आए हमको ज्ञान सिखाने,
ऊधो प्रेम मर्म क्या जानो.
पोथी पढ़ना व्यर्थ गया सब
जब ढाई आखर न जानो.
दूर कहाँ हमसे कब कान्हा,
प्रतिपल आँखों में बसता है.
प्रेम विरह में तपत रहत तन,
लेकिन मन शीतल रहता है.
तुमने प्रेम किया कब ऊधव,
मीठी विरह कशक क्या जानो.
नहीं ज्ञान को जगह तुम्हारे,
रग रग कृष्ण प्रेम पूरित है.
प्राण हमारे गए श्याम संग,
इंतजार में तन जीवित है.
केवल ज्ञान नदी सूखी सम,
प्रेम हृदय का भी पहचानो.
आयेंगे वापिस कान्हा भी,
यही आस काफ़ी जीवन को.
मुरली स्वर गूंजत अंतस में,
नहीं और स्वर भाए मन को.
ऊधव सीखो कुछ गोपिन से,
प्रेम भाव की महिमा जानो.