बड़ा उदासीन अखाड़ा (सिक्ख)

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श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा (अंग्रेज़ी: Shri Panchayati Bada Udasin Akhada) का स्थान कृष्णनगर, कीडगंज, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में है। यह उदासीन सम्प्रदाय का नानाशाही अखाड़ा है। इस अखाड़े का उद्देश्‍य सेवा करना है। अखाड़े में केवल 4 महंत होते हैं जो हमेशा सेवा में लगे रहते हैं। देश के विभिन्न राज्यों में अखाड़े की करीब 1600 शाखाएं हैं। यह अखाड़ा देश के कई हिस्सों में स्कूल, काॅलेज, अस्पताल और क्लीनिक का संचालन कर रहा है।

स्थापना

श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा की स्थापना 1825 ईस्वी में बसंत पंचमी के दिन हरिद्वार में हर की पौड़ी पर की गई थी। लगभग 200 सौ साल पहले जब इस अखाड़े की नींव रखी गई, तो गंगा तट पर देश के तमाम साधु-संतों का जमावड़ा लगा था। सनातन धर्म के प्रचार- प्रसार और लोक कल्याण के उद्देश्य से इस अखाड़े की नींव रखी गई थी। आज भी यह अखाड़ा सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के साथ समाज सेवा के कार्यों में लगा है। इस अखाड़े के पथ प्रदर्शक शिव स्वरूप उदासीन आचार्य जगतगुरु चंद्र देव महाराज थे और संस्थापक निर्वाण बाबा प्रीतम दास महाराज थे।[1]

स्कूल, काॅलेज और अस्पताल का संचालन

यह अखाड़ा देश के कई हिस्सों में स्कूल, काॅलेज, अस्पताल और क्लीनिक का संचालन कर रहा है। अखाड़े की ओर से निशुल्क शिक्षा और चिकित्सा देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों को मुहैया कराई जा रही है। साथ ही अखाड़ा साधु-संतों को भी जोड़ने का काम करता है, जिससे कि देश के लोगों को भारतीय संस्कृति और सभ्यता से जोड़ा जा सके। अखाड़े में महंत और महामंडलेश्वर का पद होता है, जो देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर सनातम धर्म का प्रचार-प्रसार करते हैं। उत्तराखंड के हरिद्वार में अखाड़े की ओर से संस्कृत विद्यालय के साथ डिग्री कॉलेज और एलोपैथिक क्लीनिक खोला गया है। वहीं वाराणसी में आयुर्वेदिक चिकित्सालय, प्रयागराज में होमियोपैथी क्लीनिक खोला गया है।

इष्ट देवता

बड़ा उदासीन अखाड़ा के इष्ट देव शिव स्वरूप भगवान चंद्रदेव हैं। चंद्रदेव उदासीन संप्रदाय के 165वें आचार्य भी हुए थे। अखाड़े से जुड़े सभी लोग और अखाड़े के साधु-संत उन्हीं की आराधना करते हैं। अखाड़े के साधु-संत इष्ट देव के बताए रास्ते पर चलकर मानव सेवा का कार्य करते हैं। इस अखाड़े में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले कई संत-महंत हैं, जिनमें से डॉ. भरत दास महाराज है। वह अयोध्या के रानोपाली आश्रम में रहते हैं।[1]

महंत क्रम

इस अखाड़े में चार पंगतों में चार महंत इस क्रम से होते हैं-

  1. अलमस्तजी का पंक्ति का
  2. गोविंद साहबजी का पंक्ति का
  3. बालूहसनाजी की पंक्ति का
  4. भगत भगवानजी की परंपरा का[2]

इन चारों महंतों को फैसले का अखाड़ा के सभी साधु-संत पालन करते है। कुम्भ और महाकुंभ मेले में अखाड़े की ओर से निरंतर भंडारा चलाने की परंपरा है। पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन का उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा के साथ ही लोक कल्याण कारी काम करना है। अखाड़े की ओर से निशुल्क शिक्षा और चिकित्सा के साथ ही लोगों के रहने के लिए धर्मशाला का भी निर्माण कराया गया है।

क्या है उदासीन संप्रदाय

महंत कोठारी शिनावनंद महाराज के अनुसार पौराणिक विचारधारा और विश्वास के अनुसार जगत की रचना परमपिता परमेश्वर ब्रह्मा ने की है और प्रलय भी उन्हीं की इच्छा से होगा। उस परमब्रह्म को मानने वाले, उसमें विश्वास और आस्था रखने वाले, जो मन से परब्रह्म में लीन हो जाए। उसे ही उदासीन कहा जाता है। उन्होंने बताया कि, जो व्यक्ति सांसारिक वासनाओं और मोह माया से दूर होकर ब्रह्म का चिंतन और ध्यान करता है। उसे उदासीन कहा जाता है। मध्य काल में जब उदासीन परंपरा विलुप्त होने लगी, तो अविनाशी मुनि ने इस परंपरा को फिर से जीवित किया और भगवान चंद्र देव ने इस परंपरा को मजबूत किया।[1]

शाखाएं

देश के विभिन्न राज्यों में अखाड़े की करीब 1600 शाखाएं देश के विभिन्न राज्यों में है। उत्तर प्रदेश में रवींद्रपुरि, गोपीगंज, वाराणसी और वृंदावनउत्तराखंड में हरिद्वार के कनखल में और बिहार के गया, नालंदा, मुंगेर और भागलपुर में। हरियाणा के कुरूक्षेत्र और फरीदाबाद में। वहीं पंजाब के पटियाला और होशियारपुर में, मध्य प्रदेश में नदी दरवाजा उज्जैन और बड़ा नगर उज्जैन में। महाराष्ट्र के त्रयंबकेश्वर नासिक, आंध्र प्रदेश के अनंतपेट गुंटूर में। वहीं गुजरात के भूतनाथ व समडियाला भावनगर में और हैदराबाद में अखाड़े की शाखा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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