जुझारसिंह बुन्देला

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:23, 25 अक्टूबर 2017 का अवतरण (Text replacement - "khoj.bharatdiscovery.org" to "bharatkhoj.org")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

जुझारसिंह बुन्देला ओरछा के राजा वीरसिंह देव का पुत्र था। मुग़ल बादशाह जहाँगीर के शासन काल के अंतिम काल में इसे राजा की उपाधि मिली और चार हज़ारी मनसबदार बनाया गया।

शाही सेना से युद्ध

वर्ष 1627 ई. शाहजहाँ ने जुझारसिंह को उपहारों से सम्मानित किया था, किंतु कुछ समय पश्चात्‌ अशुद्ध करलेखा की शाहजहाँ द्वारा जाँच किए जाने की सूचना से डरकर जुझारसिंह आगरा से भागकर ओरछा चला गया। वहाँ वह अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने लगा। जब बादशाह को ये समाचार ज्ञात हुआ तो उसने सेनाएँ भेजकर ओरछा में घेरा डलवा दिया। इसके फलस्वरूप युद्ध हुआ, किंतु 'एरिच' दुर्ग बादशाही सेनाओं के अधिकार में आ जाने से जुझारसिंह के पराजय की संभावना उत्पन्न हो गई। तब उसने महावत ख़ाँ की शरण में जाकर, जो बादशाही सेना के एक भाग का नेतृत्व कर रहा था, क्षमा माँगी। महावत ख़ाँ जुझारसिंह को शाहजहाँ के दरबार में ले आया। शाहजहाँ ने उसे क्षमा कर दिया।[1]

चौरागढ़ की विजय

शाहजहाँ जब ख़ानजहाँ लोदी और निज़ामुल्मुल्क पर आक्रमण करने के उद्देश्य से दक्षिण की ओर गया, तब जुझारसिंह भी दक्षिण के सूबेदार आज़म ख़ाँ के साथ नियुक्त हुआ। तत्पश्चात्‌ वह चंदावर में नियुक्त किया गया। दक्षिण प्रांत पूर्णत: विजित होने पर जुझारसिंह कुछ दिनों के लिये अपने देश ओरछा चला गया। देश पहुँचने पर उसने चौरागढ़ के दुर्ग पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। जब बादशाह को यह सूचना मिली तो उसने एक आदेश जुझारसिंह के लिये जारी किया कि विजित प्रांत और कोष की संपत्ति का बहुत बड़ा भाग बादशाह को सौंप दे। किंतु जुझारसिंह इसे टाल गया और अपने पुत्र को भी, जो दक्षिण में था, बुलवा लिया।

मृत्यु

शाहजहाँ ने जुझारसिंह को दंडित करने के लिये सेनाएँ भेजीं। वह अपने पुत्र के साथ सारा सामान लिये इधर से उधर भागता फिरता रहा। इस बीच जुझारसिंह का बहुत-सा बहुमूल्य सामान उससे छिनता गया। किंतु अपने पुत्र विक्रमाजीत सिंह के साथ जुझारसिंह जंगलों में छिपा रहा। सन 1644 ई. में देवगढ़ के गोंडों ने इन दोनों को मार डाला। खानेदौराँ ने दोनों के सर कटवाकर बादशाह शाहजहाँ के पास भिजवा दिए। चौरागढ़ के कोष से प्राप्त एक करोड़ रुपया भी दरबार में भेज दिया गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जुझारसिंह बुन्देला (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 25 मार्च, 2014।

संबंधित लेख