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'''ओशो रजनीश''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Osho Rajneesh'', जन्म: [[11 दिसम्बर]], [[1931]] - मृत्यु: [[19 जनवरी]] [[1990]]) का पूरा नाम चन्द्र मोहन जैन है जो 'ओशो रजनीश' के नाम से प्रख्यात हैं। ये  अपने विवादास्पद नये धार्मिक (आध्यात्मिक) आन्दोलन के लिये मशहूर हुए और [[भारत]] और संयुक्त राज्य [[अमेरिका]] में रहे।
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==जन्म  और शिक्षा==
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रजनीश का जन्म  [[11 दिसम्बर]], [[1931]] को [[जबलपुर]] ([[मध्य प्रदेश]]) में हुआ था। उन्हें बचपन में 'रजनीश चन्द्र मोहन' के नाम से जाना जाता था। [[1955]] में जबलपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक एवं सागर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त करने के बाद [[1959]] में व्याख्याता का पद सम्भाला। वह इस समय तक [[धर्म]] एवं [[दर्शन]] शास्त्र के ज्ञाता बन चुके थे। 1980-86 तक के काल में वे 'विश्व-सितारे' बन गये। बड़े-बड़े उद्योगपति, विदेशी धनुकुबेर, फ़िल्म अभिनेता इनके शिष्य रहे हैं।
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==प्रसिद्धि==
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रजनीश स्वयं को 20वीं [[सदी]] के सबसे बड़े तमाशेबाज़ों में से एक मानते हैं। अपने बुद्धि कौशल से उन्होंने विश्वभर में अपने अनुययियों को जिस सूत्र में बांधा वह काफ़ी हंगामेदार साबित हुआ। उनकी भोगवादी विचारधारा के अनुयायी सभी देशों में पाये जाते हैं। रजनीश ने [[पुणे]] में 'रजनीश केन्द्र' की स्थापना की और अपने विचित्र भोगवादी दर्शन के कारण शीघ्र ही विश्व में चर्चित हो गये। एक दिन बिना अपने शिष्यों को बताए वे चुपचाप अमेरिका चले गए। वहाँ पर भी अपना जाल फैलाया। मई 1981 में उन्होंने ओरेगोन (यू.एस.ए.) में अपना [[कम्यून]] बनाया। ओरेगोन के निर्जन भूखण्ड को रजनीश ने जिस तरह आधुनिक, भव्य और विकसित नगर का रूप दिया वह उनके बुद्धि चातुर्य का साक्षी है। रजनीश ने सभी विषयों पर सबसे पृथक् और आपत्तिजनक भी विचार व्यक्ति किये हैं, वह उनकी एक अलग छवि बनाते हैं। उन्होंने पुरातनवाद के ऊपर नवीनता तथा क्रान्तिकारी विजय पाने का प्रयास किया है।
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==रचनाएँ==
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रजनीश की कई कृतियाँ चर्चित रहीं हैं, इनमें 'सम्भोग से समाधि तक', 'मृत्यु है द्वार अमृत का', संम्भावनाओं की आहट', 'प्रेमदर्शन' के नाम प्रमुख हैं। अपना निज़ी अध्यात्म गढ़कर उसका 'काम' के साथ समन्वय करके रजनीश ने एक अदभुत मायालोक की सृष्टि की है।
  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
[[रजनीश चन्द्र मोहन]] (११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०) [[ओशो]] के नाम से प्रख्यात हैं जो अपने विवादास्पद नये धार्मिक (आध्यात्मिक) आन्दोलन के लिये मशहूर हुए और [[भारत]] और [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] में रहे। रजनीश ने प्रचलित धर्मों की व्याख्या की तथा [[प्यार]], [[ध्यान]] और [[खुशी]] को जीवन के प्रमुख मूल्य माना।
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<references/>
 
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==संबंधित लेख==
'''ओशो रजनीश''' (११ दिसम्बर, १९३१ - १९ जनवरी १९९०) का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के [[जबलपुर]] शहर में हुआ था। १९६० के दशक में वे '''आचार्य रजनीश''' के नाम से '''ओशो रजनीश''' नाम से जाने गये। वे एक आध्यात्मिक नेता थे तथा भारत व विदेशों में जाकर प्रवचन दिये।
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{{दार्शनिक}}{{आधुनिक आध्यात्मिक गुरु}}
 
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[[Category:अध्यात्म]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:दार्शनिक]][[Category:आधुनिक आध्यात्मिक गुरु]]
== कार्य ==
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__INDEX__
[[चित्र:Osho_International_Meditation_Resort.jpg|thumbnail|right|300px|[http://www.osho.com/Main.cfm?Area=MedResort&Language=Hindi ओशो इंटरनैशनल मैडिटेशन रिज़ॉर]]]
 
ओशो ने सैकडों पुस्तकें लिखीं, हजारों [[प्रवचन]] दिये। उनके प्रवचन पुस्तकों, आडियो कैसेट तथा विडियो कैसेट के रूप में उपलब्ध हैं। अपने क्रान्तिकारी विचारों से उन्होने लाखों अनुयायी और शिष्य बनाये। अत्यधिक कुशल वक्ता होते हुए इनके प्रवचनों की करीब ६०० पुस्तकें हैं। '''संभोग से समाधि की ओर''' इनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद पुस्तक है। इनके नाम से कई आश्रम चल रहे है।
 
 
 
ओशो ने हर एक पाखंड पर चोट की। सन्यास की अवधारणा को उन्होंने बारत की विश्व को अनुपम देन बताते हुए सन्यास के नाम पर भगवा कपड़े पहनने वाले पाखंडियों को खूब लताड़ा। ओशो ने सम्यक सन्यास को पुनरुज्जीवित किया है। ओशो ने पुनः उसे बुद्ध का ध्यान, कृष्ण की बांसुरी, मीरा के घुंघरू और कबीर की मस्ती दी है। सन्यास पहले कभी भी इतना समृद्ध न था जितना आज ओशो के संस्पर्श से हुआ है। इसलिए यह नव-संन्यास है। उनकी नजर में सन्यासी वह है जो अपने घर-संसार, पत्नी और बच्चों के साथ रहकर पारिवारिक, सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए ध्यान और सत्संग का जीवन जिए। उनकी दृष्टि में एक संन्यास है जो इस देश में हजारों वर्षों से प्रचलित है। उसका अभिप्राय कुल इतना है कि आपने घर-परिवार छोड़ दिया, भगवे वस्त्र पहन लिए, चल पड़े जंगल की ओर। वह संन्यास तो त्याग का दूसरा नाम है, वह जीवन से भगोड़ापन है, पलायन है। और एक अर्थ में आसान भी है-अब है कि नहीं, लेकिन कभी अवश्य आसान था। भगवे वस्त्रधारी संन्यासी की पूजा होती थी। उसने भगवे वस्त्र पहन लिए, उसकी पूजा के लिए इतना पर्याप्त था। वह दरअसल उसकी नहीं, उसके वस्त्रों की पूजा थी। वह सन्यास इसलिए भी आसान था कि आप संसार से भाग खड़े हुए तो संसार की सब समस्याओं से मुक्त हो गए। क्योंकि समस्याओं से कौन मुक्त नहीं होना चाहता? लेकिन जो लोग संसार से भागने की अथवा संसार को त्यागने की हिम्मत न जुटा सके, मोह में बंधे रहे, उन्हें त्याग का यह कृत्य बहुत महान लगने लगा, वे ऐसे संन्यासी की पूजा और सेवा करते रहे और सन्यास के नाम पर परनिर्भरता का यह कार्य चलता रहा : सन्यासी अपनी जरूरतों के लिए संसार पर निर्भर रहा और तथाकथित त्यागी भी बना रहा। लेकिन ऐसा सन्यास आनंद न बन सका, मस्ती न बन सका। दीन-हीनता में कहीं कोई प्रफुल्लता होती है ? धीरे-धीरे सन्यास पूर्णतः सड़ गया। सन्यास से वे बांसुरी के गीत खो गए जो भगवान श्रीकृष्ण के समय कभी गूंजे होंगे-सन्यास के मौलिक रूप में। अथवा राजा जनक के समय सन्यास ने जो गहराई छुई थी, वह संसार में कमल की भांति खिल कर जीने वाला सन्यास नदारद हो गया।
 
 
 
'''[[मोटा पाठ]]'''==संभोग से समाधि==
 
 
 
== वाह्य सूत्र ==
 
* [http://www.osho.com/ अन्तर्राष्ट्रीय ओशो फाउन्डेशन का जालघर]
 
 
 
* [http://www.osho.com/index.cfm?Language=Hindi osho.com ओशो डाट् काम्] - यहां पर ओशो के हिन्दी प्रवचनों का संग्रह उपलब्ध है।
 
 
 
[[श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन]]
 
[[श्रेणी:आध्यात्म]]
 
 
 
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05:44, 19 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

ओशो रजनीश
ओशो रजनीश
पूरा नाम चन्द्र मोहन जैन
अन्य नाम आचार्य रजनीश
जन्म 11 दिसम्बर, 1931
जन्म भूमि जबलपुर, मध्य प्रदेश
मृत्यु 19 जनवरी 1990
मृत्यु स्थान पुणे, महाराष्ट्र
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र आध्यात्मिक गुरु
मुख्य रचनाएँ 'सम्भोग से समाधि तक', 'मृत्यु है द्वार अमृत का', संम्भावनाओं की आहट', 'प्रेमदर्शन' आदि।
शिक्षा स्नातकोत्तर
विद्यालय सागर विश्वविद्यालय
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी बड़े-बड़े उद्योगपति, विदेशी धनुकुबेर, फ़िल्म अभिनेता इनके शिष्य रहे हैं।

ओशो रजनीश (अंग्रेज़ी: Osho Rajneesh, जन्म: 11 दिसम्बर, 1931 - मृत्यु: 19 जनवरी 1990) का पूरा नाम चन्द्र मोहन जैन है जो 'ओशो रजनीश' के नाम से प्रख्यात हैं। ये अपने विवादास्पद नये धार्मिक (आध्यात्मिक) आन्दोलन के लिये मशहूर हुए और भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में रहे।

जन्म और शिक्षा

रजनीश का जन्म 11 दिसम्बर, 1931 को जबलपुर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। उन्हें बचपन में 'रजनीश चन्द्र मोहन' के नाम से जाना जाता था। 1955 में जबलपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक एवं सागर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1959 में व्याख्याता का पद सम्भाला। वह इस समय तक धर्म एवं दर्शन शास्त्र के ज्ञाता बन चुके थे। 1980-86 तक के काल में वे 'विश्व-सितारे' बन गये। बड़े-बड़े उद्योगपति, विदेशी धनुकुबेर, फ़िल्म अभिनेता इनके शिष्य रहे हैं।

प्रसिद्धि

रजनीश स्वयं को 20वीं सदी के सबसे बड़े तमाशेबाज़ों में से एक मानते हैं। अपने बुद्धि कौशल से उन्होंने विश्वभर में अपने अनुययियों को जिस सूत्र में बांधा वह काफ़ी हंगामेदार साबित हुआ। उनकी भोगवादी विचारधारा के अनुयायी सभी देशों में पाये जाते हैं। रजनीश ने पुणे में 'रजनीश केन्द्र' की स्थापना की और अपने विचित्र भोगवादी दर्शन के कारण शीघ्र ही विश्व में चर्चित हो गये। एक दिन बिना अपने शिष्यों को बताए वे चुपचाप अमेरिका चले गए। वहाँ पर भी अपना जाल फैलाया। मई 1981 में उन्होंने ओरेगोन (यू.एस.ए.) में अपना कम्यून बनाया। ओरेगोन के निर्जन भूखण्ड को रजनीश ने जिस तरह आधुनिक, भव्य और विकसित नगर का रूप दिया वह उनके बुद्धि चातुर्य का साक्षी है। रजनीश ने सभी विषयों पर सबसे पृथक् और आपत्तिजनक भी विचार व्यक्ति किये हैं, वह उनकी एक अलग छवि बनाते हैं। उन्होंने पुरातनवाद के ऊपर नवीनता तथा क्रान्तिकारी विजय पाने का प्रयास किया है।

रचनाएँ

रजनीश की कई कृतियाँ चर्चित रहीं हैं, इनमें 'सम्भोग से समाधि तक', 'मृत्यु है द्वार अमृत का', संम्भावनाओं की आहट', 'प्रेमदर्शन' के नाम प्रमुख हैं। अपना निज़ी अध्यात्म गढ़कर उसका 'काम' के साथ समन्वय करके रजनीश ने एक अदभुत मायालोक की सृष्टि की है।


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