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==पर्यटन==
 
==पर्यटन==
समग्र रूप से भी और अलग-अलग भागों में भी नगर के रचना-विन्यास की भव्यता और सामंजस्यपूर्ण दर्शक को आश्चर्यचकित कर देती है। भवनों के बीच सर्वत्र विन्यासात्मक स्म्बन्ध बनाये रखा गया है। लयात्मकता कहीं भी भंग नहीं हुई है। बरामदों की स्तम्भ-पंक्तियों और अन्य वस्तु-रचनाओं तथा अंगों की एकरूपता सड़कों को व्यवस्थित शक्ल प्रदान कर देती है। आवृत्तिशीलता से अविच्छित्रता का आभास होता है। उन्हीं मानक प्रारूपों और एकरूप अंगों को जिन विभिन्न प्रकारों में संजोया गया है, वह जयपुर के निर्माताओं की अक्षय कल्पना और कला-कौशल की शानदारा मिसाल है।
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[[चित्र:Govind-Dev-Temple-Jaipur-Panorama-1.jpg|400px|thumb|[[गोविंद देवजी का मंदिर जयपुर|गोविंद देव जी का मंदिर]]]]
 
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{{Main|जयपुर पर्यटन}}
दीवान की सबसे सुन्दर इमारतें राजमहल वाले खण्डों में हैं। इनमें दीवान-ए-खास, दीवान-ए-आम, चन्द्रमहल, [[गोविंद देवजी का मंदिर जयपुर|गोविन्ददेव जी का मन्दिर]] आदि सुविख्यात हैं। शहर के उत्तर-पश्चिम में पहाड़ी पर [[जयसिंह]] द्वारा निर्मित [[नाहरगढ़ क़िला जयपुर|नाहरगढ़ दुर्ग]] है। जयपुर की प्रसिद्ध इमारत [[हवामहल जयपुर|हवामहल]] दर्शनीय है। सवाई जयसिंह के बाद के शासकों ने भी सर्वतोन्मुखी प्रतिभा के द्वारा कलात्मक एवं साहित्यिक प्रवृत्तियों को प्रश्रय एवं प्रोत्साहन देकर [[भारतीय संस्कृति]] में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया।
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[[राजस्थान पर्यटन]] की दृष्टि से पूरे विश्व में एक अलग स्थान रखता है लेकिन शानदार महलों, ऊँची प्राचीर व दुर्गों वाला शहर जयपुर [[राजस्थान]] में पर्यटन का केंद्र है। यह शहर चारों ओर से परकोटों (दीवारों) से घिरा है, जिस में प्रवेश के लीये 7 दरवाज़े बने हुए हैं 1876 मैं प्रिंस आफ वेल्स के स्वागत में महाराजा सवाई [[मानसिंह]] ने इस शहर को [[गुलाबी रंग]] से रंगवा दिया था तभी से इस शहर का नाम गुलाबी नगरी (पिंक सिटी) पड़ गया। यहाँ के प्रमुख भवनों में [[सिटी पैलेस जयपुर|सिटी पैलेस]], 18वीं शताब्दी में बना [[जंतर मंतर जयपुर|जंतर-मंतर]], [[हवामहल जयपुर|हवामहल]], रामबाग़ पैलेस और [[नाहरगढ़ क़िला जयपुर|नाहरगढ़ क़िला]] शामिल हैं। अन्य सार्वजनिक भवनों में एक संग्रहालय और एक पुस्तकालय शामिल है।
 
 
जयपुर की वेधशाला ([[जंतर मंतर जयपुर|जंतर मंतर]]) को नगर की सर्वप्रथम निर्मीतियों में गिना जाता है। यह खगोलीय वास्तु-शिल्प का भारत में ज्ञात एक सबसे पहला नमूना है। इसमें अपने युग की [[खगोल विज्ञान]] की उपलब्धियाँ साकार हुई हैं।  
 
  
[[राजस्थान पर्यटन]] की दृष्टि से पूरे विश्व में एक अलग स्थान रखता है लेकिन शानदार महलों, ऊँची प्राचीर व दुर्गों वाला शहर जयपुर राजस्थान में पर्यटन का केंद्र है। यह शहर चारों ओर से परकोटों (दीवारों) से घिरा है, जिस में प्रवेश के लीये 7 दरवाज़े बने हुए हैं 1876 मैं प्रिंस आफ वेल्स के स्वागत में महाराजा सवाई [[मानसिंह]] ने इस शहर को गुलाबी रंग से रंगवा दिया था तभी से इस शहर का नाम गुलाबी नगरी (पिंक सिटी) पड़ गया। यहाँ के प्रमुख भवनों में सिटी पैलेस, 18वीं शताब्दी में बना जंतर-मंतर, हवामहल, रामबाग़ पैलेस और नाहरगढ़ शामिल हैं। अन्य सार्वजनिक भवनों में एक संग्रहालय और एक पुस्तकालय शामिल है।
 
[[चित्र:Govind-Dev-Temple-Jaipur-Panorama-1.jpg|400px|thumb|[[गोविंद देवजी का मंदिर जयपुर|गोविंद देव जी का मंदिर]]]]
 
*[[सिटी पैलेस जयपुर|सिटी पैलेस]]
 
*[[हवा महल जयपुर|हवा महल]]
 
*[[जल महल जयपुर|जल महल]]
 
*[[जन्‍तर मन्‍तर जयपुर|जन्‍तर मन्‍तर]]
 
*[[रामनिवास बाग़ जयपुर|रामनिवास बाग़]]
 
*[[अल्‍बर्ट हॉल जयपुर|अल्‍बर्ट हॉल]]
 
*[[आमेर का क़िला जयपुर|आमेर का क़िला]]
 
*[[बी.एम. बिडला सभागार जयपुर|बी.एम. बिडला सभागार]]
 
[[चित्र:City-Palace-Jaipur-4.jpg|thumb|400px|[[सिटी पैलेस जयपुर|सिटी पैलेस]], जयपुर]]
 
*[[ईसरलाट जयपुर|ईसरलाट]]
 
*[[गलता जयपुर|गलता]]
 
*[[बैराठ जयपुर|बैराठ]]
 
*[[गैटोर जयपुर|गैटोर]]
 
*[[अम्बर क़िला जयपुर|अम्बर क़िला]]
 
*[[गोविंद देवजी का मंदिर जयपुर|गोविंद देवजी का मंदिर]]
 
*[[स्टैच्यू सर्किल जयपुर|स्टैच्यू सर्किल]]
 
*[[सांगानेर जयपुर|सांगानेर]]
 
*[[सांभर झील जयपुर|सांभर झील]]
 
*[[जयगढ़ क़िला जयपुर|जयगढ़ क़िला]]
 
*[[नाहरगढ़ क़िला जयपुर|नाहरगढ़ क़िला]]
 
*[[जमवारामगढ बांध जयपुर|जमवारामगढ बांध]]
 
 
==जनसंख्या==
 
==जनसंख्या==
 
जयपुर की जनसंख्या (2001) 23,24,319 है और जयपुर ज़िले की कुल जनसंख्या 52,52,388 है।
 
जयपुर की जनसंख्या (2001) 23,24,319 है और जयपुर ज़िले की कुल जनसंख्या 52,52,388 है।
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चित्र:Rambagh-Palace-Jaipur.jpg|रामबाग महल, जयपुर
 
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10:59, 5 जनवरी 2013 का अवतरण

जयपुर जयपुर पर्यटन जयपुर ज़िला
जयपुर
हवामहल, जयपुर
विवरण जयपुर राजस्थान राज्य की राजधानी है। यहाँ के भवनों के निर्माण में गुलाबी रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है, इसलिए इसे 'गुलाबी नगर' भी कहते हैं।
राज्य राजस्थान
ज़िला जयपुर ज़िला
निर्माता राजा जयसिंह द्वितीय
स्थापना सन 1728 ई. में स्थापित
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 26.9260°, पूर्व- 75.8235°
प्रसिद्धि कराँची का हलवा
कब जाएँ सितंबर से मार्च
कैसे पहुँचें दिल्ली से अजमेर शताब्दी और दिल्ली जयपुर एक्सप्रेस से जयपुर पहुँचा जा सकता है। कोलकाता से हावड़ा-जयपुर एक्सप्रेस और मुम्बई से अरावली व बॉम्बे सेन्ट्रल एक्सप्रेस से जयपुर पहुँचा जा सकता है। दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 8 से जयपुर पहुँचा जा सकता है जो 256 किलोमीटर की दूरी पर है। राजस्थान परिवहन निगम की बसें अनेक शहरों से जयपुर जाती हैं।
हवाई अड्डा जयपुर के दक्षिण में स्थित संगनेर हवाई अड्डा नज़दीकी हवाई अड्डा है। जयपुर और संगनेर की दूरी 14 किलोमीटर है।
रेलवे स्टेशन जयपुर जक्शन
बस अड्डा सिन्धी कैम्प, घाट गेट
यातायात स्थानीय बस, ऑटो रिक्शा, साईकिल रिक्शा
क्या देखें पर्यटन स्थल
क्या ख़रीदें कला व हस्तशिल्प द्वारा तैयार आभूषण, हथकरघा बुनाई, आसवन व शीशा, होज़री, क़ालीन, कम्बल आदि ख़रीदे जा सकते हैं।
एस.टी.डी. कोड 0141
Map-icon.gif गूगल मानचित्र, हवाई अड्डा

जयपुर (अंग्रेज़ी:Jaipur) वर्तमान राजस्थान राज्य की राजधानी और सबसे बड़ा नगर है। 1947 ई. तक जयपुर नाम की एक देशी रियासत की राजधानी थी। कछवाहा राजा जयसिंह द्वितीय का बसाया हुआ राजस्थान का ऐतिहासिक प्रसिद्ध नगर है। इस नगर की स्थापना 1728 ई. में की थी और उन्हीं के नाम पर इसका यह नाम रखा गया गया। स्वतंत्रता के बाद इस रियासत का विलय भारतीय गणराज्य में हो गया। जयपुर सूखी झील के मैदान में बसा है जिसके तीन ओर की पहाड़ियों की चोटी पर पुराने क़िले हैं। यह बड़ा सुनियोजित नगर है। बाज़ार सब सीधी सड़कों के दोनों ओर हैं और इनके भवनों का निर्माण भी एक ही आकार-प्रकार का है। नगर के चारों ओर चौड़ी और ऊँची दीवार है, जिसमें सात द्वार हैं। यहाँ के भवनों के निर्माण में गुलाबी रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है, इसलिए इसे गुलाबी शहर भी कहते हैं। जयपुर में अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें हवा महल, जंतर-मंतर और कुछ पुराने क़िले अधिक प्रसिद्ध हैं।

स्थापना

आधुनिक राजस्थान की राजधानी जयपुर की नींव 18 नवम्बर, 1727 ई. को कछवाहा शासक सवाई जयसिंह (1700-1743 ई.) के द्वारा रखी गयी। एक पूरे के पूरे नगर की प्रायोजना और निर्माण किसी भी राज्य के लिए असाधारण कार्य होता है और उसका बीड़ा वह तभी उठा सकता है, जब वह स्वतंत्र हो और उसमें नूतन शक्तियों का उन्मेष हो रहा हो। आमेर के कछवाहा राज्य के साथ यह तथ्य सत्य प्रतीत होता है। जयपुर के निर्माण में जयसिंह को विद्याधर नामक बंगाली नगर नियोजन से विशेष मदद मिली थी। उसने जयपुर को एकसुनिश्चित योजना के आधार पर बनाया। 1729 ई. में नगर का एक बड़ा भाग, जिसमें बाजार, मन्दिर मकान आदि सभी थे, बनकर तैयार हो गया था। जयपुर फतेहपुर सीकरी की भाँति नहीं था, जो मुख्य रूप से शाही आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बनवाया गया था। यहाँ नौ से में सात खण्ड जनसाधारण के मकानों एवं दुकानों के लिए निर्धारित किये गये थे। दक्षिण दिशा को छोड़कर उसके तीनों ओर पहाड़ियाँ हैं। पुराना नगर चहारदीवारी से घिरा हुआ है, जिसके चारों और सात दरवाज़े बनाये गये थे।

इतिहास

कछवाहा राजपूत अपने वंश का आदि पुरुष श्री रामचन्द्र जी के पुत्र कुश को मानते हैं। उनका कहना है कि प्रारम्भ में उनके वंश के लोग रोहतासगढ़ (बिहार) में जाकर बसे थे। तीसरी शती ई. में वे लोग ग्वालियर चले आए। एक ऐतिहासिक अनुश्रुति के आधार पर यह भी कहा जाता है कि 1068 ई. के लगभग, अयोध्या-नरेश लक्ष्मण ने ग्वालियर में अपना प्रभुत्व स्थापित किया और तत्पश्चात इनके वंशज दौसा नामक स्थान पर आए और उन्होंने मीणाओं से आमेर का इलाक़ा छीनकर इस स्थान पर अपनी राजधानी बनाई।

जल महल, जयपुर

ऐतिहासिकों का यह भी मत है कि आमेर का गिरिदुर्ग 967 ई. में ढोलाराज ने बनवाया था और यहीं 1150 ई. के लगभग कछवाहों ने अपनी राजधानी बनाई। 1300 ई. में जब राज्य के प्रसिद्ध दुर्ग रणथंभौर पर अलाउद्दीन ख़िलजी ने आक्रमण किया तो आमेर नरेश राज्य के भीतरी भाग में चले गए किन्तु शीघ्र ही उन्होंने क़िले को पुन: हस्तगत कर लिया और अलाउद्दीन से संधि कर ली। 1548-74 ई. में बिहारीमल अथवा भारमल आमेर का राजा था। उसने हुमायूँ और अकबर से मैत्री की और अकबर के साथ अपनी पुत्री मरीयम-उज़्-ज़मानी या हरका बाई (वर्तमान में जोधाबाई के नाम से प्रचलित) का विवाह भी कर दिया। उसके पुत्र भगवान दास ने भी अकबर के पुत्र सलीम के साथ अपनी पुत्री का विवाह करके पुराने मैत्री-सम्बन्ध बनाए रखे। भगवान दास को अकबर ने पंजाब[1] का सूबेदार नियुक्त किया था। उसने 16 वर्ष तक आमेर में राज्य किया। उसके पश्चात उसका पुत्र मानसिंह 1590 ई. से 1614 ई. तक आमेर का राजा रहा। मानसिंह अकबर का विश्वस्त सेनापति था। कहते हैं उसी के कहने से अकबर ने चित्तौड़ नरेश राणा प्रताप पर आक्रमण किया था (1577 ई.)। मानसिंह के पश्चात जयसिंह प्रथम ने आमेर की गद्दी सम्हाली। उसने भी शाहजहाँ और औरंगज़ेब से मित्रता की नीति जारी रखी। जयसिंह प्रथम शिवाजी को औरंग़ज़ेब के दरबार में लाने में समर्थ हुआ था।

स्थापत्य कला

नगर निर्माण शैली के विचार से यह नगर भारत तथा यूरोप में अपने ढँग का अनुपम है, जिसकी समसामयिक एवं परवर्तीकालीन विदेशी यात्रियों ने मुक्त-कण्ठ से प्रशंसा की है। भारतीय निर्माण कला की दृष्टि से जयपुर पुरातन तथा नूतन को जोड़ने वाली महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इस नगर का गुलाबी रंग इसकी पहचान बन गया है। कहा जाता है जयसिंह को औरंग़ज़ेब ने 1667 ई. में ज़हर देकर मरवा डाला था। 1699 ई. से 1743 ई. तक आमेर पर जयसिंह द्वितीय का राज्य रहा। इसने 'सवाई' का उपाधि ग्रहण की। यह बड़ा ज्योतिषविद और वास्तुकलाविशारद था। इसी ने 1728 ई. में वर्तमान जयपुर नगर बसाया। आमेर का प्राचीन दुर्ग एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है जो 350 फुट ऊँची है। इस कारण इस नगर के विस्तार के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था। सवाई जयसिंह ने नए नगर जयपुर को आमेर से तीन मील (4.8 किमी) की दूरी पर मैदान में बसाया। इसका क्षेत्रफल तीन वर्गमील (7.8 वर्ग किमी) रखा गया। नगर को परकोटे और सात प्रवेश द्वारों से सुरक्षित बनाया गया। चौपड़ के नक्शे के अनुसार ही सड़कें बनवाई गई। पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाली मुख्य सड़क 111 फुट चौड़ी रखी गई। यह सड़क, एक दूसरी उतनी ही चौड़ी सड़क को ईश्वर लाट के निकट समकोण पर काटती थी। अन्य सड़कें 55 फुट चौड़ी रखी गई। ये मुख्य सड़क को कई स्थानों पर समकोणों पर काटती थी। कई गलियाँ जो चौड़ाई में इनकी आधी या 27 फुट थी, नगर के भीतरी भागों से आकर मुख्य सड़क में मिलती थी। सड़कों के किनारों के सारे मकान लाल बलुवा पत्थर के बनवाए गए थे जिससे सारा नगर गुलाबी रंग का दिखाई देता था। राजमहल नगर के केंद्र में बनाया गया था। यह सात मंज़िला है। इसमें एक दिवानेख़ास है। इसके समीप ही तत्कालीन सचिवालय, बावन कचहरी स्थित है। 18 वीं शती में राजा माधोसिंह का बनवाया हुआ छ: मंज़िला हवामहल भी नगर की मुख्य सड़क पर ही दिखाई देता है। राजा जयसिंह द्वितीय ने जयपुर, दिल्ली, मथुरा, बनारस, और उज्जैन में वेधशालाएँ भी बनाई थी। जयपुर की वेधशाला इन सबसे बड़ी है। कहा जाता है कि जयसिंह को नगर का नक्शा बनाने में दो बंगाली पंड़ितों से विशेष सहायता प्राप्त हुई थी।

भौगोलिक संरचना

जयपुर राज्य राजपूताना के उत्तर पश्चिम व पूर्व में स्थित है। इसका नाम ई० सन् १७२८ में जयपुर नगर बसने पर अपनी राजधानी के नाम पर पड़ा। इसके पहले यह आमेर राज्य कहलाता था। इस नाम से यह नगर ई० सन् १२०० के लगभग काकिल देव ने बसाया। इससे भी पहले यह राज्य 'ढूंढ़ाड़' कहलाता था। कर्नल टॉड ने ढूंढ़ाड़ नाम जोबनेर के पास ढ़ूंढ़ नाम पहाड़ी के कारण बतलाया है। पृथ्वीसिंह मेहता ने यह नाम जयपुर के पास आमेर की पहाड़ियों से निकलने वाली धुन्ध नदी के नाम पर बतलाया है। धुन्ध नदी का नाम इस क्षेत्र में धुन्ध नामक किसी अत्याचारी पुरुष के नाम के कारण पड़ा, जो उस क्षेत्र में रहता था। जोबनेर के पास ढ़ूंढ़ नामक कोई पहाड़ी नहीं है अत: बहुत संभव है कि इस नदी से ही यह क्षेत्र ढूंढ़ाड़ कहलाया है। महाभारत के समय यह मत्स्य प्रदेश का एक भाग था। उस वक्त इसकी राजधानी बैराठ (जयपुर नगर से ४८ मील) थी जो अब एक छोटा कस्बा है। यहाँ सम्राट अशोक के समय का एक शिलालेख मिला है। ई० सन् ६३४ में यहाँ चीनी यात्री ह्वेन त्सांग आया था। उस समय यहाँ बौद्धों के ८ मठ थे। इस नगर को महमूद गज़नवी ने काफी नष्ट कर दिया था। मत्स्य प्रदेष के मत्स्यों ने राजा सुदाश से युद्ध किया था। मनु ने इस प्रदेश को ब्रह्माॠषि देश के अन्तर्गत माना था।[2]

यातायात और परिवहन

जयपुर में प्रमुख सड़क, रेल और वायुसम्पर्क उपलब्ध है।

कृषि

बाजरा, जौ, चना, दलहन और कपास इस क्षेत्र की मुख्य फ़सलें हैं।

खनिज पदार्थ

यहां कई प्रकार के खनिज पदार्थ पाये जाते हैं। राज्य की ओर से अभी तक उद्योगपतियों को बहुत कम सुविधा दी गयी है तथा राज्य ने इस ओर बहुत कम ध्यान दिया है अन्यथा यह राज्य की आमदनी का एक बड़ा साधन हो सकता है। यातायात की सुविधा न होने, आधुनिक मशीनों की कमी तथा धन की कमी के कारण खनिज पदार्थ यहां ज्यादा नहीं निकाले जाते हैं। जो भी निकाले जाते हैं उनमें से अधिकांश कच्चे रुप में ही बाहर भेज दिये जाते हैं। खनिज उद्योग को प्रोत्साहन देने की ओर राज्य की ओर से अब ध्यान दिया जाता है। यहाँ पाये जाने वाले खनिजों में प्रमुख निम्लिखित हैं[2]-

खनिज प्राप्ति स्थान
लोहा लोहे के भण्डार टाटेरि, सिंघाना, काली पहाड़ी एवं बागोली सराय में है।
तांबा यह खेतड़ी, सिंघाना, खो दरीबा, उदपुरवाटी मातसूला में मिलता है। मुगलकाल में यहां काफी मात्रा में ताम्बा निकाला जाता था।
बेरिलियम इसका उपयोग अणुशक्ति प्राप्त करने में तथा हवाई जहाज आदि बनाने में किया जाता है। यह बचूरा तथा मालपुरा में मिलता है।
घीया भाटा (सोप स्टोन) इसका उपयोग सौन्दर्य प्रसाधनों के बनाने में, कागज कपड़ा, रबड़, चमड़ा आदि के निर्माण में उपयोग में लाया जाता है। यह ज्यादातर विदेशों को भेजा जाता है। यहाँ से सालाना लगभग १०,०००टन निकलता है। यह डगोता झरना (दौसै से २० मील उत्तर) निवाई, हिण्डौन, नीम का थाना में मिलता है।
अभ्रक इसकी खानें मालपुरा, टोडा रायसिंह एवं दूनी में है। यह लगभग सालाना ४००० मन निकलता है। यह बिजली की मशीनों, रेडियों हवाई जहाज आदि में काम में आता है।
गाया भाटा (केला साईट) यह मावड़ा, खेतड़ी, पान व नीम का थाना में मिलता है।
कांच बनाने का बालू (सिलिका सेण्ड) यह बांसको, धूला मानोता आदि में मिलता है। यह चूड़ियां व कांच बनाने के काम में आता है।
चूने का पत्थर यह मांवडा, पाटन, भेसलाना, नायला, परसरामपुरा में मिलता है। इसका सिमेन्ट बनाने में काफी प्रयोग होता है। यों मकान बनाने में भी इसका काफी उपयोग होता है।
काला संगमरमर यह भैसलाना में मिलता है।
इमारती पत्थर यह कोटरी, जसरापुर, आमेर, रघुनाथगढ़ व टोडा रायसिंह के आस पास के खानों में मिलता है।

उद्योग और व्यापार

यह वाणिज्यिक व्यापार केन्द्र है। यहाँ के उद्योगों में इंजीनियरिंग और धातुकर्म, हथकरघा बुनाई, आसवन व शीशा, होज़री, क़ालीन, कम्बल, जूतों और दवाइयों का निर्माण प्रमुख है। जयपुर के विख्यात कला व हस्तशिल्प में आभूषणों की मीनाकारी, धातुकर्म व छापे वाले वस्त्र के साथ-साथ पत्थर, संगमरमर व हाथीदांत पर नक़्क़ाशी शामिल है। जयपुर राज्य की ओर विशेषकर यहाँ के शेखावटी क्षेत्र के निवासी भारत के प्रमुख उद्योगपतियों में गिने जाते हैं। इनके औद्योगिक संस्थान कोलकाता, मुम्बई, अहमदाबाद, कानपुर आदि में हैं। इसमें से कुछ उद्योगपतियों ने जयपुर में कुछ उद्योग धन्धे चालू किये हैं। बड़े पैमाने पर उद्योग धन्धों में यहाँ जयपुर मेटल एण्ड इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, नेशनल बाल बीयकिंरग फैक्ट्री, जयपुर स्पीनिंग एन्ड विविंग मिल्स, मान इन्डस्ट्रियल कारपोरेशन आदि हैं। जयपुर मेटल एण्ड इलेक्ट्रिकल्स अलोय धातु का सामान बनाने का एक बहुत बड़ा कारखाना है। यहाँ बिजली के मीटरों का भी उत्पादन होता है। नेशनल बाल बीयकिंरग फैक्ट्री भारत ही नहीं बल्कि एशिया का सबसे बड़ा कारखाना है। यहाँ बाल बीयकिंरग प्रचूर मात्रा में तैयार होते हैं। मान इन्डस्ट्रियल कारपोरेशन इस्पात के दरवाजे, खिड़कियों के फ्रेम आदि बनाता है। भारत में अपने ढंग का यह पहला कारखाना है। इसके अलावा जोरास्टर एण्ड कम्पनी औद्योगिक आधार पर फैल्ट हैट तैयार करती है।

मीनाकारी और मूर्तिकारी

यहाँ के छोटे पैमाने के उद्योगों में मुख्य हैं - जवाहारात, मीनाकारी तथा जवाहारातों की जड़ाई, खादी व ग्राम उद्योग, हाथ का बना कागज, खिलौने, हाथी दांत, सांगानेरी छपाई, बंधेज व रंगाई का काम, लाख का काम, जूते बनाई, गोटा किनारी का काम। यहां के पीतल के नक्काशी करने वालों तथा मूर्ति कारों की कला सम्पूर्ण भारत में विख्यात है। जयपुर के सिलावट कई वर्षों से हिन्दू देवी - देवताओं की मूर्तियों को बनाने के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। यहाँ की बनी मूर्तियाँ देश के प्रत्येक भाग के मंदिरों में मिल जाएगी। दिल्ली, आगरा, फ़तेहपुर सीकरी के भवनों के निर्माण में भी यहाँ के संगतराशों का मुख्य हाथ रहा है। ये संगतराश ज्यादातर माण्डू, नारनौल व डीग से यहां मिर्जा राजा मानसिंह के समय में आये हुये हैं। इन्होंने पहले आमेर में अपना निवास स्थान बनाया लेकिन सवाई जयसिंह के समय जयपुर नगर में आ बसे। ये अपने काम में पूरे उस्ताद हैं। ये ज्यादातर मकराने का संगमरमर का पत्थर, अलवर का रायला का पत्थर व खेतड़ी के मैसलाना का काला पत्थर काम में लाते हैं। सारनाथ के नये बुद्ध मंदिर में स्थापित बुद्ध प्रतिमा यहाँ से बनाकर रखी गयी है।

जवाहारातों का केन्द्र

जयपुर जवाहारातों का प्रमुख केन्द्र है। यहाँ रत्नों की कटाई, व बनाई बड़ी कुशलता से की जाती है। विशेषकर पन्ने की खरड़ के नगीने, मणिया, नीलम, मणाक आदि बनाने में यह स्थान विशेष प्रसिद्ध है। यहाँ के हाथी दांत के खिलौने कला की दृष्टि से बहुत सुन्दर बनते हैं। हाथी दांत की यहां चूड़ियाँ भी बनाई जाती है। हाथी दाँत से बनी विभिन्न वस्तुऐं - मूर्तियाँ, खिलौने, श्रृंगारदान, फूल पत्तियाँ आदि विदेशों को भी काफी जाती है। यहाँ के चाँदी, पीतल, चन्दन, लकड़ी व कुट्टी के खिलौने भी बहुत प्रसिद्ध है। इनमें रंग भराई भी बड़ी कुशलता से की जाती है।

रंगाई, छपाई और बन्धेज

जयपुर के निकट ही सांगानेर में कपड़ों की रंगाई, छपाई तथा बन्धेज प्राचीन काल से प्रसिद्ध चली आ रही है। यहां की छींटे गुजरात, व मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में काफी लोकप्रिय है। सांगानेरी साफे और कीमाल राजपूताना में प्रत्येक व्यक्ति लेना चाहता है। यहां के छीपे लकड़ी के ठप्पों से कपड़े पर छपाई करते हैं। रंगाई व बन्धेज का काम ज्यादातर मुसलमान करते हैं। रंगाई पुरुष तो बन्धेज स्रियाँ ही करती हैं। बन्धेज के दो प्रकार है - चूंदड़ी और लहरिया। दोनों का ही काम जयपुर में बहुत अच्छा होता है।[2]

भाषा

मुख्य भाषा राजस्थानी है। हिन्दी, अंग्रेज़ीपंजाबी भाषा - भाषी भी काफी हैं। राजस्थानी भाषा की दो शाखाओं का यहाँ ज्यादा प्रचलन है - शेखावटी क्षेत्र में मारवाड़ी का व शेष क्षेत्र में ढ़ूंढ़ाडी का। दोनों क्षेत्रों के निवासियों को एक दूसरे की भाषा समझने में कोई कठिनाई नहीं होती है। यही बात हिन्दी भाषा वालों के लिए भी है। यहाँ की राजभाषा सन् १९४३ ई० से हिन्दी तथा उर्दू दोनों घोषित की गई है। इसके पहले यहाँ उर्दू का ही बोलबाला था। जयपुर के नरेशों ने हिन्दी व संस्कृत साहित्य की वृद्धि में अपना अपूर्व योगदान दिया। उन्होंने साहित्य व विद्या प्रेमियों दोनो को ही उचित रुप से सम्मानित किया। इनके आश्रय में न केवल संस्कृत बल्कि हिन्दी, राजस्थानी तथा अन्य कई भाषाओं के प्रकाण्ड विद्वान रहे हैं। जयपुर राज्य के नरेशों के कार्यकाल में कई महात्माओं - अग्रदास, नाभदास, दादूदयाल, रज्जव, ग़रीबदास आदि ने भक्ति प्रधान साहित्य की रचना की।[2]

शिक्षण संस्थान

जयपुर में 1947 में स्थापित राजस्थान विश्वविद्यालय स्थित है।

कला

जयपुर के राजा कला प्रेमी थे। युद्धों में लगे रहने के बावजूद बीच बीच में जब भी इन्हें मौका मिलता, कला व साहित्य की ओर ये ध्यान देते थे। अत: यहाँ शौर्य और कला का अपूर्व मिश्रण हुआ है। यहाँ के राजाओं ने कलाकारों को अपने दरबार में आश्रय दिया। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यहाँ के नरेशों का मुगलों से अत्यधिक सम्पर्क रहने से यहाँ की कला पर भी काफी प्रभाव रहा लेकिन उसमें भी काफी लोकिकता है।

चित्रकला

जयपुर की चित्रकला राजस्थान की चित्रकला में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। जयपुर शैली का युग 1600 से 1900 तक माना जाता है। जयपुर शैली के अनेक चित्र शेखावाटी में 18 वीं शताब्दी के मध्य व उत्तरार्द्ध में भित्ति चित्रों के रूप में बने हैं। इसके अतिरिक्त सीकर, नवलगढ़, रामगढ़, मुकुन्दगढ़, झुंझुनू इत्यादि स्थानों पर भी इस शैली के भित्ति चित्र प्राप्त होते हैं।

मोती डुंगरी क़िला, जयपुर

Blockquote-open.gif सवाई जयसिंह ने नए नगर जयपुर को आमेर से तीन मील (4.8 किमी) की दूरी पर मैदान में बसाया। इसका क्षेत्रफल तीन वर्गमील (7.8 वर्ग किमी) रखा गया। नगर को परकोटे और सात प्रवेश द्वारों से सुरक्षित बनाया गया। इस नगर की स्थापना 1728 ई. में की थी और राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर इसका यह नाम रखा गया गया। स्वतंत्रता के बाद इस रियासत का विलय भारतीय गणराज्य में हो गया। जयपुर सूखी झील के मैदान में बसा है जिसके तीन ओर की पहाड़ियों की चोटी पर पुराने क़िले हैं। Blockquote-close.gif

  • जयपुर शैली के चित्रों में भक्ति तथा श्रंगार का सुन्दर समंवय मिलता है। कृष्ण लीला, राग-रागिनी, रासलीला के अतिरिक्त शिकार तथा हाथियों की लड़ाई के अद्भुत चित्र बनाये गये हैं। विस्तृत मैदान, वृक्ष, मन्दिर के शिखर, अश्वारोही आदि प्रथानुरूप ही मीनारों व विस्तृत शैलमालाओं का खुलकर चित्रण हुआ है। जयपुर के कलाकार उद्यान चित्रण में भी अत्यंत दक्ष थे। उद्योगों में भांति-भांति के वृक्षों, पक्षियों तथा बन्दरों का सुन्दर चित्रण किया गया है।
  • मानवाकृतियों में स्त्रियों के चेहरे गोल बनाये गये हैं। आकृतियाँ मध्यम हैं। मीन नयन, भारी, होंठ, मांसल चिबुक, भरा गठा हुआ शरीर चित्रित किया गया है। नारी पात्रों को चोली, कुर्ती, दुपट्टा, गहरे रंग का घेरादार लहंगा तथा कहीं-कहीं जूती पहने चित्रित किया गया है। पतली कमर, नितम्ब तक झूलती वेणी, पांवों में पायजेब, माथे पर टीका, कानों में बालियाँ, मोती के झुमके, हार, हंसली, बाजुओं में बाजूबन्द, हाथों में चूड़ी आदि आभूषण मुग़ल प्रभाव से युक्त हैं।
  • स्त्रियों की भांति पुरुषों को भी वस्त्राभूषणों से सुजज्जित किया गया है। पुरुषों को कलंगी लगी पगड़ी, कुर्ता, जामा, अंगरखा, ढोली मोरी का पायजामा, कमरबन्द, पटका तथा नोकदार जूता पहने चित्रित किया गया है।
  • जयपुर शैली के चित्रों में हरा रंग प्रमुख है। हासिये लाल रंग से भरे गये हैं जिनको बेलबूटों से सजाया गया है। लाल, पीला, नीला, तथा सुनहरे रंगों का बाहुल्य है।

पर्यटन

राजस्थान पर्यटन की दृष्टि से पूरे विश्व में एक अलग स्थान रखता है लेकिन शानदार महलों, ऊँची प्राचीर व दुर्गों वाला शहर जयपुर राजस्थान में पर्यटन का केंद्र है। यह शहर चारों ओर से परकोटों (दीवारों) से घिरा है, जिस में प्रवेश के लीये 7 दरवाज़े बने हुए हैं 1876 मैं प्रिंस आफ वेल्स के स्वागत में महाराजा सवाई मानसिंह ने इस शहर को गुलाबी रंग से रंगवा दिया था तभी से इस शहर का नाम गुलाबी नगरी (पिंक सिटी) पड़ गया। यहाँ के प्रमुख भवनों में सिटी पैलेस, 18वीं शताब्दी में बना जंतर-मंतर, हवामहल, रामबाग़ पैलेस और नाहरगढ़ क़िला शामिल हैं। अन्य सार्वजनिक भवनों में एक संग्रहालय और एक पुस्तकालय शामिल है।

जनसंख्या

जयपुर की जनसंख्या (2001) 23,24,319 है और जयपुर ज़िले की कुल जनसंख्या 52,52,388 है।

वीथिका

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत विभाजन से पूर्व
  2. 2.0 2.1 2.2 2.3 तनेगारिया, राहुल। जयपुर राज्यभौगोलिक एवं आर्थिक विवरण (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) IGNCA। अभिगमन तिथि: 5 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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