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'''पी. सी. वैद्य''' ([[अंग्रेजी]]; P.C. Vedhya, मृत्यु; [[12 मार्च]], [[2010]], [[गुजरात]], [[जूनागढ़]]) देश के उन गिने-चुने गणितज्ञों में रहे हैं जिन्होंने गणित के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण व दूरगामी योगदान दिया है। इनका पूरा नाम प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य है। वैद्य साहेब न सिर्फ एक मशहूर गणितज्ञ थे बल्कि एक शिक्षाविद भी थे। वे चाहते थे और प्रयास करते थे कि गणित बच्चों के लिए सुगम व रुचिकर बने। वे मानते थे कि गणित सिखाना शायद कठिन है, मगर गणित सीखना कठिन नहीं है क्योंकि गणित तो हमारी संस्कृति का अंग है।<ref name="aa"/>
'''प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य''' ([[अंग्रेजी]]; Prahalad Chunnilal Vaidya'', जन्म- [[23 मई]], [[1918]]; मृत्यु- [[12 मार्च]], [[2010]]) [[भारत]] के उन गिने-चुने गणितज्ञों में से एक रहे, जिन्होंने गणित के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण व दूरगामी योगदान दिया था। वह न सिर्फ एक मशहूर गणितज्ञ थे बल्कि एक शिक्षाविद भी थे। वे चाहते थे और प्रयास करते थे कि गणित बच्चों के लिए सुगम व रुचिकर बने। वे मानते थे कि गणित सिखाना शायद कठिन है, मगर गणित सीखना कठिन नहीं है क्योंकि गणित तो हमारी [[संस्कृति]] का अंग है।
==परिचय==
प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य का जन्म 23 मई, 1918 को [[गुजरात]] के जूनागढ़ जिले के शाहपुर में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भावनगर में संपन्न हुई। गणित में विशेष रुचि होने के कारण उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय से अनुप्रयुक्त गणित में विशेषज्ञता के साथ एम.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की। प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य अपने समय के प्रसिद्ध भौतिकविद और शिक्षाविद विष्णु वासुदेव नार्लीकर से बहुत प्रभावित थे।<ref name="pp">{{cite web |url= https://hindi.thebetterindia.com/13835/prahlad-chunnilal-vaidya-einstein/|title=वह भारतीय गणितज्ञ, जिन्होंने आइंस्टाइन के सिद्धांत का किया सरलीकरण|accessmonthday=29 मई|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= hindi.thebetterindia.com|language=हिंदी}}</ref>
=='वैद्य सॉल्यूशन'==
उस दौर में विष्णु वासुदेव नार्लीकर के साथ कार्य करने वाले शोधार्थियों के समूह की पहचान सापेक्षता केन्द्र के रूप में विख्यात हो चुकी थी। प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य भी उनके दिशा-निर्देश में इस क्षेत्र में शोधकार्य करना चाहते थे। इसलिए वह [[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] गए। वहां उन्होंने विष्णु वासुदेव नार्लीकर के दिशा-निर्देशन में सापेक्षता सिद्धांत पर शोधकार्य शुरू कर दिया तथा ‘वैद्य सॉल्यूशन’ प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त की प्रासंगिकता को मान्यता साठ के दशक में मिली, जब खगोल-विज्ञानियों ने [[ऊर्जा]] के घने, मगर शक्तिशाली उत्सर्जकों की खोज की। जैसे ही सापेक्षतावादी खगोल भौतिकी को मान्यता मिली, वैसे ही ‘वैद्य सॉल्यूशन’ को सहज ही अपना स्थान हासिल हो गया और विज्ञान के क्षेत्र में प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य को ख्याति मिली।
==शिक्षाविद==
प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य एक मशहूर गणितज्ञ होने के साथ ही एक शिक्षाविद भी थे। वह चाहते थे कि गणित बच्चों के लिए सुगम व रुचिकर बने। इसके लिए उन्होंने अनेक प्रयास किए। उनका मानना था कि गणित सिखाना शायद कठिन है, मगर गणित सीखना कठिन नहीं है क्योंकि यह हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। उन्होंने [[गुजराती]] तथा [[अंग्रेज़ी]] में [[विज्ञान]] और गणित की कई प्रसिद्ध पुस्तकों का लेखन किया, जैसे, ‘अखिल ब्राह्मांडमैन’, जिसका अर्थ है सम्पूर्ण ब्रह्मांड में, तथा ‘व्हाट इज मॉडर्न मैथमेटिक्स’।


==संक्षिप्त परिचय==
वर्ष [[1947]] तक प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य ने [[सूरत]], राजकोट, [[मुम्बई]] आदि जगहों पर गणित के शिक्षक के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने अपनी शिक्षा भी जारी रखी। वर्ष [[1948]] में उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय से अपनी पी.एच.डी. पूरी कर ली। अपना रिसर्च कार्य उन्होंने नव स्थापित टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान से किया। यहीं उनकी मुलाकात प्रसिद्ध वैज्ञानिक [[होमी जहांगीर भाभा|डॉ. होमी जहांगीर भाभा]] से हुई थी।<ref name="pp"/>
[[गुजरात]] के [[जूनागढ़]] में जन्मे पी. सी. वैद्य ने [[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] से गणित में पीएच.डी. की और गणित सम्बन्धी अनुसन्धान में लग गए। [[आइंस्टाइन]] के सापेक्षता सिद्धान्त के क्षेत्र में उनका योगदान युगान्तरकारी माना जाता है। आइंस्टाइन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त कुछ निहायत पेचीदा गणितीय समीकरणों के रूप में व्यक्त होता है। इन समीकरणों को हल करना बहुत कठिन है। [[1942]] में पी.सी. वैद्य ने एक विधि विकसित की जो ‘वैद्य मेट्रिक’ के नाम से मशहूर है। इसकी मदद से उन्होंने विकिरण उत्सर्जित करने वाले किसी तारे के गुरुत्वाकर्षण के सन्दर्भ में [[आइंस्टाइन]] के समीकरणों का हल प्रतिपादित किया। उनके इस काम ने आइंस्टाइन के सिद्धान्त को समझने में मदद दी और ‘वैद्य मेट्रिक’ एक महत्वपूर्ण औज़ार बनकर उभरा।<ref name="aa">{{cite web |url=http://www.eklavya.in/magazine-activity/sandarbh-magazines/312-sandarbh-from-issue-61-to-70/sandarbh-issue-68/1352-p-c-vaidya|title= पी.सी. वैद्य|accessmonthday= 13 जुलाई|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.eklavya.in|language=हिन्दी}}</ref>
==समर्पित शिक्षक==
 
कुछ समय बाद मुम्बई छोड़कर प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य अपने गृह राज्य [[गुजरात]] लौट आए। वर्ष [[1948]] में उन्होंने बल्लभनगर के विट्ठल महाविद्यालय में कुछ समय तक शिक्षण कार्य किया। फिर वह गुजरात विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर नियुक्त हुए। वैद्य ने अपना पूरा जीवन एक समर्पित शिक्षक के रूप में बिताया। वह हमेशा खुद को एक गणित शिक्षक कहे जाने पर गर्वान्वित महसूस करते थे। प्रशासनिक प्रतिबद्धताओं के बावजूद वह विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए समय निकाल ही लेते थे।
==गाँधी और पी.सी. वैद्य==
==उच्च पदों पर कार्य==
पी.सी. वैद्य [[गांधी जी|गांधी]] के विचारों से प्रेरित थे और आज़ादी के आन्दोलन में भी शरीक रहे। [[1930]] के दशक में वे अहिंसक व्यायाम संघ से जुड़ गए थे। आज़ादी के बाद वे [[अहमदाबाद]] के [[गुजरात]] विद्यापीठ और वेडछी ([[सूरत]]) के [[गांधी जी|गांधी]] विद्यापीठ के कुलपति भी रहे। गुजरात मेथेमेटिकल सोसायटी के गठन में वैद्य साहेब ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और विक्रम साराभाई कम्यूनिटी साइंस सेंटर के विकास में भी अहम योगदान दिया। [[गुजरात]] में शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे विभिन्न प्रगतिशील प्रयासों को पी. सी. वैद्य का पूरा समर्थन प्राप्त रहा। [[12 मार्च]], [[2010]] को इस महान् गणितज्ञ, गांधीवादी व शिक्षाविद का निधन हो गया।<ref name="aa"/>
वर्ष [[1971]] में उन्हें गुजरात लोकसेवा आयोग का सभापति नियुक्त किया गया। फिर वर्ष [[1977]]-[[1978]] के बीच वह केन्द्रीय लोकसेवा आयोग के भी सदस्य रहे। [[1978]]-[[1980]] के दौरान वह गुजरात विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। वैद्य ने गुजरात गणितीय सोसायटी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विक्रम साराभाई कम्यूनिटी साइंस सेंटर के विकास में भी उनका अहम योगदान था। इंडियन एसोसिएशन फॉर जनरल रिलेटिविटी ऐंड ग्रेविटेशन (आईएजीआरजी) की स्थापना में भी वैद्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। वर्ष [[1969]] में स्थापित इस संस्था के संस्थापक अध्यक्ष सर विष्णु वासुदेव नार्लीकर थे।
 
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प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य को स्वतंत्रता के बाद [[भारत]] में गांधीवादी दर्शन के अनुयायी के रूप में जाना जाता है। प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य [[गांधीजी]] के विचारों से प्रेरित होकर आजादी के आन्दोलन में भी शामिल रहे। उन्होंने गांधीवादी विचारों को अपनाते हुए खादी का कुर्ता और टोपी को धारण किया। उपकुलपति के पद पर रहते हुए भी सरकारी कार का उपयोग करने से मना कर दिया और विश्वविद्यालय आने-जाने के लिए साइकिल का ही उपयोग करते रहे।<ref name="pp"/>  
 
==मृत्यु==
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[[12 मार्च]], [[2010]] को 91 वर्ष की आयु में प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य का निधन हो गया। प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य के योगदान को देखते हुए विज्ञान संचार के लिए समर्पित संस्था विज्ञान प्रसार द्वारा उन पर एक वृत्तचित्र का भी निर्माण किया गया है।
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09:45, 29 मई 2022 का अवतरण

प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य (अंग्रेजी; Prahalad Chunnilal Vaidya, जन्म- 23 मई, 1918; मृत्यु- 12 मार्च, 2010) भारत के उन गिने-चुने गणितज्ञों में से एक रहे, जिन्होंने गणित के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण व दूरगामी योगदान दिया था। वह न सिर्फ एक मशहूर गणितज्ञ थे बल्कि एक शिक्षाविद भी थे। वे चाहते थे और प्रयास करते थे कि गणित बच्चों के लिए सुगम व रुचिकर बने। वे मानते थे कि गणित सिखाना शायद कठिन है, मगर गणित सीखना कठिन नहीं है क्योंकि गणित तो हमारी संस्कृति का अंग है।

परिचय

प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य का जन्म 23 मई, 1918 को गुजरात के जूनागढ़ जिले के शाहपुर में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भावनगर में संपन्न हुई। गणित में विशेष रुचि होने के कारण उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय से अनुप्रयुक्त गणित में विशेषज्ञता के साथ एम.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की। प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य अपने समय के प्रसिद्ध भौतिकविद और शिक्षाविद विष्णु वासुदेव नार्लीकर से बहुत प्रभावित थे।[1]

'वैद्य सॉल्यूशन'

उस दौर में विष्णु वासुदेव नार्लीकर के साथ कार्य करने वाले शोधार्थियों के समूह की पहचान सापेक्षता केन्द्र के रूप में विख्यात हो चुकी थी। प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य भी उनके दिशा-निर्देश में इस क्षेत्र में शोधकार्य करना चाहते थे। इसलिए वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय गए। वहां उन्होंने विष्णु वासुदेव नार्लीकर के दिशा-निर्देशन में सापेक्षता सिद्धांत पर शोधकार्य शुरू कर दिया तथा ‘वैद्य सॉल्यूशन’ प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त की प्रासंगिकता को मान्यता साठ के दशक में मिली, जब खगोल-विज्ञानियों ने ऊर्जा के घने, मगर शक्तिशाली उत्सर्जकों की खोज की। जैसे ही सापेक्षतावादी खगोल भौतिकी को मान्यता मिली, वैसे ही ‘वैद्य सॉल्यूशन’ को सहज ही अपना स्थान हासिल हो गया और विज्ञान के क्षेत्र में प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य को ख्याति मिली।

शिक्षाविद

प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य एक मशहूर गणितज्ञ होने के साथ ही एक शिक्षाविद भी थे। वह चाहते थे कि गणित बच्चों के लिए सुगम व रुचिकर बने। इसके लिए उन्होंने अनेक प्रयास किए। उनका मानना था कि गणित सिखाना शायद कठिन है, मगर गणित सीखना कठिन नहीं है क्योंकि यह हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। उन्होंने गुजराती तथा अंग्रेज़ी में विज्ञान और गणित की कई प्रसिद्ध पुस्तकों का लेखन किया, जैसे, ‘अखिल ब्राह्मांडमैन’, जिसका अर्थ है सम्पूर्ण ब्रह्मांड में, तथा ‘व्हाट इज मॉडर्न मैथमेटिक्स’।

वर्ष 1947 तक प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य ने सूरत, राजकोट, मुम्बई आदि जगहों पर गणित के शिक्षक के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने अपनी शिक्षा भी जारी रखी। वर्ष 1948 में उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय से अपनी पी.एच.डी. पूरी कर ली। अपना रिसर्च कार्य उन्होंने नव स्थापित टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान से किया। यहीं उनकी मुलाकात प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा से हुई थी।[1]

समर्पित शिक्षक

कुछ समय बाद मुम्बई छोड़कर प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य अपने गृह राज्य गुजरात लौट आए। वर्ष 1948 में उन्होंने बल्लभनगर के विट्ठल महाविद्यालय में कुछ समय तक शिक्षण कार्य किया। फिर वह गुजरात विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर नियुक्त हुए। वैद्य ने अपना पूरा जीवन एक समर्पित शिक्षक के रूप में बिताया। वह हमेशा खुद को एक गणित शिक्षक कहे जाने पर गर्वान्वित महसूस करते थे। प्रशासनिक प्रतिबद्धताओं के बावजूद वह विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए समय निकाल ही लेते थे।

उच्च पदों पर कार्य

वर्ष 1971 में उन्हें गुजरात लोकसेवा आयोग का सभापति नियुक्त किया गया। फिर वर्ष 1977-1978 के बीच वह केन्द्रीय लोकसेवा आयोग के भी सदस्य रहे। 1978-1980 के दौरान वह गुजरात विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। वैद्य ने गुजरात गणितीय सोसायटी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विक्रम साराभाई कम्यूनिटी साइंस सेंटर के विकास में भी उनका अहम योगदान था। इंडियन एसोसिएशन फॉर जनरल रिलेटिविटी ऐंड ग्रेविटेशन (आईएजीआरजी) की स्थापना में भी वैद्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। वर्ष 1969 में स्थापित इस संस्था के संस्थापक अध्यक्ष सर विष्णु वासुदेव नार्लीकर थे। == प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य को स्वतंत्रता के बाद भारत में गांधीवादी दर्शन के अनुयायी के रूप में जाना जाता है। प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य गांधीजी के विचारों से प्रेरित होकर आजादी के आन्दोलन में भी शामिल रहे। उन्होंने गांधीवादी विचारों को अपनाते हुए खादी का कुर्ता और टोपी को धारण किया। उपकुलपति के पद पर रहते हुए भी सरकारी कार का उपयोग करने से मना कर दिया और विश्वविद्यालय आने-जाने के लिए साइकिल का ही उपयोग करते रहे।[1]

मृत्यु

12 मार्च, 2010 को 91 वर्ष की आयु में प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य का निधन हो गया। प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य के योगदान को देखते हुए विज्ञान संचार के लिए समर्पित संस्था विज्ञान प्रसार द्वारा उन पर एक वृत्तचित्र का भी निर्माण किया गया है।


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