"ऋष्यश्रृंग": अवतरणों में अंतर
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'''ऋष्यश्रृंग''' [[हिन्दू]] मान्यताओं और पौराणिक ग्रंथानुसार एक [[कश्यप|काश्यप ऋषि]] थे, जो विभांडक ऋषि के [[पुत्र]] थे। [[लोमपाद|राजा लोमपाद]] की कन्या [[शान्ता]] इनको ब्याही गई थी।<ref>'शान्ता' वास्तव में अयोध्या नरेश दशरथ की पुत्री थी। राजा लोमपाद ने इन्हें पौष्य कन्या के रूप में दशरथ से प्राप्त किया था।</ref> ऋषि ऋष्यश्रृंग ने ही [[दशरथ|राजा दशरथ]] का 'पुत्रेष्टि यज्ञ' सम्पन्न कराया था, जिसके प्रभाव से दशरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए थे।<ref>भागवतपुराण 9.23.8-10</ref> | '''ऋष्यश्रृंग''' [[हिन्दू]] मान्यताओं और पौराणिक ग्रंथानुसार एक [[कश्यप|काश्यप ऋषि]] थे, जो विभांडक ऋषि के [[पुत्र]] थे। [[लोमपाद|राजा लोमपाद]] की कन्या [[शान्ता]] इनको ब्याही गई थी।<ref>'शान्ता' वास्तव में अयोध्या नरेश दशरथ की पुत्री थी। राजा लोमपाद ने इन्हें पौष्य कन्या के रूप में दशरथ से प्राप्त किया था।</ref> ऋषि ऋष्यश्रृंग ने ही [[दशरथ|राजा दशरथ]] का 'पुत्रेष्टि यज्ञ' सम्पन्न कराया था, जिसके प्रभाव से दशरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए थे।<ref>भागवतपुराण 9.23.8-10</ref> | ||
*एक बार स्वर्गीय [[मेनका|अप्सरा मेनका]] को देखकर विभांडक ऋषि का रेत:पात हो गया। उन्हीं के आश्रम में रहने वाली एक मृगी ने जल के साथ उसे भी पी लिया। फलस्वरूप गर्भ रहा और एक पुत्र उत्पन्न हुआ। | *एक बार स्वर्गीय [[मेनका|अप्सरा मेनका]] को देखकर [[विभांडक ऋषि]] का रेत:पात हो गया। उन्हीं के आश्रम में रहने वाली एक मृगी ने जल के साथ उसे भी पी लिया। फलस्वरूप गर्भ रहा और एक पुत्र उत्पन्न हुआ। | ||
*वह मृगी शापभ्रष्ट एक देवकन्या थी। मृगी के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण बालक के सींग भी थे। इसी कारण उसका नाम 'ऋष्यश्रृंग' रखा गया।<ref>भागवतपुराण 11.8.18</ref> | *वह मृगी शापभ्रष्ट एक देवकन्या थी। मृगी के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण बालक के सींग भी थे। इसी कारण उसका नाम 'ऋष्यश्रृंग' रखा गया।<ref>भागवतपुराण 11.8.18</ref> | ||
10:24, 18 मई 2018 का अवतरण
ऋष्यश्रृंग हिन्दू मान्यताओं और पौराणिक ग्रंथानुसार एक काश्यप ऋषि थे, जो विभांडक ऋषि के पुत्र थे। राजा लोमपाद की कन्या शान्ता इनको ब्याही गई थी।[1] ऋषि ऋष्यश्रृंग ने ही राजा दशरथ का 'पुत्रेष्टि यज्ञ' सम्पन्न कराया था, जिसके प्रभाव से दशरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए थे।[2]
- एक बार स्वर्गीय अप्सरा मेनका को देखकर विभांडक ऋषि का रेत:पात हो गया। उन्हीं के आश्रम में रहने वाली एक मृगी ने जल के साथ उसे भी पी लिया। फलस्वरूप गर्भ रहा और एक पुत्र उत्पन्न हुआ।
- वह मृगी शापभ्रष्ट एक देवकन्या थी। मृगी के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण बालक के सींग भी थे। इसी कारण उसका नाम 'ऋष्यश्रृंग' रखा गया।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पौराणिक कोश |लेखक: राणाप्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 72 |