तिमनगढ़ क़िला

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तिमनगढ़ क़िला करौली, राजस्थान से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इतिहासकारों का मानना है कि ये क़िला 1100 ई. में बनवाया गया था, जो जल्द ही नष्ट कर दिया गया। इस क़िले को 1244 ई. में यदुवंशी राजा तीमंपल, जो राजा विजयपाल के वंशज थे, के द्वारा दोबारा बनवाया गया था।

  • अपने तत्कालीन समय में तिमनगढ़ स्‍थानीय सत्ता का प्रमुख केंद्र हुआ करता था।
  • 1196 ई. में यहाँ के राजा तीमंपल को पराजित करके मुहम्मद ग़ोरी और उसके सेनापति क़ुतुबुद्दीन ने इस पर अपना अधिकार कर लिया था। इसके बाद राजा कुंवरपाल को रेवा के एक ग्राम में शरण लेनी पड़ी।
  • इस क़िले के मुख्‍य द्वार पर मुग़ल स्‍थापत्‍य कला का प्रभाव दिखाई पड़ता है, लेकिन क़िले के आं‍तरिक हिस्‍सों पर यह प्रभाव नहीं है। इसकी दीवारें, मंदिर और बाज़ार अपने सही रूप में देखे जा सकते हैं।
  • तिमनगढ़ क़िले से सागर झील का विहंगम दृश्‍य भी देखा जा सकता है।
  • यहाँ के स्थानीय लोगों का मानना है कि आज भी इस क़िले में अष्टधातु की प्राचीन मूर्तियों, मिट्टी की विशाल और छोटी मूर्तियों को मंदिर के नीचे छुपाया गया है।
  • यहाँ बने मंदिरों की छतों और स्तंभों पर सुंदर ज्यामितीय और फूल के नमूने किसी भी पर्यटक का मन मोहने के लिए काफ़ी हैं। साथ ही यहाँ आने वाले पर्यटक मंदिर के स्तंभों पर अलग-अलग देवी-देवताओं की तस्वीरों को देख सकते हैं, जो प्राचीन कला का एक बेमिसाल नमूना हैं।[1]
  • एक किंवदंती के अनुसार यहाँ के लोगों का यह भी मानना है कि आज भी क़िले के पास स्थित सागर झील में पारस पत्थर है, जिसके स्पर्श से कोई भी चीज़ सोने की हो सकती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तिमनगढ़ क़िला, करौली (हिन्दी) नेटिव प्लेनेट। अभिगमन तिथि: 21 मई, 2015।

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