गोवा मुक्ति दिवस
गोवा मुक्ति दिवस
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विवरण | 'गोवा मुक्ति दिवस' भारतीय सेना द्वारा पुर्तग़ालियों के अधिकार से गोवा को मुक्त कराने के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। |
तिथि | 19 दिसम्बर |
विशेष | 30 मई, 1987 को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया था और इस प्रकार गोवा भारतीय गणराज्य का 25वाँ राज्य बना। |
अन्य जानकारी | गोवा मुक्ति के लिए हुए युद्ध में जहाँ 30 पुर्तग़ाली मारे गए, वहीं 22 भारतीय वीरगति को प्राप्त हुए। घायल पुर्तग़ालियों की संख्या 57 थी, जबकि घायल भारतीयों की संख्या 54 थी। इसके साथ ही भारत ने चार हजार, 668 पुर्तग़ालियों को बंदी भी बनाया। |
गोवा मुक्ति दिवस प्रति वर्ष '19 दिसम्बर' को मनाया जाता है। भारत को यूं तो 1947 में ही आज़ादी मिल गई थी, लेकिन इसके 14 साल बाद भी गोवा पर पुर्तग़ाली अपना शासन जमाये बैठे थे। 19 दिसम्बर, 1961 को भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन विजय अभियान' शुरू कर गोवा, दमन और दीव को पुर्तग़ालियों के शासन से मुक्त कराया था।
पुर्तग़ालियों का अधिकार
पुर्तग़ाल ने गोवा पर अपना कब्ज़ा मजबूत करने के लिये यहाँ नौसेना के अड्डे बनाए थे। गोवा के विकास के लिये पुर्तग़ाली शासकों ने प्रचुर धन खर्च किया। गोवा का सामरिक महत्त्व देखते हुए इसे एशिया में पुर्तग़ाल शसित क्षेत्रों की राजधानी बना दिया गया। अंग्रेज़ों के भारत आगमन तक गोवा एक समृद्ध राज्य बन चुका था तथा पुर्तग़ालियों ने पूरी तरह गोवा को अपने साम्राज्य का एक हिस्सा बना लिया था। पुर्तग़ाल में एक कहावत आज भी है कि "जिसने गोवा देख लिया, उसे लिस्बन[1] देखने की जरूरत नहीं है।" सन 1900 तक गोवा अपने विकास के चरम पर था। उसके बाद के वर्षों में यहाँ हैजा, प्लेग जैसी महामारियाँ शुरू हुईं, जिसने लगभग पुरे गोवा को बर्बाद कर दिया। अनेकों हमले हुए, लेकिन गोवा पर पुर्तग़ाली कब्ज़ा बरकरार रहा। 1809-1815 के बीच नेपोलियन ने पुर्तग़ाल पर कब्ज़ा कर लिया और एंग्लो पुर्तग़ाली गठबंधन के बाद गोवा स्वतः ही अंग्रेज़ी अधिकार क्षेत्र में आ गया। 1815 से 1947[2] तक गोवा में अंग्रेज़ों का शासन रहा और पूरे हिंदुस्तान की तरह अंग्रेज़ों ने वहां के भी संसाधनों का जमकर शोषण किया।[3]
गोवा सत्याग्रह
इससे पूर्व गोवा के राष्ट्रवादियों ने 1928 में मुंबई में 'गोवा कांग्रेस समिति' का गठन किया। यह डॉ. टी. बी. कुन्हा की अध्यक्षता में किया गया था। डॉ. टी. बी. कुन्हा को गोवा के राष्ट्रवाद का जनक माना जाता है। बाद के दो दशकों मे कुछ खास नहीं हुआ। सन 1946 में एक प्रमुख भारतीय समाजवादी डॉ. राम मनोहर लोहिया गोवा में पहुंचे। उन्होंने नागरिक अधिकारों के हनन के विरोध में गोवा में सभा करने की चेतावनी दे डाली। मगर इस विरोध का दमन करते हुए उनको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। भारत-पुर्तग़ाल युद्ध की नींव भी अंग्रेज़ों ने डाली।
पंडित नेहरू का आग्रह
आज़ादी के समय पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पुर्तग़ालियों से ये मांग रखी कि गोवा को भारत के अधिकार में दे दिया जाए। वहीं पुर्तग़ाल ने भी गोवा पर अपना दावा ठोक दिया। अंग्रेज़ों की दोगली नीति व पुर्तग़ाल के दबाव के कारण गोवा पुर्तग़ाल को हस्तांतरित कर दिया गया। गोवा पर पुर्तग़ाली अधिकार का तर्क यह दिया गया था कि गोवा पर पुर्तग़ाल के अधिकार के समय कोई भारत गणराज्य अस्तित्व में नहीं था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन के बार-बार के आग्रह के बावजूद पुर्तग़ाली भारत को छोड़ने तथा झुकने को तैयार नहीं हुए। उस समय दमन-दीव भी गोवा का हिस्सा था। पुर्तग़ाली यह सोचकर बैठे थे कि भारत शक्ति के इस्तेमाल की हमेशा निन्दा करता रहा है, इसलिए वह हमला नहीं करेगा। उनके इस हठ को देखते हुए जवाहर लाल नेहरू और कृष्ण मेनन को कहना पड़ा कि यदि सभी राजनयिक प्रयास विफल हुए तो भारत के पास ताकत का इस्तेमाल ही एकमात्र विकल्प रह जाएगा।[4]
भारतीय सेना की तैयारी
पुर्तग़ाली जब किसी तरह नहीं माने तो नवम्बर, 1961 में भारतीय सेना के तीनों अंगों को युद्ध के लिए तैयार हो जाने के आदेश मिले। मेजर जनरल के.पी. कैंडेथ को '17 इन्फैंट्री डिवीजन' और '50 पैरा ब्रिगेड' का प्रभार मिला। भारतीय सेना की तैयारियों के बावजूद पुर्तग़ालियों पर किसी भी प्रकार प्रभाव नहीं पड़ा। भारतीय वायु सेना के पास उस समय छह हंटर स्क्वाड्रन और चार कैनबरा स्क्वाड्रन थे।
गोवा मुक्ति अभियान
गोवा अभियान में हवाई कार्रवाई की जिम्मेदारी एयर वाइस मार्शल एरलिक पिंटो के पास थी। सेना ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देते हुए आखिरकार 2 दिसम्बर को 'गोवा मुक्ति' का अभियान शुरू कर दिया। वायु सेना ने 8 दिसम्बर और 9 दिसम्बर को पुर्तग़ालियों के ठिकाने पर अचूक बमबारी की। भारतीय थल सेना और वायु सेना के हमलों से पुर्तग़ाली तिलमिला गए। इस प्रकार 19 दिसम्बर, 1961 को तत्कालीन पुर्तग़ाली गवर्नर मैन्यू वासलो डे सिल्वा ने भारत के सामने समर्पण समझौते पर दस्तखत कर दिए। इस तरह भारत ने गोवा और दमन दीव को मुक्त करा लिया और वहाँ से पुर्तग़ालियों के 451 साल पुराने औपनिवेशक शासन को खत्म कर दिया। पुर्तग़ालियों को जहाँ भारत के हमले का सामना करना पड़ रहा था, वहीं दूसरी ओर उन्हें गोवा के लोगों का रोष भी झेलना पड़ रहा था।
गोवा और दमन-दीव में हर साल '19 दिसम्बर' को 'गोवा मुक्ति दिवस' मनाया जाता है। गोवा मुक्ति के लिए हुए युद्ध में जहाँ 30 पुर्तग़ाली मारे गए, वहीं 22 भारतीय वीरगति को प्राप्त हुए। घायल पुर्तग़ालियों की संख्या 57 थी, जबकि घायल भारतीयों की संख्या 54 थी। इसके साथ ही भारत ने चार हजार, 668 पुर्तग़ालियों को बंदी भी बनाया था।[4]
पूर्ण राज्य का दर्जा
बाद में गोवा में चुनाव हुए और 20 दिसम्बर, 1962 को श्री दयानंद भंडारकर गोवा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। गोवा के महाराष्ट्र में विलय की भी बात चली, क्योंकि गोवा महाराष्ट्र के पड़ोस में ही स्थित था। वर्ष 1967 में वहाँ जनमत संग्रह हुआ और गोवा के लोगों ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में रहना पसंद किया। कालांतर में 30 मई, 1987 को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया और इस प्रकार गोवा भारतीय गणराज्य का 25वाँ राज्य बना।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुर्तग़ाल की वर्तमान राजधानी
- ↑ भारत की आजादी
- ↑ 3.0 3.1 गोवा मुक्ति का युद्ध/भारत पुर्तग़ाल युद्ध (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 19 दिसम्बर, 2014।
- ↑ 4.0 4.1 आखिर पुर्तग़ालियों को छोड़ना पड़ा गोवा, दमन और दीव (हिन्दी) समय लाइव। अभिगमन तिथि: 19 दिसम्बर, 2014।
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