"कचिन जाति": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "पृथक " to "पृथक् ") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "जरूर" to "ज़रूर") |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
*कचिनों का अधिकांश भाग जिंगपॉ बोलने वालो का है, और जिंगपॉ चीन में आधिकारिक तौर पर अल्पसंख्यकों की मान्यता प्राप्त [[भाषा|भाषाओं]] में से एक है। | *कचिनों का अधिकांश भाग जिंगपॉ बोलने वालो का है, और जिंगपॉ चीन में आधिकारिक तौर पर अल्पसंख्यकों की मान्यता प्राप्त [[भाषा|भाषाओं]] में से एक है। | ||
*[[ब्रिटिश शासन]] ([[1885]] से [[1947]]) के अंतर्गत, विशेषकर अधिकांश कचिन क्षेत्र सीमांत क्षेत्र के रूप में प्रशासित था, लेकिन [[बर्मा]] की स्वतंत्रता के बाद अधिकतर क्षेत्र, जिसमें कचिनों का निवास था, देश में एक पृथक् अर्द्ध-स्वायत्त इकाई बन गया। | *[[ब्रिटिश शासन]] ([[1885]] से [[1947]]) के अंतर्गत, विशेषकर अधिकांश कचिन क्षेत्र सीमांत क्षेत्र के रूप में प्रशासित था, लेकिन [[बर्मा]] की स्वतंत्रता के बाद अधिकतर क्षेत्र, जिसमें कचिनों का निवास था, देश में एक पृथक् अर्द्ध-स्वायत्त इकाई बन गया। | ||
*परंपरागत कचिन समाज मुख्यतः पहाड़ी [[चावल]] की खेती पर निर्भर था और शेष | *परंपरागत कचिन समाज मुख्यतः पहाड़ी [[चावल]] की खेती पर निर्भर था और शेष ज़रूरतों की पूर्ति लूटपाट और सामंती युद्धों से की जाती थी। | ||
*राजनीतिक सत्ता अधिकांश इलाकों में छोटे-छोटे सरदारों के हाथ में थी, जो समर्थन के लिए अपने निकटतम पैतृक बंधु-बांधव या निकट संबंधियों पर निर्भर रहते थे। | *राजनीतिक सत्ता अधिकांश इलाकों में छोटे-छोटे सरदारों के हाथ में थी, जो समर्थन के लिए अपने निकटतम पैतृक बंधु-बांधव या निकट संबंधियों पर निर्भर रहते थे। | ||
*कचिन लोग पर्वतीय इलाकों में रहते हैं, जहाँ जनसंख्या घनत्व कम है। कचिन अंचल में उपजाऊ घाटियों की कुछ भूमि भी शामिल है, जिनमें म्यांमार के अन्य लोग रहते हैं। | *कचिन लोग पर्वतीय इलाकों में रहते हैं, जहाँ जनसंख्या घनत्व कम है। कचिन अंचल में उपजाऊ घाटियों की कुछ भूमि भी शामिल है, जिनमें म्यांमार के अन्य लोग रहते हैं। |
10:51, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
कचिन जाति पूर्वोत्तर म्यांमार (भूतपूर्व बर्मा) और भारत के सीमांत प्रदेशों- अरूणाचल प्रदेश तथा नागालैंड में बसी हुई है। इस जनजाति के लोग चीन के यून्नात प्रांत में भी बसे हुए हैं। कचिनों की सर्वाधिक संख्या म्यामांर में है, जहाँ इनकी आबादी लगभग 5 लाख, 90 हज़ार है। इन लोगों की संख्या 1 लाख 20, हज़ार चीन में और कुछ हज़ार भारत में भी है। लगभग 7 लाख, 12 हज़ार की संख्या वाले ये लोग तिब्बती-बर्मी समूह की विभिन्न भाषाएँ बोलते हैं और उन्हीं के अनुसार इनका विभेद 'जिंगपॉ' या 'जिंगपो' (चिंगपॉ या चिंगपो) आतसी, मारू (नैगवॉ), लाशी, नुंग (रवांग) और लीसू (यॉयीन) में किया जाता है।
- कचिनों का अधिकांश भाग जिंगपॉ बोलने वालो का है, और जिंगपॉ चीन में आधिकारिक तौर पर अल्पसंख्यकों की मान्यता प्राप्त भाषाओं में से एक है।
- ब्रिटिश शासन (1885 से 1947) के अंतर्गत, विशेषकर अधिकांश कचिन क्षेत्र सीमांत क्षेत्र के रूप में प्रशासित था, लेकिन बर्मा की स्वतंत्रता के बाद अधिकतर क्षेत्र, जिसमें कचिनों का निवास था, देश में एक पृथक् अर्द्ध-स्वायत्त इकाई बन गया।
- परंपरागत कचिन समाज मुख्यतः पहाड़ी चावल की खेती पर निर्भर था और शेष ज़रूरतों की पूर्ति लूटपाट और सामंती युद्धों से की जाती थी।
- राजनीतिक सत्ता अधिकांश इलाकों में छोटे-छोटे सरदारों के हाथ में थी, जो समर्थन के लिए अपने निकटतम पैतृक बंधु-बांधव या निकट संबंधियों पर निर्भर रहते थे।
- कचिन लोग पर्वतीय इलाकों में रहते हैं, जहाँ जनसंख्या घनत्व कम है। कचिन अंचल में उपजाऊ घाटियों की कुछ भूमि भी शामिल है, जिनमें म्यांमार के अन्य लोग रहते हैं।
- परंपरागत कचिन धर्म जीववादी पूर्वज संप्रदाय का एक प्रकार है, जिसमें पशुओं की बलि का प्रचलन हैं। कचिनों में लगभग 10 प्रतिशत ईसाई हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख