पूर्णा वन्यजीव अभयारण्य
पूर्णा वन्यजीव अभयारण्य गुजरात के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जो डांग ज़िले में स्थित है। यह गुजरात राज्य का सबसे घना और सर्वाधिक वर्षा (2500 मिमी तक) वाला स्थान है। सूर्यास्त के समय 160 वर्ग कि.मी. के विस्तार में फैली छोटी-छोटी चोटियां, सागौन और बाँस, वांसदा में रहने वाले डांगी आदिवासियों का संगीत और उनके ढोलों के स्वर मन को आनन्द से भर देते हैं। यहाँ 'महाल' नामक मुख्य गांव पूर्णा नदी के किनारे अभ्यारण्य के मध्य में ही स्थित है, जहां एक फॉरेस्ट रेस्ट हाउस भी है। दक्षिण गुजरात में केवल पूर्णा एवं वांसदा ही सुरक्षित जंगली क्षेत्र में आते हैं।
विस्तार तथा मान्यता
दक्षिण गुजरात के डांग ज़िले के के उत्तरी विस्तार में स्थित यह अभ्यारण्य जंगल का ही एक हिस्सा है। 160.8 वर्ग कि.मी. का क्षेत्र जंगल के लिए आरक्षित है, जिसे जुलाई, 1990 में एक अभयारण्य की मान्यता प्रदान की गई थी।
बाँस का वन
पूर्णा वन्यजीव अभयारण्य एक ऐसा अभ्यारण्य है, जो अपने मोटे बाँसों से आगन्तुकों को अचम्भित कर देता है। लोगों को यह देखकर आश्चर्य होता है कि पश्चिमी घाट के विस्तार में ऐसे प्राचीन जंगल भी हैं। पक्षियों के शौकीन पर्यावरणीय पर्यटक के लिए बाँसों वाले नम पर्णपाती वन घूमने की सबसे अच्छी जगह है।
पारिस्थितिक स्थिरता
पूर्णा अभ्यारण्य गुजरात के पश्चिमी घाट में नम पर्णपाती वनों का हिस्सा है और यह बेहद उत्कृष्ट पर्यावरण की अनुभूति कराता है। दक्षिण गुजरात में विविध जैव संसाधनों के संरक्षण के लिए केवल यह अभ्यारण्य और 'वांसदा राष्ट्रीय उद्यान' ही सुरक्षित क्षेत्र हैं। भारत में मुग़ल काल के दौरान इस जंगल में जंगली भैंसे, हाथी, आलसी भालू और गैंडे घूमते नजर आते थे। इस इलाके के जंगल स्थानीय आदिवासियों की भौतिक व सांस्कृतिक ज़रूरतें पूरी करते हैं और क्षेत्र की पारिस्थितिक स्थिरता को बनाए रखते हैं।
पौधों की प्रजातियाँ
इस अभयारण्य में घास की प्रचुरता वाले पौधों की तकरीबन 700 प्रजातियां हैं और चौड़े पत्ते वाले पौधों की भी बहुलता है। विभिन्न वृक्षों, सागौन के वनों और बाँसों ये यह जंगल भरा पड़ा है। बाँसों की सघनता के कारण यहां के अधिकांश भाग में मोटी मध्यम आकार वाली मंजिलें बनी हुई हैं। राज्य के सर्वश्रेष्ठ वनों में से एक 'महाल' जंगल आरक्षित विस्तार के अन्तर्गत आता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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