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*धनगर लोग जीविकोपार्जन हेतु भेड़-बकरियाँ आदि पालते हैं और उनका [[दूध]] बेचते हैं। हरे-भरे चरागाहों में अपने पशुओं के झुण्ड को लेकर घुमन्तु जीवन जीने वाले ये लोग अपने इष्ट [[देवता]] 'बिरूआ' के जन्म की गाथा गाते हुए नृत्य करते हैं। | *धनगर लोग जीविकोपार्जन हेतु भेड़-बकरियाँ आदि पालते हैं और उनका [[दूध]] बेचते हैं। हरे-भरे चरागाहों में अपने पशुओं के झुण्ड को लेकर घुमन्तु जीवन जीने वाले ये लोग अपने इष्ट [[देवता]] 'बिरूआ' के जन्म की गाथा गाते हुए नृत्य करते हैं। |
17:10, 30 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण
धनगरी गजा नृत्य महाराष्ट्र के प्रसिद्ध लोक नृत्यों में से एक है। यह नृत्य शोलापुर ज़िले की गडरिया जाति के लोगों द्वारा किया जाता है, जिन्हें 'धनगर' कहते हैं। ये लोग भेड़ बकरियाँ चराते हैं और इनकी ज़िंदगी अधिकांश रूप से प्रकृति के आस-पास ही बीतती है। इसके प्रभाव की झलक इनके गीतों में भी दिखाई देती है। प्राय: ये गीत शायरी के रूप में होते हैं।
- धनगर लोग जीविकोपार्जन हेतु भेड़-बकरियाँ आदि पालते हैं और उनका दूध बेचते हैं। हरे-भरे चरागाहों में अपने पशुओं के झुण्ड को लेकर घुमन्तु जीवन जीने वाले ये लोग अपने इष्ट देवता 'बिरूआ' के जन्म की गाथा गाते हुए नृत्य करते हैं।
- कभी-कभी कुछ भावपूर्ण कहानियाँ भी इनके नृत्य का विषय होती हैं।
- वर्ष भर पशुचारन के बाद एक दिन धनगर लोग अपने-अपने इष्टदेव 'बिरूआ' के सम्मान में आयोजित मेले में एकत्र होते हैं।
- यह समय ऐसा होता है, जब वे अपने परिवार और प्रेमीजन के बीच में होते हैं। इसी अवसर पर वे अपने इष्टदेव की प्रीति एवं आशीष प्राप्ति हेतु यह नृत्य करते हैं।
- नृत्य करने वाले नर्तक धोती, अंगरखा, फेटा और हाथों में रंगीन रूमाल लिए ढोल वादक के चतुर्दिक खडे़ होकर नृत्य करते हैं।
- वृत्ताकार घेरे में नृत्यरत नर्तकों के नृत्य की तीव्रता और प्रसन्नता सहज सौन्दर्य को बोध कराती है।[1]
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