कर्मा नृत्य
कर्मा नृत्य छत्तीसगढ़ अंचल के आदिवासी समाज का प्रचलित लोक नृत्य है। भादों मास की एकादशी को उपवास के पश्चात करमवृक्ष की शाखा को घर के आंगन या चौगान में रोपित किया जाता है। दूसरे दिन कुल देवता को नवान्न समर्पित करने के बाद ही उसका उपभोग शुरू होता है। कर्मा नृत्य नई फ़सल आने की खुशी में किया जाता है।
- नृत्य के गीत
इस अवसर पर किसी का मन मयूर अहों, अहो हे हे, ओ हा हे हैं, ओ हो हो रे हो, हो, हो रे हो हो रे, ओ हो हाय रे’ आदि रागों पर नृत्य कर उठता है। इसी के साथ ही कर्मा नृत्य भी आरम्भ हो जाता है। इस नृत्य के गीत के प्रकार हैं- झूमर, लॅगड़ा, लहकी, ठाड़ा और रागिनी कर्मा। इनका मूल आधार नर्तकों का अंग संचालन है। जो गीत झूम-झूमकर गाये जाते हैं, वे 'झूमर' कहे जाते है। एक पैर को झुकाकर गाये जाने वाले गीत 'लॅगड़ा', लहराते हुए गाये जाने वाले गीत 'लहकी' कहे जाते हैं। नृत्य की इस शैली में फ़सल काटने का चित्रण मिलता है। 'ठाड़ा' गीत खडे़ होकर गाये जाते हैं और राग-रागनियों से सम्बद्ध गीत रागिनी हैं।[1]
- वेशभूषा तथा वाद्ययंत्र
कर्मा नर्तकों की वेशभूषा अत्यन्त आकर्षक होती है। ये कौड़ियों के बाजूबन्द और सिर पर मोरपंख की कलंगी लगाते हैं। नृत्य में नगाड़ा, ढोलक, मांदर आदि संगत वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं। शरद ऋतु में किया जाने वाला 'छत्तीसगढ़ी करमा' अपने वैशिष्ट्य के कारण सर्वत्र लोकप्रिय है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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