भवानी सिंह
ब्रिगेडियर भवानी सिंह (अंग्रेज़ी: Brigadier Bhawani Singh, जन्म- 22 अक्टूबर, 1931; मृत्यु- 17 अप्रॅल, 2011) जयपुर के महाराजा थे। उन्हें भारत-पाक युद्ध 1971 में बांग्लादेश युद्ध में वीरोचित शौर्य के सम्मानस्वरूप 1972 में 'महावीर चक्र' प्रदान किया गया था। महाराजा सवाई भवानी सिंह 24 जून 1970 से 28 दिसम्बर 1971 तक जयपुर के महाराजा रहे। इसके बाद उन्होंने भारतीय सेना में सेवा की। उनको सेवानिवृत्त होने के बाद ब्रिगेडियर के पद से सम्मानित किया गया।
परिचय
सवाई भवानी सिंह जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय के घर जन्मे थे। महाराजा भवानी सिंह जयपुर महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय की पहली पत्नी महारानी मरुधर कंवर देवी से पैदा हुए थे। उनका जन्म 22 अक्टूबर, 1931 को हुआ था। महाराजा भवानी सिंह के जन्म पर पूरे शाही परिवार में एक बड़ा जश्न बनाया गया था, क्योंकि बहुत सालों बाद जयपुर के महाराजा को पुत्र की प्राप्ति हुई थी। ऐसा बताया जाता है कि जयपुर में कई पीढ़ियों बाद किसी पुरुष वारिस का जन्म हुआ था। इससे पहले के कई महाराजाओं को गोद लेकर महाराजा बनाया गया था।[1]
उपनाम
भवानी सिंह का जन्म समारोह पूरे धूमधाम के साथ मनाया गया था। उस समय अनगिनत शैंपेन की बोतलें खोली गई थीं, जिससे चारों तरफ़ बुलबुले हो गए थे। इस कारण से जयपुर के महाराजा ने भवानी सिंह जी का उप नाम ‘बुलबुले’ रख दिया था।
महावीर चक्र
महाराजा सवाई भवानी सिंह भारतीय सेना में भर्ती होकर देश सेवा करना चाहते थे। शिक्षा पूरी होने के बाद वे 1951 में तीसरी केवलरी रेजिमेंट में बतौर सैकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशंड हुए। 1954 में वे राष्ट्रपति के अंगरक्षक के रूप में चुने गए। 1970 में उन्होंने बांग्लादेश मुक्ति युद्ध से पहले प्रशिक्षण ‘मुक्तिवाहिनी’ में भी सेना की मदद की थी। 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए वॉर में इनके नेतृत्व में 10वीं रेजिमेंट ने पाकिस्तान के सिंध प्रांत में छाछरो पर कब्जा किया था। सेना में उनके योगदान के लिए उन्हें दूसरा सबसे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। 1972 में उन्होंने सेना से स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली थी।
भवानी सिंह जी सेना से बतौर कर्नल सेवानिवृति हुए, लेकिन 1974 में ‘ऑपरेशन पवन’ के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के विशेष अनुरोध पर श्रीलंका गए और 10वीं पैरा रेजीमेंट का मनोबल बढ़ाने में सफल रहे। श्रीलंका से लौटने के बाद उन्हें सेवानिवृत ब्रिगेडियर रैंक से सम्मानित किया गया था। इसके बाद उन्होंने 1994-1997 तक ब्रुनेई में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में सेवा की।
सबसे अमीर राजा
भवानी सिंह के पिता सवाई मान सिंह द्वितीय की 1970 में असामयिक मृत्यु के बाद ब्रिगेडियर सवाई भवानी सिंह 24 जून, 1970 को जयपुर की गद्दी पर बैठे थे। इंदिरा गांधी सरकार ने 1971 में महाराजा का ख़िताब भारत के संविधान के 26वें संशोधन में समाप्त कर दिया था। 1971 तक सभी रियासतों को विशेषाधिकार प्राप्त थे। ये आजादी के बाद सबसे अमीर राजाओं में से एक थे।[1]
लोकसभा चुनाव
ब्रिगेडियर सवाई भवानी सिंह राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और उन्होंने सन 1989 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन वे भाजपा नेता गिरधारी लाल भार्गव से मात खा गए थे। उसके बाद महाराजा ने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली थी। उनकी सौतेली मां और लोगों के बीच लोकप्रिय जयपुर की महारानी गायत्री देवी भी राजनीति में शामिल थीं। महारानी गायत्री देवी उनके पिता की तीसरी पत्नी थीं। गायत्री देवी ने लगातार 5 बार लोकसभा चुनाव जीता था।
उत्तराधिकारी
महाराजा सवाई भवानी सिंह का विवाह सिरमूर के राजा महाराजा राजेंद्र प्रकाश की बेटी पद्मिनी देवी से 10 मार्च 1966 को हुआ था। वह एक बेटी के पिता बनें। बेटी दीया कुमारी सवाई माधोपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। महाराजा ने अपने बेटी के बड़े पुत्र को नवंबर 2002 को गोद लिया। जिसे उनके बाद में जयपुर के महाराजा का ताज पहनाया गया। महाराजा सवाई भवानी सिंह के गोद लिए दत्तक पुत्र और बेटी राजकुमारी दीया कुमारी के बड़े बेटे पद्मनाभ को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 जयपुर में बरसों साल बाद जन्मा था वारिस, राजपरिवार कल्चर के आखिरी राजा थे ब्रिगेडियर भवानी सिंह (हिंदी) chaltapurza.com। अभिगमन तिथि: 24 अक्टूबर, 2022।
बाहरी कड़ियाँ
- ये शख्स 12 साल में बना था जयपुर का महाराज, करोड़ प्रॉपर्टी का है मालिक
- ब्रिगेडियर स्वर्गीय एच.एच. महाराजा सवाई भवानी सिंह के स्मरणोत्सव पर
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