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कैलाश शर्मा जी की 'श्रीमद्भगवद्गीता' (भाव पद्यानुवाद)’ पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। ब्लॉग लेखन के अतिरिक्त विभिन्न पत्र/पत्रिकाओं, काव्य-संग्रहों में भी इनकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं।
अब न चढ़े कोई भी रंग सखी री।
अपने रंग रंगी कान्हा ने, चढ़े न दूजो रंग सखी री।
तन का रंग तो छुट भी जाये, मन का रंग न धुले सखी री।
अब तो श्याम रंग ही भावे, श्याम रंग मैं रंगी सखी री।
कोई जतन नजर न आवे, कैसे छूटे यह रंग सखी री।
क्यों खेलन को आयी होली, कैसे घर मैं जाऊँ सखी री।
अब तो श्याम चरण बस जाऊँ, दीखे न कोई ठांव सखी री।