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'''गिद्दा''' [[पंजाब]] में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला लोक नृत्य है। यह एक खुशनुमा नृत्य है, जिसमें एक गोले में बोलियाँ गाई जाती हैं तथा तालियाँ बजाई जाती हैं। दो प्रतिभागी घेरे से निकलकर समर्पण भाव से सस्वर बोली सुनाती हैं व अभिनय करती हैं जबकि शेष समूह में गाती हैं। यह पुनरावृत्ति 3-4 बार होती है। प्रत्येक बार दूसरी टोली होती है, जो एक नई बोली से शुरुआत करती है। | |||
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वक़्त के साथ [[भांगड़ा]] और गिद्दा का स्वरूप बदलता रहा है। किंतु आज भी फ़सल की कटाई के साथ ही ढोल बजने लगता है, ढोल हमेशा से ही पंजाबियों का साथी रहा है। ढोल से धीमे ताल द्वारा मनमोहक संगीत निकलता है। [[वैशाखी]] और [[लोहड़ी]] पर पारम्परिक रूप से स्त्रियाँ भांगड़े में सम्मिलित नहीं होती हैं। वे अलग आँगन में अलाव जलाती हैं तथा सम्मोहक '''गिद्दा नृत्य''' प्रस्तुत करती हैं। | |||
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13:38, 18 नवम्बर 2012 का अवतरण
गिद्दा पंजाब में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला लोक नृत्य है। यह एक खुशनुमा नृत्य है, जिसमें एक गोले में बोलियाँ गाई जाती हैं तथा तालियाँ बजाई जाती हैं। दो प्रतिभागी घेरे से निकलकर समर्पण भाव से सस्वर बोली सुनाती हैं व अभिनय करती हैं जबकि शेष समूह में गाती हैं। यह पुनरावृत्ति 3-4 बार होती है। प्रत्येक बार दूसरी टोली होती है, जो एक नई बोली से शुरुआत करती है।
आधुनिक रूप
वक़्त के साथ भांगड़ा और गिद्दा का स्वरूप बदलता रहा है। किंतु आज भी फ़सल की कटाई के साथ ही ढोल बजने लगता है, ढोल हमेशा से ही पंजाबियों का साथी रहा है। ढोल से धीमे ताल द्वारा मनमोहक संगीत निकलता है। वैशाखी और लोहड़ी पर पारम्परिक रूप से स्त्रियाँ भांगड़े में सम्मिलित नहीं होती हैं। वे अलग आँगन में अलाव जलाती हैं तथा सम्मोहक गिद्दा नृत्य प्रस्तुत करती हैं।
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