अग्नि अखाड़ा, शैव
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श्री पंचदशनाम पंचअग्नि अखाड़ा (अंग्रेज़ी: Shri Panchdashnaam Panchagni Akhada) के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना सन 1957 में हुई थी, हालांकि इस अखाड़े के संत इसे सही नहीं मानते। इसका केंद्र गिरनार की पहाड़ी पर है। इस अखाड़े के साधु नर्मदा-खण्डी, उत्तरा-खण्डी व नैस्टिक ब्रह्मचारी में विभाजित हैं।
- शैव संप्रदाय के जूना, आह्वान सहित अन्य अखाड़ों की अपेक्षा श्री पंचअग्नि अखाड़े की परंपरा बिलकुल अलग है। शैव संप्रदाय का होते हुए भी इस अखाड़े की तमाम चीजें नागा सन्यासियों से तनिक भी मेल नहीं खाती।
- पहले तो यहां नागा नहीं ब्रह्मचारी संत बनाए जाते हैं। दूसरे इस अखाड़े के ब्रह्मचारी संत धूनी नहीं रमाते, न किसी तरह का मादक पदार्थ ही ग्रहण करते हैं। अग्नि अखाड़े की आराध्य देव माता गायत्री हैं।[1]
- अग्नि अखाड़े में ब्रह्मचारी संतों की संख्या सीमित है। यहां हर कोई संत नहीं हो सकता। उसका ब्राह्मण होना आवश्यक है। ब्रह्मचारी बनाने की लंबी प्रक्रिया के तहत संतों के सिर पर सिखा होती है। साथ ही जनेऊ धारण करते हैं।
- ब्रह्मचारी को गायत्री मंत्र की दीक्षा की जाती है। खास यह कि इस अखाड़े के ज्यादातर ब्रह्मचारी संत भंडारा या घरों में तैयार भोजन ग्रहण नहीं करते। अग्नि अखाड़े के सचिव श्रीमहंत स्वामी कैलाशानंद जी का कहना है कि ब्रह्मचारी संत स्वपाकी होने के कारण स्वयं भोजन तैयार कर ग्रहण करते हैं।
- ब्रह्मचारी संत की पहचान सिर पर सिखा और बदन पर जनेऊ से होती है। ब्रह्मचारी संत 16 माला गायत्री जप करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ धूनी नहीं रमाते श्री शंभु पंच अग्नि अखाड़े के साधु-संतh (हिंदी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 23 सितम्बर, 2021।