी आयोजन का टिकिट ख़रीदना चाहें तो टिकिट खिड़की और इंटरनेट पर टिकिट नहीं मिलेगा बल्कि वहाँ सूचित किया जाएगा कि टिकिट बिक चुके हैं। टी.वी. पर आप देखेंगे कि कुर्सियाँ ख़ाली पड़ी हैं। इस अजीब स्थिति का हल अभी तक आयोजकों को नहीं मिला है। ख़ैर हम ज़रा अपने देश के खेलों और खिलाड़ियों की समस्या पर भी कुछ बात कर लें। | ||
हमारे देश में खेल और खिलाड़ियों की उपेक्षा करने की एक पुरानी परंपरा है। इस परंपरा की जड़ में कहीं न कहीं भारत का मौसम और प्रकृति भी है। आइए इस पर चर्चा करें।- | हमारे देश में खेल और खिलाड़ियों की उपेक्षा करने की एक पुरानी परंपरा है। इस परंपरा की जड़ में कहीं न कहीं भारत का मौसम और प्रकृति भी है। आइए इस पर चर्चा करें।- | ||
खेलों के लिए चाहिए मज़बूत शरीर और मज़बूत शरीर जिन चीज़ों से बनता है उनमें मांसपेशियाँ और हड्डियों की मुख्य भूमिका है। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि भारतवासियों की हड्डियाँ उतनी चौड़ी, मज़बूत नहीं हैं जितनी कि यूरोप, [[अमरीका]] और [[अफ़्रीका]] के निवासियों की मानी जाती हैं। मनुष्य का विकास जब सभ्य-मनुष्य के रूप में हो रहा था तो ठंडे देशों में जन-जीवन कठिन था। भोजन के लिए जानवरों का शिकार करना अनिवार्य था। ये जानवर भी कभी-कभी भारी भरकम होते थे और इनका शिकार करना अकेले के वश की बात नहीं थी। इसके लिए 'योजना' और 'दल' बनाने पड़ते थे, तब कहीं जाकर भालू और मॅमथ जैसे जानवर क़ाबू में आते थे। इस भाग-दौड़ से हड्डियाँ और मांसपेशियां मज़बूत होती गईं, साथ ही शारीरिक बल भी बढ़ता गया। जानवर मारा जाता था और पका या अधपका खाया जाता था। इस भोजन को अधिक समय तक संभाल कर रखना संभव नहीं था तो सामूहिक भोज जैसा आयोजन होता था। इन क्रिया-कलापों से 'टीम-भावना' की पद्धति भी विकसित होने लगी। झगड़े तो तब शुरू हुए जब जानवर पालना शुरू हो गया और जानवरों की स्थिति एक संपत्ति के रुप में हो गई। | खेलों के लिए चाहिए मज़बूत शरीर और मज़बूत शरीर जिन चीज़ों से बनता है उनमें मांसपेशियाँ और हड्डियों की मुख्य भूमिका है। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि भारतवासियों की हड्डियाँ उतनी चौड़ी, मज़बूत नहीं हैं जितनी कि यूरोप, [[अमरीका]] और [[अफ़्रीका]] के निवासियों की मानी जाती हैं। मनुष्य का विकास जब सभ्य-मनुष्य के रूप में हो रहा था तो ठंडे देशों में जन-जीवन कठिन था। भोजन के लिए जानवरों का शिकार करना अनिवार्य था। ये जानवर भी कभी-कभी भारी भरकम होते थे और इनका शिकार करना अकेले के वश की बात नहीं थी। इसके लिए 'योजना' और 'दल' बनाने पड़ते थे, तब कहीं जाकर भालू और मॅमथ जैसे जानवर क़ाबू में आते थे। इस भाग-दौड़ से हड्डियाँ और मांसपेशियां मज़बूत होती गईं, साथ ही शारीरिक बल भी बढ़ता गया। जानवर मारा जाता था और पका या अधपका खाया जाता था। इस भोजन को अधिक समय तक संभाल कर रखना संभव नहीं था तो सामूहिक भोज जैसा आयोजन होता था। इन क्रिया-कलापों से 'टीम-भावना' की पद्धति भी विकसित होने लगी। झगड़े तो तब शुरू हुए जब जानवर पालना शुरू हो गया और जानवरों की स्थिति एक संपत्ति के रुप में हो गई। |
13:37, 31 जुलाई 2012 का अवतरण
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