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इस अभयारण्य में पर्यटन विभाग द्वारा ठहरने और उद्यान में भ्रमण करने की व्यवस्था है। उद्यान के अन्दर ही लॉज, कैन्टीन व लाइब्रेरी हैं। उद्यान कर्मचारियों के आवास भी यहीं हैं। लाइब्रेरी में वन्य जीवों से संबंधित अनेक पुस्तकें रखी हैं। पशु-पक्षी प्रेमी यहाँ बैठे घंटों अध्ययन करते रहते हैं। यहाँ के लॉजों के सामने लकड़ी के मचान बने हैं, जिनमें लकड़ियों की सीढियों द्वारा चढ़ा जाता है और बैठने के लिए कुर्सियों की व्यवस्था है। शाम के समय सैलानी यहाँ बैठकर दूरबीन से दूर-दूर तक फैले प्राकृतिक सौन्दर्य तथा अभयारण्य में स्वच्छंद विचरण करते वन्य जीवों को देख सकते हैं। सैलानी यहाँ आकर प्राकृतिक सौन्दर्य का जी भर कर आनन्द उठा सकते हैं। यहाँ के वनरक्षक ताकीद कर जाते हैं कि देर रात तक बाहर न रहें और न ही रात के समय कमरों से बाहर निकलें। ऐसी ही हिदायतें यहाँ जगह-जगह पर लिखी हुई भी हैं। इसकी वजह है कभी-कभी रात के समय अक्सर जंगली हाथियों के झुंड या कोई खूंखार जंगली जानवर यहाँ तक आ जाते हैं।<ref name="ab"/>
 
इस अभयारण्य में पर्यटन विभाग द्वारा ठहरने और उद्यान में भ्रमण करने की व्यवस्था है। उद्यान के अन्दर ही लॉज, कैन्टीन व लाइब्रेरी हैं। उद्यान कर्मचारियों के आवास भी यहीं हैं। लाइब्रेरी में वन्य जीवों से संबंधित अनेक पुस्तकें रखी हैं। पशु-पक्षी प्रेमी यहाँ बैठे घंटों अध्ययन करते रहते हैं। यहाँ के लॉजों के सामने लकड़ी के मचान बने हैं, जिनमें लकड़ियों की सीढियों द्वारा चढ़ा जाता है और बैठने के लिए कुर्सियों की व्यवस्था है। शाम के समय सैलानी यहाँ बैठकर दूरबीन से दूर-दूर तक फैले प्राकृतिक सौन्दर्य तथा अभयारण्य में स्वच्छंद विचरण करते वन्य जीवों को देख सकते हैं। सैलानी यहाँ आकर प्राकृतिक सौन्दर्य का जी भर कर आनन्द उठा सकते हैं। यहाँ के वनरक्षक ताकीद कर जाते हैं कि देर रात तक बाहर न रहें और न ही रात के समय कमरों से बाहर निकलें। ऐसी ही हिदायतें यहाँ जगह-जगह पर लिखी हुई भी हैं। इसकी वजह है कभी-कभी रात के समय अक्सर जंगली हाथियों के झुंड या कोई खूंखार जंगली जानवर यहाँ तक आ जाते हैं।<ref name="ab"/>
 
====कैसे पहुँचें====
 
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जिम कोर्बेट राष्ट्रीय उद्यान समुद्र तल से 400 से 1100 मीटर तक की ऊँचाई पर फैला है। इसका सबसे ऊँचा क्षेत्र कांडा है। इस उद्यान में घूमने का सबसे अच्छा मौसम [[15 नवम्बर]] से [[15 जून]] है। इसी दौरान यह सैलानियों के लिए खुला रहता है। यहाँ पहुँचने के लिए दो रेलवे स्टेशन हैं- रामनगर और हल्द्वानी। रामनगर से 'धिकाला'<ref>पार्क का मुख्य विश्राम गृह</ref> के लिए 47 कि.मी. की पक्की सड़क है। उद्यान [[दिल्ली]] से मात्र 240 किलोमीटर दूर है। सड़क मार्ग से 290 किलोमीटर है। बसों, टैक्सियों और कार द्वारा यहाँ 5-6 घंटे में पहुँचा जा सकता है।
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जिम कोर्बेट राष्ट्रीय उद्यान समुद्र तल से 400 से 1100 मीटर तक की ऊँचाई पर फैला है। इसका सबसे ऊँचा क्षेत्र कांडा है। इस उद्यान में घूमने का सबसे अच्छा मौसम [[15 नवम्बर]] से [[15 जून]] है। इसी दौरान यह सैलानियों के लिए खुला रहता है। यहाँ पहुँचने के लिए दो रेलवे स्टेशन हैं- रामनगर और [[हल्द्वानी]]। रामनगर से 'धिकाला'<ref>पार्क का मुख्य विश्राम गृह</ref> के लिए 47 कि.मी. की पक्की सड़क है। उद्यान [[दिल्ली]] से मात्र 240 किलोमीटर दूर है। सड़क मार्ग से 290 किलोमीटर है। बसों, टैक्सियों और कार द्वारा यहाँ 5-6 घंटे में पहुँचा जा सकता है।
 
==सरकार का संरक्षण==
 
==सरकार का संरक्षण==
 
भारत सरकार ने [[1935]] में  वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम के तहत देशभर में राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के नेटवर्क में उनके आवास का संरक्षण किया है। [[1973]] में जब [[बाघ]] परियोजनाओं की शुरूआत की गई थी, उस समय 14 राज्यों में 23 आरक्षित वन क्षेत्र बनाए गए थे। बाद में दो और क्षेत्रों को इसके अन्तर्गत लाया गया, जिससे अब इनकी संख्या 25 हो गई है। इसके अन्तर्गत [[काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान|काजीरंगा]], [[दुधवा राष्ट्रीय उद्यान|दुधवा]], [[रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान|रणथम्भौर]], [[सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य|सरिस्का]], [[बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान|बांदीपुर]], [[कान्हा राष्ट्रीय उद्यान|कान्हा]], [[सुन्दरवन राष्ट्रीय उद्यान|सुन्दरवन]] आदि अभयारण्यों की स्थापना की गई। [[1993]] में जिम कार्बेट पार्क इस योजना के तहत आया। वैज्ञानिक, आर्थिक, सौन्दर्यपरक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय मूल्यों की दृष्टि से [[भारत]] में वन्य जीवों की व्यावहारिक संख्या बनाए रखना तथा लोगों के लाभ, शिक्षा और मनोरंजन के लिए एक राष्ट्रीय विरासत के रूप में जैविक महत्व के ऐसे क्षेत्रों को सदैव के लिए सुरक्षित बनाए रखना इस योजना का मुख्य उद्देश्य है।<ref name="ab"/>
 
भारत सरकार ने [[1935]] में  वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम के तहत देशभर में राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के नेटवर्क में उनके आवास का संरक्षण किया है। [[1973]] में जब [[बाघ]] परियोजनाओं की शुरूआत की गई थी, उस समय 14 राज्यों में 23 आरक्षित वन क्षेत्र बनाए गए थे। बाद में दो और क्षेत्रों को इसके अन्तर्गत लाया गया, जिससे अब इनकी संख्या 25 हो गई है। इसके अन्तर्गत [[काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान|काजीरंगा]], [[दुधवा राष्ट्रीय उद्यान|दुधवा]], [[रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान|रणथम्भौर]], [[सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य|सरिस्का]], [[बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान|बांदीपुर]], [[कान्हा राष्ट्रीय उद्यान|कान्हा]], [[सुन्दरवन राष्ट्रीय उद्यान|सुन्दरवन]] आदि अभयारण्यों की स्थापना की गई। [[1993]] में जिम कार्बेट पार्क इस योजना के तहत आया। वैज्ञानिक, आर्थिक, सौन्दर्यपरक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय मूल्यों की दृष्टि से [[भारत]] में वन्य जीवों की व्यावहारिक संख्या बनाए रखना तथा लोगों के लाभ, शिक्षा और मनोरंजन के लिए एक राष्ट्रीय विरासत के रूप में जैविक महत्व के ऐसे क्षेत्रों को सदैव के लिए सुरक्षित बनाए रखना इस योजना का मुख्य उद्देश्य है।<ref name="ab"/>

06:39, 11 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

जंगली हाथियों का झुंड, जिम कोर्बेट राष्ट्रीय पार्क

जिम कोर्बेट राष्ट्रीय पार्क दिल्ली से 240 कि.मी. उत्तर-पूर्व में स्थित एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। यह राष्ट्रीय अभयारण्य उत्तरांचल राज्य के नैनीताल ज़िले में रामनगर शहर के निकट एक विशाल क्षेत्र को घेर कर बनाया गया है। यह गढ़वाल और कुमाऊँ के बीच रामगंगा नदी के किनारे लगभग 1316 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इस पार्क का मुख्य कार्यालय रामनगर में है और यहाँ से परमिट लेकर पर्यटक इस उद्यान में प्रवेश करते हैं। जब पर्यटक पूर्वी द्वार से उद्यान में प्रवेश करते हैं तो छोटे-छोटे नदी-नाले, शाल के छायादार वृक्ष और फूल-पौधों की एक अनजानी सी सुगन्ध उनका मन मोह लेती है। पर्यटक इस प्राकृतिक सुन्दरता में सम्मोहित सा महसूस करता है।

इतिहास

इस पार्क का इतिहास काफ़ी समृद्ध है। कभी यह पार्क टिहरी गढ़वाल के शासकों की निजी सम्पत्ति हुआ करता था। 'गोरखा आन्दोलन' के दौरान 1820 ई. के आसपास राज्य के इस हिस्से को ब्रिटिश शासकों को उसके सहयोग के लिए सौंप दिया गया था। अंग्रेज़ों ने इस पार्क का लकड़ी के लिए काफ़ी दोहन किया और रेलगाड़ियों की सीटों के लिए टीक के पेड़ों को भारी संख्या में काटा। पहली बार मेजर रैमसेई ने इसके संरक्षण की व्यापक योजना तैयार की। 1879 में वन विभाग ने इसे अपने अधिकार में ले लिया और संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया। 1934 में संयुक्त प्रान्त के गवर्नर मैलकम हैली ने इस संरक्षित वन को जैविक उद्यान घोषित कर दिया। इस पार्क को 1936 में गवर्नर मैलकम हैली के नाम पर 'हैली नेशनल पार्क' का नाम दिया गया था। यह भारत का पहला राष्ट्रीय पार्क और दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा पार्क बना।

नामकरण

'जिम कोर्बेट राष्ट्रीय पार्क' से होकर रामगंगा नदी बहती है। आज़ादी के बाद इस पार्क का नाम इसी नदी के नाम पर 'रामगंगा राष्ट्रीय पार्क' रखा गया था, लेकिन 1957 में पार्क का नाम 'जिम कार्बेट नेशनल पार्क' कर दिया गया। जिस जिम कार्बेट के नाम पर पार्क का नामकरण किया गया, वह एक शिकारी था, लेकिन पर्यावरण में उसकी काफ़ी दिलचस्पी थी और उसने इस पार्क को विकसित करने में काफ़ी सहयोग दिया था।

हाथी द्वारा सैर

जिम कोर्बेट राष्ट्रीय अभयारण्य का भ्रमण केवल हाथी पर सवार होकर ही किया जा सकता है, क्योंकि मोटर-गाडियों के शोर से वन्य-जीव परेशान हो जाते हैं। हाथी पर्यटकों को लाँज से ही मिल जाते हैं। हाथी पर बैठकर पर्यटक जंगल की ऊँची-नीची पगडंडियों, ऊँची-ऊँची घास तथा शाल के पेड़ों के बीच से होकर गुजरते हैं। यहाँ शेर-बाघ ही नहीं हाथियों के झुंड, कुलांचें भरते हिरणों का समूह, छोटे-छोटे नदी-नाले, झरनों का गीत, रामगंगा नदी की तेज धारा का शोर, शाल वृक्षों की घनी छाया और घने जंगल का मौन सब कुछ अपने आप में अनोखा है। रामगंगा नदी के दोनों तरफ़ घने जंगल के बीच यह अभयारण्य प्रकृति की अनोखी छटा बिखेरता है।

जैव विविधता

भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण 'प्रोजेक्ट टाइगर' के अधीन आने वाला यह पार्क देश का पहला राष्ट्रीय पार्क है। बाघों की घटती संख्या पर रोक लगाने के उद्देश्य से 1973 में इसे 'प्रोजेक्ट टाइगर' के अधीन लाया गया।इस अभयारण्य में शेर, बाघ, हाथी, हिरण, गुलदार, सांभर, चीतल, काकड़, जंगली सूअर, भालू, बन्दर, सियार, नीलगाय आदि जानवर तथा कई तरह के पक्षी देखे जा सकते हैं। प्रभातबेला तथा सांझ ढलने के वक्त कई जानवरों के झुंडों को देखने का तो अपना अलग ही मजा है। इसी वक्त पक्षियों का कलरव बड़ा ही मधुर लगता है।

जिम कोर्बेट का योगदान

कहा जाता है कि 1820 में अंग्रेज़ों ने इस बीहड़ जंगल की खोज की थी। उस वक्त यहाँ खूंखार जंगली जानवरों का साम्राज्य था। ब्रिटश शासन ने शुरू में यहाँ शाल वृक्षों का रोपण करवाया और इस उद्यान का नाम 'द हैली नेशनल पार्क' रखा। आजादी के बाद इस उद्यान का नाम 'रामगंगा नेशनल पार्क' रखा गया। सन 1957 में इसे 'जिम कोर्बेट राष्ट्रीय उद्यान' का नाम दिया गया। जिम कोर्बेट एक चतुर अंग्रेज़ शिकारी था। उसका जन्म नैनीताल के कालाढूंगी नामक स्थान में हुआ था। उसने यहाँ के आदमखोर बाघों का शिकार कर इलाके के लोगों को भयमुक्त कराया था। स्थानीय लोग उसे "गोरा साधु" कहते थे। कालाढूंगी में उसके निवास को अब एक शानदार म्यूजियम का रूप दे दिया गया है। इसमें जिम कार्बेट के चित्र, उसकी किताबें, शेरों के साथ उसकी तस्वीरें, उस समय के हथियार, कई तरह की बन्दूकें और वन्य-जीवन से संबंधित कई प्रकार की पठनीय सामग्री देखने को मिलती है। शान्त वातावरण और घने वृक्षों की छाया में बने इस म्यूजियम के आंगन में बैठना बहुत अच्छा लगता है।[1]

पर्यटकों की सुविधाएँ

इस अभयारण्य में पर्यटन विभाग द्वारा ठहरने और उद्यान में भ्रमण करने की व्यवस्था है। उद्यान के अन्दर ही लॉज, कैन्टीन व लाइब्रेरी हैं। उद्यान कर्मचारियों के आवास भी यहीं हैं। लाइब्रेरी में वन्य जीवों से संबंधित अनेक पुस्तकें रखी हैं। पशु-पक्षी प्रेमी यहाँ बैठे घंटों अध्ययन करते रहते हैं। यहाँ के लॉजों के सामने लकड़ी के मचान बने हैं, जिनमें लकड़ियों की सीढियों द्वारा चढ़ा जाता है और बैठने के लिए कुर्सियों की व्यवस्था है। शाम के समय सैलानी यहाँ बैठकर दूरबीन से दूर-दूर तक फैले प्राकृतिक सौन्दर्य तथा अभयारण्य में स्वच्छंद विचरण करते वन्य जीवों को देख सकते हैं। सैलानी यहाँ आकर प्राकृतिक सौन्दर्य का जी भर कर आनन्द उठा सकते हैं। यहाँ के वनरक्षक ताकीद कर जाते हैं कि देर रात तक बाहर न रहें और न ही रात के समय कमरों से बाहर निकलें। ऐसी ही हिदायतें यहाँ जगह-जगह पर लिखी हुई भी हैं। इसकी वजह है कभी-कभी रात के समय अक्सर जंगली हाथियों के झुंड या कोई खूंखार जंगली जानवर यहाँ तक आ जाते हैं।[1]

कैसे पहुँचें

जिम कोर्बेट राष्ट्रीय उद्यान समुद्र तल से 400 से 1100 मीटर तक की ऊँचाई पर फैला है। इसका सबसे ऊँचा क्षेत्र कांडा है। इस उद्यान में घूमने का सबसे अच्छा मौसम 15 नवम्बर से 15 जून है। इसी दौरान यह सैलानियों के लिए खुला रहता है। यहाँ पहुँचने के लिए दो रेलवे स्टेशन हैं- रामनगर और हल्द्वानी। रामनगर से 'धिकाला'[2] के लिए 47 कि.मी. की पक्की सड़क है। उद्यान दिल्ली से मात्र 240 किलोमीटर दूर है। सड़क मार्ग से 290 किलोमीटर है। बसों, टैक्सियों और कार द्वारा यहाँ 5-6 घंटे में पहुँचा जा सकता है।

सरकार का संरक्षण

भारत सरकार ने 1935 में  वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम के तहत देशभर में राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के नेटवर्क में उनके आवास का संरक्षण किया है। 1973 में जब बाघ परियोजनाओं की शुरूआत की गई थी, उस समय 14 राज्यों में 23 आरक्षित वन क्षेत्र बनाए गए थे। बाद में दो और क्षेत्रों को इसके अन्तर्गत लाया गया, जिससे अब इनकी संख्या 25 हो गई है। इसके अन्तर्गत काजीरंगा, दुधवा, रणथम्भौर, सरिस्का, बांदीपुर, कान्हा, सुन्दरवन आदि अभयारण्यों की स्थापना की गई। 1993 में जिम कार्बेट पार्क इस योजना के तहत आया। वैज्ञानिक, आर्थिक, सौन्दर्यपरक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय मूल्यों की दृष्टि से भारत में वन्य जीवों की व्यावहारिक संख्या बनाए रखना तथा लोगों के लाभ, शिक्षा और मनोरंजन के लिए एक राष्ट्रीय विरासत के रूप में जैविक महत्व के ऐसे क्षेत्रों को सदैव के लिए सुरक्षित बनाए रखना इस योजना का मुख्य उद्देश्य है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 राष्ट्रीय उद्यान (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 दिसम्बर, 2012।
  2. पार्क का मुख्य विश्राम गृह

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